छत्रपति शिवाजी का इतिहास | Shiivaji Ka Itihaas
छत्रपति शिवाजी का इतिहास
छत्रपति शिवाजी का इतिहास
- शिवाजी का जन्म 19 फरवरी, 1630 ई. को शिवनेरी में हुआ था। वह शाहजी और जीजा बाई का सबसे छोटा बेटा था। शिवाजी के बचपन के आरंभिक दिनों में उनके और शाहजो के बीच कोई संबंध कायम नहीं हो पाया था क्योंकि शाहजी बीजापुर के सरदार के रूप में कर्नाटक अभियान में व्यस्त रहे (1630-36 ई.) ।
- 1636 ई. में शाहजी को सात किले समर्पित करने पड़े, उनमें एक शिवनेर का किला भी था। अतः शिवाजी को अपनी माँ के साथ दादाजी कोंणदेव के संरक्षण में पूना जाना पड़ा।
- 1640-41 ई. में शिवाजी की शादी सई बाई निम्बालकर के साथ हो गयी और दादाजी के संरक्षण में शाहजी ने शिवाजी को पूना की जागीर सौंप दी।
- दादाजी कोंणदेव की मृत्यु के बाद शाहजी के प्रतिनिधि के रूप में शिवाजी पूना जागीर के सर्वेसर्वा बन गये।
- शिवाजी ने सबसे पहले पूना जिले के पश्चिम के मावल सरदारों के साथ दोस्ती की। आने वाले वर्षों में ये सरदार शिवाजी की सेना के आधार स्तम्भ सिद्ध हुए।
- मावल सरदारों में कारी के जेथे नायक और बन्दल नायक ने सर्वप्रथम शिवाजी के साथ गठबंधन किया।
- शिवाजी अपने वैध अधिकार के रूप में शाहजी के सभी क्षेत्रों (जो इलाके 1634 ई. में शाहजी के पास थे, परंतु 1636 ई. में उन्हें समर्पित करना पड़ा था) को अपने अधीन करना चाहते थे।
- दादाजी कोंणदेव की मृत्यु के बाद, उन क्षेत्रों को प्राप्त करने के लिए, शिवाजी ने एक निश्चित योजना के साथ उन पर अधिकार करने का निश्चय किया। परंतु इसी समय (1648 ई.) बीजापुर के सेनापति मुस्तफा खां ने शाहजी को बंदी बना लिया, इस कारण शिवाजी को अपनी गतिविधियों को नियंत्रित करना पड़ा।
- शिवाजी ने अपने पिता को आदिल शाही शासक से छुड़ाने के लिए मुगलों से संधि करने की कोशिश की (1649 ई.), परंतु इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। अंततः (16 मई, 1649) बीजापुर को बंगलौर और कोंडन देने के बाद शाहजी को मुक्त कर दिया गया।
- इसी बीच (1648 ई.) शिवाजी ने धोखाधड़ी से पुरंदर का किला हथिया लिया। आने वाले वर्षों में यह किला मराठों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ। इसके बाद जावली का किला (1656 ई.) उनके कब्जे में आ गया। यह प्रमुख मावली सरदार चन्द्र राव मोरे का मजबूत गढ़ था।
- इसके बाद उसने रायरी (रायगढ़) पर अधिकार कर लिया जो जल्द ही मराठों की राजधानी बना। जावली पर आधिपत्य स्थापित हो जाने से न केवल दक्षिण और पश्चिम कोंकण की ओर विस्तार का मार्ग प्रशस्त हो गया बल्कि मोरे क्षेत्र के मावल सरदारों के शामिल होने से शिवाजी की सैन्य शक्ति भी मजबूत हो गयी।
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