ध्वनि (ध्वनियों) का वर्गीकरण। स्वर-ध्वनियों का वर्गीकरण। Dhavani ka Vargikran

ध्वनि (ध्वनियों) का वर्गीकरण, स्वर-ध्वनियों का वर्गीकरण

ध्वनि (ध्वनियों) का वर्गीकरण। स्वर-ध्वनियों का वर्गीकरण। Dhavani ka Vargikran



ध्वनि का वर्गीकरण

 

  • ध्वनियों का सबसे प्राचीन और प्रचलित वर्गीकरण स्वर (Vowel) और व्यंजन (Consonent) के रूप में मिलता है।
  • 'स्वर' शब्द 'स्व' धातु से बना है जिसका अर्थ ध्वनि करना है। इसी तरह व्यंजन का सम्बंध अंज्' धातु से है जिसका अर्थ है जो प्रकट हो। 
  • स्वर' उन ध्वनियों को कहा गया जिनका उच्चारण बिना किसी अन्य ध्वनि की सहायता से किया जा सकता है और 'व्यंजन' उन ध्वनियों को जिनका उच्चारण स्वरों की सहायता से होता है।
  • आगे चलकर उच्चारण में हवा के प्रवाह के अबाधित या सबाधित होने के आधार पर पाश्चात्य भाषा वैज्ञानिकों स्वीट, डैनियल जोन्स आदि ने स्वर व्यंजन को इस प्रकार परिभाषित किया 'स्वर - वह घोष (कभी कभी अघोष भी) ध्वनि है जिसके उच्चारण में हवा मुख-विवर से अबाध गति से निकलती है।’ ‘
  • व्यंजन वह ध्वनि है जिसके उच्चारण में हवा मुख-विवर से अबाध गति से नहीं निकलने पाती। या तो इसे पूर्ण अवरुद्ध होकर आगे बढ़ना पड़ता है या संकीर्ण मार्ग से घर्षण खाते हुए निकलना पड़ता है।'

 

  • कुछ नवीन ध्वनि शास्त्रियों ने 'स्वर' और 'व्यंजन' के लिए नये नाम दिये हैं। जैसे हेफनर ध्वनियों को आक्षरिक (Syllabic) और अनाक्षरिक (Nonsyllabic) दो वर्गों में रखते हैं।
  • 'सिबलिक' स्वर का समानार्थी न होकर भी उसके निकट है। इसी तरह 'नॉनसिबलिक भी व्यंजन का प्रकृति से भिन्न नहीं है। 

स्वर व्यंजन परिभाषा के आधार 

  • स्वरवे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में प्राणवायु मुख-विवर के कंठ, तालु आदि स्थानों से निर्बाध होकर निकलती हो और 'व्यंजन' वे ध्वनियाँ हैं जिनके उच्चारण में प्राणवायु मुख-विवर के कंठ, तालु आदि स्थानों से बाधित होकर निकलती हों। कतिपय अपवादों को छोड़कर स्वर व्यंजन में भिन्नता है जो उनकी विशेषता भी मानी जा सकती है।

जैसे-

 

1. सभी स्वर आक्षरिक होते हैं और सभी व्यंजन अनाक्षरिक। 

2. मुखरता की दृष्टि से स्वर अपेक्षाकृत अधिक मुखर होते हैं और व्यंजन कम मुखर होते हैं। 


1 स्वर ध्वनियाँ

 

स्वर ध्वनि की प्रकृति के बारे में हमें बहुत सी बातें स्पष्ट हो चुकी हैं। अब हम स्वर - ध्वनियों के वर्गीकरण के बारे में चर्चा करेगें। 

स्वर-ध्वनियों के वर्गीकरण 

स्वर-ध्वनियों के वर्गीकरण के निम्नलिखित आधार माने गये हैं 

1. जीभ का कौन-सा भाग क्रियाशील होता है

  • सामान्य रूप से उच्चारण में जीभ का अग्र, मध्य या पश्च भाग सक्रिय होता है। इस आधार पर स्वर ध्वनि के उच्चारण में जीभ का जो भाग (अग्र, मध्य, पश्च) क्रियाशील होता है, उसके आधार पर उसे अग्र स्वर, मध्य स्वर और पश्च स्वर कहते हैं। 

जैसे 

  • जीभ का अग्र भाग इ,ई.ए.ऐ स्वरों के उच्चारण में सहायक होता है। अतः ये इ,,,ऐ अग्र स्वर हैं। 
  • इसी प्रकार जीभ का मध्य भाग अ स्वर तथा 
  • पश्च भाग उ,, , औ स्वर के उच्चारण में क्रियाशील होता है। 
  • अतः अ मध्य स्वर तथा आ, ,, , औ पश्च स्वर हैं।

