अस्तित्ववाद का दर्शन, अस्तित्वाद एवं शिक्षा |अस्तित्ववाद के अनुसार शिक्षा के उदेश्य |Existentialism and education

अस्तित्ववाद दर्शन, अस्तित्वाद एवं शिक्षा ,अस्तित्ववाद के अनुसार शिक्षा के उदेश्य

अस्तित्ववाद का दर्शन, अस्तित्वाद एवं शिक्षा |अस्तित्ववाद के अनुसार शिक्षा के उदेश्य |Existentialism and education


अस्तित्ववाद का दर्शन

 

अस्तित्ववाद के दर्शन की मुख्य बातें निम्नलिखित हैं -


मानव की स्थिति : 

आज के संसार में मानव की स्थिति क्या हैअस्तित्व यह मानते हैं कि मानव का होना ही निराशापूर्ण है। मानव अनुभव व्यथा के है। यह दशा शायद सदैव रही हो पर आज के संसार में कुछ घटनाएँ जैसे- महायुद्धलाचारों पर अत्याचार इत्यादि ऐसी हुई हैं जिन्होंने इस अनुभव की तीव्रता में वृद्धि कर दी है। आज की मानव स्थिति के संबंध में दो बातें कही जा सकती है। पहली हमारी यह जानकारी कि हमारा अस्तित्व अनिश्चित है और दूसरी यह कि मानव अस्तित्व में विशिष्टता अन्तर्निहित है। अब हम इन दोनों विचारों पर कुछ और प्रकाश डालेंगे।

 

जब हम यह कहते हैं कि कोई वस्तु या घटना अनिश्चित है तो हमारा तात्पर्य यह होता है कि यह है भी और नहीं भी। ऐसा कुछ भी नहीं है जो अस्तित्व को आवश्यक बना दें। अस्तित्वादी इस बात पर बल देते हैं कि अनिश्चित को कम महत्व देना एक बड़ी त्रुटि होगी क्योंकि हमारी जानकारी में यह वस्तुओं की प्रकृति ही है। सत्य तो यह है कि संसार का अस्तित्व और मानव का अस्तित्व अर्थहीन है।

 

अस्तित्वाद एवं शिक्षा

अस्तिववाद के प्रमुख प्रवर्तकों ने शिक्षा के सम्बंध में बहुत कम विचार प्रकट किये है। इसके शिक्षा के लिये क्या संकेत हैं इन पर भी कम ही साहित्य मिलता है। दार्शनिकों ने बहुत अधिक इस ओर ध्यान नही दिया है कि अस्तित्ववाद किस प्रकार से शिक्षा की रूपरेखा में परिवर्तन ला सकता है। किंतु इसमे सदेह नही कि अस्तित्ववाद मे बहुत कुछ ऐसा है कि जो शिक्षा के संबंध में महत्वपूर्ण हैं। हम यहाँ अब इस ओर ही ध्यान देंगे।

 

अस्तित्ववाद के दर्शन का यह लक्ष्य है कि मानव अस्तित्व के मूल चारित्र का विश्लेषण किया जाये और मानव का ध्यान उसकी स्वतंत्रता की ओर दिलाया जाये। अतएव यह दर्शन इस ओर ही शिक्षा की प्रक्रिया पर बल देता है। इसका प्रायोगिक पक्ष यह है कि पाठ्यक्रम शिक्षक की भूमिका तथा शिक्षण विधियाँ सब इस प्रकार से निर्धारित की जायें कि अस्तित्ववाद का जो यह मानव संबंधी लक्ष्य है वह प्राप्त किया जा सके।

 

हम शिक्षा के उद्देश्य के संबंध में कह सकते है कि शिक्षा को विद्यार्थियों को इस ओर सहायता देनी चाहिए कि वह अपने में वह बन जायें जो वह बनना चाहते हैं

 

शिक्षा के उद्देश्य जो अस्तित्ववाद के दर्शन में निहित है उनको प्राप्त करने के लिए पाठ्यक्रम का चयन इस प्रकार किया जाना चाहिए कि विद्यार्थियों को उदार शिक्षा मिले।

