हेजलः नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) और राज्य |Hazel: Civil Society and the State

हेजलः नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) और राज्य

हेजलः नागरिक समाज (सिविल सोसायटी) और राज्य |Hazel: Civil Society and the State


 

  • जैसा कि हम पहले विचार कर चुके हैं कि श्रेष्ठ राजनीतिक अर्थशास्त्री ऐसे पहले लोग थे जिन्होंने राज्य को नागरिक समाज से अलग माना लेकिन हेजेल ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने राज्य नागरिक समाज के अंतर का स्पष्ट विश्लेषण किया।


  • हेजेल की दृष्टि में नागरिक समाज और आधुनिकता जुड़वा चीजें थी। व्यक्ति नागरिक समाज में आत्म हित के वैध अनुसरण के दौरान व्यक्तिगत स्वतंत्रता हासिल करता है जोकि उसकी क्षमताओं को पूर्णता प्रदान करने के लिए आवश्यक होती हैं। आधुनिक समाज के अधिकार सम्पन्न व्यक्तियों के विचार-विमर्श द्वारा प्रारंभिक काल में विशेषाधिकार के स्थान पर आधुनिक समाज को प्रतिष्ठित किया।

 

हेजेल के अनुसार राज्य नागरिक समाज के अंतर का स्पष्ट विश्लेषण 


नागरिक समाज विश्लेषण

नीरा चन्डोक के सुन्दर विश्लेषण का अनुसरण करते हुए हेजेल ने श्रेष्ठ राजनीतिक अर्थशास्त्रियों के पदचिन्हों का अनुसरण किया। परन्तु पहले के सिद्धान्तवादियों से उनका विश्लेषण तीन प्रकार से भिन्न था।

 

एक-नागरिक समाज विश्लेषण

 

  • हेजेल ने नागरिक समाज को अर्थव्यवस्था के साथ उमड़ी अतिरिक्त पहचान से अलग अस्तित्व प्रदान किया। निःसंदेह नागरिक समाज में सामाजिक परम्पराएँ होती हैं जो पूँजीवादी अर्थव्यवस्था के तर्क द्वारा गठित होती हैं। तथापि अर्थव्यवस्था से उनका अलग अस्तित्व होता है।


हेजेल के अनुसार नागरिक समाज


परिवार और राज्य के बीच स्थित होते हुए भी, हेजेल के अनुसार नागरिक समाज


"ऐतिहासिक दृष्टि से परिवार से अलग एक प्रमुख लक्षण होता है जो कि सामाजिक संगठन के रूप को राज्य से अलग रखते हुए उसे सर्वोच्च तथा ऐसे संगठन का अंतिम स्वरूप दे देता है। परिवार प्राकृतिक तथा अलक्षित एकता का प्रतिनिधित्व करता हैजहाँ प्यार और एक दूसरे से सरोकार से जुड़ा होता है। नागरिक समाज आत्म जिज्ञासु व्यक्तियों का क्षेत्र होता हैसाथ ही इसमें सार्वभौमिकता के सिद्धान्त जिसका राज्य मूर्त रूप होता है। नागरिक समाज में भ्रूण रूप से उसे पाया जा सकता है। इस प्रकार हेजेल की अवधारणा में नागरिक समाज स्वतंत्रता जैसे अधिकारों का एक ऐसा क्षेत्र हैं जिसे नकारात्मक रूप से नहीं देखा जा सकता है। इसके बजाय नागरिक समाज "ऐसा सक्रिय क्षण है जहाँ विशेषकर एक रूपता तथा सार्वभौमिकता के बीच द्वैधता का सम्मिलन होता है। "

 

दो- नागरिक समाज विश्लेषण

 

एडम स्मिथ के इस आशावाद कि व्यक्तिपरकस्वार्थी व्यवहार प्रगतिशील समाज का आधार होता है के विपरीत हेजेल ने संदेह व्यक्त किया हैऔर लिखता है कि नागरिक समाज वह सामाजिक क्षेत्र हैं जहाँ


  • "प्रत्येक व्यक्ति का निजी हित हर अन्य व्यक्ति से मिलता है।" उसका विचार था कि आत्महित वाले कार्य आत्मकेन्द्रीयता की ओर ले जाते हैं और नैतिक जीवन को नष्ट करते हैं। हेजेल के विचार मेंमानव समाज नैतिक जीवन को समझ पाने की क्षमता खो चुका है और आधुनिकता ने एक ऐसी दुनिया में प्रवेश कर लिया है जहाँ श्रम विभाजन सामाजिक अन्तर कार्य का विनिमय अभिमुखीउपकरणिका का सृजन करता है। जैसा वि चंडोक ने लिखा हैहेजेल की दार्शनिक परियोजना "इस मूल हीन व्यक्ति को घर उपलब्ध कराती रही है जो कि सामुदायिक जीवन के परम्परागत सहयोगी संरचनाओं से विहीन हो गया है।"

 

तीन-नागरिक समाज विश्लेषण

 

  • स्वतंत्रता के बारे में हेजेल के विचार का आधार हैएक तार्किक सामाजिक व्यवस्था में स्वार्थ के क्रियान्वयन की धारणा व्यक्तियों को स्वतंत्रता स्वतः और स्वैच्छिक रूप से ही नहीं प्राप्त हो जाती है उन्हें शिक्षित और सामाजिक होना पड़ता है। 


  • "स्वतंत्रता को व्यक्तिगत रूप से प्राप्त करने का व्यक्तियों का अधिकार तभी पूरी तरह प्राप्त होता हैजब ये एक वास्तविक नैतिक व्यवस्था से संबंधित होते हैं। इस प्रकार इसका तात्पर्य यह है कि नागरिक समाज को संगठित होने की आवश्यकता पड़ती हैविशेषकर आधुनिकता की यह प्रमुख विशेषता है। सार्वभौमिकता के द्वारा इसकी मध्यस्थता की जानी होती है। जैसा कि चन्द्रोक ने स्पष्ट किया है "नागरिक समाज ऐसा क्षेत्र है जहाँ हेजेल ने एक नैतिक समुदाय में विशेष तथा सार्वभौमिकता की अपनी ऐतिहासिक परियोजना को अव्यवस्थित किया है।"

 

हेजेल -संगठनात्मक भावना

 

यद्यपि मध्यवर्ती संस्थाओं के क्षेत्र की मध्यस्थता के जरिये हेजेल ने संगठनात्मक भावना की उपस्थिति को सुनिश्चित करना चाहा है।


  • "ये माध्यम राज्य तथा नागरिक समाज के अपेक्षाकृत लघु स्वरूप हैं और राज्य के गठन की दिशा में एक चरण हैं।" हेजेल का राज्य नैतिकता के सर्वोच्चता के स्तर को प्राप्त करने लेने का प्रतीक है जो किसी खास लक्षण से सर्वथा मुक्त है। मध्यवर्ती चरण की सामाजिक संस्थाएँ विशिष्टता को किस प्रकार परिवर्तित करती हैं और सार्वभौमिकता को संस्थागत रूप प्रदान करती हैं। "हेजेलियन दर्शन के विचार में सार्वभौमता की यह विशेषता नागरिक समाज के ऐसें उर्ध्वगामी संगठन की ओर ले जाती है जो नीति की अंतिम अभिव्यक्ति करते हुए राज्य के रूप में परिणीत होता है। "


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