नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय । नेताजी सुभाष चंद्र बोस महत्वपूर्ण तथ्य । Shubhash Chandra Boss Fact

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय ,Shubhash Chandra Boss Fact

नेताजी सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय ।  नेताजी सुभाष चंद्र बोस महत्वपूर्ण तथ्य । Shubhash Chandra Boss Fact


नेताजी सुभाष चंद्र बोस महत्वपूर्ण तथ्य Shubhash Chandra Boss Fact

  • जन्म 23 जनवरी, 1897
  • मृत्यु 18 अगस्त, 1945
  • माता का नाम प्रभावती दत्त बोस (Prabhavati Dutt Bose) 
  • पिता का नाम जानकीनाथ बोस (Janakinath Bose)
  • आध्यात्मिक गुरु स्वामी विवेकानंद
  • राजनीतिक गुरु - चितरंजन दास (Chittaranjan Das) 
  • 1938 (हरिपुरा) में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित
  • आज़ाद हिंद रेडियो का आरंभ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्त्व में 1942 में जर्मनी में किया गया था।
  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस   ने 6 जुलाई, 1944 को महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिताके रूप में संबोधित किया।
  • 1943 में जर्मनी से जापान-नियंत्रित सिंगापुर पहुँचे वहाँ से उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा दिल्ली चलो’  दिया । 
  • सुभाष चंद्र बोस को नेताजी की उपाधि हिटलर ने दी थी।
  • 'तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा' का नारा सुभाष चंद्र बोस ने दिया था।
  • भारत सरकार ने नेता 23 जनवरी को पराक्रम दिवस के रूप में मनाने का फैसला किया है. 

सुभाष चंद्र बोस कौन थे 

  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस (Netaji Subhas Chandra Bose) एक उग्र राष्ट्रवादी थे, जिनकी उद्दंड देशभक्ति ने उन्हें भारतीय इतिहास के सबसे महान स्वतंत्रता सेनानियों में से एक बना दिया। उन्हें भारतीय सेना को ब्रिटिश भारतीय सेना से एक अलग इकाई के रूप में स्थापित करने का श्रेय भी दिया गया जिसने स्वतंत्रता संग्राम को आगे बढ़ाने में मदद की।

 

सुभाष चंद्र बोस का जीवन परिचय 

  • सुभाष चंद्र बोस का जन्म 23 जनवरी, 1897 को उड़ीसा के कटक शहर में हुआ था।
  • सुभाष चंद्र बोस की माता का नाम प्रभावती दत्त बोस (Prabhavati Dutt Bose) और पिता का नाम जानकीनाथ बोस (Janakinath Bose) था।
  • सुभाष चंद्र बोस ने अपनी शुरुआती स्कूली शिक्षा के बाद उन्होंने रेवेनशॉ कॉलेजिएट स्कूल (Ravenshaw Collegiate School) में दाखिला लिया। उसके बाद उन्होंने प्रेसीडेंसी कॉलेज (Presidency College) कोलकाता में प्रवेश लिया परंतु उनकी उग्र राष्ट्रवादी गतिविधियों के कारण उन्हें वहाँ से निष्कासित कर दिया गया। इसके बाद वे इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिये कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय (University of Cambridge) चले गए।
  • वर्ष 1919 में बोस भारतीय सिविल सेवा (Indian Civil Services- ICS) परीक्षा की तैयारी करने के लिये लंदन चले गए और वहाँ उनका चयन भी हो गया। हालाँकि बोस ने सिविल सेवा से त्यागपत्र दे दिया क्योंकि उनका मानना था कि वह अंग्रेज़ों के साथ कार्य नहीं कर सकते।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के गुरु 

  • सुभाष चंद्र बोस, विवेकानंद की शिक्षाओं से अत्यधिक प्रभावित थे और उन्हें अपना आध्यात्मिक गुरु मानते थे, जबकि चितरंजन दास (Chittaranjan Das) उनके राजनीतिक गुरु थे।
  • वर्ष 1921 में बोस ने चित्तरंजन दास की स्वराज पार्टी द्वारा प्रकाशित समाचार पत्र 'फॉरवर्ड' के संपादन का कार्यभार संभाला।


