मराठों की प्रशासनिक संरचना| मराठों की केन्द्रीय प्रांतीय सैनिक प्रशासन व्यवस्था | Maratha Administrative System

मराठों की केन्द्रीय प्रांतीय सैनिक प्रशासन व्यवस्था 

मराठों की प्रशासनिक संरचना|  मराठों की केन्द्रीय प्रांतीय सैनिक प्रशासन व्यवस्था | Maratha Administrative System


 

 मराठों की प्रशासनिक संरचना

इस आर्टिकल में हम मराठों के केन्द्रीय और प्रांतीय प्रशासनिक व्यवस्था तथा सैनिक प्रबंध की चर्चा करेंगे -

 

  • मराठा प्रशासन मूलतः दक्खनी संरचना पर आधारित थापरंतु इसमें कुछ तत्व मुगल प्रशासनिक व्यवस्था के भी शामिल थे।

 

मराठों का केन्द्रीय प्रशासन

 

  • मराठा राजनैतिक व्यवस्था मूलतः एक परिष्कृत केन्द्रीकृत निरंकुश राजतंत्र था राजा की स्थिति सर्वोच्च थी। राजा का मुख्य उद्देश्य अपनी प्रजा को खुशहाल और समृद्ध बनाना था (राजा कलस्य करणम्)। 

 

अष्टप्रधान

राजा की सहायता के लिए एक मंत्रिपरिषद् थीजो अष्टप्रधान के नाम से जानी जाती थी -

 

(i) पेशवा (प्रधानमंत्री)- वह नागरिक और सैनिक मामलों का सर्वोच्च अधिकारी था। (ii) मजूमदार (लेखा परीक्षक)- वह राज्य की आय और व्यय का लेखा-जोखा रखता था। 

(iii) वकीन -वह राजा के व्यक्तिगत मामलों की देखरेख करता था। 

(iv) दाबिर- विदेश सचिव 

(v) सुरनिस (अधीक्षक)- वह सभी प्रकार के राजकीय पत्र व्यवहारों की देखरेख करता था। 

(vi) पंडित राव- धार्मिक प्रधान 

(vii) सेनापति -सेना का प्रधान 

(viii) न्यायाधीश- मुख्य न्यायाधीश

 

  • अष्टप्रधान न तो शिवाजी की देन थे न ही उसने अपने राज्यारोहण के समय इसे पहली बार संगठित किया था। पेशवामजूमदारवकीनदाबिरसुरनिस (और सरनौबत) आदि पद दक्खन शासन व्यवस्था में भी मौजूद थे।

 

  • पंडित राव और न्यायाधीश के अतिरिक्त सभी अधिकारियों को सैनिक अभियान में भाग लेना पड़ता था। शिवाजी के अधीन ये पद न तो आनुवांशिक थे न ही स्थाई। वे राजा के कृपापात्र बने रहने तक पद पर बने रहते थे और अक्सर उनका स्थानांतरण किया जाता था। उन्हें सीधे राजकोष से वेतन प्राप्त होता था और किसी भी नागरिक या सैनिक अधिकारी को जागीर नहीं दी जाती थी। बाद में पेशवा के अधीन ये पद आनुवांशिक और स्थाई प्रकृति के हो गये। मंत्रिपरिषद राजा को सलाह दे सकती थी परंतु उनकी सलाह मानने के लिए राजा बाध्य नहीं था।

 

  • प्रत्येक अष्टप्रधान की सहायता के लिए आठ सहायक होते थे दीवानमजूमदारफड़निससबनिसकारखानीसचिटनिसजमादार और पोटनिस ।

 

  • अष्टप्रधान के बाद चिटनिस (सचिव) का स्थान आता था जो सभी राजनैतिक पत्र व्यवहार को देखता था और शाही पत्र लिखता था। प्रांतीय और जिला अधिकारियों से भी वही पत्र व्यवहार करता था। परंतु किलेदारों के पत्रों का जवाब फड़निस दिया करता था। फड़निस शिवाजी के अधीनस्थ सचिवालय का अधिकारी था। यह पद पेशवा के काल में प्रमुख हो गया। पोटनिस राजकोष की आय और व्यय की देखभाल करता था जबकि पोतदार जांच अधिकारी था।

