मध्यकालीन स्थापत्य कला | मुगल स्थापत्य कला | दिल्ली सल्तनत स्थापत्य कला |Medieval Indian architecture in Hindi

मध्यकालीन स्थापत्य कला

मध्यकालीन स्थापत्य कला | Medieval Indian architecture in Hindi


 

दिल्ली सल्तनत स्थापत्य कला

 

  • 13वीं शताब्दी में तुर्की के आगमन के साथ वास्तुकला में एक नई तकनीक का प्रवेश हुआ। फारस, अरब व मध्य एशिया की वास्तुशिल्प कला की शैलियों का भारत में पदार्पण हुआ। गुम्बज, मेहराब और मीनारें इन इमारतों के अभिन्न अंग थे। 
  • शासकों द्वारा बनाए गए महलों मस्जिदों और मकबरों में ये सभी लक्षण पाए जाते थे, लेकिन ये विशेषताएं देशी वास्तुकला के साथ घुलमिल गईं और वास्तुकला में एक नया संश्लेषण हुआ। यह इसलिए हुआ कि दिल्ली के तुर्की शासकों ने स्थानीय भारतीय शिल्पकारों की सेवाओं का प्रयोग किया जो | बहुत कुशल थे और पहले ही बहुत सुन्दर भवन बना चुके थे। 
  • जो भवन बने उनमें इस्लामिक संरचना की सरलता और विस्तृत शिल्प या डिजाइन जो उन्होंने अपने देशी भवनों में बनाए थे, दोनों का संगम देखने को मिलता है। मुगल शासन के दौरान संश्लेषण की यह प्रक्रिया और अधिक परिष्कृत हुई और इसने  महान ऊंचाइयों को प्राप्त किया।

 

  • दिल्ली की कुव्वतुल इस्लाम मस्जिद और कुतुबमीनार इस युग की प्राचीनतम इमारतें हैं। कुतुबमीनार की ऊंचाई सत्तर मीटर है। इस मीनार में पांच मंजिल हैं। मस्जिद और मीनार दोनों में खूबसूरती से अक्षर अंकित हैं। बाद में सुल्तानों द्वारा बहुत सी इमारतें बनवाई गईं।

 

  • अलाऊद्दीन खिलजी ने कुव्वत उल इस्लाम मस्जिद को बड़ा करवाया तथा मस्जिद की | चारदीवारी बनवा कर द्वार बनवाया। जिसे 'अल्हाई' दरवाजा कहते हैं। इसकी सुन्दर स्थापत्य कारीगरी आज भी देखने योग्य है। उन्होंने जलशक्ति से चालित हौज खास दिल्ली में  बनवाया। मौहम्मद तुगलक तथा फिरोज तुगलक के मकबरे और तुगलकाबाद के किले भी कुछ उदाहरण हैं। यद्यपि इनके भवन बहुत सुंदर नहीं हैं परन्तु उनकी मजबूत और ऊँची-ऊँची दीवारें भी प्रभावित करती हैं। 


  • अफगान शासन के दौरान दिल्ली में इब्राहीम लोदी का मकबरा और सासाराम में शेरशाह सूरी का मकबरा बनाया गया। इस काल की स्थापत्य कला दर्शाती है कि किस तरह से निर्माताओं ने देशी शैलियों को अपनाया और इनका प्रयोग किया। इन वर्षों में तुर्की लोग भारत में बसने की प्रक्रिया में थे। इन शासकों को मंगोलों की ओर से खतरा था, जो उत्तरी दिशा से अचानक हमला कर देते थे। यही कारण है कि इस युग की इमारतें मजबूत, बुलंद और उपयोगी हैं।

 

क्षेत्रीय साम्राज्य की स्थापत्य कला

 

  • बंगाल, गुजरात और दक्कन में क्षेत्रीय राज्यों की स्थापना के साथ ही वहां की अपनी शैली में कई इमारतें बनाई गईं। 
  • अहमदाबाद की जामामस्जिद, सादी सैयद मस्जिद और झूलती मीनार इस वास्तुकला के कुछ उदाहरण हैं। 
  • मध्य भारत में मांडू में जामा मस्जिद, हिंडोला महल और जहाज महल बनाए गए। दक्कन में भी सुल्तान ने कई इमारतें बनवाई। 
  • गुलबर्ग की जामा मस्जिद, बीदर का महमूद गवन का मदरसा, बीजापुर में इब्राहीम रोजा और गोल गुम्बज, गोलकुंडा का दुर्ग कुछ प्रसिद्ध इमारतों के उदाहरण हैं। 
  • गोल गुम्बज में विश्व का सबसे बड़ा गुंबद है। इन सभी इमारतों के डिजाइन और शैलियां उत्तर भारत की इमारतों की शैली से भिन्न हैं।

