नाभिकीय प्रदूषण का प्रभाव | नाभिकीय प्रदूषण नियंत्रण के उपाय| Nuclear pollution in Hindi

नाभिकीय प्रदूषण का प्रभाव, नाभिकीय प्रदूषण नियंत्रण के उपाय

नाभिकीय प्रदूषण का प्रभाव | नाभिकीय प्रदूषण नियंत्रण के उपाय| Nuclear pollution in Hindi


नाभिकीय प्रदूषण: आणविक खतरे 

  • पर्यावरण में रेडियोधर्मी पदार्थों की बहुलता भी पर्यावरण प्रदूषण का एक बहुत बड़ा कारण है। रेडियोधर्मी तत्व जैसे यूरेनियमथोरियम स्वयं ही विघटित हो जाते हैंजिससे ऊर्जा का विमोचन होता है। परमाणु शक्ति का यही आधार है। रेडियोधर्मी पदार्थों की क्रियाशीलता से हुए प्रदूषण को रेडियोधर्मी प्रदूषण कहा जाता है। परमाणु बिजली घरों के रियेक्टरों में रेडियोधर्मी पदार्थों का उपयोग ईंधन के रूप में किया जाता हैजिससे ऊर्जा की विशाल मात्रा प्राप्त होती है और अवशेष के रूप में राख बनती है। इसी राख को परमाणु कचरा कहते हैं। इस परमाणु कचरे से भी प्रदूषण फैलता है।

 

नाभिकीय प्रदूषण का प्रभाव

 

1. वंशानुगत विकृति उत्पन्न होती है। 

2. गर्भस्थ शिशुओं में जन्म जाती बिमारियाँ होती हैं। 

3. शरीर में माइटोसिस क्रिया बंद हो जाती है जिससे रक्त की कमी होती है।

4. इन विकिरणों का प्रभाव मस्तिष्कआंतों एवं अस्थिमज्जा पर भी होता है। 

5. इसी के साथ विकिरण से महिलायें बांझ व पुरुषों में में नपुसंकता उत्पन्न होती है। 6. वायु में मौजूद रेडियोएक्टिव कण मनुष्य के श्वसन तंत्र पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं। इसके अलावा खाद्य 

7. श्रृंखला के द्वारा उपभोग के माध्यम से इनका अप्रत्यक्ष प्रभव भी पड़ता है। रेडियोएक्टिव विकिरण का मानव स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। परमाणु कचरे से निरंतर हानिकारक विकिरण निकलते हैं जिससे कैंसर जैसे का जन्म होता है।

 

नाभिकीय प्रदूषण नियंत्रण के उपाय

 

  • रेडियोएक्टिविटी के कुछ हानिकारक प्रभावों के बावजूद नाभिकीय शक्ति व रेडियोएक्टिव पदार्थों के अन्य लाभकारी उपयोग आधुनिक विकास गतिविधियों के महत्वपूर्ण अंग हैं। पर्यावरण सुरक्षा के प्रति सचेत देश भी प्रमुखतः विद्युत उत्पादन के लिए नाभिकीय शक्ति पर निर्भर रहे हैं। विद्युत उत्पादक के अन्य स्रोतों की तुलना में नाभिकीय स्रोत का पर्यावरण पर प्रभाव न्यूनतम होता हैलेकिन पर्यावरण के लिए सुरक्षित बनाने हेतु इस संबंध में कुछ निगरानी व नियंत्रणकारी उपाय करने होंगे।

 

1. रेडियोएक्टिव प्रदूषकों पर नियंत्रण के लिए सभी विशेष उपाय अपनाने चाहिए और इन सभी उपायों का लक्ष्य यह होना चाहिए कि रेडियोएक्टिव प्रदूषण का स्तर स्वीकृत सीमा से अधिक न हो।

 

2. ऐसे औद्योगिक अपशिष्ट जिनमें रेडियोएक्टिव तत्व होंइनको उचित उपचार के पश्चात ही बहिस्रावित करने की अनुमति होनी चाहिए। 

3. इस प्रकार की तकनीक विकसित की जानी चाहिएजिनके द्वारा इन अपशिष्टों का पूर्ण उपचार के बाद उपयोग किया जा सकता है।

4. व्यावसायिक रूप से उपयोग होने वाले विकिरण से अधिक व्यक्ति प्रभावित होते हैं। इसको रोकने के लिए  कड़े कदम उठाए जाने चाहिए। 

5. रेडियोएक्टिव पदार्थों के साथ यदि विकिरण की मात्रा कम करना असंभव हो तो ऐसे उपाय अपनाने चाहिए कि इस विकिरण से संपर्क अवधि कम से कम हो कार्य शीघ्र पूरा करने के लिए विभिन्न क्रियाओं का तेजी से संचालन किया जा सकता है अथवा कर्मचारियों की संख्या बढ़ाई जा सकती है। 


अतः इन विनाशकारी हथियारों का पृथ्वी या सागर में कहीं भी परीक्षण नहीं करना चाहिए। मानव समुदाय को इन परीक्षणों के विरुद्ध आवाज उठाते हुए चिर शांति स्थापित करने की दिशा में अपना योगदान देना चाहिए।

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.