हड़प्पा की स्थापत्य कला के लक्षण | भारतीय स्थापत्य-कला उद्भव एवं विकास |भारतीय वास्तुशिल्प के विकास | Haddpaa Kalin Sthapatya Kala

 भारतीय  स्थापत्य-कला उद्भव एवं विकास 

हड़प्पा की स्थापत्य कला के लक्षण | भारतीय  स्थापत्य-कला उद्भव एवं विकास |भारतीय वास्तुशिल्प के विकास | Haddpaa Kalin Sthapatya Kala



स्थापत्य-कला उद्भव और भारतीय परिप्रेक्ष्य

 

  • स्थापत्य कला कोई आधुनिक परिदृश्य नहीं है। यह तब जन्मा जब आदिम मानव ने रहने के लिए अपना आश्रय गुफाऔं में बनाना शुरू किया। जब मनुष्य घने जंगलों के प्राकृतिक निवास से निकला तो उसने अपने लिए घर बनाना शुरू किया।


  • जब मानव का सौन्दर्य बोध जागा तो उसने बेहतर स्थान खोजकर अपने लिए आंतरिक और खुद को लुभाने वाले आकर्षक मकानों का निर्माण आरम्भ किया। इस प्रकार आवश्यकता, कल्पनासामग्री,कौशल, स्थान और बनाने वालों की क्षमताओं के संगम से वास्तुकला का जन्म हुआ। 

 

स्थापत्य कला के रूप और निर्माण का विवरण

 

  • विभिन्न कालों में वास्तु या स्थापत्यकला ने स्थानीय और प्रादेशिक सांस्कृतिक परंपराओ उपलब्ध सामग्री, सामाजिक आवश्यकताओं, आर्थिक समृद्धि, विभिन्न समय के आनुष्ठानिक प्रतीकों को ध्यान में रखा है। 
  • अतः वास्तुशास्त्र का अध्ययन हमें सांस्कृतिक विभिन्नताओं का ज्ञान कराता है और हमें भारत की समृद्ध परम्पराओं को समझने में सहायता करता है। 
  • भारतीय वास्तुशिल्प का विभिन्न कालों में, देश के विभिन्न भागों में विकास हुआ। प्राक् - इतिहास और ऐतिहासिक कालों में हुए स्वाभाविक और प्राकृतिक विकास के अतिरिक्त इतिहास में घटित महान व महत्त्वपूर्ण घटनाओं से भी भारतीय वास्तुशिल्प प्रभावित हुआ। 
  • स्वाभाविक रूप से उपमहाद्वीप के महान साम्राज्यों और राजवंशों के उत्थान और पतन ने भारतीय वास्तुशिल्प के विकास पर गहरा प्रभाव डाला। बाहरी प्रभावों और साथ ही देश के विभिन्न भागों के प्रभावों से भी भारतीय वास्तुकला का स्वरूप प्रभावित हुआ। 


हड़प्पा काल में भारतीय वास्तुशिल्प के विकास 


हड़प्पा काल

 

  • हड़प्पा और मोहनजोदाड़ों तथा सिंधु घाटी सभ्यता के अनेक स्थलों पर हुई खुदाई से एक अत्यंत आधुनिक शहरी सभ्यता का पता चलता है, जहाँ विशिष्ट नगरीय सभ्यता और निर्माण कौशल मौजूद था। 
  • अत्याधुनिक निकासी प्रणाली तथा योजनाबद्ध पथों और घरों से,  पता चलता है कि आर्यों के आने से पहले भारत में एक अति विकसित संस्कृति का अस्तित्व था। 
  • सिंधु घाटी सभ्यता के स्थलों की खुदाई भारतीय पुरातात्विक सर्वेक्षण की देखरेख में हुई जिसकी स्थापना अंग्रेजों द्वारा की गई थी। 
  • हड़प्पा के लोगों ने मुख्यतया तीन प्रकार के भवनों का निर्माण किया निवास गृहस्तम्भों वाले बड़े हॉल और सार्वजनिक स्नानागार। 

 

हड़प्पा की स्थापत्य कला के लक्षण 

हड़प्पा के अवशेषों के मुख्य लक्षण हैं

 

1. ये अवशेष ईसा पूर्व तीसरी सहस्राब्दी के माने जाते हैं। 

2. कुछ महत्त्वपूर्ण निवास स्थल सिन्धु नदी के किनारों पर पाए गए विशेष रूप से उन मोड़ों पर जहाँ जल की आपूर्ति अधिक थी, उत्पादों के परिवहन के साधन थे और नदी के एक ओर प्राकृतिक रूप से सुरक्षित स्थल थे।

3. सभी स्थलों में पाए गए नगरों के चारों ओर बड़ी-बड़ी दीवारें बनवाई गई थीं जिनसे सुरक्षा होती थी। 

4. इन नगरों के आयताकार नमूने थे जिनमें सड़कें बनाई गईं जो एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं। 

