गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं | गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) | NFFC Kya hai

 गैर-बैंकिंग वित्तीय संस्थाएं NBFC Kya Hai

NBFC Kya Hai


गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी)


भारत में ऐसे वित्तीय संस्थाएं हैं जो बैंक नहीं है किंतु वे जमाराशि स्वीकार करती हैं तथा बैंक की तरह ऋण सुविधा प्रदान करती हैं। भारत में इन्हें गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां (एनबीएफसी) कहा जाता है।

भारत में गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी) में केवल वित्तीय कंपनियां शामिल नहीं है जैसा कि आम जनता द्वारा बड़े पैमाने पर समझा जाता हैइस शब्द में कंपनियों का एक बड़ा समूह शामिल है जो निवेश कारोबार, बीमा कारोबार, चिट फंड, निधि, व्यापार बैंकिंग, स्टॉक ब्रोकिंग, वैकल्पिक निवेश आदि का कारोबार करती है। अत: उक्त सभी कंपनियां भारतीय रिज़र्व बैंक के विनियामक अधिकार क्षेत्र में नहीं आती है।

 

गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी किसे कहते हैं?

 गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी उस कंपनी को कहते हैं जो 

  • ए) कंपनी अधिनियम, 1956 के अंतर्गत पंजीकृत हो
  • बी) इसका मुख्य कारोबार उधार देना, विभिन्न प्रकार के शेयरों/स्टॉक/ बांड्स/ डिबेंचरों/प्रतिभूतियों, पट्टा कारोबार, किराया-खरीद(हायर-पर्चेज), बीमा कारोबार, चिट संबंधी कारोबार में निवेश करना, तथा
  • सी) इसका मुख्य कारोबार किसी योजना अथवा व्यवस्था के अंतर्गत एकमुश्त रूप से अथवा किस्तों में जमाराशियां प्राप्त करना है
  •  किंतु, किसी गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनी में ऐसी कोई संस्था शामिल नहीं है जिसका मुख्य कारोबार कृषि, औद्योगिक, व्यापार संबंधी गतिविधियां हैं अथवा अचल संपत्ति का विक्रय/क्रय/निर्माण करना है। [ भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 की धारा 45 आइ(सी) ] एक महत्वपूर्ण पहलू जो ध्यान में रखा जाना है, यह है कि धारा 45 आइ(सी) में किए गए उल्लेख के अनुसार ऋण/अग्रिमों से संबंधित गतिविधियां स्वयं की गतिविधि से इतर की गतिविधियां हों। यदि यह प्रावधान न होता तो समस्त कंपनियां गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियां होतीं। 

गैर बैंकिंग वित्तीय संस्था  

गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ

 (Non Banking Financial Intermediaries)

  • गुरले (Gurley) तथा शॉँ (Shaw) द्वारा गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थों की अवधारणा को लोकप्रिय बनाकर पूँजी बाजार की कार्यप्रणाली को तुलनात्मक रूप से आसान बनाने का कार्य किया गया. 
  • व्यापारिक बैंकों के विपरीत गैर बैंकिंग वित्तीय मध्यस्थ वह संस्थायें होती हैं जो जनता से जमा स्वीकार नहीं करती हैं बल्कि जनता की बचतों को इकट्ठा करती हैं और निवेशकर्ताओं को उधार देने का प्रबन्ध कर ती हैं। इनका नाम मध्यस्थ इसलिए रखा गया क्योंकि ये संस्थायें किसी भी अर्थव्यवस्था में बचतकर्ताओं और निवेशकर्ताओं के बीच मध्यस्था कर पूँजी की मॉँग तथा पूर्ति में सामन्जस्य बनाने का कार्य करती हैं तथा बैंकों की तरह बैंक के सभी कार्य नहीं करती हैं। 
  • वित्तीय परिसम्पत्तियों को प्राथमिक प्रतिभूति तथा द्वितीयक प्रतिभूति दो शीर्षकों में विभाजित किया जाता है । प्राथमिक प्रतिभूति सीधे अन्तिम निवेशकर्ता द्वारा अन्तिम बचतकर्ता को जारी की जाती हैइसमें शेयर तथा बंधक सम्मिलित होते हैं।
  • द्वितीयक प्रतिभूतियाँ वह दायित्व हैं जो मध्यस्थों द्वारा अन्तिम बचतकर्ताओं को उनकी बचतों के बदले में जारी की जाती हैं। यह अन्तिम निवेशकर्ता तथा अन्तिम बचतकर्ता के बीच दलाल / मध्यस्थ का कार्य करते हैं।

In Short NBFC

गैर बैंकिंग वित्तीय संस्थायें वह मध्यस्थ होते हैं जो बैंकों की भाँति मांग जमा से जमायें स्वीकार नहीं करते हैं बल्कि लोगों/जनता की जमा/बचतों को एकत्रित करते हैं और विभिन्न पक्षों को उधार देते हैं। यह मुख्यतः दो प्रकार के होते हैं।

  1.  विकास बैंक (Deveopment banks)
  2. निवेश संस्थायें (Investment institutions)

 विकास बैंक (Development banks)

यह विशिष्ट बैंकिंग संस्थायें होती हैं जिसका मुख्य कार्य मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन ऋण प्रदान करना है।

