वाणिज्यिक (व्यापारिक) बैंकों का विकास |भारत में विदेशी वाणिज्यिक बैंक | Development of Commercial Bank in India

वाणिज्यिक (व्यपारिक) बैंकों का विकास

वाणिज्यिक (व्यपारिक) बैंकों का विकास |भारत में विदेशी वाणिज्यिक बैंक | Development of Commercial Bank in India
 

वाणिज्यिक (व्यपारिक) बैंकों का विकास

यद्यपि भारत में बैंकिंग विकास का इतिहास काफी पुराना है लेकिन हम वाणिज्यिक बैंकों के विकास के है संदर्भ में एक सीमित दायरे में ही इसका अध्ययन कर सकेंगे जिसे निम्नरूप में रखा जा सकता है। स्वतन्त्रता से पूर्व बैंकिंग विकास तथा स्वतन्त्रता के बाद का बैंकिंग विकास। 

 

स्वतंत्रता से पूर्व वाणिज्यिक (व्यपारिक) बैंकों का विकास

 

  • भारत में ब्रिटिश शासन के प्रारम्भ से ही 17वीं सदी में आधुनिक बैंकिंग प्रणाली का विकास हुआ। 1970 में भारत में प्रथम बैंक कोलकाता में बैंक ऑफ हिन्दुस्तान' स्थापित  किया गया किन्तु विभिन्न कारणों से यह बैंक सफल संचालन नहीं कर सका। देश में निजी तथा सरकारी प्रयासों से तीन प्रेसीडेन्सी बैंक स्थापित किये गये।


  • सन् 1806 में बैंक ऑफ मद्रास 1840 बैंक ऑफ बाम्बे तथा 1843 में सरकार का शेयर होने के कारण सरकार का इन बैंकों पर नियंत्रण था।  सन् 1912 में तीनों बैंकों को मिलाकर इम्पीरियल बैंक ऑफ इंण्डिया स्थापित किया गया जिसका जुलाई 1955 को राष्ट्रीयकरण कर दिया गया तथा इसका नाम बदलकर 'स्टेट बैंक ऑफ इण्डियाकर दिया गया। 


  • सन् 1860 से 1913 ई. तक की समय अवधि में संयुक्त पूंजी वाले बैंकों का विकास हुआ। इस समयावधि में अनेक वाणिज्यिक बैंकों की स्थापना हुई जैसे- इलाहाबाद बैंक (1906), पंजाब नेशनल बैंक (1894), बैंक ऑफ इण्डिया (1906), बैंक ऑफ बड़ौदा (1908), सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डिया (1911) तथा अन्य। 


  • वर्ष 1913 से 1939 के मध्य प्रथम विश्व युद्ध तथा अन्य कारणें से देश में वाणिज्यिक बैंकों का विकास रूक गयालेकिन बैंकों के विकास की गति को मजबूत बनाये रखने के लिए 1930 में केन्द्रीय बैंकिंग जाँच समिति गठित की गयी जिसकी सिफारिशों पर RBI अधिनियम 1934 के आधार पर 1 अप्रेल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक स्थापित किया गया जिसके परिणाम स्वरूप भारत में वाणिज्यिक बैंकों के विस्तार एवं विकास को बल मिला तथा इस दिशा में नए कदम उठाने के प्रयास हुए। इसी क्रम में सन् 1945 में भारतीय बैंकिंग अधिनियम पारित किया गया जो भारत में वाणिज्यिक बैंकों के विकास के लिए एक कारगर उपाय सिद्ध हुआ।

 

  • विश्व युद्धों के समय में बढ़ती हुई आर्थिक समृद्धि का लाभ उठाने के उद्देश्य से पुराने बैंकों द्वारा नयी शाखाऐं खोली गयी तथा नये-नये बैंकों की भी स्थापित किया गया।

 

स्वतंत्रता के बाद वाणिज्यिक (व्यपारिक)बैंकों का विकास

 