5. सिन्धु घाटी के लोग भवन निर्माण सामग्री के लिए एक विशेष नाप के आकार की पकाई गई ईंटों का प्रयोग करते थे। 

6. यहाँ बड़े भवनों के निर्माण के साक्ष्य भी मिले हैं जो शायद प्रशासनिक या व्यापार केन्द्र, स्तम्भों वाले बड़े हॉल, अहाते तथा सार्वजनिक भवन हुआ करते थे। मंदिर के कोई साक्ष्य नहीं मिले हैं। 

7. सार्वजनिक भवनों में अन्न भंडार भी हुआ करते थे जहां अनाज का भंडारण किया जाता था। इससे वहां के सुव्यवस्थित संग्रह और वितरण प्रणाली का पता चलता है। 

8. बड़े सार्वजनिक भवनों के साथ ही वहां एक कमरे के छोटे घरों के साक्ष्य भी मिलते है जो शायद कामगारों के निवास लगते हैं। 


9. हड़प्पा के लोग कुशल इंजीनियर थे, ऐसा उस सार्वजनिक स्नानागारों से पता चलता है जो कि मोहनजोदाड़ो में मिला है। विशाल स्नानागर' जैसा कि इसे कहा जाता है अभी तक बना हुआ हैं और इस निर्माण में कोई भी दरार या रिसाव नहीं हुआ है। ऐसा निर्माण जो सार्वजनिक स्नानागार सा प्रतीत होता है इस संस्कृति के कर्मकाण्डीय स्नान और स्वच्छता का प्रतीक है। यह महत्त्वपूर्ण है कि अधिकतर घरों में निजी कुँए, और स्नानघर होते थे। 


10. पश्चिमी भागों में जहां पर सार्वजनिक भवन और अन्नागार हुआ करते थे वहाँ पर एक प्रमुख दुर्ग मिला है। इसे नगरों पर किसी प्रकार के राजनैतिक सत्ता के शासन के साक्ष्य के रूप में माना जा सकता है।

 

11. इसके भी साक्ष्य मिले हैं कि दीवारों वाले नगर के चारों ओर किलाबंदी होती थी और उनमें मुख्य द्वार होता था। इससे पता चलता है कि उन्हें हमला हो जाने का खतरा रहा होगा।

 

12. गुजरात में एक खुदाई स्थल लोथल में बंदरगाह के अवशेष मिले हैं जिनसे इस बात की पुष्टि होती है कि उस समय में समुद्री रास्तों के जरिए व्यापार का विकास हुआ।

 

  • एक और असाधारण लक्षण यह था कि नगरों के रिहायशी इलाकों में एक सुनियोजित निकासी व्यवस्था मौजूद थी। घरों की छोटी नालियां मुख्य सड़कों के नजदीक बड़ी नालियों से जुड़ी थीं। यह नालियां ढकी हुई हुआ करती थीं और इनकी सफाई के उद्देश्य से इन्हें पृथक ढक्कनों से ढका जाता था रिहायशी मकानों की योजना भी बहुत सावधानी से की गई थी। 

  • सीढ़ियों की मौजूदगी के भी प्रमाण मिले हैं जो यह सिद्ध करते हैं कि मकान अक्सर दो मंजिला हुआ करते थे। घरों में दरवाजे किनारें की गलियों की तरफ हुआ करते थे ताकि मुख्य सड़क से धूल घर के अंदर न घुस पाए ।

 

  • हड़प्पा की स्थापत्य कला का सबसे महत्त्वपूर्ण लक्षण है उनका उत्कृष्ट नगर योजना कौशल और उनके नगर जिनका निर्माण ज्यामितीय पद्धति या जालीदार प्रारूप के आधार पर किया गया था। सड़कें एक दूसरे को समकोण पर काटती थीं और बहुत अच्छी तरह से बिछाई गई थीं ।


  • सिन्धु घाटी के नगर नदियों के किनारे बसे हुए थे इसलिए अक्सर वे भंयकर बाढ़ों से बर्बाद हो जाते थे। इसके बावजूद सिंधु घाटी के निवासी उन्हीं स्थानों पर पुनः निर्माण करते थे। इसी कारण खुदाई के दौरान परत दर परत निवास स्थान और भवन मिले हैं। सिंधु घाटी सभ्यता का ह्रास और अंततः विनाश सम्भवत दूसरी सहस्राब्दी ईसा पूर्व में हुआ कैसे हुआ, यह अब तक रहस्यमय बना हुआ है।

 

  • समस्त निर्माणकार्य को अति मजबूत बनाने के लिए खड़िया, मिट्टी, गारे को बहुत अच्छी प्रकार से पका कर ईंटों से मोटी परतें बनायी जाती थीं। इन भवनों की मजबूती आज भी देखी जा सकती है। पिछले पांच हजार वर्ष पहले नष्ट किए जाने पर भी भवनों के यह अवशेष आज भी बचे हुए हैं।

 

