ध्वनि परिवर्तन के कारण। Dhwani Parivartan Ke karan
ध्वनि परिवर्तन के कारण
ध्वनि परिवर्तन के कारण
- परिवर्तन इस सृष्टि की विशेषता है। सृष्टि के सभी जड़-चेतन पदार्थ काल क्रम के प्रवाह में परिवर्तित होते रहते हैं। भाषा मनुष्य के विचार-अभिव्यक्ति की संवाहक है। अतः देश-काल के अनुसार उसमें भी परिवर्तन होना स्वाभाविक है।
- भाषा-परिवर्तन को भाषा का विकास भी माना जाता है। जैसा कि आप जानते हैं कि भाषा सार्थक ध्वनियों का समूह है। अतः ध्वनि-परिवर्तन ही भाषागत परिवर्तन के रूप में दृष्टिगत होता है।
- भाषा की ध्वनियों में परिवर्तन एक सतत प्रक्रिया है जो भाषा के जन्म से अबाध रूप से घटित होती रहती है। इस क्रम में अनेक ध्वनियाँ लुप्त हो जाती हैं, नई ध्वनियाँ आती हैं अथवा ध्वनियों का परिवर्तित रूप (विकृत रूप) प्रचलित हो जाता है। ध्वनि-परिवर्तन के माध्यम से भाषा के विकास का यह क्रम स्वाभाविक गति से अनवरत चलता रहता है।
भाषा में ध्वनि परिवर्तन प्रमुखतः दो कारणों से होता है -
1. आभ्यंतर कारण 2. बाह्य कारण। इसके
अन्तर्गत ध्वनि परिवर्तन कैसे और किस रूप में होता है, इसका अब हम
सोदाहरण अध्ययन करेंगे।
1 ध्वनि परिवर्तन का अभ्यंतर कारण
ध्वनि परिवर्तन के अभ्यंतर कारण इस प्रकार हैं-
1. मुख सुख -
मुख-सुख का अर्थ है - उच्चारण की सुविधा। उच्चारण की सुविधा के लिए ध्वनि परिवर्तन कई प्रकार से होता है।
जैसे -
- I. कठिन ध्वनि को छोड़कर उच्चारण करना । अंग्रेजी के कई शब्दों में कुछ ध्वनियों का उच्चारण कठिनता के कारण किया ही नहीं जाता। जैसे- श्रनकहम जज, ज्ञदपमि - नाइफ, ज्ञदवू - नो आदि।
- II. नई ध्वनि को जोड़कर उच्चारण सरल करना। जैसे स्टेशन का इस्टेशन या सटेशन। III ध्वनियों का स्थान परिवर्तित करना। जैसे चिह्न से चिन्ह, ब्राह्मण से ब्राम्हण
- IV. ध्वनियों को काँट-छाँट कर छोटा करना। जैसे सपत्नी से सौत या अध्यापक से झा आदि।
2. अनुकरण की पूर्णता -
- भाषा अनुकरण से ही सीखी जाती है। यदि अज्ञानवश अनुकरण सही या पूर्ण नहीं होता तो उच्चारण में ध्वनि परिवर्तन हो जाता है। जैसे स्टेशन का इस्टेशन, स्कूल का इस्कूल या सकूल आदि ।
3. प्रयत्न लाघव -
- प्रयत्न लाघव का अर्थ है उच्चारण सुविधा के लिए कम प्रयत्न करना। इसे मनुष्य की लघुकरण की प्रवृत्ति भी माना जा सकता है कि लम्बे-लम्बे शब्दों को छोटा रूप देकर बोलता है। जैसे- उपाध्याय, ओझा बन गया और बाद में झा ही रह गया।
- अनेक संस्थाओं के लम्बे-लम्बे नाम का संक्षिप्त उच्चारण रूप भी बहुत प्रचलित हो गये हैं। जैसे जनवादी लेखक का जलेस, भारत यूरोपीय का भारोपीय, शुक्ल दिवस का सुदी आदि।
4. अशिक्षा
- अशिक्षा और अज्ञान के कारण भी शब्दों का सही उच्चारण नहीं होता, फलतः ध्वनि परिवर्तन होता है। जैसे गोस्वामी का गोंसाई, साधु का साहू आदि।
5. शीघ्रता
- कभी कभी शब्दों का जल्दबाजी में उच्चारण से ध्वनि परिवर्तन होता है। जैसे उन्होने का उन्ने, किसने का किन्ने, अब ही का अभी, तब ही का तभी, या तब्भी आदि।
6. बलाघात -
- जैसे बली व्यक्ति के समक्ष कमजोर व्यक्ति टिक नहीं पाता, वैसे ही अधिक बलाघात वाली ध्वनि कम बलाघात वाली ध्वनि को उच्चारण से बाहर कर देती है। जैसे अभ्यंतर का भीतर, उपरि का पर, बाजार का बजार, आलोचना का अलोचना आदि।