नेताजी सुभाष चंद्र बोस राजनैतिक जीवन 

  • वर्ष 1923 में बोस को अखिल भारतीय युवा कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष और साथ ही बंगाल राज्य कॉन्ग्रेस का सचिव चुना गया।
  • वर्ष 1925 में क्रांतिकारी आंदोलनों से संबंधित होने के कारण उन्हें माण्डले (Mandalay) कारागार में भेज दिया गया जहाँ वह तपेदिक की बीमारी से ग्रसित हो गए ।
  • वर्ष 1930 के दशक के मध्य में बोस ने यूरोप की यात्रा की। उन्होंने पहले शोध किया तत्पश्चात् द इंडियन स्ट्रगल नामक पुस्तक का पहला भाग लिखा, जिसमें उन्होंने वर्ष 1920-1934 के दौरान होने वाले देश के सभी स्वतंत्रता आंदोलनों को कवर किया।
  • बोस ने वर्ष 1938 (हरिपुरा) में भारतीय राष्ट्रीय कॉन्ग्रेस का अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद राष्ट्रीय योजना आयोग का गठन किया। यह नीति गांधीवादी विचारों के अनुकूल नहीं थी।
  • वर्ष 1939 (त्रिपुरी) में बोस फिर से अध्यक्ष चुने गए लेकिन जल्द ही उन्होंने अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया और कॉन्ग्रेस के भीतर एक गुट ऑल इंडिया फॉरवर्ड ब्लॉकका गठन किया, जिसका उद्देश्य राजनीतिक वाम को मज़बूत करना था।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस की मृत्यु 

  • 18 अगस्त, 1945 को जापान शासित फॉर्मोसा (Japanese ruled Formosa) (अब ताइवान) में एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।


नेताजी सुभाष चंद्र बोस का स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

सीआर. दास के साथ संबंध: 

  • वह सीआर. दास (Chittaranjan Das) के साथ राजनीतिक गतिविधियों में संलग्न थे और उनके साथ जेल भी गए। जब सीआर. दास को कलकत्ता को-ऑपरेशन का मेयर चुना गया तो उन्होंने बोस को मुख्य कार्यकारी नामित किया था। उन्हें वर्ष 1924 में उनकी राजनीतिक गतिविधियों के लिये गिरफ्तार किया गया था।

ट्रेड यूनियन आंदोलन: 

  • उन्होंने युवाओं को संगठित किया और ट्रेड यूनियन आंदोलन को बढ़ावा दिया। वर्ष 1930 में उन्हें कलकत्ता का मेयर चुना गया, उसी वर्ष उन्हें अखिल भारतीय ट्रेड यूनियन कॉन्ग्रेस (All India Trade Union Congress- AITUC) का अध्यक्ष भी चुना गया।

कॉन्ग्रेस के साथ संबंध: 

  • उन्होंने बिना शर्त स्वराज (Unqualified Swaraj) अर्थात् स्वतंत्रता का समर्थन किया और मोतीलाल नेहरू रिपोर्ट (Motilal Nehru Report) का विरोध किया जिसमें भारत के लिये डोमिनियन के दर्जे की बात कही गई थी।


  • उन्होंने वर्ष 1930 के नमक सत्याग्रह में सक्रिय रूप से भाग लिया और वर्ष 1931 में सविनय अवज्ञा आंदोलन के निलंबन तथा गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर करने का विरोध किया।
  • वर्ष 1930 के दशक में वह जवाहरलाल नेहरू और एम.एन. रॉय के साथ कॉन्ग्रेस की वाम राजनीति में संलग्न रहे।
  • वाम समूह के प्रयास के कारण कॉन्ग्रेस ने वर्ष 1931 में कराची में दूरगामी कट्टरपंथी प्रस्ताव पारित किये, जिसने मुख्य कॉन्ग्रेस लक्ष्य को मौलिक अधिकारों की गारंटी देने के अलावा उत्पादन के साधनों के समाजीकरण के रूप में घोषित किया।

नेताजी सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस अध्यक्ष 

  • कॉन्ग्रेस अध्यक्ष: बोस वर्ष 1938 में हरिपुरा में कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।
  • वर्ष 1939 में त्रिपुरी (Tripuri) में उन्होंने गांधी जी के उम्मीदवार पट्टाभि सीतारमैय्या (Pattabhi Sitarammayya) के खिलाफ फिर से अध्यक्ष पद का चुनाव जीता।
  • गांधी जी से साथ वैचारिक मतभेद के कारण बोस ने कॉन्ग्रेस के अध्यक्ष पद से त्यागपत्र दे दिया।
  • इसका उद्देश्य उनके गृह राज्य बंगाल में वाम राजनीतिक और प्रमुख समर्थन आधार को समेकित करना था।


