राष्ट्रीय आय के निर्धारक तत्व | Determinants of national income in Hindi

राष्ट्रीय आय के निर्धारक तत्व 
Determinants of national Income in Hindi
राष्ट्रीय आय के निर्धारक तत्व  Determinants of national Income in Hindi


राष्ट्रीय आय के निर्धारक तत्व इस प्रकार से है:

 

1. उत्पाद प्रविधि तथा प्रौद्योगिकी: 

किसी भी देश का राष्ट्रीय आय उस देश की उत्पादन प्रविधि और प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है। उत्पादन प्रविधि मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है- 

(1) श्रम प्रधान तकनीक या प्रविधि तथा 

(2) पूँजी प्रधान प्रविधि.


  •  श्रम प्रधान प्रविधि में उत्पादन शीघ्र ही प्राप्त होने लगता है जबकि पूँजी प्रधान प्रविधि में बहुत अधिक मात्रा में विनियोग की आवश्यकता पड़ती है तथा इनमें उत्पादन के सम्बन्ध में समय पश्चात् या फलन अवधि होती है फलस्वरूप उत्पादन कुछ समय बाद मिलता है। जितना अधिक उत्पादन होगा उतना ही अधिक राष्ट्रीय आय होगी। 


  • उत्पादन की मात्रा आगत-निर्गत (प्रविधि) के अनुपात तथा इस अनुपात को परिवर्तन करने वाला प्रौद्योगिकी पर निर्भर करता है। प्रौद्योगिकी के विकास से कम आगत पर अधिक निर्गत प्राप्त किया जा सकता है। अगर देश श्रम प्रधान है तो श्रम प्रधान प्रविधि का ही प्रयोग करना चाहिए जिससे बेरोजगारी को रोका जा सके। सामान्यतया विकसित देश पूँजी प्रविधि का प्रयोग करते हैं क्योंकि वे पूँजी प्रचुर देश होते है।

 

2. कीमतों का ढांचा:- 

  • उत्पादन प्रविधि एवं प्रौद्योगिक के प्रयोग से उत्पादन की मात्रा में वृद्धि की जा सकती है। परन्तु वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन की मात्रा उनकी कीमतों के ढांचे से प्रभावित होती है। अतः कीमत ढांचा उत्पादन तथा उपभोग की दिशा 'निर्देश एवं नियंत्रण करता है। इस प्रकार यह निवेश (विनियोग) को प्रभावित करके राष्ट्रीय आय को प्रभावित करता है।

 

3. पूँजी निर्माण:- 

  • पूँजी निर्माण का आशय पूँजी निवेश से हैअन्तिम वस्तुओं के उत्पादन का कुछ भाग का उपभोग कर लिया जाता है तथा दूसरे भाग को पूँजी वस्तुओं (कारखाने की इमारतेंमशीनउपकरण आदि) के निर्माण में लगाया जाता है जिससे पूँजी स्ट्राक में वृद्धि होती है। पूँजी स्ट्राक में होने वाली इस वृद्धि को पूँजी निर्माण या निवेश कहते हैं। पूँजी स्ट्राक में वृद्धि राष्ट्रीय आय में वृद्धि लाती है तथा पूँजी स्टॉक में कमी राष्ट्रीय आय में कमी लाती है।

 

4. पूँजी की सीमान्त क्षमता तथा पूँजी की सीमान्त उत्पादकता:- 


  • जैसा कि आप जानते हैं कि निवेश रोजगार तथा आय निर्धारण का अति महत्वपूर्ण तत्व है। अब हमें यह देखना है कि निवेश का निर्धारण किन तत्वों पर निर्भर करता है। निवेश का निर्धारणपूँजी की सीमान्त क्षमतापूँजी की सीमान्त उत्पादकता तथा ब्याज पर निर्भर करती है। कीन्स के अनुसार ब्याज दर एक अपेक्षाकृत स्थिर तत्व हैइसलिए पूँजी की सीमान्त क्षमता तथा पूँजी की सीमान्त उत्पादक ही निवेश को प्रभावित करती है। अल्पकाल में भले ही ब्याज दरों को एक अपेक्षाकृत स्थिर मान लियापरन्तु निवेशक पूँजी की सीमान्त क्षमता की तुलना ब्याज दर से अवश्य करेगा। 