7. सादृश्य
- किसी दूसरे शब्द की ध्वनियों की समानता को लेकर भी ध्वनि परिवर्तन - होता है। जैसे- पिंगला के सादृश्य से इड़ा का इंगला, देहाती के सादृश्य पर शहराती आदि। 8. भावावेश अत्यधिक भावावेश में प्रायः शब्दों की ध्वनियाँ बदल जाती हैं।
- जैसे- बच्चा का बच्चू या बचऊ, चाचा का चच्चा या चच्चू, राधा का राधे, कृष्ण का कान्हा, कन्हैया आदि।
2 ध्वनि परिवर्तन के बाह्य कारण
ध्वनि परिवर्तन के बाह्य कारण निम्नलिखित हैं-
1. भौगोलिक प्रभाव -
- भौगोलिक भिन्नता से उच्चारण में भिन्नता आना स्वाभाविक है। भारत में अनेक भूभाग से लोग आए। उनके उच्चारण में भिन्नता रही। फलतः सिंधु का हिंदु, सप्ताह का हफ्ता प्रचलित हुआ।
2. सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियाँ-
- क्षेत्र विशेष की सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियाँ भाषा को भी प्रभावित करती हैं। उन्नत समाज प्रायः तत्सम भाषा का प्रयोग करता । भाषा में बढ़ती तद्भव प्रकृति भी विशेष सामाजिक-राजनीतिक अवस्था और व्यवस्था की अभिव्यक्ति करती है। वाराणसी का बनारस होना या दिल्ली का देहली होना अथवा कलिकाता का कलकत्ता और पुनः कोलकाता होना विभिन्न सामाजिक-राजनीतिक परिस्थितियों की देन है।
3. विभिन्न भाषाओं का प्रभाव
- भारत में फारसी, पुर्तगाली, फ्रेंच, अंग्रेजी आदि अनेक भाषा भाषी देशों के लोग आये जिनके सम्पर्क से हिन्दी भाषा भी प्रभावित हुई। इसके साथ देश की ही क्षेत्रीय भाषाओं बंगला, गुजराती, मराठी व दक्षिण भारत की भाषाओं का भी प्रभाव पड़ा। अंग्रेजी के प्रभाव से अशोक का अशोका, मिश्र का मिश्रा, गुप्त का गुप्ता होना या रिर्पोट का रपट इसका उदाहरण है।
4. कविता में मात्रा, तुकबंदी या कोमलता का आग्रह
- काव्य में मात्रा, तुकबंदी या कोमलता का भाव लाने के लिए कविजन परम्परा से शब्दों में तोड़-मरोड़ या जोड़ना-घटाना करके ध्वनि परिवर्तन करते रहे हैं। जयशंकर प्रसाद ने मुस्कान की जगह मुस्क्यान का प्रयोग किया है। ‘ड़’ ध्वनि की जगह 'र' का प्रयोग कोतलता लाने के लिए बहुत हुआ है। जैसे अंगड़ाई का अंगराई। तुकांत के लिए रघुबीर के लिए रघुबीरा जैसे ध्वनि परिवर्तन के अनेक उदाहरण हैं।
5. स्वाभाविक विकास-
- आप जानते हैं कि भाषा में अनवरत परिवर्तन ही उसके स्वाभाविक विकास का एकमात्र कारण है। यद्यपि भाषा में परिवर्तन की गति बहुत धीमी होती है। संस्कृत से पालि, प्राकृत, अपभ्रंश और उससे आधुनिक भाषाओं का जन्म हजारों वर्ष के स्वाभाविक विकास का परिणाम है। इसी प्रकार हिन्दी के हजारों शब्दों की ध्वनियों में परिवर्तन होता रहा है जिससे वे शब्द बिल्कुल नए शब्द के रूप में सामने आते रहे हैं। यह प्रक्रिया आज भी जारी है।
- ध्वनि परिवर्तन के कारणों के विस्तार से अध्ययन से दो बातें स्पष्ट हैं। पहली ध्वनि परिवर्तन एक धीमी प्रक्रिया है जो अनवरत चलती रहती है। दूसरी, किसी भी शब्द में ध्वनि परिवर्तन का कोई एक कारण नहीं होता बल्कि अनेक कारण हो सकते हैं।
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