यथार्थवाद का अर्थ परिभाषा रूप |यथार्थ के मूल सिद्धांत | यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ |Realism Theory in Hindi

यथार्थवाद का अर्थ परिभाषा रूप  मूल सिद्धांत , यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ

यथार्थवाद का अर्थ परिभाषा रूप |यथार्थ के मूल सिद्धांत | यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ |Realism Theory in Hindi

थार्थवाद शब्द का अर्थ  :

 

यथार्थवाद शब्द अंग्रेजी भाषा के शब्द Realism का हिन्दी रूपांतर है। Real शब्द की उत्पत्ति ग्रीक भाषा के Res शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ 'वस्तुहै। अतः Realism का अर्थ वस्तु सम्बधी विचारधारा से है । 


यथार्थवाद का अर्थ 

 

'यथार्थवादवस्तु के अस्तित्व सम्बंधी विचारों के प्रति एक दृष्टिकोण हैं जो प्रत्यक्ष जगत को सत्य मानता है। आदर्शवाद के अनुसार सत्य का निवास-मानव मस्तिष्क मे ये है पर यथार्थवाद के अनुसार इसका आवास-भौतिक जगत की वास्तविक वस्तुओं और घटनाओं में है वर्षा होती हैसूर्य चमकता है ऋतुओं मे परिवर्तन होता हैपृथ्वी अपनी धुरी पर घूमती है ये सब घटनाएँ सत्य है चाहे हमको इनका ज्ञान हो या नही। 


यथार्थवाद की परिभाषा :

 

स्वामी रामतीर्थ के अनुसार  यथार्थवाद की परिभाषा

यथार्थवाद का अर्थ वह विश्वास या सिद्धांत है जो जगत को वैसा स्वीकार करता है जैसा कि हमें दिखायी देता है।

 

ब्राउन के अनुसार यथार्थवाद की  परिभाषा

यथार्थवाद का मुख्य विचार यह है कि सब भौतिक वस्तुएँ या बाध्य जगत के पदार्थ वास्तविक है और उनका अस्तित्व देखाने वालों से पृथक है। यदि उनको देखने वाले व्यक्ति न हों तो भी उनका अस्तित्व होगा और वे वास्तविक होंगे।

 

नेफ के अनुसार यथार्थवाद की परिभाषा

यथार्थवादआत्मगतआदर्शवाद का प्रतिकार है जो सत्य का निवासमानव मस्तिष्क में मानत है। सब यथार्थवादी इस बात से सहमत है कि सत्य और वास्तविक का असतित्व है और रहेगाभले ही किसी व्यक्ति को उनके अस्तित्व का ज्ञान न हो।

 

यथार्थ के मूल सिद्धांत :

 

दृश्य जगत ही सत्य है 

यथार्थवादियों का सिद्धांत है कि जगत में हम जो कुछ देखते हैं सुनने या अनुभव करते हैं वे सब हमारे समक्ष प्रत्यय रूप में होते हैं। अतः जो कुछ प्रत्यक्ष है वही सत्य है। इस जगत की सत्यता विचारों के कारण नहीं हैवरन् उसका असतित्व स्वयं में हैं क्योंकि वह प्रत्यक्ष है जो प्रत्यक्ष है उसका अस्तित्व  है।

 

आंशिक सिद्धांत : 

प्रसिद्ध यथार्थवादी हाइटहैड का विचार है कि संसार की चर-अचर प्रत्येक वस्तु समष्टि का एक अंग है। समस्त अवयवों में सम्मिलित रूप से तरंगित प्रक्रिया हो रही है जिसके परिणाम स्वरूप परिवर्तन दृष्टिगत होते हैं। इस परिवर्तनशीलता के कारण जगत् के समस्त तत्वोंविचारों एवं नियमों में अनवरत परिवर्तन होते रहते हैं। इस प्रकारइस सिद्धांत के समर्थक वैज्ञानिक नियमों को शाश्वत नहीं मानते हैं। वरन् परिवर्तनशील स्वीकार करते हैं यही वह बिन्दु हैं जहाँ यथार्थवाद भौतिकवाद से भिन्न हो जाता है। क्योंकि भौतिकवाद के  अनुसार वैज्ञानिक नियम स्थिर एवं शाश्वत माने जाते हैं।

 

इन्द्रियाँ : ज्ञान के द्वार हैं: 

यथार्थवादियों के अनुसार सच्चे ज्ञान की प्राप्ति केवल इन्द्रियाँ द्वारा ही होती हैं। किसी वस्तु की जानकारी हम इन्द्रियों द्वारा देखकर सूंघकर चखकर या स्पर्श करके प्रात करते हैं। इन्द्रियों एवं वस्तुओं के सम्पर्क के फलस्वरूप हमें जो संवेदना होती है। यह साथ वास्तविकता है। रसेल के अनुसार पदार्थ के अन्तिम निर्णायक तत्व अणु नहीं हैंवरन् संवेदन हैंमेरा विश्वास है कि हमारे मानसिक जीवन के रचनात्मक तत्व पूर्णतः संवेदनाओं और प्रतिमाओं में निहित होते हैं। 

 

वस्तु जगत में नियमितता : 

यथार्थवादी वस्तु जगत में नियमितता को स्वीकार करते हैं। इसी कारण उनका दृष्टिकोण यांत्रिक बन जाता है। जिसके परिणामस्वरूप वे मन का भी यंत्रिक ढंग से क्रियाशील मानते हैं। यथार्थवादियों की यह धारणा इस बात पर आधारित है। अनुभव और ज्ञान के लिए नियमितता का होना परमावश्यक है।

 