  • स्वतंत्रता के बाद भारतीय समाज की आवश्यकताओं के अनुरूप कार्य करने के योग्य बनाया जाय इसी दिशा में मार्च 1949 को भारतीय बैंकिंग अधिनियम पारित किया गया जिसके अंतर्गत वाणिज्यिक बैंकों के निरीक्षण करने का अधिकार भारतीय रिजर्व बैंक को दिया गया इसके वाणिज्यिक बैंक समाज के लिए अत्यधिक उपयोगी हो गये।
  • बैंक प्रणाली को अत्यधिक सबल बनाने के लिए भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा छोटे बैंकों के बड़े बैंकों के साथ विलयन की नीति अपनायी गयी जिय परिणाम स्वरूप 1950-51 के बाद देश में वाणिज्यिक बैंकों की संख्या में लगातार कमी दर्ज की गयी 1950-51 से 1970-71 समयावधि में वाणिज्यिक बैंकों की संख्या 430 से कम होकर केवल 87 रह गयी। 
  • 1960-61 में अनुसूचित बैंकों की संख्या 256 थी जो नवम्बर 1980 में केवल 4 रह गयी।1950 के बाद बैंक जमाओं में भी निरन्तर वृद्धि हुई। 
  • 1 जुलाई 1955 को इम्पीरियल बैंक ऑफ इण्डिया का राष्ट्रीयकरण किया गया तथा इसका नाम बदलकर स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया कर दिया गया। इसके साथ 8 अन्य बैंकों को सहायक बैंकों के रूप में बदल कर 'स्टेट बैंक समूहगठित किया गया। 
  • स्टेट बैंक ऑफ बीकानेरस्टेट बैंक ऑफ जयपुरस्टेट बैंक ऑफ हैदराबादस्टेट बैंक ऑफ इन्दौरस्टेट बैंक ऑफ मैसूरस्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्रस्टेट बैंक ऑफ पटियालास्टेट बैंक ऑफ ट्रावनकोरजुलाई 2008 में स्टेट बैंक ऑफ सौराष्ट्र तथा जून 2009 को स्टेट बैंक ऑफ इन्दौर का स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया में विलय के परिणाम स्वरूप SBI समूह में बैंकों की संख्या वर्तमान में केवल 5 रह गयी है। 19 जुलाई 1969 को 14 बड़े वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।

 

  • सेन्ट्रल बैंक ऑफ इण्डियाबैंक ऑफ इण्डियापंजाब नेशनल बैंककेनरा बैंकयूनाइटेड कामर्शियल बैंकसिंडीकेट बैंकबैंक ऑफ बड़ौदाए यूनाइटेड बैंक ऑफ इण्डियायूनियन बैंक ऑफ इण्डियादेना बैंकइलाहाबाद बैंकइण्डिया बैंकइण्डियन ओवरसीज बैंकबैंक ऑफ महाराष्ट्रपुनः 15 अप्रैल 1980 को निजी क्षेत्र के 6 बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया गया। 


  • आन्ध्रा बैंकपंजाब एण्ड सिंध बैंकन्यू बैंक ऑफ इण्डियाविजया बैंककॉर्पोरेशन बैंकओरिएंटल बैंक ऑफ कॉमर्स 4 सितम्बर 1993 को भारत सरकार द्वारा न्यू बैंक ऑफ इण्डिया का विलय पंजाब नेशनल बैंक में कर दिया गया। इससे देश में राष्ट्रीयकृत वाणिज्यिक बैंकों की संख्या 20 से घटकर 19 रह गयी है।

भारत में वाणिज्यिक बैंकों का वर्गीकरण 

भारत में वाणिज्यिक बैंकों का वर्गीकरण सम्वैधानिकता के आधार पर किया गया है जो इन बैंकों के विकास में भी सहायक रहा है।

 

1. अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक 

2. गैर अनुसूचित वाणिज्यिक बैंक

 

  • वर्ष 1990-91 में अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की संख्या 271 थी जो वर्ष 2000-2001 में बढ़कर 297 हो गयी। वर्ष 2008-09 में इन बैंकों की संख्या घटकर 165 रह गयी। इन अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों 82 क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक (आर. आर. बी), 19 राष्ट्रीयकृत बैंकभारतीय स्टेट बैंक समूह के 5 बैंक, 1 आई.डी.बी.आई बैंक, 32 विदेशी बैंक तथा 26 निजी बैंक शामिल हैं। 


  • अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों को निश्चित राशि भारतीय रिजर्व बैंक के पास न रखकर अपने पास रखने का अधिकार है।

 

  • भारत में वाणिज्यिक बैंकों के विकास का अनुमान इस बात से भी लगाया जा सकता है कि भारतीय बैंक विदेशों में भी कार्य कर रहे हैं। 30 जून 2010 को 52 देशों में भारतीय बैंक कार्य कर रहे थे जिनमें सार्वजनिक तथा निजी क्षेत्र के बैंक भी शामिल थे।
  • विदेशों में सार्वजनिक क्षेत्र के 16 तथा निजी क्षेत्र के 6 भारतीय बैंक अपनी सुविधाएं प्रदान कर रहे हैं। इन भारतीय बैंकों के विदेशों में 232 शाखाऐं तथा 55 प्रतिनिधि कार्यालय संचालित थे। 30 जून 2010 को विदेशों में कार्यरत सार्वजनिक क्षेत्र के बैंक में निम्न बैंक शामिल थे भारतीय बैंकबैंक ऑफ . बड़ौदाबैंक ऑफ इण्डियासिण्डिकेट बैंक तथा यूको बैंक

 