सविनय अवज्ञा आंदोलन: 

  • जब द्वितीय विश्व युद्ध शुरू हुआ तो उन्हें फिर से सविनय अवज्ञा में भाग लेने के कारण कैद कर लिया गया और कोलकाता में नज़रबंद कर दिया गया।


भारतीय राष्ट्रीय सेना: 

  • बोस ने पेशावर और अफगानिस्तान के रास्ते बर्लिन भागने का प्रबंध किया। वह जापान से बर्मा पहुँचे और वहाँ भारतीय राष्ट्रीय सेना को संगठित किया ताकि जापान की मदद से भारत को आज़ाद कराया जा सके।


  • उन्होंने 'जय हिंद' और 'दिल्ली चलो' जैसे प्रसिद्ध नारे दिये। अपने सपनों को साकार करने से पहले एक विमान दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गई।


आज़ाद हिंद

  • भारतीय सेना: बोस ने बर्लिन में स्वतंत्र भारत केंद्र की स्थापना की और युद्ध के लिये भारतीय कैदियों से भारतीय सेना का गठन किया, जिन्होंने एक्सिस शक्तियों (धुरी राष्ट्र- जर्मनी इटली और जापान) द्वारा बंदी बनाए जाने से पहले उत्तरी अफ्रीका में अंग्रेज़ों के लिये लड़ाई लड़ी थी।
  • यूरोप में बोस ने भारत की आज़ादी के लिये हिटलर और मुसोलिनी से मदद मांगी।
  • आज़ाद हिंद रेडियो का आरंभ नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नेतृत्त्व में 1942 में जर्मनी में किया गया था। इस रेडियो का उद्देश्य भारतीयों को अंग्रेज़ों से स्वतंत्रता प्राप्त करने हेतु संघर्ष करने के लिये प्रचार-प्रसार करना था।
  • इस रेडियो पर बोस ने 6 जुलाई, 1944 को महात्मा गांधी को 'राष्ट्रपिता' के रूप में संबोधित किया।


भारतीय राष्ट्रीय सेना और नेताजी सुभाष चंद्र बोस

  • वह जुलाई 1943 में जर्मनी से जापान-नियंत्रित सिंगापुर पहुँचे वहाँ से उन्होंने अपना प्रसिद्ध नारा दिल्ली चलोजारी किया और 21 अक्तूबर, 1943 को आज़ाद हिंद सरकार तथा भारतीय राष्ट्रीय सेना के गठन की घोषणा की।
  • INA का गठन पहली बार मोहन सिंह (Mohan Singh) और जापानी मेजर इविची फुजिवारा (Iwaichi Fujiwara) के नेतृत्त्व में किया गया था तथा इसमें मलायन (वर्तमान मलेशिया) अभियान में सिंगापुर में जापान द्वारा कब्जा किये गए ब्रिटिश-भारतीय सेना के युद्ध के भारतीय कैदियों को शामिल किया गया था।
  • INA में सिंगापुर के जेल में बंद भारतीय कैदी और दक्षिण-पूर्व एशिया के भारतीय नागरिक दोनों शामिल थे। इसकी सैन्य संख्या  बढ़कर 50,000 हो गई।
  • INA ने वर्ष 1944 में इम्फाल और बर्मा में भारत की सीमा के भीतर संबद्ध सेनाओं का मुकाबला किया।
  • हालाँकि रंगून के पतन के साथ ही आजाद हिंद सरकार एक प्रभावी राजनीतिक इकाई बन गई।
  • नवंबर 1945 में ब्रिटिश सरकार द्वारा INA के लोगों पर मुकदमा चलाए जाने के तुरंत बाद पूरे देश में बड़े पैमाने पर प्रदर्शन हुए।
  • प्रभाव: INA के अनुभव ने वर्ष 1945-46 के दौरान ब्रिटिश भारतीय सेना में असंतोष की लहर पैदा की, जिसकी परिणति फरवरी 1946 में बॉम्बे के नौसैनिक विद्रोह के रूप में हुई जिसने ब्रिटिश सरकार को जल्द-से-जल्द भारत छोड़ने के लिये मजबूर कर दिया।
  • I.N.A की संरचना: INA अनिवार्य रूप से गैर-सांप्रदायिक संगठन था, क्योंकि इसके अधिकारियों और रैंकों में मुस्लिम काफी संख्या में थे और इसने झांसी की रानी के नाम पर एक महिला टुकड़ी की भी शुरुआत की।

