प्रयोजनवाद का अर्थ परिभाषा |Pragmatism Meaning and Explanation in Hindi

  प्रयोजनवाद का अर्थ परिभाषा
 (Pragmatism Meaning and Explanation in Hindi)

प्रयोजनवाद का अर्थ परिभाषा |Pragmatism Meaning and Explanation in Hindi


प्रयोजनवाद का अर्थ  

'प्रेग्मेटिज्मशब्द ग्रीक शब्द प्रेग्मेटिकोस (Pregmatikos) से आया है। ग्रीक ‘प्रेग्याका अर्थ है “किया हुआ कार्य”। दर्शन के रूप में इस वाद को लाने का श्रेय भी चार्ल्स सेन्डर्स पीयर्स को है। Pragmatic का अर्थ Practical इसलिए उसका हिन्दी रूपान्तर व्यावहारिक होगा। प्रेग्मेटिज्म का अर्थ प्रयोजनवाद करना भी उचित हैक्योंकि इस वाद में सोद्देश्य क्रिया को महत्व दिया जाता है। तथा सत्य को प्रयोजन की कसौटी पर करना जाता है। 


 प्रयोजनवाद की परिभाषायें 

 

1. जेम्स के अनुसार प्रयोजनवाद मस्तिष्क का स्वभाव तथा मनोवृत्ति है। यह विचारों की प्रकृति एवं सत्य का भी सिद्धांत है और अपने अंतिम रूप में यह वास्तविकता का सिद्धांत है।

 

2. रॉस के अनुसार प्रयोजनवाद एक मानवीय दर्शन है जो यह स्वीकार करता है कि मनुष्य क्रिया की अवधि में अपने मूल्यों का निर्माण करता है और यह स्वीकार करता है कि वास्तविकता सदैव निर्माण की अवस्था में रहती है। 


3. जेम्स प्रैट के अनुसार प्रयोजनवाद हमें अर्थ का सिद्धांतसत्य का सिद्धांतज्ञान का सिद्धांत और वास्तविकता का सिद्धांत देता है। 


प्रयोजनवाद की प्रमुख विशेषताएँ :

 

1. प्रजातंत्र में आस्था : 

अर्थ क्रियावाद प्रजातंत्र शासन व्यवस्था पर बल देकर उसके प्रति अपनी आस्था अभिव्यक्त करता है। वह प्रजातंत्र को जीवन का एक तरीका व अनुभवों का आदान-प्रदान करने की एक व्यवस्था के रूप में देखता है। वह जीवनशिक्षा व प्रजातंत्र को एक दूसरे से सम्बन्धित प्रक्रिया मानते हैं।

 

2. किसी सार्वभौमिक सत्ता में आस्था व होना :

 प्रयोजनवाद ईश्वरीय सत्ता को स्वीकार नहीं करता। वह यह मानता है कि ईश्वर मिथ्या है। आत्मा के अस्तित्व को वह मानता अवश्य हैपरन्तु उसे एक क्रियाशील तत्व के रूप में स्वीकार करता है। उनके अनुसार सर्वोच्च सत्ता समाज की होती है।

 

3. परम्पराओं व मान्यताओं का विरोधी : 

अर्थ क्रियावाद निर्धारित अवस्थाओं का विरोधी है। प्रकृतिवाद द्वारा प्रकृति के अस्तित्व में विश्वास रखना या आदर्शवादारा एक चिरस्थायी सत्य को यह स्वीकार नहीं करता। वह विचारों की अपेक्षा क्रिया को अधिक महत्व देता है व यह मानता है कि वास्तविकता एक निर्माणशील प्रक्रिया है और उसके सम्बंध में हम किसी भी सामान्य सिद्धांत का प्रतिपादन नहीं कर सकते हैं।

 

4. शाश्वत मूल्यों पर बहिष्कार 

प्रयोजनवाद किसी निश्चित या शाश्वत सत्य या सिद्धांत की सत्ता को स्वीकार नहीं करता। वह यह मानते हैं कि मूल्य तो मानव की व्यक्तिगत व सामाजिक घटनओं के फलस्वरूप उत्पन्न होते हैं जो सदैव परिवर्तनशील होते हैं वह यह मानते हैं कि विश्व गतिशील है। अतः मूल्य भी गतिशील होते हैं।

 

5. उपयोगिता के सिद्धांत पर बल 

प्रयोजनवाद यह मानता है कि किसी भी सिद्धांत या विश्वास की कसौटी उपयोगिता है। यदि कोई सिद्धांत हमारे उद्देश्यों का पूरक है व हमारे लिए लाभप्रद है तो ठीक है अन्यथा नहीं ।

 

6. व्यक्ति के सामाजिक जीवन पर बल : 

प्रयोजनवाद व्यक्ति को एक सामाजिक इकाई के रूप में स्वीकार करता है व बालक के व्यक्तित्व के सामाजिक पक्ष के विकास की अधिकांश चर्चा करता है। व्यक्ति समाज में रहकर अपने जीवन को सफल बना सकेंइसे वह महत्व देता है।

 

7. मनुष्य एक मनोशारीरिक प्राणी 

प्रयोजनवाद मनुष्य को एक मनोशारीरिक प्राणी मानता है। इनके अनुसार मनुष्य को विचार व क्रिया करने की शक्तियाँ प्रदान है। जिनके माध्यम से मनुष्य समस्या को समझने व उनका हल ढूंढने का प्रयास करता है। 


प्रयोजनवाद के मूल सिद्धांत :

 

1. यह वाद किसी भी शाश्वत मूल्य तथा शाश्वत सत्य में विश्वास नहीं रखता। 

2. यथार्थ का ज्ञान असंभव है। 

3. परिकल्पना को प्रयोग द्वारा परखकर हम ज्ञान के समीप पहुँच सकते हैं। 

4. मनुष्य रचनात्मक कार्य करता हैयथार्थ की रचना तक में उसका हाथ है तथा मूल्य तो मानव द्वारा ही निर्मित होते हैं। 

5. सत्य वस्तु पर घटित होता हैयदि वह उपयोगी है तो उसे मानना हमार कय है। फल द्वारा ही वस्तु के गुण का निर्णय हो सकता है। 

6. मनुष्य सामाजिक प्राणी हैइसी कारण सामाजिक कुशलता का गुण मनुष्य में आना आवश्यक है। व्यक्ति का जीवन समाज में रहकर ही सफल हो सकता है। समाज के बाहर 'मनुष्यकल्पना की बात है तथा उसकी सपुलता संभव है।


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