व्यंजन ध्वनि (ध्वनियों) का वर्गीकरण ।व्यंजनों का वर्गीकरण। Vyanjan Dhwani ka vargikrana

व्यंजन ध्वनि (ध्वनियों) का वर्गीकरण 

व्यंजन ध्वनि (ध्वनियों) का वर्गीकरण ।व्यंजनों का वर्गीकरण। Vyanjan Dhwani ka vargikrana



व्यंजनों का वर्गीकरण

 

हमें ज्ञात है कि व्यंजन ध्वनियों की प्रकृति स्वर ध्वनियों से भिन्न है। अतः व्यंजन के वर्गीकरण में स्थानकरणप्रयत्न के अतिरिक्त स्वरतंत्री प्राणतत्वउच्चारण शक्तिअनुनासिकता आदि आधारों पर भी विचार करने की आवश्यकता है। इस प्रकार व्यंजनों के वर्गीकरण में निम्नलिखित आधार पर विस्तृत अध्ययन किया जा सकता है -

 

(क) स्थान के आधार पर व्यंजनों का वर्गीकरण

स्थान के आधार पर व्यंजन ध्वनियों के कंठ्य (कोमल - तालव्य)मूर्धन्यतालव्य (कठोर तालव्य) वर्त्स्यदंत्यदंत्योष्ठ्यओष्ठ्यअलिजिह्वीयकाकाल्य आदि भेद होते हैं। इन भेदों तथा इनके अन्तर्गत आने वाली व्यंजन ध्वनियों का संक्षिप्त परिचय इस प्रकार है -

 

1. कंठ्य (Soft Palatal) - 

  • इसे 'कोमल तालव्यभी कहते हैं। जीभ के पिछले भाग के सहारे ये ध्वनियाँ उत्पन्न होती हैं। कवर्ग की ध्वनियाँ - कङ कंठ्य या कोमल तालव्य की ध्वनियाँ हैं। फारसी की ख़ग जैसी संघर्षी ध्वनियाँ भी यहीं से उच्चारित होती हैं।

 

2. तालव्य (Palatal) 

  • इन ध्वनियों का उच्चारण कठोर तालव्य से होता है। जीभ का अगला भाग या नोक इसमें सहायक होती है। च वर्ग की ध्वनियाँ च्छ्ज्झ इसी के अन्तर्गत आती हैं।

 

3. मूर्धन्य (Cevebral) 

  • मूर्द्धा की सहायता से उच्चारण की जाने वाली ध्वनियाँ - मूर्धन्य कहलाती हैं। ट्ठ्ड्ढ् ण् अर्थात ट वर्ग की ध्वनियाँ मूर्धन्य हैं। 


4. वर्त्स्य (Alveolar) - 

  • मसूढ़े या वर्ल्स और जीभ के अगले भाग की सहायता से उत्पन्न ध्वनियाँ वर्त्स्य कहलाती हैं। र्ल्स् तथा ज़ फारसी की वर्त्स्य ध्वनियाँ हैं। 

5. दंत्य (Dental) 

  • दाँत की सहायता से उत्पन्न ध्वनियाँ दंत्य हैं। इसके उच्चारण में जीभ की नोक भी सहायक होती है। तूथ्दूध् दंत्य ध्वनियाँ हैं। 

6. दंत्योष्ठ्य (Labiodental) 

  • जिन ध्वनियों का उच्चारण ऊपर के दाँत और नीचे के - ओंठ की सहायता से होता हैवे दंत्योष्ठ्य कहलाती हैं। व् दंत्योष्ठ्य ध्वनि है। 

7. ओष्ठ्य (Bilabial) - 

  • दोनों ओंठ से उच्चारित होने वाली ध्वनियाँ ओष्ठ्य होती हैं। पवर्ग में प्. फ्ब्भ्म् ओष्ठ्य ध्वनियाँ हैं। 

8. अलिजिह्वीय (Uvular) - 

  • इसे जिह्वामूलीय या जिह्वापश्चार्य भी कहते हैं। इसमें कौवे या अलिजिह्व से ध्वनि का उच्चारण होता है। इसके लिए जिह्वामूल या जिह्वापश्च को निकट ले जाकर वायुमार्ग संकरा करते हैं जिससे संघर्षी ध्वनि उत्पन्न होती है। फारसी की क़ख़ग़ ध्वनि भी इसी प्रकार की है। 

9. काकल्य (Lavygeal) - 

  • ये स्वरयंत्र मुख से उत्पन्न होने वाली ध्वनियाँ हैं। इसे 'उरस्यभी कहते हैं। ह और विसर्ग (:) इसी वर्ग की ध्वनि हैं। 


(ख) प्रयत्न के आधार पर प्रयत्न के आधार पर ध्वनियों के वर्ग 

 

