नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) के बारे में मार्क्स के विचार | Marx's ideas about civil society In Hindi

नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) के बारे में मार्क्स के विचार
Marx's ideas about civil society In Hindi
नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) के बारे में मार्क्स के विचार | Marx's ideas about civil society In Hindi


  नागरिक समाज के बारे में मार्क्स के विचार 


  • नागरिक समाज के बारे में हेजेल ने अवधारणा व्यक्त की है कि नागरिक समाज आधुनिकता की नागरिकता तथा अहमवादी व्यक्तित्व से उदभूत होता है। मार्क्स के विचार इस अवधारणा से काफी मिलते जुलते हैं लेकिन राज्य की द्वैधता के बारे में हेजेल के विचार को मार्क्स ने अस्वीकार कर दिया है। 


  • मार्क्स ने इस बात को स्वीकार किया है कि राज्य का सार तत्व नागरिक समाज में व्यक्तियों के खास हितों को सीमाओं को पार करते हुए सार्वभौमिकता के सिद्धान्त की ओर जाता है। 


  • मार्क्स ने हेजेल के इस विचार को परे रख दिया है कि नागरिक समाज राज्य की अधीनस्थता में रहता है। मार्क्स के अनुसार नागरिक क्षेत्र में स्वार्थपरताअहमन्यता और धन लोलुप्तता पाई जाती हैं। यह मध्यवर्गीय क्रान्ति के जरिये इसमें बदलाव नहीं लाया जा सकता है। 


  • नागरिक क्षेत्र में जो कुछ घटित होता हैराज्य उससे भिन्न नहीं हो सकता है क्योंकि यह अभी ऐतिहासिक प्रक्रिया से जन्म होता है जिससे नागरिक समाज उद्भूत होता है। मध्यम वर्ग की असीमित ताकत नागरिक क्षेत्र में दमन और शोषण के कार्यों में लगी रहती हैं।


  • इसलिए इस प्रकार की पृष्ठभूमि को देखते हुए राज्य वर्ग का धब्बा लगा हुआ एक संस्थान का रूप लेता है जिसमें निष्पक्षता और सार्वभौमिकता के सिद्धान्त नहीं रह सकते हैं। मार्क्स के विचार में राज्य नागरिक क्षेत्र में विरोधाभासों से समझौता करते हुए चलता है इसलिए वह नागरिक समाज पर हावी नहीं रह सकता है यह नागरिक समाज के उन विरोधों को केवल निलंबित रख सकता है।

 

मार्क्सवादी स्थिति को स्पष्ट करते हुए चंडोक के विचार 


मार्क्सवादी स्थिति को स्पष्ट करते हुए चंडोक ने लिखा है कि-


"नागरिक समाज ऐसा मंच है जहाँ सामाजिक और राजनीतिक बीचप्रभुत्य तथा प्रतिरोध के बीच दमन तथा अभ्युदय के बीच द्वैधता के वाहक चलते रहते हैं। इस प्रकार मार्क्स ने नागरिक समाज के बारे में हेजेल और उन उदारवादियों के विचारों का खंडन किया है जिन्होंने नागरिक समाज को स्वतंत्रता और अधिकारों का मुख्य स्थान माना है। इसके विपरीत माक्र्स ने नागरिक समाज की वास्तविक प्रकृति का पर्दाफास किया है "जहाँ समानता तथा स्वतंत्रता के थोथे राजनीतिक रागों द्वारा उत्पादन सम्बंधों में व्यक्ति की शक्तिहीनता की तस्वीर झलकती है।" 


नागरिक समाज को अपनी मुक्ति के लिए राज्य के बाहर नहीं बल्कि उसके भीतर झाँकना होता है इसके लिए गहरी जड़ों वाले लोकतान्त्रिक स्वरूप में परिवर्तन लाना होता है जो आवश्यक नहीं कि क्रान्ति द्वारा ही लाया जाता हो। मार्क्स के अनुसार नागरिक समाजव्यस्थताओं की प्रणाली को लागू करके नहीं बचाया जा सकता है।


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