राष्ट्रीय आय की गणना (मापन) | Calculation (measurement) of national Income in Hindi

 राष्ट्रीय आय की गणना (मापन) 
Calculation (measurement) of national Income
राष्ट्रीय आय की गणना (मापन)  Calculation (measurement) of national Income



  • राष्ट्रीय आय एक महत्त्वपूर्ण समष्टिगत आर्थिक समूह है। कुछ योग्यताओं के साथ इसे आर्थिक उत्पादन, आर्थिक संवृद्धि, आर्थिक विकास तथा आर्थिक कल्याण का द्योतक समझा जा सकता है । इस प्रकार इसके मापन का अत्यधिक महत्त्व है। राष्ट्रीय आय सही मापन न होने के दूरगामी प्रभाव हो सकते हैं। इस आर्टिकल में हम किसी अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय के मापन की विधियों का वर्णन करेंगे ।

 

राष्ट्रीय आय के बारे में जानकारी के लिए यहाँ क्लिक करें 

 

राष्ट्रीय आय की गणना (मापन) की विधियाँ

 राष्ट्रीय आय के मापन की तीन विधियाँ हैं :

 

1) उत्पादन विधि अथवा मूल्य वृद्धि विधि 

2) आय विधि 

3) व्यय विधि

 

तीनों में से प्रत्येक विधि अर्थव्यवस्था में एक प्रवाह से संबंधित है। वास्तव में ये तीन विधियाँ राष्ट्रीय आय को देखने के तीन दृष्टिकोण है। इन तीनों विधियों में से प्रत्येक में प्रयुक्त सांख्यिकी आँकड़े तथा उपकरण भिन्न-भिन्न हैं, लेकिन अवधारणात्मक रूप से इन तीनों विधियों से मापित राष्ट्रीय आय का मूल्य एक ही होगा। यदि ये विधियाँ, मूलतः राष्ट्रीय आय का एक मूल्य नहीं देतीं तो ऐसा राष्ट्रीय आय के मापन के लिए आँकड़ों की कमी के कारण होगा। इन तीनों विधियों में से प्रत्येक में राष्ट्रीय आय के मापन में आने वाली कठिनाइयाँ काफी भिन्न हैं।

 

 राष्ट्रीय आय की गणना (मापन) की  उत्पादन विधि

 

किसी अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय आय के मापन के लिए उत्पादन विधि के प्रयोग के लिए मूलतः तीन चरण हैं। वे इस प्रकार है :

 

1) उत्पादक उद्यमों की सही पहचान करना और उनका औद्योगिक क्षेत्रों में वर्गीकरण करना ।

 

2) एक अर्थव्यवस्था के घरेलू क्षेत्र में प्रत्येक उत्पादक उद्यम तथा प्रत्येक औद्योगिक क्षेत्र के द्वारा साधन लागत पर शुद्ध मूल्य वृद्धि का मापन तथा सभी औद्योगिक क्षेत्रों द्वारा शुद्ध मूल्य वृद्धि को जमा करते हुए शुद्ध उत्पाद प्राप्त करना ।

 

3) विदेशों से शुद्ध साधन आय मापन जिसे साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद में जमा करते हैं: अर्थव्यवस्था के शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद यानि राष्ट्रीय आय को प्राप्त करना ।

 

1 औद्योगिक क्षेत्रों का वर्गीकरण

 

मोटे तौर पर औद्योगिक क्षेत्रों को तीन वर्गों में वर्गीकृत किया जाता है :

 

क) प्राथमिक क्षेत्र 

ख) द्वितीयक क्षेत्र 

ग) तृतीयक अथवा सेवा क्षेत्र

 

प्राथमिक क्षेत्र

 

  • इसमें कृषि तथा संबंधित कार्यों वन, मत्स्य आखेट, खनन् तथा उत्खनन् को सम्मिलित किया जाता है। यह क्षेत्र प्राकृतिक संसाधनों का शोषण कर उत्पादन करता है। इसमें कोयला, लोह अयस्क तथा अन्य खनिजों का उत्पादन होता है। 


  • भारत में प्राथमिक क्षेत्र को तीन भागों में विभाजित किया जाता है : (i) कृषि, (ii) वानिकी एवं लट्ठा बनाना, (ii) मत्स्यन तथा (iv) खनन एवं उत्खनन् ।

 

द्वितीयक क्षेत्र

 

  • इसमें विनिर्माण क्षेत्र को सम्मिलित किया जाता है जहाँ एक प्रकार के उत्पाद का दूसरे प्रकार के उत्पाद में परिवर्तन होता है। 