1. स्पर्श (Explosive) ध्वनि- 

  • इसे 'स्फोटया 'स्फोटकभी कहते हैं। इसके उच्चारण में दो अंग (जैसे दोनों ओंठ या नीचे का ओंठ और ऊपर के दाँतया जीभ की नोक और दाँतया जीभ का पिछला भाग और कोमल तालु) एक दूसरे का स्पर्श करके हवा को रोकते हैं और फिर एक दूसरे से हटकर हवा को जाने देते हैं। 
  • स्पर्श ध्वनि का उच्चारण कभी तो पूर्ण होता हैकभी अपूर्ण। हिन्दी की कवर्गटवर्गतवर्गपवर्ग की ध्वनियों के साथ ही फारसी का क ध्वनि स्पर्शीय है।

 

2. संघर्षी ध्वनि

  • संघर्षी ध्वनि में स्पर्श की तरह हवा का न तो पूर्ण अवरोध होता है और न ही स् की भाँति वह अबाध रूप से मुँह से निकल जाती है। अतः इसकी स्थिति स्वरों और स्पर्श के बीच की है अर्थात दो अंग एक दूसरे के इतने समीप आ जाते हैं कि हवा दोनों के बीच घर्षण करके निकलती है। इसलिए इसे संघर्षी कहा जाता है। हिन्दी की शस्षू तथा फारसी की फ़ज़ख़ग़ संघर्षी ध्वनियाँ हैं।

 

3. स्पर्श संघर्षी (Aricate) - 

  • जिन ध्वनियों के उच्चारण का आरम्भ स्पर्श से हो किन्तु हवा कुछ देर घर्षण के साथ निकलेवे स्पर्श संघर्षी कहलाती है। च्छ्ज्झ स्पर्श संघर्षी ध्वनियाँ हैं। 

 

4. नासिक्य (Nasal) - 

  • इन ध्वनियों के उच्चारण में मुख-विवर के दो अंगों (स्पर्श की तरह) के स्पर्श के साथ हवा नाक के रास्ते बाहर निकलती है। इन्हें अनुनासिकभी कहते हैं। हिन्दी में ङमें नासिक्य व्यंजन हैं।

 

5. पार्श्विक (Lateral) - 

  • इसमें मुख-विवर के मध्य में कहीं भी दो अंगों के सहारे हवा अवरुद्ध कर देते हैं। फलतः हवा दोनों पार्श्वों से निकलती है। इसे 'पार्श्व ध्वनिभी कहते हैं। ल पार्श्विक व्यंजन है।

 

6. लुंठित (Rolled) - 

  • इसमें जीभ की नोंक को बेलन की तरह कुछ लपेट कर तालु का स्पर्श हुए ध्वनि का उच्चारण होता है। इसे 'लोड़ितभी कहते हैं। र् लुंठित व्यंजन है। 

7. उत्क्षिप्त (Flapped) -

  • जीभ की नोंक को उलटकर तालु को झटके से मार उसे फिर सीधा कर लेने से उत्क्षिप्त ध्वनि उच्चारित होती है। ड़ढ़ उत्क्षिप्त व्यंजन ध्वनि हैं। 

8. अर्द्धस्वर (Semi Vowel) - 

  • ये एक प्रकार से स्वर और व्यंजन के बीच की ध्वनियाँ हैं किन्तु ये स्वर की तुला में कम मुखर हैंकम मात्रा वाली हैं। चूँकि इन ध्वनियों का उच्चारण का आरम्भ स्वर ध्वनि जैसा होता हैइसलिए इन्हें अर्द्धस्वर ध्वनि कहा जाता है। य्व् इसी कोटि की ध्वनि हैं।

 

(ग) स्वर तंत्रियों के आधार पर व्यंजन ध्वनियाँ

इस आधार पर व्यंजन ध्वनियाँ के दो प्रमुख भेद हैं -

 

1. घोष ध्वनियाँ - 

  • ये वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में स्वरतंत्रियों के निकट आ जाने से उसके बीच निकलती हवा से उसमें कम्पन होता है। हिन्दी में कवर्ग सहित पाँच वर्गों की अन्तिम तीन ध्वनियाँ ग्घ्ङ्ज्झ्ल् आदि तथा य्र्ल्व्. ह्ड्ढ् आदि घोष हैं।

 

2. अघोष ध्वनियाँ

  • अघोष ध्वनियों के उच्चारण में स्वर तंत्रियों में कम्पन नहीं होता। हिन्दी में पाँचों वर्ग की प्रथम दो ध्वनियाँ (क्ख्च्छ्ट्ठ्प्फ् आदि) तथा स्श् अघोष हैं। 


(घ) प्राणतत्व के आधार पर व्यंजन ध्वनि (ध्वनियों) का वर्गीकरण 

  • प्राण का अर्थ हैउच्चारण में लगने वाली हवा या हवा की शक्ति। 
  • जिन व्यंजनों के उच्चारण में हवा की अधिकता या श्वास-बल अधिक होउन्हें महाप्राणऔर जिनमें कम हो उसे 'अल्पप्राणकहते हैं। 

