जल प्रदूषण स्त्रोत कारण प्रभाव नियंत्रण के उपाय |जल प्रदूषण क्या है ? |Water Pollution Source effect control

 जल प्रदूषण स्त्रोत  कारण प्रभाव नियंत्रण के उपाय

जल प्रदूषण स्त्रोत  कारण प्रभाव नियंत्रण के उपाय |जल प्रदूषण क्या है ? |Water Pollution Source effect control


जल प्रदूषण क्या है ? 

  • जल एक प्रकृति प्रदत्त उपहार है। जल आर्थिकसांस्कृतिक और जैविक दृष्टि से पृथ्वी का उपयोगी संसाधन है। यह एक मात्र ऐसा प्राकृतिक संसाधन है जिस पर मानव सभ्यता पूरी तरह आश्रित है। जल ही जीवन है ओर जब तक जल हैसिर्फ तक तक ही जीवन है। इसीलिए अगर जल का संकट हे तो जीवन पर भी संकट छाएगा। यही कारण है कि यूनेस्को के महासचिव कोफी अन्ना के अनुसार यदि जल के स्रोतों और परिस्थितियों का सही तरीके से प्रबंध नहीं किया गया तो वर्ष 2025 तक विश्व की दो तिहाई जनसंख्या को जल की भीषण कमी का सामना करना पड़ेगा।" इसी कारण संयुक्त राष्ट्र संघ ने इस वर्ष के "विश्व जल दिवस 22 मार्च2002" के लिए "विकास के लिए जलका नारा दिया है।

  


जल प्रदूषण का अर्थ (आशय)

 

  • शुद्ध जल मानव के लिए एक आधारभूत आवश्यक प्राकृतिक संसाधन हैकिंतु इसमें अवांछित बाह्य पदार्थो के सम्मिलित होने से अवनति आ रही है। सामान्यतः स्वच्छ जल में संतुलित सीमा से अधिक मात्रा में अवांछित तत्वों के समावेश के कारण उसका वास्तविक स्वरूप परिवर्तित हो जाता हैऐसे जल को प्रदूषित जलकहते हैं। अर्थात् यदि किसी बाहरी तत्व की उपस्थिति से जब जल के भौतिक व रासायनिक गुणों में किसी भी प्रकार का परिवर्तन होता है तो वह परिवर्तन जल प्रदूषण कहलाता है।

 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन (1996) के अनुसार प्राकृतिक व कृत्रिम स्रोतों से उत्पन्न अवांछित बाह्य पदार्थों के कारण जल प्रदूषित हो जाता है तथा वह विषाक्तता तथा ऑक्सीजन की सामान्य स्तर से कम मात्रा के कारण जीव-जंतुओं के लिए हानिकारक हो जाता है। इसके कारण कई प्रकार के संक्रामक रोगों का प्रसार होने लगता है।'

 

जल की गुणवत्ता 

 

  • जल एक ऐसा रंगहीन द्रव है जो हाइड्रोजन का मोनो आक्साइड होता है । HO के सूत्र के द्वारा इसके संगठन को दर्शाया जाता है। जल का अधिकतम घनत्व 4° सेंटीग्रेट पर होता है और हिमांक बिंदु 0° सेंटीग्रेट एव क्वथनांक 100° सेंटीग्रेट पर होता है।

 

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) 1971 के अनुसार जल की गुणवत्ता के मानक-

 

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(क) भौतिक मानक: 

  • विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार पेयजल स्वच्छशीतल स्वादयुक्त तथा गंध रहित हो।

 

(ख) रासायनिक मानक

  •  इसके बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन का मत है कि पेयजल का pH का मान 7 व 85 के मध्य होऔर उसमें निम्नलिखित से अधिक अपदृव्यताएं नहीं होनी चाहिए।

 

जल प्रदूषण के स्त्रोत 

  • तैलीय प्रदूषण 
  • जैविक प्राकृतिक प्रदूषकों द्वारा 
  • समुद्रों में नाभिकीय परीक्षण से 
  • औद्योगिक अपशिष्टों के विसर्जन से 
  • कृषि कार्यों में रासायनिक उर्वरक एवं कीटनाशकों के प्रयोग से 
  • घरेलू अपशिष्टों के विसर्जन से

 


  • जल प्रदूषण क्या हैएवं इसके कारणों पर टिप्पणी लिखिए। 
  • जल प्रदूषण के प्रभावों व नियंत्रण के उपयों पर प्रकाश डालिए।


जल प्रदूषण के कारण:

 

जल प्रदूषण के निम्न कारण सामान्यतः देखे जा सकते हैं-

 

