तार्किक प्रत्यक्षवाद क्या है | तार्किक प्रत्यक्षवाद का विकास |विश्लेषणात्मक दर्शन तथा शिक्षा| Logical positivism Details in HIndi

 तार्किक प्रत्यक्षवाद क्या है , तार्किक प्रत्यक्षवाद का विकास

तार्किक प्रत्यक्षवाद क्या है | तार्किक प्रत्यक्षवाद का विकास |विश्लेषणात्मक दर्शन तथा शिक्षा| Logical positivism Details in HIndi

तार्किक प्रत्यक्षवाद

 

तार्किक प्रत्यक्षवाद के अनुसार सत्य का प्रमाण अनुभव ही होता है। जो प्रत्यक्ष है वह भी अनुभव द्वारा ही प्रमाणित होता है। यह सम्प्रदाय केवल इन्द्रिय अनुभव को ही प्रमाण मानता है। 

 

तार्किक अनुभववाद के मुख्य प्रवर्तक कामटे महोदय है। इसके अन्य प्रवर्तक यथार्थवादी अनुभववादी तथा विज्ञानवादी है। इन्होने एक ऐसे दार्शनिक दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया जो दर्शन के अध्ययन के लिए एक नवीन विधि पर बल देता है। यह दार्शनिक पुरानी दर्शन विधि की आलोचना करते है। नवीन विधि भाषा विश्लेषण तथा तार्किक विश्लेषण पर केन्द्रित है। इस विधि के अनुसार सत्य का परीक्षण तथ्य प्रमाणीकरण के आधार पर किया जाता है। इन दार्शनिको का मत था कि दार्शनिक समस्याओं का हल हमें तथ्य परीक्षण तथा विश्लेषण की विधियों द्वारा ही प्राप्त हो सकता है। भाषा विश्लेषण जिसमें अर्थ स्पष्टीकरण किया जाता है। उस पर प्रत्यक्षवाद बल देता है। 


प्रत्यक्षवाद दर्शन परम्परागत दर्शन को उपयुक्त नही मानता है। उसके अनुसार परम्परागत दर्शन कल्पनात्मक है। वह प्रत्यक्ष संसार तथा उसकी अनेक वस्तुओं को झूठा मानता है और यह प्रतिपादित करता है कि सत्य तथा यथार्थ वास्तव में अनुभव पर निर्भर नही है वरन् यह अनुभव से परे हैं। उन्होने अनुभव से परे सत्ता को परम सत्ताईश्वर तथा ब्रह्म आदि का नाम दिया जिस तक पहुँचना मानव जीवन का परम लक्ष्य हैकिंतु प्रत्यक्षवादी प्रत्यक्ष अनुभव के अतिरिक्त किसी सत्ता के असतित्व को नही मानते । वह तर्कशास्त्र को मान्यता देते हैं। किंतु वह शुद्ध निगमन को छोड़कर आगमन को महत्व देते है। तार्किक प्रत्यक्षवाद एक दार्शनिक विचारधारा तथा विधि है। यह कल्पनात्मक दर्शन का खंडन करती है यह भाषागत तथा तार्किक विश्लेषण की विधि को अपनाती है। यह अपनी प्रकृति मे वैज्ञानिक है। 


तार्किक प्रत्यक्षवाद का विकास : 

 

यह दर्शन पिछले साठ-सत्तर वर्षों में ही विकसित हुआ है। यद्यपि यह कहा जा सकता है कि यह विचारधारा दर्शन शास्त्र के विकास के प्रारम्भिक वर्षो में भी विद्यमान थी।

 

वैज्ञानिक दृष्टिकोण तथा प्रत्यक्ष को प्रमाण मानने की धारणा आगस्ट कामटे द्वारा स्पष्ट की गयी। उन्होंने प्रत्यक्ष जगत को माना तथाइस बात का खण्डन किया कि कोई अलौकिक सत्ता का असतित्व है।

 

सन् 1920 में कुछ अस्ट्रिया तथा जर्मनी के दार्शनिकों ने वियाना सभा नामक संस्था की स्थापना की जिसके द्वारा प्रतिपादित दर्शन को तार्किक प्रत्यक्षवाद या तार्किक अनुभववाद तथा वैज्ञानिक अनुभववाद के नाम से पुकारा जाने लगा। यह सम्प्रदाय दर्शन का कार्य ज्ञान प्राप्त करना नहीं बताता। इसके अनुसार ज्ञान प्राप्त करने का कार्य सारे विज्ञान करते हैं। 

