पर्यावरणीय क्षरण (प्रदूषण)के कारण और प्रभाव और नियन्त्रण के उपाय |Environmental Pollution Reason and Impact in Hindi

 पर्यावरणीय क्षरण (प्रदूषण) के कारण और प्रभाव 

पर्यावरणीय क्षरण (प्रदूषण)के कारण और प्रभाव और नियन्त्रण के उपाय |Environmental Pollution Reason and Impact in Hindi


पर्यावरणीय क्षरण (प्रदूषण) (Environmental Pollution)

 

  • पर्यावरणी प्रदूषण वर्तमान समय में मानवता एवं पृथ्वी की सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है। पृथ्वी के वातावरण में उपस्थित भौतिक एवं जैविक घटकों (Physical and Biological Components) का इस स्तर तक प्रदूषित होना कि सामान्य पर्यावरणीय प्रक्रिया नकारात्मक रूप से प्रभावित होने लगे तो इस स्थिति को पर्यावरणीय प्रदूषण कहा जाता है।

 

  • पर्यावरणी प्रदूषण हमारे परिवेश (Surroundings) में होने वाला प्रतिकूल परिवर्तन (Unfavorable Alteration) है, जो आंशिक अथवा पूर्ण रूप से मानवीय क्रियाकलापों का परिणाम है।

 

  • वनस्पतियों एवं जैव विविधता में कमी, वातावरण एवं खाद्यान्नों में हानिकारक रसायनों की अधिक मात्रा में उपस्थिति, पर्यावरणीय दुर्घटनाओं (Environmental Accidents) के बढ़ते खतरे तथा जीवन रक्षा तंत्र (Life Support System) के लिए उत्पन्न संकट आदि से यह प्रमाणित होता है कि प्रदूषण के कारण पर्यावरणीय गुणवत्ता (Environmental Quality) में गिरावट आयी है।

 

पर्यावरणीय अवनयन (Environmental Degradation )

 

  • प्राकृतिक संसाधनों जैसे वायु, जल, भूमि के क्षरण, पारितंत्र (Ecosystem) एवं पर्यावास (Habitat) के विनाश, वन्यजीवों की विलुप्ति (Extinction of Wildlife) तथा प्रदूषण के माध्यम से पर्यावरण का ह्रास होना पर्यावरण अवनयन कहलाता है। यह पर्यावरण में होने वाले किसी अवांछनीय परिवर्तन (Undesirable Change) अथवा अव्यवस्था (Disturbance) के रूप में परिभाषित किया जाता है। 
  • पर्यावरण प्रदूषण एवं पर्यावरण अवनयन दोनों प्रक्रियाओं के परिणामस्वरूप पर्यावरण की शुद्धता में ह्रास (Deterioration of Purity) होता है।

 

पर्यावरणीय प्रदूषक (Environmental Pollutants) 

 

  • वे पदार्थ जो पर्यावरणीय घटकों को नकारात्मक रूप से प्रभावित करके प्रदूषण उत्पन्न करते हैं, पर्यावरणीय प्रदूषक कहलाते हैं। कोई भी रासायनिक (Chemical), भू-रासायनिक (Geochemical), जैविक अथवा भौतिक पदार्थ अथवा ऊर्जा जो मानव द्वारा जानवूझकर (Intentionally) अथवा अनजाने में (Inadvertently) उत्पादित अथवा उत्सर्जित किए जाते हैं तथा जो पर्यावरण पर वास्तविक अथवा सम्भाव्य प्रतिकूल (Adverse ), हानिकारक (Harmful), अप्रिय (Unpleasant) अथवा असुविधाजनक (Inconvenient) प्रभाव डालते हैं, प्रदूषक कहलाते हैं।

 

पर्यावरण प्रदूषकों का वर्गीकरण

 

उत्पत्ति के आधार पर प्रदूषक

  • प्राकृतिक-ज्वालामुखी विस्फोट भूकम्प जैविक पदार्थों का सावण वनाग्नि विभिन्न गैसें. समुद्री कण आदि

  • मानव जानित  -गैसें धूल. ऊष्मा कणिकोय पदार्थविविध रासायनिक यौगिक आदि

स्वरूप के आधार पर 

  • प्राथमिक प्रदूषक- जो अपने मूल रूप में रहकर प्रदूषण फैलाते हैं। जैसे-DDT, CO, CO. प्लास्टिक NH, NO, NO, PM आदि।