  • साबुन एवं डिटर्जेंट पदार्थों का जल स्रोतों में मिलने से। 
  • चिकनाई युक्त पदार्थतेल एवं पेट्रोलियम पदार्थों का जल स्रोतों में मिलना। 
  • उर्वरक एवं कीटनाशक पदार्थों का जल स्रोतों में मिश्रण। 
  • आणविक ऊर्जा एवं पावर हाउस से निकला उष्ण जल तथा आणविक अवशिष्ट पदार्थों का जल स्रोतों में 
  • फैक्ट्री एवं उद्योगों से निकलने वाले अपशिष्ट पदार्थरासायनिक विषाक्त तत्व आदि का जल स्रोतों मिश्रण।
  • मानव व पशुमल-मूत्र आदि का जल स्रोतों में मिश्रण। 
  • सड़े-गले आहारफलसब्जीपेड़-पौधे तथा अन्य कार्बनिक एवं अकार्बनिक पदार्थों का जल स्रोतों में मिश्रण।  
  • जल भंडारण स्थलों की गंदगी एवं नियमित स्वच्छता का अभाव।  
  • अपद्रव्य पदार्थों का जल स्रोतों में मिश्रण। 
  • जल स्रोतों का सार्वजनिक स्नान तथा आमोद-प्रमोद इत्यादि हेतु प्रयोग

 

जल प्रदूषण का प्रभाव:

  • जल प्रदूषण के कारण निम्न रोग उत्पन्न होते हैं।
  • प्रोटोजोआजन्य रोग 
  • विषाणुजन्य रोग 
  • जीवाणुजन्य रोग 
  • पीलियापोलियोडेंगू आदि हैजाटायफाइडपेचिशअतिसार आदि । 
  • अमिबारुग्णताजियार्डिया रुग्णता आदि गोल कृमिकृषाकृमिसूत्रकृमि आदि। 
  • कृमिजन्य रोग 
  • लेप्टोस्पाइरा रुग्णता
  • वेल्स रोग।

 

  • जल प्रदूषण से अभिप्राय जल निकायो जैसे कि झीलोंनदियोंसमुद्रों और भूजल के पानी के संदूषित होने से है। जल प्रदूषणइन जल निकायों के पादपों और जीवों को प्रभावित करता है और सर्वदा यह प्रभाव न सिर्फ इन जीवों या पादपों के लिए अपितु संपूर्ण जैविक तंत्र के लिए विनाशकारी होता है।

 

  • जल प्रदूषण का मुख्य कारण मानव या जानवरों की जैविक या फिर औद्योगिक क्रियाओं के फलस्वरूप पैदा हुए प्रदूषकों को बिना किसी समुचित उपचार के सीधे जल स्रोतों में विसर्जित कर दिया जाना है।

 

  • जल प्रदूषण एक प्रमुख वैश्विक समस्या है। इसके लिए सभी स्तरों पर चल रहे मूल्यांकन और जल संसाधन नीति में संशोधन की आवश्यकता है। क्योंकि जल प्रदूषण के कारण पूरे विश्व में कई प्रकार की बीमारियाँ और लोगों की मौत हो रही हैं। जिसमें 580 लोग भारत के हैं। चीन में शहरों का 90 प्रतिशत जल प्रदूषित होता है।


जल प्रदूषण का मापनः 

जल प्रदूषण को मापा भी जा सकता है। इसके मापन हेतु कई विधियों उपलब्ध हैं। 

रासायनिक परीक्षणः 

  • जल के कुछ नमूने लेकर रासायनिक प्रक्रिया द्वारा यह ज्ञात किया जा सकता है कि उसमें कितनी अशुद्धता है। इसमें मुख्यतः pH, और जीवों द्वारा ऑक्सीजन की आवश्यकता आदि है।

 

जैविक परीक्षण: 

  • जैविक परीक्षण में पेड़-पौधेजीव-जंतु आदि का उपयोग किया जाता है। इसमें इनके स्वास्थ्य और बढ़ने की गति आदि को देखकर उनके रहने के स्थान और पर्यावरण की जानकारी मिलती है।

 

जल प्रदूषण पर नियंत्रणः 

जल शोधन: 

  • जल प्रदूषण पर नियंत्रण हेतु नालों का नियमित रूप से साफ-सफाई करना चाहिए। ग्रामीण इलाकों में जल निकास हेतु पक्के नालियों की व्यवस्था नहीं होती है। इस कारण इसका जल कहीं भी अस्त-व्यस्त तरीके से चले जाता है और कि नदी नहर आदि जैसे स्रोत तक पहुंच जाता है। इस कारण नालियों को ठीक से बनाना और उसे जल के किसी भी स्रोत से दूर रखने आदि का कार्य भी करना चाहिए।

 

औद्योगिक अपशिष्ट रोकना: 

  • कई उद्योग वस्तु के निर्माझा के बाद शेष बची सामग्री जो किसी भी कार्य में नहीं आती हैउसे नदी आदि स्थानों में डाल देते हैं। कई बार आस-पास के इलाकों में भी डालने पर वर्षा के जल के साथ यह नदी या अन्य जल के स्रोतों तक पहुंच जाता है। 


  • इस प्रदूषण को रोकने हेतु उद्योगों द्वारा सभी प्रकार के शेष बचे सामग्री को सही ढंग से नष्ट किया जाना चाहिए। कुछ उद्योग सफलतापूर्वक इस नियम का पालन करते हैं और सभी शेष बचे पदार्थों का या तो पुनः उपयोग करते हैं या उसे सुरक्षित रूप से नष्ट कर देते हैं। इसके अलावा इस तरह के पदार्थों को कम करने हेतु अपने निर्माण विधि में भी पविर्तन किए हैं। जिससे इस तरह के पदार्थ बहुत कम ही बचते हैं।

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