Gurjar Pratihar MP ke ithas me | गुर्जर प्रतिहार-मध्यप्रदेश के इतिहास में


गुर्जर प्रतिहार-मध्यप्रदेश के इतिहास में

गुर्जर प्रतिहार-मध्यप्रदेश के इतिहास में 


  • राजस्थान में हरिशचंद्र द्वारा स्थापित इस वंश की एक शाखा नागभट्ट-I के समय उज्जैन में स्थापित हुई। इसने अरबों के आक्रमण को विफल किया। 
  • वत्सराज ने राज्य का विस्तार किया जिससे राष्ट्रकूट शासक कृष्ण III, पाल नरेश धर्मपाल और प्रतिहार नरेश वत्सराज के बीच त्रिपक्षीय संघर्ष हुआ। 
  • रामभद्र के पुत्र मिहिरभोज के समय अरब यात्री सुलेमान आया। मिहिरभोज की महत्वपूर्ण उपलब्धि बुंदेलखंड पर अधिकार था। 
  • मिहिरभोज को ध्रुव (राष्ट्रकूट) तथा कोकल्ल (कल्चुरी, त्रिपुरी) से पराजित होना पड़ा। 
  • इसके बाद महेन्द्रपाल-I शासक बना। राजेश्वर इसके दरबारी विद्वान व कवि थे। जिसने कर्पूरमंजरी, हरविलास, बालरामायण, भुवनकोश, काव्यमीमांसा की रचना की। भोज-सस के बाद महिपाल शासक बना जिसका जिक्र अलमसूदी ने किया। 
  • राज्यपाल को चंदेल नरेश विद्याधर गंड ने मारकर त्रिलोचनपाल को राजा बनाया। 
  • यशपाल अंतिम प्रतिहार राजा था।

उज्जैन और कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहार के मध्यप्रदेश में अभिलेख 

  • आठवीं शताब्दी ई. के पूर्व एक चौथाई भाग में गुर्जर प्रतिहारों की एक शाखा उज्जैन में स्थापित हो गई थी। गुर्जर-प्रतिहारों की इस शाखा के शासक नागभट्ट प्रथमवत्सराजनागभट्ट द्वितीयअपने समकालीन राष्ट्रकूट जो समय-समय पर उत्तरी भारत पर आक्रमण करते रहते थेटकराए और हार गए। नागभट्ट द्वितीय के शासन के दौरानइस वंश की राजधानी उज्जैन से कन्नौज स्थानांतरित कर दी गई।

 

  • ग्वालियर से मिले एक अभिलेख से पता चलता है कि नागभट्ट द्वितीय के उत्तराधिकारी रामभद्र के शासन के दौरान यह क्षेत्र गुर्जर-प्रतिहारों के साम्राज्य में सम्मिलित था। ग्वालियर से ही मिलेरामभद्र के उत्तराधिकारीमिहिरभोज के तीन अभिलेख इस बात की पुष्टि करते हैं कि संबंधित क्षेत्र उसके राज्य का एक भाग था। उज्जैन पर अपने अधिकार को बनाए रखने के लिये मिहिरभोज को राष्ट्रकूट अमोघवर्ष और कृष्ण द्वितीय से युद्ध करना पड़ा। गुना के आस-पास के क्षेत्र गुर्जर प्रतिहारों के साम्राज्य का भाग बने रहेइसका संकेत रखेतरा (गुना) से मिले विनायकपालदेव के अभिलेखों से मिलता है।

 

  • कन्नौज के गुर्जर-प्रतिहारों की मुख्य शाखा के पतन के बाद भी तीन छोटी प्रतिहार शाखाओं ने गुनाशिवपुरीजबलपुर और दमोह में शासन करना जारी रखा। अभिलेखों से पता चलता है कि वे चंदेरी और खंडवाकुरैठा और जबलपुर दमोह क्षेत्र पर राज कर रहे थे।

 



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