  • भारतीय औद्योगिक वित्त निगम लिमिटेड (IFCI), 
  • भारतीय औद्योगिक साख और निवेश निगम लिमिटेड (ICICI), 
  • भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI). 
  • भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI). 
  • भारतीय औद्योगिक पुनर्निमाण बैंक (IRBI), 
  • राज्य वित्त निगम (SFC) तथा 
  • राज्य औद्योगिक विकास निगम (SIDC,S) को विशेषतः इसमें सम्मिलित किया जाता है।

 निवेश संस्थायें (Investment Institutions)

निवेश संस्थायें वह संस्थायें होती हैं जो विभिन्न प्रकार की कम्पनियों के प्रतिभातियों में बढ़ती निवेशकर्ताओं की निवेश सुविधाओं को उपलब्ध कराते हैं। भारतीय निवेश संस्थाओं में मुख्य रूप से भारतीय यूनिट ट्रस्ट (UTI), भारतीय सामान्य बीमा निगम (GIC), भारतीय जीवन बीमा निगम (LIC), मर्चेन्ट बैंकर्स, म्यूचुअल फण्डस, लीज कम्पनियाँ और साहस पूँजी वित्त कम्पनियों को सम्मिलित किया जाता है।


एनबीएफसी का विनियमन

भारत में 1950 दशक के अंतिम वर्षों में और 1960 दशक के प्रारंभिक वर्षों में विभिन्न बैंक असफल हुए जिसके कारण बड़ी संख्या में साधारण जमाकर्ताओं को अपनी जमाराशि गंवानी पड़ी। इस समय भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा नोट किया गया कि गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों द्वारा जमाराशि स्वीकार करने की गतिविधियां की जा रही हैं। यद्यपि वे प्रणालीगत रूप से बैंकों की तरह महत्वपूर्ण नहीं थी, बावजुद इसके भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा इनका विनियमन प्रारंभ किया गया क्योंकि उनसे कारण उनके जमाकर्ताओं को नुकसान की संभावना थी। 

इस प्रकार, 1963 के बाद इन संस्थाओं का विनियमन भारतीय रिज़र्व बैंक द्वारा किया जाने लगा। तब से आम तौर पर इस क्षेत्र में विनियमन सहित प्रदर्शित गतिशीलता के साथ सामंजस्य रखा गया है। 

बाद में 1996 में एक बड़ी एनबीएफसी के असफल होने पर रिज़र्व बैंक ने गैर-बैंकिंग वित्तीय कंपनियों पर विनियामक ढांचा सख्त बनाय गया जिसमें सख्त पंजीकरण आवश्यकताओं, संवृद्धित रिपोर्टिंग और पर्यवेक्षण को शामिल किया गया। 

रिज़र्व बैंक ने यह भी निर्णय लिया कि जनता से पैसा एकत्र करने के लिए किसी और एनबीएफसी को अनुमति नहीं दी जाए। इसके अलावा, 1999 में नए पंजीकरण के लिए पूंजी आवश्यकता 25 लाख रुपए से बढ़ाकर 200 लाख रुपए कर दी गई। बाद में जब एनबीएफसी ने बैंकिंग प्रणाली से भारी धन लेना शुरू किया तो इससे प्रणालीगत जोखिम पैदा हुआ। इसी समय इनके बढ़ते आकार और आपस में संबंध से वित्तीय स्थिरता के लिए उनके द्वारा खतरा उत्पन्न हुआ। इसे देखते हुए रिजर्व बैंक ने एनबीएफसी पर परिसंपत्ति के प्रूडेंशियल नियमों को लागू किया। 

रिजर्व बैंक का प्रयास रहा है कि एनबीएफसी विनियमन को कारगर बने, इनके द्वारा वित्तीय स्थिरता को लेकर चिंता का समाधान हो, जमाकर्ताओं और ग्राहकों के हितों की सुरक्षा हो, नियामक आर्बिट्रेज का समाधान हो, और इस क्षेत्र को स्वस्थ और कुशल तरीके से बढ़ने में मदद मिले।

वित्तीय कंपनियों का विनियमन

कुछेक वित्तीय कारोबार के लिए विशेष विनियामक हैं जिनकी स्थापना क़ानून द्वारा, उन्हें विनियमित एवं उनका पर्यवेक्षण करने के लिए की गई है, जैसे- 

  • बीमा कपनियों के लिए इरडा(आइआरडीए),
  • मर्चेंट बैंकिंग कंपनी, वेंचर कैपिटल कंपनी,
  • स्टॉक ब्रोकिंग कंपनी तथा म्युचुअल फंडों के लिए भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड(सेबी), आवास वित्त कपंनियों के लिए राष्ट्रीय आवास बैंक (एनएचबी)
  • निधि कंपनियों के लिए कंपनी कार्य विभाग(डीसीए) और 
  • चिट फंड कंपनियों के लिए राज्य सरकारें।

ऐसी कंपनियां जो वित्तीय कारोबार करती हैं किंतु उनका विनियमन अन्य विनियामकों द्वारा किया जाता है, उन्हें रिज़र्व बैंक ने कई प्रकार की विनियामक अपेक्षाओं से विशेष छूट प्रदान की है जैसे पंजीकरण, चलनिधि परिसंपत्तियां बनाए रखना, सांविधिक आरक्षित निधि आदि।

है।


गैर बैंकिंग वित्तीय कंपनियों (एनबीएफसी)





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