 

अस्तित्ववाद शिक्षण मे सुकरात विधि पर बल देते है। सुकरात एक प्रामाणिक व्यक्ति का बहुत अच्छा उदाहरण हैं। इसका मानववाद का दर्शन तथा उसका यह प्रतिपादन कि आदमी को केन्द्र मानकर ही खोजबीन होनी चाहिए अस्तित्ववाद के दर्शन में महत्वपूर्ण स्थान रखाता है।

 

शिक्षक-विद्यार्थी सम्बंधों के उपर अस्तित्ववादी बहुत बल देते हैं। उनके अनुसार विद्यार्थी शिक्षक संबंध अधिक व्यक्तिगत होने चाहिए। इस दृष्टिकोण के अनुसार जो शिक्षा में वास्तव में महत्व की चीज है वह संबंध है जो विद्यार्थी और शिक्षक के बीच में स्थापित होते हैं।

 

अस्तित्ववाद के अनुसार शिक्षा के उदेश्य :

 

अस्तित्ववादी शिक्षा के उद्देश्य के सम्बंध में निम्न बातों पर बल देते हैं।

 

1. विद्यार्थी को स्वयं को समझना चाहिए। 

2. शिक्षा द्वारा पूर्ण मानव का विकास किया जाये। 

3. व्यक्तित्व का पूर्ण विकास किया जाये। 

4. विद्यार्थी की व्यक्तिगत रूचि तथा रूझान को महत्व दिया जायें।

 

शिक्षा का संदर्भ :

 

शिक्षा प्रदान करते समय यह बात मान लेनी चाहिए कि जिस संसार मे विद्यार्थी सांस ले रहा है वह ही उसके लिए सब कुछ है। परलोक के लिए शिक्षा या विद्यार्थी को किसी अन्य आने वाले भविष्य के लिए तैयार करना व्यर्थ है। उसको इस संसार में जीवित रहना है और इस जीवन के लिए ही उसे शिक्षा देनी है। अस्तित्ववाद वातावरण को बहुत महत्व देता है। उसके अनुसार वातावरण ही शिक्षा का मुख्य साधन है। उसके चहुँ ओर का वास्तविक संसार ही उसके आत्म बोध को विकसित करता है। 


विद्यार्थी :

 

विद्यार्थी को स्वयं अपने अस्तित्व सम्बंधी निर्णय लेने चाहिए। उसका व्यक्तिगत विकास होना चाहिए। शिक्षा ऐसी होनी चाहिए जो उसे अपने व्यक्तिगत या आत्म के सम्बंध में चेतनाशील बनायें। उसमें आत्म विश्वास और अपने निर्णय आप लेने की क्षमता जाग्रत करनी चाहिए।

 

शिक्षक :

 

शिक्षक को मैं तुम सम्बंध विद्यार्थी के साथ स्थापित करने चाहिए। इससे तात्पर्य है कि विद्यार्थी और शिक्षक मे सीधे सरल और व्यक्तिगत संबंध होने चाहिए। शिक्षक को बालकों का पथ प्रदर्शन करना चाहिए कि वह अपने आत्म के प्रति वफादार बन सके। 


पाठ्यक्रम :

 

ऐसे विषयों को पाठ्यक्रम में नहीं रखना चाहिए जिनका अपने आप में कोई मूल्य नही है। यथार्थवादी किसी भी ऐसे पाठ्य विषय का विरोध करते है जोकि मानव आकांक्षाओंआवश्यकताओं एवं स्थितियों से असम्बंधित हैं। उनका कहना है कि गणितविज्ञान या साहित्य मे कोई आंतरिक मूल्य नहीं हैं। 


अस्तित्ववाद की शिक्षा मे देन :

 

शिक्षा के क्षेत्र मे इस दर्शन ने बालक को अपने अनुभवों से सीखने पर बल दिया इस प्रकार यह दर्शन बाल केन्द्रित शिक्षा का समर्थक है। 

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