 

  • बंगाल में लंबे आकार के कुछ भवन और उनकी छतों का अदभुत शैली में निर्माण बंगाल प्रदेश के कुछ विशिष्ट लक्षण थे जैसे- अदीना मस्जिद और पाण्डुआ में जलालुद्दीन का मकबरा, गौड़ में खील दरवाजा और तन्तीपारा मस्जिद, जौनपुर में, शारकु राजाओं ने अटाला मस्जिद के गुम्बद को भीमकाय, जालीदार दीवार से ढकवाया। 


  • जबकि, मालवा में होशांग शाह के मकबरे में पीले और काले रंग के संगमरमर पर कारीगरों से जड़ाऊ काम करवाया गया था। विजयनगर साम्राज्य, जो इस काल में स्थापित हुआ, के राजाओं ने भी अपने राज्यकाल में अनेक सुन्दर भवन और मन्दिर बनवाये और अन्य कई उपलब्धियों का श्रेय भी उनको जाता है। हम्पी में विट्ठलस्वामी मंदिर और हजर रमा मंदिर अच्छे मन्दिरों के उदाहरण है जिनके अब केवल अवशेष बचे हैं।

 

बहमनी साम्राज्य की स्थापत्य कला

  • बम्हनी सुलतानों ने फारसी, सीरिया, तुर्की तथा दक्षिण भारत के मंदिरों की शैलियों को अपनाया। गुलबर्ग में जामा मस्जिद बहुत प्रसिद्ध है। इस मस्जिद के प्रांगण को बहुत गुम्बदों से ढका गया है जोकि भारत में ढके हुए प्रांगण वाली यह एकमात्र मस्जिद है।

 

मुगल स्थापत्य कला

 

  • मुगलों के आगमन ने स्थापत्य कला में एक नए युग की शुरुआत की। विभिन्न शैलियों के संश्लेषण की जो शुरुआत पहले हो चुकी थी वह इस युग में अपनी पराकाष्ठा तक पहुंच गई। 
  • मुगल शैली की वास्तुकला का प्रारंभ अकबर के शासन में हुआ। इस शासन की पहली इमारत दिल्ली में हुमायूं का मकबरा थी। इस शानदार इमारत में लाल पत्थर का इस्तेमाल किया गया। इसमें एक प्रमुखद्वार है और यह मकबरा | एक बगीचे के बीचों-बीच बना है। कई विशेषज्ञ इसे ताजमहल का पुरोगामी मानते हैं। 
  • अकबर ने आगरा और फतेहपुर सीकरी में किलों का निर्माण कराया। बुलंद दरवाजा शक्तिशाली मुगल साम्राज्य की शानो-शौकत को प्रतिबिंबित करता है। इसका निर्माण अकबर की गुजरात विजय के बाद हुआ। बुलंद दरवाजे की मेहराब प्रायः 41 मी. ऊँची है और यह विश्व का सबसे शानदार द्वार है। 
  • सलीम चिश्ती का मकबरा, जोधाबाई का महल, इबादत खाना, बीरबल का आवास और फतेहपुर सीकरी | के अन्य भवन भारतीय और फारसी शैलियों का संश्लेषण प्रस्तुत करते हैं। 
  • जहांगीर के शासनकाल में आगरा के निकट सिकंदरा में अकबर का मकबरा बनवाया गया। उसने | इत्माद्दौला का सुन्दर मकबरा बनवाया जो पूरी तरह संगमरमर का बना है।
  • मुगलों में शाहजहां सबसे महान भवन निर्माता सिद्ध हुआ। उसने अपने निर्माणों में संगमरमर का | भरपूर उपयोग किया। पच्चीकारी (पीएट्राड्यूरो) में खूबसूरत डिजाइन, सुंदर मेहराब और मीनार उसकी इमारतों की विशेषताएं थीं। 
  • दिल्ली की जामा मस्जिद तथा लाल किला एवं आगरे का ताजमहल शाहजहां द्वारा बनाई गई कुछ प्रसिद्ध इमारतें हैं। 
  • शाहजहां की पत्नी की याद में बनाये गये मकबरे में जिसे ताजमहल कहा जाता है, मुगल काल में विकसित | वास्तुकला की सारी विशेषताएं मौजूद हैं। इसमें एक केंद्रीय गुम्बद, चार शानदार मीनारें, द्वार, पच्चीकारी का काम और मुख्य भवन के चारों ओर बाग है। 
  • बाद के युग के भवनों पर मुगल शैली की वास्तुशिल्प का गहरा प्रभाव पड़ा। भवनों पर प्राचीन भारतीय शैली का भी प्रभाव पड़ा और उनमें आंगन और स्तम्भ बनवाए गए स्थापत्य कला की इस शैली |में पहली बार जीवित प्राणी, हाथी, शेर, मयूर तथा अन्य पक्षियों की भी मूर्तियाँ झरोखों में बनाई गईं।