 

इस सम्प्रदाय के अन्य प्रर्वतक थे मूररसल तथा विटिंगसटीन। यह इंग्लैंड के निवासी थें तथा इन्होंने तार्किक विश्लेषण की विधि का दर्शन में प्रयोग किया। आधुनिक तार्किक प्रत्यक्षवादी इस बात पर बल देते हैं कि बहुत सी दार्शनिक समस्यायें केवल भाषाके साथ संबंध रखती है। इनका हल भी भाषा विश्लेषण विधि द्वारा जिसमें शब्दोंधारणाओं इत्यादि के अर्थों को स्पष्ट किया जाता है सम्भव है। 


विश्लेषणात्मक विधि : 

 

विटिंग सटीन का कहना है कि क्योंकि सब दार्शनिक कथन भाषायी संभ्रांति के कारण उत्पन्न होते हैंइस कारण इनका हल भी केवल भाषागत विश्लेषण द्वारा ही प्रदान होगा। 

 

भाषागत विश्लेषण की विधि को समझने के लिये दर्शन की विधियों संश्लेषण तथा विश्लेषण को समझना आवश्यक है। इन दोनों विधियों का दर्शन में प्रयोग होता है। 

 

संश्लेषण भागों को संयुक्त करके एक पूर्ण बनाने की प्रक्रिया है। इस विधि का प्रयोग प्लेटो तथा अन्य दार्शनिकों ने किया। इन सबने यह विचार सामने रखा कि दर्शन का कार्य विभिन्न प्रकार के ज्ञात को संयुक्त करके समग्र ज्ञान की प्रणाली तैयार करना तथा उसके सम्बंध में निष्कर्ष निकालना है। प्रत्यक्षवादी इस धारणासे सहमत नहीं है। उनके अनुसार दर्शन का कार्य प्राप्ति नहीं है। दर्शन तथ्यों से कोई सरोकार नहीं रखता। दर्शन जिन तर्क वाक्यों का प्रयोग करता है। वह परिभाषायें ही है। इस कारण ही यह विश्लेषणात्मक है। 


विश्लेषणात्मक दर्शन तथा शिक्षा : 

 

औजमान तथा क्रेपर का कहना है कि “यदि हमें किसी सरल एकीकरन विषय का विश्लेषणात्मक दर्शन में पता लगाना है तो यह होगा स्पष्टीकरण  " विश्लेषणात्मक दर्शन में यह मान्यता निहित है कि पूर्व की अधिकतर दार्शनिक समस्यायें वास्तव में अंतिम यथार्थता या सत्यसुन्दर तथा शिव की समस्यायें नही थी वरन् भ्रमात्मक भाषा की समस्यायें थी जो अस्पष्ट अर्थों में शुथ वहां गई थी। 

 

तार्किक विश्लेषण एक दर्शन की विधि होने के कारण इसने कोई भी विचारों की व्यवस्था था ब्रम्हाण के सम्बंध में किसी मान्यता का निर्माण नहीं किया है। वास्तव में इस सम्प्रदाय के प्रवर्तक किसी भी प्रकार के व्यवस्थीकरण के विरुद्ध है। 

 

निम्नलिखित विचार इस सम्प्रदाय द्वारा प्रतिपादित है जिनका प्रभाव शिक्षा पर पड़ता है।-

 

1. संसार के सम्बंध में तत्व मीमांसा सम्बंधी कथन न सत्य है न असत्य वरन् असंगत है। संसार यथार्थ है। भाषायी विश्लेषणकर्ता संसार को संवेदनात्मक अनुभव के अंतर्गत मानते हैं या ऐसा समझते हैं जो कि तार्किक रूप से प्रमाणिक है। 

 

2. विश्लेषणात्मक विधि ही केवल ऐसी विधि है जिसके द्वारा यथार्थता का वर्णन किया जा सकता है।


तार्किक विश्लेषण का प्रभाव शिक्षा पर यह पड़ा है। कि शिक्षा के संदर्भ में जिन अवधारणाओंपरिभाषाओंमान्यताओंनारों इत्याद का प्रयोग किया जाता है। उनका परीक्षण किया जाने लगा। जिन शब्दों का प्रयोग किया जाता है। उनका विश्लेषण किया जाता है।

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