स्वनिम विश्लेषण की विधि -शब्द संचयन ध्वन्यात्मक लेखन। Swanim Sabd Sanchyan

स्वनिम विश्लेषण की विधि -शब्द संचयन ध्वन्यात्मक लेखन

स्वनिम विश्लेषण की विधि -शब्द संचयन ध्वन्यात्मक लेखन। Swanim Sabd Sanchyan



स्वनिम विश्लेषण की विधि 

शब्द संचयन 

  • सर्वप्रथम जिस भाषा का अध्ययन विश्लेषण करना होता हैउसके शब्दों को एकत्र करते हैं। जीवित भाषा के शब्दों को उस भाषा के बोलने वाले व्यक्ति से सुनकर शब्द एकत्र किये जाते हैं। बोलने वाले व्यक्ति को सूचककहते हैं। सूचक के लिए ये आवश्यक है कि वह भाषा को अधिक से अधिक स्वाभाविक रूप में बोल सके। उसका उच्चारण बाहरी प्रभाव से मुक्त हो । यदि भाषा जीवित नहीं है तो उसके लिखित साहित्यिक रूपों से शब्दों को एकत्र किया जाता है।

 

ध्वन्यात्मक लेखन शब्दों का ध्वन्यात्मक लेखन दो प्रकार से होता है - 

 

1. स्थूल प्रतिलेखन 

2. सूक्ष्म प्रतिलेखन

 

  • किसी भी भाषा के वैज्ञानिक अध्ययन विश्लेषण में सूक्ष्म प्रतिलेखन की विधि अपनायी जाती है। इसका मूल आधार स्थूल प्रतिलेखन के लिपि चिह्न ही होते हैं किन्तु इसमें सूक्ष्म से सूक्ष्म बातों को भी देखा जाता है। 
  • स्थूल प्रतिलेखन में केवल स्वनिमों को लिखा जाता है किन्तु सूक्ष्म प्रतिलेखन में सहस्वनों का भी उल्लेख किया जाता है। इसके अतिरिक्त इसमें बलाघातसुर आदि का भी विवेचन होता है। 


संक्षेप में सूक्ष्म प्रतिलेखन में निम्नलिखित बातों का विशेष ध्यान रखना पड़ता है -

 

(क) स्वरध्वनि 

यदि कोई ध्वनि स्वर है तो वह-

(1) सामान्य या अघोष है। 

(2) ह्स्व - या दीर्घ है। 

(3) संवृत या विवृत है। (पअ) अग्रपश्च या मध्य है।

(4) अनुनासिक है। 

(5) मर्मर है। 

(6) विशेष सुर या बलाघात से युक्त है। 

(7) अनाक्षरिक तो नहीं हैयदि है तो कितना। 

(8) स्थान या प्रयत्न की दृष्टि उसका क्या रूप है। 

(9) वृतमुखी या अवृतमुखी है आदि बातों को देखना होता है।

 

(ख) व्यंजन - 

यदि ध्वनि व्यंजन है तो 

(1) कंठ्यतालव्य आदि में उसका स्थान क्या है। 

(2) क्या वह अपने मूल रूप में या भिन्न रूप में उच्चारित है। 

(3) प्रयत्न की दृष्टि से उसकी क्या स्थिति है। 

(4) वृतमुखी है या अवृतमुखी 

(5) स्पर्श पूर्ण है या अपूर्णस्फोटित अस्फोटित तो नहीं। 

(6) अनुनासिक है या नहीं। 

(7) आक्षरिक है या अनाक्षरिक आदि बातों को ध्यान में रखना होता है।

 

  • सूक्ष्म प्रतिलेखन के पश्चात संकलित शब्दों के आधार पर उनमें प्रयुक्त ध्वनियों का चार्ट बनाते हैं। वस्तुतः यह चार्ट समस्त सहस्वनों का होता है। अब यह देखा जाता है कि इसमें कितने स्वनिम हैं और कितने सहस्वन। 
  • कौन-सा सहस्वन किस स्वनिम (जाति) में रखा जायगाइसके सामान्य रूप में तीन नियम हैं वितरणसमानता और कार्यगत एकरूपता। ये तीन गुण जिन ध्वनियों में प्राप्त होते हैंवे एक वर्ग की ध्वनियाँ होती हैं। वितरण में यह भी देखा जाता है कि ध्वनियाँ किन परिस्थितियों में आयी हैं। जिन परिस्थितियों में एक ध्वनि प्रयुक्त होती हैउसी में दूसरी ध्वनि प्रयुक्त नहीं होती। 
  • समानता में स्थान और प्रयत्न की समानता देखी जाती है। स्थान और प्रयत्न की विषमता होने पर स्वनिमों में भी भिन्नता होती है। कार्यरूपता से आशय यह है कि यदि कार्य में फर्क है तो पूरक और सहायक होने पर भी उसे अन्य स्वनिम माना जायगा।
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