  • ब्याज दर पूँजी की सीमान्त क्षमता के बराबर होने पर निवेश पर निष्क्रिय प्रभाव डालती है। ब्याज दर पूँजी की सीमान्त दक्षता से कम होने पर निवेश पर अनुकूल प्रभाव पड़ता है। इसके विपरीतब्याज दर पूँजी की सीमान्त क्षमता से अधिक होने पर इसका निवेश पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा। निवेश उसी सीमा तक किया जाता है जहाँ पर पूँजी की सीमान्त क्षमता और ब्याज दर एक-दूसरे के बराबर हो जाते हैं परन्तु यहाँ ध्यान देने योग्य बात है कि पूँजी की सीमान्त क्षमता परिसम्पत्तियों की पूर्ति कीमत तथा सम्भावित प्राप्तियों पर निर्भर करती हैजबकि ब्याज दर का आधार तरलता पसन्दगी है।

 

  • पूँजी की सीमान्त उत्पादकता पूँजी की सीमान्त क्षमता से भिन्न है। पूँजी की सीमान्त उत्पादकता ब्याज दर के साथ विनियोग को प्रभावित करती है। यदि पूँजी की सीमान्त उत्पादकताब्याज दर से अधिक है तो उत्पादन के पूँजी विनियोग की सम्भावना बढ़ जाती है। इससे उत्पादन और आय दोनों बढ़ता है।

 

5. प्रत्याशाएं:- 

  • प्रत्याशाओं का सम्बन्ध भविष्य की संभावनाओं से जुड़ा होता है। वर्तमान उपभोग एवं विनियोग भविष्य की संभावनाओं से प्रभावित होता है। यदि उपभोक्ता यह प्रत्याशा करें कि वस्तुओं एवं सेवाओं के मूल्य में वृद्धि होगी तो वह अपना वर्तमान उपभोग बढ़ा देगा । फलस्वरुपबचत एवं विनियोग में कमीं आयेगी। इसी प्रकार उत्पादक की यह प्रत्याशा हो कि भविष्य में वस्तुओं एवं सेवाओं की माँग में वृद्धि होगी तो वह विनियोग में वृद्धि करेगा। अधिक विनियोग से अधिक उत्पादनअधिक उत्पादन का तात्पर्य अधिक आय से होता है।

 

6. मुद्रा बाजार एवं पूँजी बाजार:-

  • भारतीय वित्तीय प्रणाली के दो प्रमुख अंग हैं- मुद्रा बाजार और पूँजी बाजार। मुद्रा बाजार को साख बाजार भी कहते हैं। विकसित मुद्रा बाजार एवं पूँजी बाजार उद्योग को बढ़ावा देते है। जिससे निवेश में वृद्धि होती है फलस्वरूप उत्पादन या राष्ट्रीय आय को प्रभावित करती है।

 

7. जनसंख्या:- 

  • राष्ट्रीय आय के स्तर को निर्धारित करने में जनसंख्या अथवा श्रम शक्ति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। जनसंख्या राष्ट्रीय आय को दो तरह से प्रभावित करती है। प्रथम प्राकृतिक संसाधनोंप्रविधि एवं प्रौद्योगिकी में वृद्धि के साथ-साथ जनसंख्या में वृद्धि उत्पादन में वृद्धि लाती है। दूसरी ओर मात्र जनसंख्या में वृद्धि पूँजी-निर्माण में वृद्धि को भी निगल जाती है। यह जनसंख्या वृद्धि उपभोग में वृद्धि लाती है। फलस्वरूप विनियोग में कमी तथा उत्पादन में कमी आती है।

 

8. आय स्तर तथा साहसी की योग्यता:- 

  • यदि आय स्तर ऊँचा है तो इसे देश के उत्पाद के साधनों तथा प्राकृतिक संसाधनों के प्रयोग में किया जाता सकता है और उत्पादन व आय की मात्रा की बढ़ाई जा सकती है। प्रो) शुम्पीटर ने आय के निर्धारक तत्वों में साहसी की विशेष महत्व दिया क्योंकि यही वह व्यक्ति है जो उत्पत्ति के साधनों को इकट्ठा कर वस्तुओं एवं सेवाओं को उत्पादन करने का जोखिम उठाता है और लाभ कमाता है। इस प्रकार राष्ट्रीय आय जहाँ एक ओर ऊँचा आय स्तर पर निर्भर है वहीं उसी आय को या नये निवेश को शुरुआत करने के लिए साहसी का होना अति आवश्यक है।








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