  • हड़प्पा के लोगों को मूर्तिकला एवं हस्तकला का भी ज्ञान और कौशल प्राप्त था। दुनिया की पहली तांबे की नृत्यांगना की मूर्ति मोहनजोदाड़ो में पाई गई है। योग की मुद्रा पुरुष की मूर्ति खुदी हुई चित्रलिपि वाली मोहरें, पहनने वाले सुंदर आभूषण एवं कूबड़ युक्त बैलों की मूर्तियाँ, एक सींग वाले पशुपति आदि की तस्वीरें भी प्राप्त हुई हैं। चित्र लिपि वाली खुदी हुई मोहरें आदि भी उत्खनन में मिली इसके बाद जो वैदिक आर्य आये, वे लकड़ी, बांस और सरकंडों के मकानों में रहने लगे। 


  • आर्य संस्कृति कृषकों की थी अतः बड़े भवनों का अभाव मिलता है। आर्य अपने शाही महलों को बनाने में नष्ट होने वाली सामग्री जैसे लकड़ी आदि का प्रयोग करते थे अतः वे समय बीतने पर नष्ट हो गए। वैदिक काल का एक महत्त्वपूर्ण पहलू 'वेदी' को बनाना है जो शीघ्र ही लोगों की सामाजिक ध ार्मिक जीवन का आधार बन गई। आज भी हिन्दु घरों में विशेषतया विवाह में अग्निवेदी की महत्त्वपूर्ण भूमिका है।

 

  • आंगन तथा मण्डप में यज्ञशाला की वेदी स्थापत्य कला की महत्त्वपूर्ण आकृति है। हमें गुरुकुलों और आश्रमों के भी प्रसंग मिलते हैं। दुर्भाग्यवश वैदिक काल का कोई भी ढांचा नहीं मिलता है। स्थापत्य कला के इतिहास में भवन निर्माण में ईंट-पत्थर के साथ लकड़ी | का प्रयोग महत्त्वपूर्ण योगदान है।

 

छठी शताब्दी ईसा पूर्व  भारतीय  स्थापत्य-कला

  • छठी शताब्दी ईसा पूर्व में भारत ने अपने इतिहास के महत्त्वपूर्ण चरण में प्रवेश किया। यहाँ | दो नए धर्म जैनधर्म और बौद्धधर्म का उदय हुआ और वैदिक धर्म में परिवर्तन होने लगा।

 

  • लगभग उसी समय में बड़े राज्यों का विकास हुआ। इस समय से अर्थात् मगध के साम्राज्य के रूप में विस्तृत होने से स्थापत्य कला को और अधिक प्रोत्साहन मिला। इसके बाद से भारतीय स्थापत्य कला की प्रायः सम्पूर्ण श्रृंखला की रूपरेखा प्रस्तुत करना सम्भव है।

 

  • बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म के उद्भव ने भारत की प्रारंभिक स्थापत्य कला के विकास में महत्त्वपूर्ण योगदान किया। 


  • बौद्ध स्तूपों का निर्माण वहीं हुआ जहां बुद्ध के अवशेष रखे गये थे, तथा उन प्रमुख स्थानों में जहां बुद्ध के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएं घटीं । मिट्टी के गारे से सावधानी से तपाई गई छोटी-छोटी ईटों को जोड़कर स्तूप बनाये। एक स्तूप उनके | जन्म स्थान लुम्बिनी में बना है, दूसरा स्तूप गया में बना है जहां पीपल के पेड़ के नीचे बुद्ध को ज्ञान प्राप्त हुआ, तीसरा स्तूप सारनाथ में बना है जहां बुद्ध ने अपना पहला उपदेश | दिया तथा चौथा स्तूप कुशीनगर में बना है जहां उन्होंने अस्सी वर्ष की उम्र में महापरिनिर्वाण प्राप्त किया।

 

  • बुद्ध के अवशेषों को जहां रखा गया तथा वे स्थान जहां बुद्ध के जीवन की महत्त्वपूर्ण घटनाएं घटीं, वे सभी स्थान आज भारत की महत्त्वपूर्ण स्थापत्य कला के प्रतिमान हैं। जिस संघ में भिक्षु और भिक्षुणी रहते थे आज वे महत्त्वपूर्ण तीर्थस्थल के रूप में जाने जाते हैं। | विहार तथा पठन पाठन एवं उपदेश के स्थान भी महत्त्वपूर्ण स्थान के रूप में उभर कर सामने आए हैं। आम लोगों तथा भिक्षुओं के मध्य शिक्षा तथा आपसी विचार-विमर्श हेतु सामुदायिक भवनों (चैत्य) का निर्माण भी किया गया।

 

  • तभी से धर्म ने स्थापत्य कला को प्रभावित करना शुरू किया। जहां बौद्धों और जैनों ने स्तूपों, विहारों तथा चैत्यों का निर्माण शुरू किया वहीं गुप्त वंश के शासन काल में मंदिरों का प्रथमतः निर्माण शुरू हुआ।


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