मुगल काल में उत्तराधिकार का युद्ध | Mughal War of Succession

मुगल काल का उत्तराधिकार का युद्ध

Mughal War of Succession

मुगल काल का उत्तराधिकार का युद्ध Mughal War of Succession


 

शाहजहां की बीमारी के समय उसके पुत्रों की स्थिति

 

  • इस्लाम के अन्तर्गत कोई भी शारीरिक व बौद्धिक दृष्टि से स्वस्थ मुसलमान शासक बनने की योग्यता रखता है। इसी कारण मुस्लिम शासकों को अपना उत्तराधिकारी घोषित करने का वैधानिक अधिकार नहीं था। 
  • मुगलों में उत्तराधिकार के नियमो का सुनिश्चित न होना प्रायः शासक की मृत्यु के बाद उत्तराधिकार हेतु युद्ध का कारण बनता रहा था परन्तु मुगल इतिहास में पहली बार बादशाह के जीवित रहते ही उसके सभी पुत्रों के मध्य उत्तराधिकार का युद्धसितम्बर, 1657 में शाहजहां के गम्भीर रूप से बीमार पड़ने के बाद हुआ। 
  • शाहजहां की बीमारी के समय उसका परम प्रिय ज्येष्ठ पुत्रघोषित उत्तराधिकारी तथा पंजाबउत्तर पश्चिम प्रान्त का सूबेदार शाह बुलन्द इक़बाल दाराशिकोह उसके पास दिल्ली में था। शाह शुजा बंगाल और उड़ीसा काऔरंगज़ेब दक्षिण का तथा मुराद गुजरात का सूबेदार था।

 

शहज़ादों के मध्य युद्ध

 

  • शाहजहां की बीमारी का समाचार सुनकर दाराशिकोह पर उसके भाइयों ने यह आरोप लगाया कि उसने बादशाह की मृत्यु का समाचार छुपाकर सत्ता अपने हाथों में कर ली है। 
  • तीनों भाइयों ने दिल्ली की ओर प्रस्थान किया और बादशाहत के लिए अपनी-अपनी दावेदारी पेश की। 
  • बादशाह द्वारा उनको अपने-अपने स्थानों पर ही रुके रहने के आदेश को उन्होंने अनसुना कर दिया और इस प्रकार चारों शहज़ादों के मध्य उत्तराधिकार का युद्ध प्रारम्भ हो गया। 
  • चारों भाइयों में मुख्य प्रतिद्वन्दी उदारपंथी दाराशिकोह तथा कट्टरपंथी औरंगज़ेब थे।
  • दाराशिकोह को बादशाह शाहजहां का पूर्ण समर्थन प्राप्त था जब कि औरंगज़ेब की ताकत उसकी अपनी सैनिक व कूटनीतिक प्रतिभा तथा उसको कट्टरपंथी मुसलमानों से मिलने वाला समर्थन था। 
  • औरंगज़ेब ने मुराद को भी राज्य का आपस में बंटवारा करने का आश्वासन देकर अपनी ओर मिला लिया था और उसने शुजा से भी पत्र व्यवहार कर दारा के विरुद्ध एक समझौता कर लिया था।


उत्तराधिकार का युद्ध प्रमुख घटनाक्रम 

  • 14 फ़रवरी, 1658 को पूर्व की ओर से बढ़ रहे शाह शुजा को सुलेमानशिकोह के नेतृत्व में शाही सेना ने बहादुरगढ़ में पराजित किया।

  • 25 अप्रैल, 1658 को औरंगज़ेब व मुराद की संयुक्त सेना ने राजा जसवंत सिंह के नेतृत्व वाली शाही सेना को धरमत में पराजित किया। 

  • धरमत के युद्ध में विजयी होने के बाद औरंगज़ेब की स्थिति अत्यन्त सुदृढ़ हो गई। उसके द्वारा इस्लाम की रक्षार्थ युद्ध करने की घोषणा ने अनेक मुस्लिम अमीरों को उसका समर्थक बना दिया था। शाहजहां द्वारा समझौते के सभी प्रस्तावों को औरंगज़ेब ने ठुकरा दिया। शाही सेना औरंगज़ेब की सेना को चम्बल पार करने से नहीं रो सकी। 8 जून, 1658 को फ़तेहपुर सीकरी के निकट सामूगढ़ के निर्णायक युद्ध में औरंगज़ेब की सेना ने दाराशिकोह की सेना को पराजित किया। पराजित दारा शिकोह आगरा पहुंचकर दिल्ली चला गया। औरंगज़ेब ने आगरा के किले पर अधिकार कर लिया और शाहजहां को बन्दी बना लिया।

 

  • दारा का पीछा करते समय औरंगज़ेब ने धोखा देकर मुराद को कैद करवा दिया। मुराद पर अलीनकीं खाँ की हत्या का आरोप सिद्ध कर उसे प्राणदण्ड दे दिया गया। शुजा को शाही सेना ने खनवा के युद्ध में पराजित कर दिया था और वहां से बंगालफिर बंगाल से अराकान भागते समय उसकी हत्या कर दी गई। औरंगज़ेब ने दारा का दिल्ली से लेकर लाहौरमुल्तानसिंधकच्छ और गुजरात तक पीछा किया और जसवंत सिंह व मिर्ज़ा राजा जयसिंह को अपनी ओर कर लिया। 

  • 12 मार्च, 1659 को अजमेर के निकट देवरई में दारा शाही सेना द्वारा पराजित हुआ। विश्वासघाती शरणदाता मलिक जीवन ने दारा को बन्दी बनाकर औरंगज़ेब को सौंप दिया। दाराशिकोह पर इस्लाम के शत्रु होने का आरोप सिद्ध कर अगस्त, 1659 में धार्मिक अदालत ने उसे प्राण दण्ड दिया।
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