 

फतेहपुर सीकरी में अकबर द्वारा बनवाए गए स्मारक

 

  • अकबर के शासनकाल से मुगल स्थापत्य कला का आरंभ हुआ। उन्होंने कई महत्त्वपूर्ण भवनों का निर्माण करवाया। आगरा से 40 किलो मीटर दूर 'फतेहपुरसीकरी' को अपनी | नई राजधानी बनाया, जो उनके शासन काल की महा उपलब्धि है। 'बुलंद दरवाजा' संसार में एकमात्र शानदार दरवाजा है। संत सलीम चिश्ती का मकबरा इसकी शान को बढ़ाता है। 


  • प्राचीन भारतीय स्थापत्य कला का सुंदर नमूना जोधाबाई का महल है। फारसी शैली स प्रभावित होकर जामा मस्जिद का निमाण करवाया अपना अच्छा याजना व सुंदर सजावट के कारण 'दीवाने-आम' एवं 'दीवाने खास' प्रसिद्ध हैं। 'इबादत खाना' एवं पंचमहल भी विलक्षण भवन हैं। 'पंचमहल' पांच मंजिल वाला पिरामिड ढांचा है। इसका निर्माण बौद्ध बिहार के तरीके पर किया गया।

 

  • 1526 ई. से मुगल स्थापत्य में मकबरों की इमारतें पूरी तरह से भिन्न प्रकार से बनने लगीं । इनके लिए अच्छे प्लेटफार्म बनवाये गए और इनके चारों ओर सुंदर बागों और सजावटी फव्वारों से सजावट की गई। इसका एक अति प्रसिद्ध उदाहरण है फतेहपुर सीकरी की मस्जिद है जिसमें 3 गुम्बद हैं जिनकी 290 फीट चौडाई तथा 470 फीट की ऊंचाई है और वहां दो शाही मकबरे भी हैं।

 

  • सन् 1593 ई.-1613 ई. के दौरान बना अकबर का मकबरा सिकंदरा में दूसरा प्रसिद्ध मकबरा है। 


  • सन् 1630 ई. में शाहजहां ने 'ताजमहल' बनवाया जो आज भी 'संसार की आश्चर्यजनक इमारत' मानी जाती है। इसमें 18 फीट ऊंचे तथा 313 वर्ग फुट चौडा आयताकार संगमरमर का शाही चबूतरा बनवाया गया। इसके किनारों पर 133 फुट ऊंची मीनारें हैं। इसके मध्य 80 फुट ऊंचा और 58 फुट के घेरे का गुम्बद है। संगमरमर पर कम कीमती रत्न जेस्पर और अगाटे से जड़ाऊ काम किया गया है। यह जमुना किनारे पर बना है। यह मकबरा संगमरमर के झज्जों, फव्वारों और देवदार वृक्ष से घिरा हुआ है। मुगल साम्राज्य की शक्ति समाप्त होने से मुख्य स्थापत्य भी धीरे धीरे नष्ट होने लगा।

 

  • मुगलकाल में मकबरों के चारों ओर सुंदर बगीचे, इमारतें, गुम्बद आदि बनाने की अद्भुत स्थापत्य कला विकसित हुई। जहांगीर और शाहजहां ने कश्मीर और लाहौर में शालीमार गार्डन का विकास किया। मुगलों ने भारत की संस्कृति और स्थापत्य कला को प्रोत्साहन दिया।

 

  • उसके बाद ब्रिटिश आए। इन्होंने भारतवर्ष पर 200 वर्षों तक शासन किया तथा ये अपने पीछे स्थापत्य कला में एक अलग तरह की औपनिवेशिक शैली छोड़ गए ।

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