प्रयोजनवाद तथा शिक्षा | प्रयोजनवाद तथा शिक्षा के उद्देश्य| Pragmatism and education in HIndi

 प्रयोजनवाद तथा शिक्षा (Pragmatism and education)

प्रयोजनवाद तथा शिक्षा | प्रयोजनवाद तथा शिक्षा के उद्देश्य| Pragmatism and education in HIndi


 

प्रयोजनवाद तथा शिक्षा

प्रयोजनवाद के तीन रूप हैं :

 

1. मानवीय प्रयोजनवाद 

2. प्रायोगात्मक प्रयोजनवाद 

3. जीवशास्त्रीय प्रयोजनवाद

 

बालक के स्थान को प्रकृतिवाद के अनुरूप ही यह वाद भी महत्व देता है। बालकबालक है न कि प्रौढ़ का एक छोटा रूप उसकी आवश्यकताओंइच्छाओं तथा रुचियों में और एक प्रौढ़ की आवश्यकताओंइच्छाओं तथा रुचियों में अंतर होता है। यथार्थ को परिवर्तनशील मानकर बालक को भविष्य के लिए शिक्षा देने की बात करना अनुचित है। शिक्षा के उद्देश्य को निश्चित करने की बात पर प्रयोजनवादी बल नहीं देते हैं।

 

शिक्षाशिक्षा के लिए इस सिद्धांत के विपरीत शिक्षा बालक के लिए में उनका विश्वास है। शिक्षा का महत्व तथा आवश्यकता बालक की कुछ इच्छाओं की पूर्ति करने में है। बालक को वातावरण के अनुकूल बनाने में शिक्षा का हाथ होता है।

 

मनुष्य के मस्तिष्क को इकाई मानकर प्रयोजनवादी शिक्षा सिद्धांत और शिक्षा मनोविज्ञान के निकट आता है तथा वह मानता है कि वे दोनों एक दूसरे पर परस्पर प्रभाव डालते हैं।

 

आज के युग पर इस वाद का प्रभाव स्पष्ट ही अंकित है। शिक्षा के आदर्श परिवर्तनशील विश्व में से नहीं रह सकते। शिक्षा रुचिकर होआवश्यकताओं की पूर्ति करने वाली हो समाज केन्द्रित हो तथा उसकी शक्ति समाज के विकास में लगे इस प्रकार के सिद्धांतों द्वारा उन्हेंनि शिक्षा को नवजीवन प्रदान किया है और निगमन विधि प्रयोगात्मक विधि प्रयोगात्मक सिद्धांत तथा बाध्य मूल्यों आदि प्रत्ययों के माध्यम से शिक्षा को इस वाद द्वारा बल भी मिला है।

 

प्रयोजनवाद तथा शिक्षा के उद्देश्य :

 

शिक्षा की स्थितियाँ चाहे वे स्कूल की हो या बाहरी जीवन प्रवाह के चक्र में घटनामात्र है। इसलिये जानने की ये घटनाएं और अधिक जानकारी के साधक बनकर सफल अनुभवों का रूप अंत में धारण कर लेती है। प्रयोजनवाद की शिक्षा का उद्देश्य न केवल व्यक्ति के जीवन सफलता हैवरन् सामाजिक जीवन की असफलता है इसलिए सभ्यताव्यावसायिक तथा उदार शिक्षा के मूल्यसभी उसमें आवश्यक है। उनके मतानुसार जीवन के प्रवाह से हट जाना या अपने में ही संकुचित हो जाना मूल्यों का नाश करना है।

 

दर्शन शिक्षा के सफल प्रयोगों की पृष्ठभूमि है। प्रायः यह माना जाता है कि दर्शन शिक्षा का प्रेरक है किन्तु प्रयोजनवादी शिक्षा को दर्शन से प्रेरणा मिलती है ऐसा नहीं मानते। इसके विपरीत वे मानते हैं कि दर्शन को शिक्षा से प्रेरणा मिलती है। नवीन समाज का उद्देश्य शिक्षा का मुख्य कार्य है। समाज केन्द्रित शिक्षा ही उचित है। शिक्षा समाज की आशाओं का केन्द्र है जो जीवन को और सफल बनायेंगी। जब यथार्थ ही परिवर्तनशील है तो विकास तथा वृद्धि ही शिक्षा के उचित उद्देश्य हो सकते हैं। वृद्धि या विकास की जानकारी हमें वे नहीं देते क्योंकि उनकी राय में यह प्रश्न ही अनुचित है। कारण स्पष्ट है गति परिवर्तन तथा क्रय की नींव पर आश्रित वृद्धि को किसी उद्देश्य में बाँधा नहीं जा सकता।

 

इस प्रकार हम निम्नलिखित निष्कर्ष पर पहुंचते हैं

 

1. शिक्षा में पूर्व निर्धारित उद्देश्य उचित नहीं। 

2. गतिशील यथार्थ मानकर केवल वृद्धि को ही शिक्षा का उद्देश्य माना जा सकता है। तथा 

3. जीवन और शिक्षा दोनों शब्दों का एक ही कार्य है।

 

प्रयोजनवाद का आधुनिक शिक्षा पर प्रभाव :

 

दर्शन के रूप में नहीं वरन् व्यवहार के रूप में प्रयोजनवाद ने आधुनिक शिक्षा पर बहुत प्रभाव डाला है। शिक्षा एक व्यावहारिक कला है और व्यावहारिक दृष्टि से प्रयोजनवाद शिक्षा से पुनः निर्माण में बहुत सहायक सिद्ध हुआ।

 

1. शिक्षा व्यापक रूप से विकास वृद्धि या व्यवहार परिवर्तन का रूप लेती है। 

2. शिक्षा के निकट के उद्देश्य बहुत महत्व रखते हो और उनकी प्राप्ति के लिए शिक्षण विधियाँ प्रगतिशील हो। 

3. शिक्षा जीवन केन्द्रित हो और एक प्रगतिशील समाज में वह भी प्रगति का परिचय दे। 

4. शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है और समाज का पोषण है। 

5. समाज शिक्षा संस्थाओं को अपने आदर्शों की पूर्ति के लिए स्थापित करता है। अतः शिक्षण संस्थाएं समाज का बंधु रूप है। 

6. जनतंत्रीय समाज के लिये जनतंत्रीय शिक्षा की आवश्यकता है। 

7. ज्ञान की उत्पत्ति क्रिया से होती हैक्रिया प्रधान है असफलतापूर्वक क्रिया का सम्पादन करने के लिए वह ज्ञान आता है और बालक क्रिया द्वारा सीखता है। 

8. शिक्षा बालक नैसर्गिक प्रवृत्तियोंरुचियोंशक्तियों आदि को केन्द्र बनाकर दी जायें परंतु उसको साथ ही साथ सामाजिक रूप भी दिया जाये। बालक अपने हित के साथ-साथ समाज का हित करने की क्षमता भी सीख ल इस प्रकार प्रयोगवाद ने अनिवार्य सामान्य शिक्षाप्रौढ़ शिक्षा और व्यावसायिक शिक्षा के सन्दर्भ में बढ़ावा दिया। शैक्षिक जागरुकता भी महत्वपूर्ण देन है।

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