प्राणतत्व के आधार पर हिन्दी में व्यंजन ध्वनियाँ इस प्रकार हैं -

अल्पप्राण-, ´,  

महाप्राण-,

 

संयुक्त व्यंजन किसे कहते हैं 

 

  • दो या दो से अधिक व्यंजन से मिलकर बने यंजन को संयुक्त व्यंजन कहते हैं। 
  • मिलने वाले यदि दोनों व्यंजन एक हैं (जैसे च् + च् = कच्चा) तो इसे दीर्घ या द्वित्व व्यंजन (Double Consonent) कहते हैं किन्तु यदि दोनों भिन्न-भिन्न (जैसे र् + द् = सर्दी) तो उसे संयुक्त व्यंजन (Compund Consonent) कहते हैं। 
  • डॉ भोलानाथ तिवारी ने संयुक्त व्यंजन के दो भेद किए हैं - स्पर्श और स्पर्श संघर्षी या पूर्ण बाधा वाले तथा अन्य। इनके बारे में उनका मत है कि, 'संयुक्त व्यंजन दो या दो से अधिक व्यंजनों के मिलने से बनते हैं। 
  • मिलने वाले दोनों व्यंजन यदि एक हैं (जैसे क् + क्पक्का) तो उस युक्त व्यंजन को दीर्घ या द्वित व्यंजन (long or double consonent) कहते हैंकिन्तु यदि दोनों दो हैं (जैसे र् + म्गर्मी) तो सयुक्त व्यंजन (compund consonent) कहते हैं। 
  • एक दृष्टि से व्यंजन के दो भेद किये जा सकते हैं: स्पर्श और स्पर्श संघर्षी या पूर्णं बाधा वाले तथा अन्य स्पर्श और स्पर्श संघर्षी के द्वित्त्व में ऐसा होता है कि उसमें स्पर्श की प्रथम (हवा के आने और स्पर्श होने) और अन्तिम या तृतीय (उन्मोचन या स्फोट) स्थिति में तो कोई अंतर नहीं आता केवल दूसरी या अवरोध की स्थिति बड़ी हो जाती है। पक्का’ में वस्तुतः दो 'क्नहीं उच्चारित होतेअपितु क्’ के मध्य की स्थिति अपेक्षाकृत बड़ी हो जाती है। इसलिए वैज्ञानिक दृष्टि से इस प्रकार के द्वित्त्वों की दो क्’ आदि न कह कर ’ का दीर्घ रूप या दीर्घ व्यंजन कया दीर्घ या प्रलम्बित 'कहना अधिक समीचीन हैक्योंकि दो ’ तब कहलातेजब दोनों की तीन-तीन स्थितियाँ घटित होतीं। 
  • स्पर्श संघर्षी आदि व्यंजनों के सम्बन्ध में भी यही स्थिति है। इस प्रकार बग्गीबच्चालज्जाभट्टीअड्डापत्तीगद्दीथप्पड़अप्पा आदि सभी के द्वित्त्व ऐसे ही हैं। महाप्राणों के इस रूप में द्वित्त्व नहीं होता। वस्तुतः (अन्य दृष्टियों में से एक) अल्पप्राण और महाप्राण ध्वनियों का अन्तर स्फोट के वायुःप्रवाह की कमी बेशी के कारण होता है। 

  • अतः जब दो मिलेंगे तो पहले का स्फोट होगा नहींइस प्रकार वह अल्पप्राण हो जायगा। आशय यह है कि ख्खघ्घछछझ्झठुभ्भ आदि का उच्चारण हो ही नहीं सकता। उच्चारण में ये क्खगघज्झट्ठब्भ हो जायेंगेजैसे घग्घरमच्छरझज्झरभब्भड़ आदि। अन्य प्रायः सभी व्यंजनों के द्वित्त्व में इस प्रकार की कोई बात नहीं होतीकेवल उनकी दीर्घता बढ़ जाती हैजैसे- पन्नाअम्मारस्साबर्रेपिल्ला आदि।' 

विभिन्न आधारों पर व्यंजन ध्वनियों के वर्गीकरण

 

विभिन्न आधारों पर व्यंजन ध्वनियों के वर्गीकरण

व्यंजन के वर्गीकरण में स्थान, करण, प्रयत्न के अतिरिक्त स्वरतंत्री प्राणतत्व, उच्चारण शक्ति, अनुनासिकता आदि आधारों पर भी विचार करने की आवश्यकता है।
व्यंजन के वर्गीकरण में स्थान, करण, प्रयत्न के अतिरिक्त स्वरतंत्री प्राणतत्व, उच्चारण शक्ति, अनुनासिकता आदि आधारों पर भी विचार करने की आवश्यकता है।





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