बादशाह शाहजहां:साम्राज्य विस्तार की नीति |Emperor Shah Jahan: the policy of empire expansion

 बादशाह शाहजहां:साम्राज्य विस्तार की नीति

बादशाह शाहजहां:साम्राज्य विस्तार की नीति |Emperor Shah Jahan: the policy of empire expansion


 

शाहजहां का दक्षिण भारत अभियान

 

  • बादशाह जहांगीर के काल में दक्षिण भारत के प्रारम्भिक अभियानों में मिली सफलता का श्रेय मुख्यतः शहज़ादे खुर्रम को जाता है। 
  • शहज़ादे के रूप में शाहजहां वर्षों तक मुगल-दक्षिण का सूबेदार रहा था। इस कारण उसे दक्षिणी भारत की भौगोलक, सैनिक तथा कूटनीतिक स्थिति की भलीभांति जानकारी थी। 
  • मलिक अम्बर की मृत्यु के बाद की राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाकर वह अहमदनगर पर मुगल प्रभुत्व स्थापित करना चाहता था और बीजापुर व गोलकुण्डा के शिया राज्यों की ईरान के शाह के प्रति निष्ठा के कारण वह उनका भी दमन करना चाहता था। 
  • अहमदनगर के सुल्तान मुर्तज़ा निज़ाम शाह ने मुगलों के विद्रोही खानेजहां को शरण दी थी। अहमदनगर राज्य के वकील तथा पेशवा फ़तेह खाँ ने मुर्तजा निज़ाम शाह की हत्या कर उसके अल्पवयस्क पुत्र हुसेन शाह को सुल्तान बनाकर मुगलों की आधीनता स्वीकार कर ली। 
  • सन् 1633 तक मुगल सेनापति महाबत खाँ के नेतृत्व में अहमदनगर पर मुगल विजय अभियान आंशिक रूप से सम्पन्न हो गया परन्तु अगले तीन वर्ष तक शाहजी भोंसले के नेतृत्व में अहमदनगर का प्रतिरोध जारी रहा। 
  • अन्त में सन् 1636 में शाहजहां के व्यक्तिगत दक्षिण अभियान द्वारा अहमदनगर को पूरी तरह मुगल साम्राज्य में मिला लिया गया। अपने दक्षिण अभियान के दौरान शाहजहां ने सन् 1636 में गोलकुण्डा तथा बीजापुर के शासकों पर सैनिक व कूटनीतिक दबाव डालकर उनको मुगल आधीनता स्वीकार कर खिराज देने के लिए विवश किया। 
  • सन् 1656 में मुगल दक्षिण के सूबेदार औरंगज़ेब ने बीजापुर को मुगल साम्राज्य में मिलाने के लिए सैनिक अभियान किया किन्तु शाहजहां की बीमारी के बाद उत्तराधिकार के युद्ध में सम्मिलित होने के कारण वह बीजापुर विजय का अभियान अधूरा छोड़कर ही उत्तर भारत की ओर चल पड़ा।

 

शाहजहां का मध्य एशिया तथा उत्तर-पश्चिम सीमा पर अभियान

 

  • अपने पूर्वजों की जन्मभूमि मध्य एशिया के बल्ख तथा बदख्शाँ पर अधिकार करने के लिए शाहजहां ने सन् 1639 में काबुल से सैनिक अभियान की तैयारी की। 1640-41 में मध्य-एशिया की राजनीतिक अराजकता की स्थिति का लाभ उठाकर बल्ख पर अधिकार कर लिया किन्तु उज़बेग प्रतिरोध और मध्य एशिया की विषम परिस्थितियों के कारण सन् 1647 में मुगलों को अपना मध्य एशिया अभियान पूरी तरह समाप्त करना पड़ा। इस असफल अभियान में जान-माल के भारी नुक्सान के साथ-साथ मुगलों की सैनिक प्रष्ठिा पर भी गहरा आघात लगा।

 

  • सन् 1622 में जहांगीर के शासनकाल में कान्धार मुगलों के हाथ से निकल कर ईरान के शाह के अधिकार में आ गया था। सन् 1634 में कान्धार के ईरानी सूबेदार अलीमर्दान खाँ को अपनी ओर कर मुगल सेनापति सईद खाँ ने कान्धार पर अधिकार कर लिया किन्तु मुगलों के मध्य एशिया अभियान की असफलता का लाभ उठाकर सन् 1648 में ईरानियों ने कान्धार पर फिर से अधिकार कर लिया। 

  • सन् 1652 तथा 1653 में कान्धार पर पुनर्विजय के दो मुगल अभियान ईरान-उज़बेग सहयोग तथा उस क्षेत्र की दुर्गमता के कारण असफल रहे। इस प्रकार शाहजहां की मध्य एशिया तथा उत्तर-पश्चिमी सीमा पर मुगल अधिकार करने के अभियान पूर्णतया असफल रहे।

 

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