यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा उद्देश्य पाठ्यक्रम |यथार्थवाद का शिक्षा पर प्रभाव |Education according to realism in Hindi

यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा उद्देश्य पाठ्यक्रम ,यथार्थवाद का शिक्षा पर प्रभाव 

यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा उद्देश्य पाठ्यक्रम |यथार्थवाद का शिक्षा पर प्रभाव |Education according to realism in Hindi



यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा :

 

यथार्थवाद ने शिक्षा को विकास की प्रक्रिया माना। उनके शब्दों में “सामाजिक एवम् वैयष्टिक शक्तियों को पुनर्जीवित करने की प्रक्रिया ही शिक्षा है। " 

 

यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य : 

 

1. वास्तविक जीवन की तैयारी 

2. छात्रों की शारीरिक विकास करना एवम् इन्द्रियों के विकास का प्रशिक्षण देना। 

3. नैतिक, चारित्रिक एवम् सामाजिक विकास के साथ व्यावसायिक रूप से प्रशिक्षित करना । 

4. प्राकृतिक एवम् सामाजिक पर्यावरण का ज्ञान करना । 

5. वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना। 

6. मानसिक विकास करना। 

 

यथार्थवाद के अनुसार पाठ्यक्रम : 

उन्हें सभी पाठ्यक्रमों के सह सम्बंधों पर जोर दिया। उन्होंने वैज्ञानिक, सामाजिक, कला कौशल, भाषा, साहित्य सम्बंधी विषयों के ज्ञान प्रदान करने का उल्लेख किया। जिससे भाषाएँ, साहित्य, कलायें, कौशल एवं हस्त कार्य, प्राकृतिक विज्ञान, राजनीति विज्ञान, गृहशास्त्र, गणित, इतिहास, धर्म, शिक्षा, भूगोल आदि विषयों को सम्मिलित किया। जिसके साथ श्रृव्य-दृश्य साधनों के प्रयोग पर बल देता है। 

 

यथार्थवाद के अनुसार शिक्षा विधि : 

यथार्थवादी शिक्षण में निरीक्षण, प्रदर्शन, विश्लेषण, आगमन, हयूस्टिक पद्धति, सहसम्बंध विधि प्रयोगात्मक विधियों के प्रयोग पर बल दिया। 

 

यथार्थवाद के अनुसार शिक्षक 

यथार्थवाद ने शिक्षक को महत्वपूर्ण बताया है। वह केवल पथ-प्रदर्शक के रूप में कार्य करें और उन्हें प्रशिक्षित करने पर जोर देता है और अध्यापक को यह जानना चाहिए कि "किसको" "किस समय" और कितना पढ़ाना चाहिए। 

 

यथार्थवाद का शिक्षा पर प्रभाव : 

यथार्थवाद ने "ज्ञान जीवन के लिये" का नारा लगाया और जीवन के 'रोटी, कपड़ा, मकान की समस्या सुलझाने के लिये शारीरिक, मानसिक, सामाजिक विकास के लिये शिक्षा का महत्वपूर्ण माना। पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा को महत्वपूर्ण माना। वे शिक्षक के महत्व को मानते हैं और अपेक्षा करते हैं कि अध्यापक बच्चों का मार्गदर्शन करें। और शिक्षार्थी को शिक्षा का केन्द्र मानते हैं। विद्यालयों में शारीरिक दण्ड का विरोध करते हैं उन्होंने वैयक्तिक शिक्षा पर जोर दिया जिससे व्यक्ति की अधिक महत्व मिले लेकिन शिक्षा को एक सामाजिक संस्था के रूप में माना।

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