राष्ट्रीय प्रयोज्य या व्यय योग्य आय के आधार पर राष्ट्रीय आय की संरचना | National Income Concept in Hindi

 राष्ट्रीय प्रयोज्य या व्यय योग्य आय के आधार पर राष्ट्रीय आय की संरचना




3- राष्ट्रीय प्रयोज्य या व्यय योग्य आय 


  • राष्ट्रीय प्रयोज्य या व्यय योग्य या स्वायत्त आय उस आय से है जो किसी देश या देश के निवासियों को खर्च करने के लिए उपलब्ध होती है। किसी देश के निवासियों को खर्च करने के लिए उपलब्ध होती है। किसी देश की राष्ट्रीय प्रयोज्य आय उस देश की राष्ट्रीय आयशुद्ध अप्रत्यक्ष कर तथा शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण का जोड़ है।


अर्थात्

 

राष्ट्रीय व्यय योग्य आय = राष्ट्रीय आय + शुद्ध अप्रत्यक्ष कर + शेष विश्व से प्राप्त शुद्ध चालू हस्तान्तरण 


संक्षेप में आप कह सकते हैं कि व्यय योग्य आय व्यक्तिगत आय का वह भाग है जो प्रत्यक्ष कर देने के बाद लोगों के पास शेष रह जाता है 


अर्थात्

 व्यय योग्य आय

(1) व्यय योग्य आय = व्यक्तिगत आय - व्यक्तिगत प्रत्यक्ष कर 

(2) इस आय का मुख्य भाग तो उपभोग पर व्यय हो जता है और शेष बचा लिया जाता है। अतः व्यय योग्य आय अभोग+ बचत।

 

राष्ट्रीय प्रयोज्य आय वह आय है जो किसी देश के निवासियों के सभी स्रोतों (अर्जित आय एवं विदेशों से प्राप्त होने वाले चालू हतान्तरण भुगतानों) से उपभोग या बचत के लिए एक वर्ष में प्राप्त होती है।

 

(क) सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय

  • सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय में चालू पुनः स्थापन लागत शामिल होती है। सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय + चालू पुनः स्थापन (जो समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर मूल्यहास है )

 

(ख) शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय:- 

  • शुद्ध राष्ट्रीय आय सकल राष्ट्रीय प्रयोज्य आय-चालू पुनःस्थापन (जो समस्त अर्थव्यवस्था के स्तर पर मूल्यह्रास है) स्मरण रहे कि 'राष्ट्रीय प्रयोज्य आय से अभिप्राय शुद्ध राष्ट्रीय प्रयोज्य आय से है।

 

4. निजी क्षेत्र को शुद्ध घरेलू उत्पादन से प्राप्त कराके आय:- 

  • निजी क्षेत्र को शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय को समझने के लिए निजी क्षेत्र तथा सार्वजनिक क्षेत्र में अन्तर स्पष्ट करना एवं जानना जरुरी है निजी क्षेत्र के उद्यमों का स्वामित्व तथा नियंत्रण निजी व्यक्तियों के हाथ में होता है जबकि सार्वजनिक क्षेत्र के अन्तर्गत सरकार के विभागीय उद्यम (जैसे रेलवे और डाक तथा तार सेवाएँ) तथा गैर विभागीय उद्यम (जैसे एयर इण्डिया तथा इण्डियन एयरलाइन्स) ) शामिल होते है।


  • इन उद्यमों पर सरकार का स्वामित्व एवं नियंत्रण है। शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय का वह भाग जो निजी क्षेत्र को प्राप्त होती है उसे निजी क्षेत्र द्वारा अर्जित आय कहा जाता है। निजी क्षेत्र को शुद्ध घरेलू उत्पादन से प्राप्त कारक आय  कारक लागत पर शुद्ध घरेलू उत्पाद सरकार की विभागीय उद्यमों की सम्पत्ति तथा उद्यमवृत्ति से प्राप्त आय गैर विभागीय उद्यमों की बचत।

 

5. निजी आय क्या होती है 


केन्द्रीय सांख्यिकी संगठन के अनुसार,-

'निजी आय वह आय है जो निजी क्षेत्र को सभी स्रोतों से प्राप्त होने वाली कारक आय तथा सरकार से प्राप्त वर्तमान हस्तान्तरण और शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण का जोड़ है।

 

निजी आय का सूत्र 

  • निजी आय = निजी क्षेत्र को शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय + राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज + विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय + सरकार से प्राप्त वर्तमान हस्तान्तरण + शेष विश्व से प्राप्त चालू हस्तान्तरण |

 

यहाँ पर निजी क्षेत्र को शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय तथा निजी आय में अन्तर स्पष्ट करना जरुरी हैजो निम्नलिखित है:

 

1. निजी क्षेत्र को शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय घरेलू आय का एक भाग है अर्थात् यह एक घरेलू धारणा है जबकि निजी आय एक राष्ट्रीय धारणा है।

 

2. निजी क्षेत्र को शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय शामिल नहीं होती है जबकि निजी आय में विदेशों से प्राप्त शुद्ध कारक आय भी शामिल होती है।

 

3. निजी क्षेत्र को शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय में केवल कारक आय ही शामिल होती है जबकि निजी आय में कारक आय के अतिरिक्त चालू हस्तान्तरण भुगतान भी शामिल होते है।

 

4. निजी क्षेत्र को शुद्ध घरेलू उत्पाद से प्राप्त कारक आय में राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज सम्मिलित नहीं होता है जबकि निजी आय में राष्ट्रीय ऋण पर ब्याज सम्मिलित होता है।


 

6. वैयक्तिक आय या व्यक्तिगत आय: 