  • द्वितीयक प्रदूषक-प्राथमिक प्रदूषकों की अंतर्क्रिया से उत्पन्न प्रदूषक जैसे परॉक्सी एसिटिल नाइट्रेट (PAN). ओजोनसल्फर ट्राई ऑक्साइड (SO,), H. SO, स्मॉग, H,O, आदि। 


दृश्यता के आधार पर प्रदूषक

  • दृश्य प्रदूषक-धुँआधूल वाहित मल. जलकचरा आदि
  • अदृश्य प्रदूषक-सूक्ष्म धूल कणजीवाणुजल व मृदा में मिश्रित रसायनध्वनि आदि


अवस्था के आधार पर  प्रदूषक

  • ठोस कणिकीय प्रदूषक - धूलकणएरोसॉलपारासीसा, •एस्बेस्टस आदि के कण
  • गैसीय प्रदूषक - So, CO Co., NO, CFCS आदि 

  • तरल प्रदूषक -अमोनियायूरिया या नाइट्रेट युक्त जल आर्सेनिक युक्त जल आदि।

निस्तारण के आधार पर प्रदूषक  

  • जैन निम्नीकरणीय -घरेलू कचरामल मूत्र. बाहित मन आदि 
  • जैन अनिम्नीकरणीय -प्लाष्टिक, भारी धातुएं रेडियो एक्टिव तत्व, DDT आदि 


पर्यावरणीय क्षरण (प्रदूषण) की परिभाषा

 

  • जब एक निश्चित सीमा से अधिक प्राकृतिक पर्यावरण में मानव का हस्तक्षेप बढ़ने लगता है, तो इससे पर्यावरण को हानि पहुँचती है। पर्यावरण का यह विघटन समस्त जीवों के लिए हानिकारक होता है।

 

राष्ट्रीय पर्यावरण अनुसंधान परिषद् के अनुसार पर्यावरण प्रदूषण की परिभाषा 

"मानवीय क्रियाकलापों से उत्पन्न अपशिष्ट उत्पादों के रूप में पदार्थों एवं ऊर्जा के विमोचन से प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले हानिकारक परिवर्तनों को प्रदूषण कहते हैं।" प्रदूषण हमारे चारों ओर स्थित वायु, भूमि और जल के भौतिक, रसायनिक और जैविक विशेषताओं में अनावश्यक परिवर्तन है, जो मानव जीवन की दशाओं और सांस्कृतिक संपदा पर हानिकारक प्रभाव डालता है।

 

संयुक्त राज्य अमेरिका में राष्ट्र विज्ञान समिति की पर्यावरण प्रदूषण उप-समिति के भी 1965 के अपने प्रतिवेदन में प्रदूषण को निम्न रूप में परिभाषित किया है- 


प्रदूषण मानवीय क्रियाकलापों का ऐसा उत्पाद है, जिसने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से ऊर्जा, प्रतिरूपों, विकिरण स्तरों तथा जीवों के भौतिक व रासायनिक संगठनों पर विपरीत प्रभाव डाला है, जिसके कारण मानव को प्रत्यक्ष रूप में तथा परोक्ष रूप से उत्पन्न जल संसाधन, जलापूर्ति, कृषि, जैविक उत्पादों, मानव के भौतिक स्वामित्व, मनोरंजन के अवसरों व नैसर्गिक सुंदरता की उपलब्धता में कमी आई है।

 

  • वैज्ञानिकों के अनुसार विगत पांच दशकों में पृथ्वी के औसत तापक्रम में 1° सेल्सियस की वृद्धि हुई है। अब यदि 3.6° सेल्सियस तापक्रम की और वृद्धि होती है तो आर्कटिक एवं अंटार्कटिक के विशाल हिमखंडों का अस्तित्व समाप्त हो जाएगा, परिणामस्वरूप समुद्र के जलस्तर में 10 इंच से लेकर 5 फुट तक की वृद्धि होगी। ऐसी स्थिति में मुंबई, कोलकाता, मद्रास, विशाखापट्टनम, कोचीन, तिरुअनंतपुरम और पणजी जैसे शहरों का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा।

 

प्रदूषण के कारण प्रभाव और नियन्त्रण के उपाय

 

  • पर्यावरण प्रदूषण का मुख्य कारण अदूरदर्शिता, भावी परिणामों के प्रति लापरवाही माना जा सकता है। जिसके कारण यह गंभीर समस्या और भी अधिक घातक हो जाती है और हमारा यही नकारात्मक दृष्टिकोण समस्या को सुलझाने में निरंतर बाधा उत्पन्न करता है। प्रो० राजेंद्र सिंह एवं डॉ० तेज बहादुर सिंह के संयुक्त अध्ययन के अनुसार प्रदूषण का वर्गीकरण निम्नलिखित है।