  • 28 देशों में भारतीय स्टेट बैंक के 42 शाखा कार्यालय, 5 सहायक संगठन, 4 संयुक्त उद्यम तथा 8 प्रतिनिधि कार्यालय हैं। बैंक ऑफ बड़ौदा के 46 शाखा कार्यालय, 8 सहायक बैंक, 1 संयुक्त उपक्रम बैंक तथा 3 प्रतिनिधि कार्यालय हैं। बैंक ऑफ इण्डिया की 14 देशों में 24 शाखाऐं हैं, 3 सहायक संगठन, 1 संयुक्त उद्यम तथा और वहामास 5 प्रतिनिधि कार्यालय हैं। भारतीय बैंकों के इंग्लैण्ड में सबसे अधिक शाखा कार्यालय हैंयहां पर 18 शाखा कार्यालय हैं। हॉगकोंगफिजी तथा मौरिशस में 7-7 शाखाऐं हैं। वहरीनमौरीशस केमैन द्वीप में विदेशी बैंकिंग इकाईयाँ स्थापित हैं। 

 

भारत में विदेशी वाणिज्यिक बैंक

  • भारत में विदेशी वाणिज्यिक बैंक भी संचालित हैं। सिटी बैंक की तरहएचएसवीसीस्टैण्डर्ड बैंक आदि विदेशी बैंकों की शाखाएं संचालित हैं जिन्हें विदेशों में निगमित किया गया है। 
  • विदेशी बैंकों की शाखाऐं भारत में स्थानीय बैंकों की तरह ही वित्तीय सुविधाऐं प्रदान करती हैं। 
  • भारत में शाखाओं की संख्या सीमित होने के कारण इनका उद्देश्य भारतीय वाणिज्यिक बैंकों से अलग प्रतीत होता है। ये बैंक नई प्रौद्योगिकी लाने का कार्य करते हैं तथा अन्तर्राष्ट्रीय उत्पादों को घरेलू बाजार में परिचित कराने के साथ उनका समावेशन कराने का कार्य करते हैं । 
  • ये विदेशी बैंक भारत में स्थानीय बैंकिंग उद्योग के साथ वित्तीय केन्द्रों में विदेशों में होने वाले विकास के साथ तालमेल पूँजी बाजार में पहुँच बनाने में भी सहायक हैं भारत सरकार द्वारा जनता को बैंकिंग सुविधाऐं अधिक तथा सुलभ बनाने एवं वैश्वीकरण की प्रक्रिया के तहत विदेशी बैंकों की संख्या बढ़ाने पर जोर दिया गया है।

 बैंकिंग नियमन और विदेशी बैंक 

  • बैंकिंग नियमन अधिनियम, 1949 के द्वारा भारत में विदेशी बैंकों पर अनेक प्रकार के प्रतिबन्ध लगाये जाते हैं। अधिनियम की धारा 11 (12) के अनुसार प्रत्येक विदेशी बैंक को भारत में कार्यालय रखने के लिए चुकता पूँजी तथा आरक्षित कोष के रूप में न्यूनतम 15 लाख की राशि रिजर्व बैंक के पास रखनी होगी। 
  • विदेशी बैंक के फेल होने पर चुकता पूँजी या आरक्षित कोष पर अधिकार प्रथमतः भारतीय जमाकर्ताओं का होगा इसके साथ कुल जमा राशि का न्यूनतम 75 प्रतिशत भाग भारत में ही रखना होगा या निवेश करना होगा। 
  • प्रत्येक विदेशी बैंक को भारतीय रिजर्व बैंक से लाइसेंस लेना आवश्यक है। इन बैंकों की अपनी अंकेषण रिपोर्ट सहित कारोबार का विवरण भारतीय रिजर्व बैंक को भेजना होता है। भारतीय रिजर्व बैंक को किसी भी विदेशी बैंक का निरीक्षण करने का अधिकार है।
  • अधिनियम संशोधन 1962 के अनुसार इन बैंकों को भी न्यूनतम नकद कोषानुपात भारतीय रिजर्व बैंक के पास रखना होता है। 
  • विदेशी बैंक को उपार्जित शुद्ध लाभ का 20 प्रतिशत भाग भारत में ही रखा जायेगा तथा इसे हिसाब में दिखाया जायेगा। इन विदेशी बैंकों पर सामाजिक नियंत्रण भी रखा जाता है। 
  • बैंकों का पूंजीगत आधार सुदृढ़ करने के उद्देश्य से विदेशी बैंकों के लिए 8 प्रतिशत पूँजी पर्याप्तता का मानदण्ड निर्धारित किया गया जिन्होंने 31 मार्च 1994 तक प्राप्त कर लिया था। मात्र 2003 के अन्त में कुल अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों की कुल आस्तियों में विदेशी बैंकों का हिस्सा 6.7 प्रतिशत था। इनके अग्रिमों के सम्बन्ध में अनर्जक परिसम्पत्तियों का अनुपात 5.2 प्रतिशत था।

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