यथार्थवादपारलौकिकता को अस्वीकार करता है

यथार्थवाद प्रत्यक्ष जगत् को ही सब कुछ मानता है। इसके अनुसार इस लोक से परे कोई वस्तु नहीं है। इस प्रकार यह वैज्ञानिक दृष्टिकोण एवं वस्तुनिष्ठा पर बल देता है। वस्तुतः यथार्थवाद अपनी प्रक्रिया में वैज्ञानिक हैं।

 

मानव के वर्तमान व व्यावहारिक जीवन पर बल

रस्क के अनुसार "नव यथार्थवाद का उद्देश्य का ऐसे दर्शन का प्रतिपादन करना है जो सामान्य जीवन के तत्वों तथा भौतिक विज्ञान के विकास प्रतिपादन करता हैजो सामान्य जीवन के तथ्यों तथाभौतिक विज्ञान के विकास के अनुकूल है।” यथार्थवादी उन आदर्शोनियमों एवं मूल्यों को कोई महत्व नहीं देते हैं जिनका समबंध वर्तमान एवं व्यावहारिकता से नहीं है। 


यथार्थवाद के रूप :

 

1. सरल यथार्थवाद: 

यथार्थवाद का यह रूप अति प्राचीन काल से चला आ रहा है। मानव अपने समक्ष की वस्तुओं में विश्वास रखता है। यही इस रूप का प्रमुख आधार है। इसी विश्वास के आधार पर मनुष्य अपने सामाजिक एवं सांस्कृतिक रीति रिवाजों का निर्माण करता है।

 

2. नव यथार्थवाद : 

नव यथार्थवाद का विकास एक नियोजित दार्शनिक सम्प्रदाय के रूप में हुआ। वस्तुतः इसके विकास में विज्ञान ने बहुत सहयोग दिया। यह रूपज्ञान के सिद्धांत का प्रतिपादन करता है। नव-यथार्थवाद ने आदर्शवाद का खण्डन करके अपना पृथक ज्ञान शास्त्र बनाया।

 

3. आलोचनात्मक यथार्थवाद: 

यथार्थवाद के इस रूप का विकास नव यथार्थवाद की आलोचना के कारण हुआ। यह रूप इस बात में आस्था रखता है। कि ज्ञाता का मन जब बाह्य विचारों को ग्रहण करता है तब बाह्य वस्तुओं का अपना स्वतंत्र असतित्व मानता है।

 

यथार्थवादी शिक्षा की प्रमुख विशेषताएँ :

 

रॉस के अनुसार जिस प्रकार प्रकृतिवादशिक्षा के क्षेत्र में बनावरी प्रशिक्षण पद्धतियों के विरोध स्वरूप उपस्थित हुआ हैउसी प्रकार यथार्थवाद् उस पाठ्यक्रम के विरोध में आया है जो पुस्तकीयअवास्तविक एवं जटिल हो गया है।

 

1. विस्तृत व व्यावहारिक पाठ्यक्रम :

 गुड के अनुसार विस्तृत पाठ्यक्रम यथार्थवाद की एक प्रमुख विशेषता थी। 17वीं शताब्दी के यथार्थवादियों हेतु यह अस्वाभाविक ही था कि वे 25 या 80 विषयों के अध्ययन का प्रस्ताव प्रस्तुत करें जिनमें लैटिन फ्रेंच और वर्नाक्यूलर जैसी दो या तीन भाषाएँ गणित की दो या तीन शाखाएँकई सामाजिक अध्ययन के विषयबहुत से विज्ञानदार्शनिकसैन्य सम्बंधी और व्यावसायिक तथा शिष्टाचार सम्बंधी विभिन्न विषय हों।

 

2. प्राकृतिक तत्वों व सामाजिक संस्थाओं का महत्व : 

यथार्थवादी शिक्षा में विषयों की अपेक्षा प्राकृतिक तत्वों एवं सामाजिक संस्थाओं को महत्व प्रदान किया गया। पॉल मुनरो ने लिखा है- शिक्षा में यथार्थवाद उस प्रकार की शिक्षा के लिए प्रयुक्त किया जाता है। जिसमें भाषाओं और साहित्य की अपेक्षा प्राकृतिक घटनाओं और सामाजिक संस्थाओं को अध्ययन का मुख्य विषय बनाया जाता है।

 

3. इन्द्रियाँ : ज्ञान के प्रमुख द्वार हैं: 

यथार्थवाद के अनुसार इन्द्रियाँ ही ज्ञान के प्रमुख द्वार है इस प्रकार इसने इन्द्रियों पर बल देकर शिक्षा में सहायक सामग्री तथा दृश्य-श्रव्य साधनों के प्रयोग एवं महत्व को बढ़ाया।

 

4. उदार शिक्षा पर बल : 

यथार्थवाद ने उदार शिक्षा पर बल दिया। मानववादी यथार्थवाद के समर्थक मिल्टन के अनुसार मैं उस शिक्षा को पूर्ण एवं उदार शिक्षा कहता हूँ जो एक व्यक्ति को न्यायोचित ढंग से कुशलतापूर्वक तथा उदारता के साथ निजी एवं सार्वजनिक दोनों प्रकार के सभी कार्यों को शांति तथा युद्ध के समय पूर्ण करने के योग्य बनाती है।

 

5. व्यावसायिक शिक्षा पर बल 

यथार्थवादउदार शिक्षा के साथ-साथ व्यावसायिक शिक्षा पर बल देता है। डेविनपोर्ट का कथन है कोई भी व्यक्ति किसी व्यवसाय के बिना शिक्षा का चयन न करें और न बिना शिक्षा के व्यवसाय का चयन करें।

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