 

1. प्रकृति जन्य प्रदूषण 

2. मानव जन्य प्रदूषण

 

1. प्रकृति जन्य प्रदूषण 

  • प्रकृति जन्य प्रदूषण के अंतर्गत वे प्रक्रियाऐं शामिल हैं जो प्रकृति से उत्पन्न होकर भी किसी प्रकार प्राकृतिक प्रदूषण उत्पन्न करने में सहायक होती है वस्तुतः प्रकृति द्वारा उत्पन्न प्रदूषण अधिक घातक नहीं होता जैसे ज्वालामुखी विस्फोट, प्राकृतिक आपदाएँ, भूमि क्षरण इत्यादि ।

 

2. मानव जन्य प्रदूषण: 

  • मानव जन्य प्रदूषण ही वास्तव में प्रदूषण का मुख्य कारक होता है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष सभी प्रदूषण मानव निर्मित ही होते है जैसे ध्वनि प्रदूषण, औद्योगिक प्रदूषण, जल प्रदूषण एवं सांस्कृतिक प्रदूषण

 

प्रदूषण नियन्त्रण के उपाय

 

  • हम दिनों दिन पर्यावरण की सुरक्षा के प्रति लापरवाह होते जा रहे हैं, जिसके परिणामस्वरूप भविष्य में घातक परिणाम हो सकते हैं। पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होकर अगर ध्यान न दें तो जन-जीवन के लिए परिणाम घातक हो सकते हैं। इसके लिए निम्न कार्य किए जाने आवश्यक हैं।

 

वृक्षारोपण कार्यक्रमः 

वृक्षारोपण कार्यक्रम युद्धस्तर पर चलाना, परती भूमि पहाड़ी क्षेत्र, ढलान क्षेत्र में पौधा रोपण करना। 

प्रयोग की वस्तु दोबारा इस्तेमाल डिस्पोजेबल, ग्लास, नैपकिन, रेजर आदि का उपयोग दुबारा किया जाना। 


भूजल सम्बन्धित उपयोगिताः 

  • नगर विकास, औद्योगिकरण एवं शहरी विकास के चलते पिछले कुछ समय से नगर में भूजल स्रोतों का तेजी से दोहन हुआ। एक ओर जहाँ उपलब्ध भूजल स्तर में गिरावट आई है, वहीं उसमें गुणवत्ता की दृष्टि से भी अनेक हानिकारक अवयवों की मात्रा बढ़ी है। शहर के अधिकतर क्षेत्रों के भूजल में विभिन्न अवयवों की मात्रा, मानक से अधिक देखी गई है। 35.5 प्रतिशत नमूनों में कुल घुलनशील पदार्थों की मात्रा से अधिक देखी गई। इसकी मात्रा 900 मिग्रा० प्रतिलीटर अधिक देखी गई। इसमें 23.5 प्रतिशत क्लोराइड की मात्रा 250 मिलीग्राम प्रति लीटर से अधिक थी। 50 प्रतिशत नमूनों में नाइट्रेट 96.6 प्रतिशत नमूनों में अत्यधिक कठोरता विद्यमान थी। 


पॉलीथिन का बहिष्कारः 

  • पर्यावरण संरक्षण के लिए पॉलीथिन का बहिष्कार, लोगों को पॉलीथिन से उत्पन्न खतरों से अवगत कराएं।

 

कूड़ा-कचरा निस्तारणः 

  • कूड़ा-कचरा एक जगह पर एकत्र करना, सब्जी, छिलके अवशेष, सड़ी-गली चीजों को एक जगह एकत्र करके वानस्पतिक खाद तैयार करना।

 

कागज की कम खपत करना:-

  • रद्दी कागज को रफ कार्य करने, लिफाफे बनाने, पुनः कागज तैयार करने के काम में प्रयोग करना।

पर्यावरणीय क्षरण (प्रदूषण)

पर्यावरणीय प्रदूषण

वायु प्रदूषण

जल प्रदूषण

मृदा प्रदूषण

प्रदूषण नियंत्रण में मानव की भूमिका 

सागरीय जलप्रदूषण

ध्वनि प्रदूषण

ऊष्मीय प्रदूषण

नाभिकीय प्रदूषण:आणविक खतरे

ठोस अपशिष्ट काप्रबन्धन

प्रदूषण सम्बन्धी केस अध्ययन

आपदा प्रबन्धनः बाढ़, भूकम्प, चक्रवात और भूस्खलन

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