सुभाष चंद्र बोस अंतर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा

  • नेताजी सुभाष चंद्र बोस अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा या कोलकाता विमानक्षेत्र भारत का एक प्रमुख अन्तर्राष्ट्रीय हवाई अड्डा हैं, जो कोलकाता में स्थित है। यह एक नागरिक हवाई अड्डा है। यहां कस्टम्स विभाग उपस्थित है। इसका रनवे पेव्ड है। इसकी प्रणाली यांत्रिक है। इसकी उड़ान पट्टी की लंबाई 11900 फीट है। .

नेताजी सुभाष चंद्र बोस के नारे विचार 


  • तूम मुझें खून दों, मैं तुम्हें आजादी दूंगा . 
  • राष्ट्रवाद (देशभक्ति) मानवता के श्रेष्टतम आदर्शों सत्यम् , शिवम्, सुन्दरम् से अभिप्रेरित  है।
  • हमेशा याद रखिए सबसें बडा अपराध, अन्याय को सहना और सही साबित करना हैं । 
  • इतिहास में कभी भी विचार-विमर्श (बातचीत) से कोई ठोस परिवर्तन हासिल नही हुआ है।
  • एक सिपाही के रूप में आपको हमेशा तीन आदर्शों को सजोना और उन पर जीना होगा सच्चाई, कर्तव्य और बलिदान। जो सिपाही हमेशा अपने देश के प्रति वफादार रहता है, जो हमेशा अपना जीवन बलिदान करने को तैयार रहता है, वो अजेय है। अगर तुम भी अजेय बनना चाहते हो तो इन तीन उच्च आदर्शों को अपने दिल में सजोकर रखों
  • एक सच्चें सिपाही को सैनिक और आध्यात्मिक दोनों ही प्रशिक्ष्ण कीआवश्यकता होती है. 
  • आपसी द्वेष को दूर करने में हिंदी जितनी मदद कर सकेगी, उतनी कोई अन्य भाषा नही.
  • इस वक्त हमारे भीतर एक ही तमन्ना जागृत होनी चाहिए, मरने की इच्छा ताकि भारत जी सके! एक शहीद की मौत मरने की इच्छा ताकि स्वतंत्रता का मार्ग शहीदों के लहू से देश की आजादी राह सुगम हो सके.
  • आज हमारा परम कर्तव्य है कि हम अपनी आजादी की कीमत अपने खून से चुकाएं.  हमारे स्वतंत्रता सैनानियों के खून व मेहनत से प्राप्त आजादी जो मिली, उसकों अक्षुण बनाएं रखने की ताकत हममें होनी चाहिए.
  • संघर्ष ने मुझे इंसान बनाया, मुझमें जों आत्मविश्वास जगा वो पहले कभी नही था (अभूतपूर्व)
  •  यदि आपकों किसी के सामने कुछ समय के लिए झुकना भी पड़े तो वीरों की तरह झुकना। 
  • जिसमें थोड़ा भी पागलपन न हो, वो इंसान कभी महान नही बन सकता. यह जरुरी भी नही, कि हर पागल इसान महान व्यक्ति हो. 
  • यह तो आप भी मानते होंगे, कि एक वक्त मै भी जेल से रिहा हो जाउगा, क्योंकि प्रत्येक दुःख का एक दिन अंत अवश्य होता है । 
  • यह देखकर बड़ा खेद महसूस होता है, इंसान मानव जीवन पाकर भी उसका अर्थ नही समझ पाया है. मानव होकर आप अपनी मंजिल तक नही पहुच पा रहे है तो इस जीवन का क्या मतलब। 
  • मुझे यह नही पता कि आजादी के इस महाकुम्भ कौन बचेगा, मगर इतना निश्चिन्त हूँ आखिर विजय हमारी ही होगी ,

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