मुगल साम्राज्य की स्थापना Establishment of Mughal Empire |पानीपत का प्रथम युद्ध

 

मुगल साम्राज्य की स्थापना Establishment of Mughal Empire

 

मुगल साम्राज्य की स्थापना Establishment of Mughal Empire |पानीपत का प्रथम युद्ध

  • भारत में सन् 1526 में मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई।
  • राजनीतिक स्थिरता, शान्ति एवं प्रशासनिक सुव्यवस्था, आर्थिक समृद्धि, सांस्कृतिक विकास तथा साम्राज्य विस्तार की दृष्टि से भारतीय इतिहास में एक नए युग का प्रारम्भ हुआ।
  • काबुल का शासक बाबर, पिता की ओर से तैमूर का तथा माँ की ओर से चंगेज़ खाँ का वंशज था। 
  • भारत की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर उसने पानीपत के प्रथम युद्ध में इब्राहीम लोदी को पराजित कर भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना की तथा अगले वर्ष उसने खनवा के युद्ध में राजपूत राज्य संघ के प्रमुख व मेवाड़ के शासक राणा सांगा को पराजित किया। 
  • हिन्दुस्तान के पहले बादशाह के रूप में बाबर ने पूर्ण सम्प्रभुता प्राप्त शासक की अवधारणा का विकास किया। 
  • हुमायूं बाबर और अकबर महान के मध्य एक कमज़ोर कड़ी था। दस वर्षों तक वह अपने आलस्य और विलासप्रियता, भाइयों तथा अपने अमीरों के विश्वासघात व बहादुर शाह के विरोध से जूझता रहा लेकिन इस अवधि में शेर खाँ उसके पतन और उसके भारत से निष्कासन का कारण बना। 
  • 15 वर्ष के अंतराल के बाद हुमायूं ने एक बार फिर दिल्ली पर अधिकार कर लिया किन्तु छह महीने बाद ही उसकी मृत्यु हो गई।
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  • शेर खाँ, शेर शाह के रूप में सन् 1540 में बादशाह बना। अपने पाँच वर्षों के सुशासन से उसने इतिहास में एक अमिट छाप छोड़ी है। प्रशासनिक सुव्यवस्था और कल्याणकारी राज्य की कल्पना को साकार करने के प्रयास की दृष्टि से हम शेर शाह को अकबर का मार्गदर्शक कह सकते हैं। ब्रिटिश भारतीय शासकों ने भी अपने प्रशासन में इस अफ़गान शासक की अनेक नीतियों का अनुकरण किया था।

 

बाबर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी 

बाबर कौन था ?

बाबर द्वारा भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना

  • उमर शेख मिर्ज़ा का पुत्र और फ़रगना का शासक बाबर, पिता की ओर से तैमूर का तथा माँ की ओर से चंगेज़ खाँ का वंशज था। 
  • उज़बेक शैबानी खाँ से पराजित होने और अपने फ़रगना हाथ से चले जाने के बाद बाद वह पूर्व की ओर अग्रसर हुआ। सन् 1504 में उसने काबुल तथा गज़नी पर अधिकार कर लिया। 
  • सन् 1507 में उसने पूर्ण सम्प्रभुता प्राप्त शासक का ज्ञापन करने वालीपादशाह की उपाधि धारण की । 
  • सन् 1513-14 के समरकन्द अभियान में असफल होने के बाद बाबर ने मध्य एशिया पर विजय की योजना का हमेशा के लिए परित्याग कर दिया और सन् 1525 तक वह अपने सैनिक अभियानों को छोड़कर शेष समय काबुल में ही बना रहा।

 

बाबर द्वारा भारत में राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर पंजाब पर आक्रमण

 

  • काबुल पर अधिकार करने के तुरन्त बाद से ही बाबर भारत की समृद्धि और उसकी साधन सम्पन्नता की ओर आकर्षित हो गया था। 
  • अपने पूर्वज तैमूर के भारत अभियान ने उसे भी भारत पर आक्रमण करने की प्रेरणा मिली थी।
  • अपनी आत्मकथा तुज़ुक-ए-बाबरी में बाबर ने अपनी काबुल विजय के तुरन्त बाद से ही हिन्दुस्तान फ़तेह करने की अपनी महत्वाकांक्षा का उल्लेख किया है। काबुल विजय के बाद वह रसद प्राप्त करने के उद्देश्य से दो बार हिन्दुस्तान आया था।

 

बाबर के आक्रमण

  1. सन् 1519 में उसने यूसुफ़जाही जाति को राजस्व देने के लिए विवश किया और बाजौर व भेरा पर आक्रमण कर उन्हें लूटा व उन पर अधिकार कर लिया। उसने अपने राजदूत मुल्ला मुर्शिद को इब्राहीम लोदी के पास तैमूर के वंशज के रूप में पंजाब के पश्चिमी क्षेत्र पर अपने वैधानिक अधिकार का दावा पेश करने के लिए भेजा। 
  2. सन् 1519 में ही यूसुफ़जाहियों के दमन के लिए बाबर ने दुबारा पंजाब पर आक्रमण किया। 
  3. भेरा के विद्रोहियों के दमन हेतु बाबर ने सन् 1520 में पंजाब पर तीसरा आक्रमण किया
  4. बाबर ने पंजाब पर चौथा आक्रमण सन् 1524 में पंजाब के सूबेदार दौलत खाँ लोदी और इब्राहीम लोदी के चाचा आलम खाँ लोदी के निमन्त्रण पर किया था। इसमें उसने लाहौर व दीपलपुर पर अधिकार कर लिया। 
  5. बाबर अपने अन्तिम तथा पाँचवे आक्रमण के लिए अपने तोपखाने और 12000 की सेना के साथ दिसम्बर, 1525 में पंजाब पहुंचा और उस पर अधिकार कर लिया।