 

2. जीभ का क्रियाशील भाग कितना ऊपर उठता है

  • स्वरों का स्वरूप जीभ के अग्र, पश्च या मध्य भाग के उठने पर भी निर्भर करता है अर्थात यदि जीभ का विशिष्ट भाग बहुत उठा हो तो मुख-विवर अत्यंत संकरा अर्थात 'संवृत' होगा और यदि वह नहीं के बराबर उठा तो मुख विवर बहुत खुला या 'विवृत' होगा। इन दोनों के बीच 'अर्द्ध विवृत' और 'अर्द्ध संवृत' दो स्थितियाँ और होती हैं। हिन्दी में आ विवृत, ऑ अर्द्धविवृत, , , , औ अर्द्धसंवृत और इ, , , ऊ संवृत स्वर हैं।

 

3. ओष्ठ की स्थिति के आधार पर स्वर 

  • प्रत्येक स्वर के उच्चारण में जीभ के साथ ओष्ठों की भी भूमिका - होती है। 
  • स्वरों के उच्चारण के समय ओष्ठों की दो प्रमुख स्थितियाँ हैं- वृताकार और अवृताकार।
  • ओष्ठ गोल आकार में बनने पर उ,, ओ तथा औ का वृताकार उच्चारण होता है होते हैं।
  • कुछ तथा शेष स्वर अवृताकार स्वरों में ओष्ठ पूर्णं विस्तृत (ए), उदासीन (अ), स्वल्प वृताकार (ऑ) एवं पूर्णं वृताकार (ऊ) होते हैं।

 

4. मात्रा के आधार पर स्वर 

  • स्वर के उच्चारण में जितना समय लगता है, उसे 'मात्रा' कहते हैं। 
  • उच्चारण काल के आधार पर स्वरों के तीन भेद हैं - ह्रस्व और दीर्घ । 
  • ह्रस्व स्वर के उच्चारण में कम समय लगता है और दीर्घ स्वर के उच्चारण में अपेक्षाकृत अधिक। 
  • , , , , ओ हस्व स्वर हैं। इसी प्रकार आ, , , , औ दीर्घ स्वर हैं।

 

5. कोमल तालु और कौवे का स्थिति 

  • उच्चारण - के समय कोमल तालु और कौवा कभी तो नासिका मार्ग को रोक देते हैं, कभी मध्य में रहते हैं जिससे वायु मुख से या मार्ग से निकलती है। पहली स्थिति में मौखिक स्वर अ, , ए आदि तथा दूसरी स्थिति में अनुनासिक स्वर अँ, आँ, इँ उच्चारित होते हैं।

 

6. स्वरतंत्रियों की स्थिति 

  • उच्चारण के समय स्वरतंत्रियों की स्थिति के आधार पर स्वर घोष और अघोष कहलाते हैं। 
  • घोष उन ध्वनियों को कहते हैं जिनके उच्चारण में स्वरतंत्रियों के बीच से आती हवा घर्षण करते हुए निकलती है। प्रायः सभी स्वर घोष की श्रेणी में आते हैं। 
  • जब स्वर तंत्रियाँ खुली रहती है तब हवा बिना किसी घर्षण के बाहर निकलती है। यह स्थिति अघोष कहलाती है।

 

7. मुख की मांसपेशियों या अन्य वागवयवों की दृढ़ता या शिथिलता के आधार पर भी स्वरों के भेद किये गये हैं। जैसे- अ, , उ शिथिल स्वर हैं और ई, , दृढ़ स्वर। 


8. कुछ स्वर मूल होते हैं अर्थात उनके उच्चारण में जीभ एक स्थान पर रहती है, जैसे , , , ओ। इसके सापेक्ष कुछ स्वर संयुक्त होते हैं अर्थात इनके उच्चारण में जीभ एक स्वर के उच्चारण से दूसरे स्वर के उच्चारण की ओर चलती है। वस्तुतः संयुक्त स्वर दो स्वरों का ऐसा मिला-जुला रूप है जिसमें दोनों अपना स्वतंत्र व्यक्तित्व खोकर एकाकार हो जाते हैं और साँस के एक झटके में उच्चरित होते हैं। दोनों मिलकर एक स्वर जैसे हो जाते हैं। ऐ (अ,ए) औ (, ओ) संयुक्त स्वर कहे गये हैं। 


संक्षेप में विभिन्न आधारों पर स्वरों के वर्गीकरण

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