ध्वनि (ध्वनि-परिवर्तन ) के नियम। Dhawani Parivartan Ke Niyam
ध्वनि (ध्वनि-परिवर्तन ) के नियम
ध्वनि नियम
- ध्वनि-परिवर्तन के कारण और दिशाओं के विस्तृत अध्ययन से आप यह भली-भाँति समझ गये होगें के भाषा के विकास में ध्वनि-परिवर्तन एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
- किसी भाषा विशेष में कुछ विशेष परिस्थितियों में कुछ विशेष प्रकार के ध्वनिगत बदलाव आते हैं जिनके आधार पर ध्वनि - नियम सुनिश्चित किए जाते हैं।
ध्वनि नियम की वैज्ञानिक परिभाषा
- डॉ भोलानाथ तिवारी ने ध्वनि नियम की वैज्ञानिक परिभाषा देते हुए लिखा है, 'किसी विशिष्ट भाषा की विशिष्ट ध्वनियों में किसी विशिष्ट काल और कुछ विशिष्ट दशाओं में हुए नियमित परिवर्तन या विकार को उस भाषा का ध्वनि-नियम कहते हैं।'
इस परिभाषा में चार बातें स्पष्ट हैं -
- पहली, ध्वनि-नियम किसी भाषा विशेष का होता है अर्थात एक भाषा के ध्वनि-नियम को दूसरी भाषा पर नहीं लागू किया जा सकता।
- दूसरी, एक भाषा की सभी ध्वनियों पर यह नियम लागू न होकर कुछ विशेष ध्वनियों या ध्वनि वर्ग पर लागू होता है।
- तीसरी, ध्वनि परिवर्तन एक विशेष काल में होता है अर्थात आवश्यक नहीं कि वही ध्वनि परिवर्तन सदा होता रहें।
- चौथी, ध्वनि-परिवर्तन विशेष दशा या परिस्थितियों में होता है।
ध्वनि-परिवर्तन से सम्बंधित कतिपय विद्वानों के ध्वनि नियम इस प्रकार हैं
ध्वनि-परिवर्तन का ग्रिम नियम
1. ग्रिम नियम
- इस नियम के प्रवर्तक जर्मन भाषा वैज्ञानिक याकोब ग्रिम हैं। इन्हीं के नाम से यह नियम प्रचलित हुआ।
- ग्रिम नियम का संबंध भारोपीय स्पर्शों से है जो जर्मन भाषा में परिवर्तित हो गये थे जिसे जर्मन भाषा का वर्ण-परिवर्तन कहते हैं।
- प्रथम वर्ण-परिवर्तन ईसा से कई सदी पूर्व हुआ था और दूसरा वर्ण- परिवर्तन उत्तरी जर्मन लोगों से ऐंग्लो सेक्शन लोगों के पृथक होने के बाद 7वीं सदी में हुआ था। दोनों का कारण जातीय मिश्रण माना जाता है।
प्रथम वर्ण - परिवर्तन
- ग्रिम नियम के अनुसार प्रथम वर्ण- परिवर्तन में जो सम्भवतः छठी-सातवीं ईसा पूर्व में हुआ था, मूल भारोपीय भाषा के कुछ स्पर्श वर्ण-परिवर्तित हो गये थे। इसे तालिका रूप में समझा जा सकता है।
भारोपीय मूल भाषा
- घोष, महाप्राण स्पर्श घु, ध, भ्
- घोष अल्पप्राण ग्, द्, ब्
जर्मन भाषा
- घोष अल्पप्राण ग्, द्, ब्, हो गए।
- अघोष अल्पप्राण क्, त्, प् हो गए।
- संघर्षी महाप्राण ख (ह्), थ, फू हो गए।
द्वितीय वर्ण- परिवर्तन -
- प्रथम वर्ण- परिवर्तन में मूल भारोपीय भाषा से जर्मन भाषा भिन्न हुई थी किन्तु द्वितीय वर्ण-परिवर्तन में जर्मन भाषा के दो रूपों उच्च जर्मन और निम्न जर्मन में यह अन्तर पड़ा। फलतः इन दोनों की कुछ ध्वनियाँ भिन्न हो गयीं।
निम्न जर्मन (अंग्रेजी)
- प् का फ् = डीप (Deep)
- ट् का ट्स् या स्स = फूट (Foot)
- क् का ख् = योक (Yoke)
- ड्काट् = डीड (Deed)
- थ् का ड् = थ्री (Three)
उच्च जर्मन
- टीफ (Tief)
- फस्स (Fuss)
- याख (Joch)
- टाट (Tat)
- ड्राय (Drei)
2. ग्रेसमैन नियम -
- ग्रेसमैन की स्थापना ये है कि भारोपीय मूल भाषा में यदि शब्द या धातु के आदि और अंत दोनों स्थानों पर महाप्राण हों तो संस्कृत, ग्रीक आदि में एक अल्पप्राण हो जाता है। ग्रेसमैन के अनुसार भारोपीय मूल भाषा की दो अवस्थाएं रही होगीं।
- प्रथम अवस्था में दो महाप्राण रहे होगें दूसरी अवस्था में एक अल्पप्राण हो गया होगा।
3. वर्नर नियम -
- वर्नर ने यह पता लगाया कि ग्रिम-नियम बलाघात पर आधारित था।
- मूल भाषा के क्,त्,पू के पूर्व यदि बलाघात हो तो ग्रिम नियम के अनुसार पि यदि स्वराघात क्, त्, प् के बाद वाले स्वर पर हो जो ग्रेसमैन की भाँति ग्, द्, संस्कृत के सप्त, शतम् गोथिक भाषा में सिबुन, हुन्द हो जाते हैं।
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