 

पानीपत का प्रथम युद्ध

 

  • आलम खाँ लोदी तथा इब्राहीम लोदी से असन्तुष्ट अनेक लोदी अमीरों ने बाबर से दिल्ली पर अधिकार करने हेतु अभियान करने का अनुरोध किया। 
  • पंजाब पर अधिकार करने के बाद बाबर सरहिन्द और अम्बाला होता हुआ पानीपत पहुंचा।
  • तुज़ुक-ए-बाबरी में बाबर के अनुसार उसकी सेना 12000 और इब्राहीम की सेना में 100000 सैनिक थे किन्तु यह कथन अतिशयोक्तिपूर्ण है। बाबर की सेना कम से कम 25000 की थी।
  • 21 अप्रैल, 1526 को पानीपत पानीपत का प्रथम युद्ध हुआ। इब्राहीम लोदी परम्परागत मध्यकालीन आक्रामक रणनीति अपना रहा था जब कि बाबर ने आक्रामक एवं रक्षात्मक दोनों रणनीतियां अपनाई थीं। 
  • अग्रिम टुकड़ी के लिए अराबा और तोपचियों की रक्षा के लिए टूरा ( बचाव स्थान) बनाए गए थे। आक्रामक रणनीति के अन्तर्गत उज़बेग शैबानी खाँ से सीखी हुई पद्धति का प्रयोग होना था। इब्रहीम की सेना में बंदुक का अभाव था तथा तोपें थी ही नहीं। 
  • बाबर की सेना ने इब्राहीम लोदी की सेना का भयंकर विनाश किया। इस एक तरफ़ा युद्ध में बाबर विजयी हुआ इब्राहीम लोदी लड़ते हुए मारा गया। और  इब्राहीम की सेना में बन्दूकों मुगलकालीन तोप

 

भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना 

पादशाह बाबर 

  • पानीपत का निर्णायक युद्ध इब्राहीम लोदी, अफ़गान शक्ति तथा दिल्ली सल्तनत के लिए विनाशकारी सिद्ध हुआ। 
  • इस युद्ध के परिणामस्वरूप भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना हुई। बाबर ने सुल्तान के स्थान पर पादशाह की उपाधि धारण की। 
  • पादशाह अथवा बादशाह पद, सुल्तान पद की तुलना में अधिक मान, प्रतिष्ठा और शक्ति का पद था। 
  • इस नए राजत्व के सिद्धान्त के अनुसार शासक पूर्ण सम्प्रभुता प्राप्त हुआ और सिद्धान्तः उसको खलीफ़ा से वैधानिक मान्यता प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं रही।

 

खनवा, चन्देरी तथा घाघरा के युद्ध

 खनवा का युद्ध 

  • मेवाड़ के शासक राणा संग्राम सिंह के नेतृत्व में राजपूत राज्य संघ उत्तर भारत की सर्व प्रमुख शक्ति के रूप में स्थापित हो चुका था। अपनी सत्ता को स्थायित्व प्रदान करने के लिए बाबर को राजपूत शक्ति को हराना आवश्यक था। 
  • कालपी, बयाना और धौलपुर पर मुगलों द्वारा अधिकार किए जाने के विरोध में राजपूतों और मुगलों में युद्ध हुआ। 
  • राणा संग्राम सिंह की विजयों से आतंकित एवं हतोत्साहित मुगल सेना में जोश भरने के लिए बाबर ने न केवल एक ओजस्वी भाषण दिया अपितु राजपूतों के विरुद्ध इस युद्ध को जिहाद का नाम दिया। 
  • 16 मार्च, 1527 को खनवा में हुए 10 घण्टों तक चले युद्ध में अपने तोपखाने के बल पर मुगलों की विजय हुई। 
  • इस युद्ध के बाद राणा संग्राम सिंह के नेतृत्व में संगठित राजपूत राज्य संघ नष्ट हो गया और मुगलों के लिए हिन्दुस्तान में सबसे बड़ा सबसे बड़ा खतरा दूर हो गया।

 चन्देरी का युद्ध 

  • चन्देरी को मालवा तथा राजपूताने का प्रवेश द्वार कहा जाता था। बाबर ने चन्देरी की ओर अभियान कर 21 जनवरी, 1528 को मेदिनीराय को पराजित किया।

 बंगाल का युद्ध 

  • बंगाल के शासक नुसरत शाह के समर्थन से पूर्व में अफ़गान शक्ति के पुनर्गठन को असफल करने के उद्देश्य से बाबर ने जनवरी, 1529 में आगरा से पूर्व की ओर प्रस्थान किया। 
  • 6 मई, 1529 को घाघरा के युद्ध में उसने महमूद खाँ लोदी के नेतृत्व वाली अफ़ग़ान सेना को पराजित किया | नुसरत शाह से सन्धि कर बाबर ने यह आश्वासन प्राप्त किया कि वह मुगलों के विरुद्ध अफ़गानों को कोई सहयोग नहीं देगा।

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