  • वैयक्तिक आय से तात्पर्य उस आय से है जो किसी देश में एक वर्ष की अवधि में व्यक्तियों अथवा परिवारों द्वारा सभी स्रोतों से वास्तव में प्राप्त कारक आय तथा चालू हस्तान्तरण का जोड़ है।

 

  • वैयक्तिक आय जानने के लिए निजी आय में से निगम बचत या अवितरित लाभ और निगम कर जो परिवारों को प्राप्त नहीं होते हैं को घटा दिया जाता है


जैसे-

 

वैयक्तिक आय = निजी आय निगम कर अवितरित व्यावसायिक लाभ- सामाजिक सुरक्षा अंशदान + अन्तरण भुगतान

 

वैयक्तिक आय की गणना

  • वैयक्तिक आय की गणना हेतु राष्ट्रीय आय में से निगम कर को घटा दिया जाता है क्योंकि व्यापारिक निगमों अपने लाभ का कुछ हिस्सा निगम कर के रूप में सरकार को चुकाना पड़ता है।
  • इस प्रकार आय का यह भाग अंशधारियों को व्यक्तिगत आय के रुप में प्राप्त नहीं होता है। दूसरा घटक अवितरित लाभ जिसे निगम के रुप में सरकार को चुकाना पड़ता है। इस प्रकार आय का यह भाग अंशधारियों की व्यक्तिगत आय के रूप में प्राप्त नहीं होता है। दूसरा घटक अवितरित लाभ जिसे निगम बचत भी कहते हैं। 


  • निगम अपनी आय का यह भाग अंशधारियों में न बाँटकर इसे पुनः व्यवसाय में विनियोजित कर देता हैइसलिए इसे भी व्यक्तिगत आय प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय आय में से घटा देते हैं क्योंकि यह व्यक्ति को मिला ही नहीं सामाजिक सुरक्षा हेतु जो कटौतियाँ प्रोविडेन्ट फण्ड व पेंशन आदि के रूप में की जाती है इनको भी व्यक्तिगत आय प्राप्त करने के लिए राष्ट्रीय आय में घटा दिया जाता हैक्योंकि वैयक्तिक आय इन कटौतियों से कम हो जाती है। इन सब के अतिरिक्त अन्तरण भुगतान जैसे बेरोजगारी भत्तापेंशन आदि को वैयक्तिक आय की गणना हेतु राष्ट्रीय आय में जोड़ दी जाती है।

 

7. वैयक्तिक प्रयोज्य आय: 


  • वैयक्तिक प्रयोज्य आय वह आय है जो सभी प्रकार के प्रत्यक्ष करों (आय कर एवं गृह कर) तथा सरकार के प्रशासनिक विभागों की विविध प्राप्तियाँ अथवा गृहस्थों द्वारा दिये गये शुल्क और जुर्माना के भुगतान के पश्चात् बचती है। 


  • अतएववैयक्तिक प्रयोज्य आय = वैयक्तिक आय प्रत्यक्ष वैयक्तिक कर सरकारी विभागों के शुल्क और जुर्माना।

 

8. मौद्रिक तथा वास्तविक आय: 


राष्ट्रीय आय या घरेलू आय के दो पहलू होते हैं।

 

1) मौद्रिक आय का आशय एक अर्थव्यवस्था में एक लेखा वर्ष के दौरान उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं से होता है जिसकी कीमत की गणना का आधार चालू वर्ष की कीमत होती है। चालू वर्ष की कीमत से तात्पर्य अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं की वर्तमान कीमत से होती है।

 

अतः Y = Q x P

 

(यहाँ, y = चालू कीमत पर राष्ट्रीय आय / मौद्रिक आय है, Q = एक लेखा वर्ष में उत्पादित अंतिम वस्तुओं एवं सेवाओं से हैलेखा वर्ष के दौरान उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं की वर्तमान कीमत से है।) यहाँ पर आप ध्यान दें कि अगर में वृद्धि में वृद्धि के कारण हुई है तो इसे मौद्रिक वृद्धि कहेंगे क्योंकि वस्तुओं एवं सेवाओं का उत्पादन यथास्थिर बना रहा। मात्र उनके कीमतों में वृद्धि हुई है। इस तरह की मौद्रिक वृद्धि से अर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रकार में कोई वृद्धि नहीं होती है। इससे केवल मुद्रा भ्रान्ति उत्पन्न होती है। 


2) वास्तविक आय: 

  • एक लेखा वर्ष में अर्थव्यवस्था में उत्पादित अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं की कीमत की गणना का आधार वर्तमान कीमत न होकर किसी अन्य पिछले वर्ष (जिसे आधार वर्ष कहते हैं) की कीमत पर करते हैं तो उसे वास्तविक आय कहते हैं।

 

अतः Y = Qx P

 

(यहाँ Y' = स्थिर कीमतों पर राष्ट्रीय आय/वास्तविक आय, Q = लेखा वर्ष में अन्तिम वस्तुओं एवं सेवाओं की मात्रा; pl = आधार वर्ष के दौरान वस्तुओं तथा सेवाओं की प्रचलित कीमत) उपरोक्त समीकरण से स्पष्ट है कि Y' में वृद्धि तभी होती है जब वृद्धि होती है क्योंकि p' हमेशा स्थिर बना रहता है अर्थात में वृद्धि में वास्तविक वृद्धि है क्योंकि ये वृद्धि वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन की मात्रा में वृद्धि होने के कारण होती हैं अथवाअर्थव्यवस्था में वस्तुओं एवं सेवाओं के प्रवाह में वृद्धि होती है। निम्न समीकरण के आधार पर वास्तविक शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद / आय ज्ञात की जाती है।

 

वास्तविक शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद / आय =मौद्रिक शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद /वर्ष का कीमत निर्देशांकx100










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