  • भारत में द्वितीयक क्षेत्र को निम्नलिखित भागों में विभाजित किया जाता है। (i) पंजीकृत विनिर्माण (i) गैर पंजीकृत विनिर्माण; (iii) विद्युत, गैस तथा जल आपूर्ति

 

तृतीयक क्षेत्र

 

  • इसमें सेवा क्षेत्र को सम्मिलित किया जाना है क्योंकि इस क्षेत्र उद्यमों के द्वारा मात्र सेवाएँ ही उत्पादित की जाती हैं। भारत में इस क्षेत्र में शामिल हैं: (i) रेलवे (i) अन्य साधनों द्वारा परिवहन तथा भंडारण, (ii) संचार, (iv) व्यापार होटल तथा जलपान गृह, (v) बैंकिंग तथा बीमा, (vi) स्थावर संपदा आवासों का स्वामित्व एवं व्यावसायिक सेवाएँ (vii) लोक प्रशासन तथा रक्षा तथा (vii) अन्य सेवाएँ।

 

2- शुद्ध मूल्य वृद्धि का मापन

 

  • एक अर्थव्यवस्था के उत्पादक क्षेत्रों को पहचान के बाद अगला कदम है, प्रत्येक उत्पादन क्षेत्र के द्वारा मूल्य वृद्धि का मापन एक उत्पादन मूल्य तथा मध्यवर्ती आगतों की लागत का अंतर मूल्य वृद्धि कहलाता है।

 

इस संदर्भ में ध्यान देने योग्य है कि :

 

1) समस्त उत्पादक द्वारा बाजार पर सकल मूल्य वृद्धि का योग हमें बाज़ार मूल्य पर सकल घरेलू उत्पाद प्रदान करता है; 

ii) साधन लागत पर मूल्य वृद्धि का योग हमें साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद प्रदान करता

 iii) साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद हमें साधन लागत पर अर्थव्यवस्था की सभी उत्पादक इकाइयों द्वारा शुद्ध मूल्य वृद्धि के योग से प्राप्त होता है।

 

3 विदेशों से शुद्ध साधन आय

 

विदेशों से शुद्ध साधन आय की अवधारणा इसलिए आवश्यक हो जाती है क्योंकि साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद में विदेशों से शुद्ध साधन आय जोड़ने से ही हमें राष्ट्रीय आय प्राप्त होती है। इसमें शामिल है :

 

1) विदेशों से प्राप्त कर्मचारियों का पारिश्रमिक (शुद्ध); 

2) सम्पत्ति एवं उद्यम से प्राप्त निबल आय;

3) विदेशों में निवासी निगमों द्वारा विदेशों से प्राप्त आय का शुद्ध अवितरित अंश ।

 

कर्मचारियों को विदेशों से प्राप्त पारिश्रमिक (शुद्ध)

 

  • इसका अनुमान हमें अपने विदेशों में कार्य कर रहे निवासियों को (जो अस्थायी रूप से देश से बाहर हों) मिली आमदनी में से अपने देश में कार्यरत अनिवासियों को किए गए भुगतान को घटाकर प्राप्त होता है। 


  • स्थायी रूप से विदेशों में कार्य करने से हमारा अभिप्राय उन्हीं निवासियों से है जो एक वर्ष से कम अवधि के लिए देश से बाहर कार्य कर रहे हों। यदि वे एक वर्ष से अधिक समय किसी अन्य देश में कार्य करते हैं तो उन्हें वहाँ का निवासी माना जाता है तथा उनकी आय उनके कार्य क्षेत्र देश की राष्ट्रीय आय में शामिल की जाती है। हाँ, यदि वह अपने परिजनों को कुछ धनराशि आदि भेजते हैं तो उसे हम विदेशों से प्राप्त चालू खाते के अन्तरणों में शामिल कर लेते हैं। पर ऐसे अन्तरण राष्ट्रीय आय का घटक नहीं कहलाते हैं। अतः कर्मचारियों को प्राप्त शुद्ध पारिश्रमिक धनात्मक अथवा ऋणात्मक दोनों हो सकता है।

 

विदेशों में संपत्ति एवं उद्यम से प्राप्त शुद्ध आय

 

  • हमारे देश के निवासी उत्पादकों द्वारा विदेशों से प्राप्त ब्याज भाड़ा लाभांश तथा लाभ में से इन मदों में से अनिवासियों को किए गए भुगतान घटाकर हमें विदेशी संपत्ति एवं उद्यम से प्राप्त शुद्ध आय के आँकड़े मिलते हैं। इसमें सरकार को विदेशी ऋणों से प्राप्त शुद्ध ब्याज भी शामिल रहता है।

 

निवासी के निगमों द्वारा विदेशों से प्राप्त आय का अंश

 

  • यह राशि हमारी उन कंपनियों की विदेशी उत्पादक गतिविधियों से प्राप्त लाभ का अवितरित अंश है जो किसी अन्य देश में कार्य कर रही है। यह अवितरित लाभ सामान्यतः पुनः निवेश आदि के काम लाया जाता है। इसी प्रकार विदेशी कंपनियाँ और उनकी शाखाएँ भी अपने कार्य क्षेत्र के देशों में अर्जित लाभ का एक हिस्सा बचा रखती हैं। अतः इस मद में शुद्ध राशि विदेशों में कार्य कर रही हमारी कंपनियों/शाखाओं के अवितरित लाभ में से भारत में काम रही विदेशी कंपनियों के द्वारा इसी प्रकार बचाकर रखी गई राशियों का अन्तर ही शामिल होता है।

 

  • इस प्रकार से विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय होगी विदेशों से कर्मचारियों को प्राप्य शुद्ध पारिश्रमिक जमा विदेशों से संपत्ति एवं उद्यम प्राप्ति जमा हमारी कंपनियों द्वारा विदेशों में बचाकर रखी गई अवितरित राशि।

 

  • विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय का अनुमान प्रयोग कर हम बाज़ार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद, साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद बाजार कीमतों पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद तथा साधन लागत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (राष्ट्रीय आय तथा ) का प्राक्कलन करते हैं।

 

क) बाज़ार कीमतों पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन =बाज़ार कीमतों पर सकल राष्ट्रीय आय

 

ख) साधन लागत पर सकल घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन आय = साधन लागत पर सकल राष्ट्रीय उत्पाद

 

ग) बाज़ार कीमत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन आय =बाज़ार कीमत पर शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद

 

घ) साधन लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद + विदेशों से शुद्ध साधन आय = साधन लागत पर शन्द राष्ट्रीय उत्पाद (राष्ट्रीय आय)

 

सामान्यतः हम पहले घरेलू उत्पाद के सकल या शुद्ध बाज़ार कीमत या साधन लागत अनुमान पहले आकलित करते हैं। फिर इनमें विदेशों से प्राप्त शुद्ध साधन आय जोड़कर ही राष्ट्रीय आय के तदनुरूप अनुमान तैयार किए जाते हैं।

 

राष्ट्रीय आय गणना की उत्पादन विधि में ध्यान रखने योग्य बातें 

 

किसी अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय आय का उत्पादन विधि से अनुमान लगाते समय इन बातों का ध्यान रखना आवश्यक है : 

1) अपने सहयोग के लिए उत्पादित सामग्री उत्पादन में जोड़नी चाहिए। अतः भौतिक उत्पादन को बाज़ार कीमत से गुणाकर स्वयं उपयुक्त सामग्री के मूल्य का अनुमान लगाया जाता है।

 

2) अपने निवास के काम आ रहे भवनों के भाड़े का अनुमान लगाकर उन भवनों की सेवाओं को राष्ट्रीय उत्पादन में जोड़ा जाता है।

 

3) सरकार, निजी उद्यमों तथा गृहस्थों के लिए उत्पादित वस्तुओं आदि का मूल्य भी अनुमानित किया जाना आवश्यक है।

 

4) पुरानी वस्तुओं के क्रय-विक्रय से राष्ट्रीय आय नहीं बढ़ती पर यदि इस विनिमय में किसी की दलाली मिलती है तो उस दलाली की रकम को दलाल की सेवाओं के मूल्य के रूप में राष्ट्रीय आय में जोड़ना आवश्यक हो जाता है। दलालों की सेवाओं का मूल्य उन्हें प्राप्त कमीशन या दलाली से अनुमानित होता है।


विषय सूची 


राष्ट्रीय आय की गणना (मापन)

राष्ट्रीय आय की गणना (मापन) की आय विधि

राष्ट्रीय आय की गणना (मापन) की व्यय विधि

भारत में राष्ट्रीय आय का आकलन (गणना)

भारत में राष्ट्रीय आय के आकलन के लिए प्रयुक्त विधियाँ ,राष्ट्रीय आय के आकलन में कठिनाइयाँ

राष्ट्रीय आय की संरचना 






No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.