 

 मराठों का प्रांतीय प्रशासन

 

  • राज्य मौजातरफ और प्रांतों में विभक्त था। ये सभी इकाइयां दक्खनी शासकों के अधीन मौजूद थीं और यह शिवाजी की देन नहीं थी। परंतु उन्होंने इसे संगठित किया और नया नामकरण किया। मौजा सबसे छोटी इकाई थी । इसके बाद तरफ का स्थान आता थाजिसमें हवलदारकारकुन और परिपत्याकर नियुक्त होते थे। 


  • राज्यों को प्रांत के नाम से जाना जाता था यहां सूबेदारकारकुन (या मुख्य देशाधिकारी) कार्य संभालते थे। विभिन्न प्रांतों में सूबेदारों पर एक सर सूबेदार होता था जो सूबेदारों के कार्यों का निरीक्षण करता था और उन पर नियंत्रण रखता था। प्रत्येक सूबेदार के अधीन आठ अधिकारी थे दीवानमजूमदारफड़निससबनिसकारखानिसचिटनिसजमादार और पोटनिस। बाद में पेशवाओं के अधीन तरफपरगनासरकार और सूबा शब्दों का प्रयोग एक दूसरे के पूरक के रूप में किया जाने लगा।

 

  • शिवाजी के अधीन कोई भी अधिकारी आनुवांशिक और स्थाई नहीं था। अक्सर सभी अधिकारियों का स्थानांतरण होता रहता था। परंतु पेशवाओं के अधीन कमविसदार और ममलतदार के पद स्थाई हो गये। ममलतदारों पर नियंत्रण रखने के लिए दरखदार (वसूली अधिकारी) होते थे। ये आनुवांशिक प्रांतीय पदाधिकारी थे। ये ममलतदारों और अन्य नौ सैनिक और सैनिक अधिकारियों पर नियंत्रण रखने का कार्य करते थे। ममलतदार न तो उन्हें अपदस्थ कर सकते थे न ही उन्हें पहले से ही निर्देशित कार्य के अतिरिक्त किसी अन्य कार्य को करने का निर्देश दे सकते थे। प्रांतीय स्तर के आठों अधिकारी ममलतदार के प्रति र नहीं थे। बल्कि वे उनकी शक्ति पर नियंत्रण रखने का करते थे।

 

 मराठों का सैनिक प्रशासन 

  • शिवाजी के सैनिक संगठन में किलों को सबसे अधिक महत्व दिया गया। शिवाजी ने अपने राज्य में किलों का जाल सा बिछा दिया। कोई भी तालुक अथवा परगना बिना किले के नहीं था। अपने जीवन काल में शिवाजी ने लगभग 250 किलों का निर्माण कराया। किसी भी एक अधिकारी को किले का पूरा भार नहीं सौंपा जाता था।
  • प्रत्येक किले में एक हवलदारएक सबनिस और एक सरनौबत होता था। बड़े किलों में पांच से लेकर दस तक सरनौबत हुआ करते थे। ये सभी अधिकारी समान पद और स्तर के थे और उनका अक्सर स्थानांतरण हुआ करता था। इस व्यवस्था से प्रत्येक अधिकारी पर नियंत्रण रखा जा सकता था। हवलदार के पास किले की चाबियां होती थीं। 
  • सबनिस सभी लोगों की हाजिरी लिया करता था और सभी प्रकार के सरकारी पत्र व्यवहार किया करता था। वह प्रांत (किले के अधिकार क्षेत्र में) के राजस्व आकलन की भी देखरेख करता था। सरनौबत अस्त्र भण्डार की देखरेख किया करता था। इसके अतिरिक्त कारखानिस अनाज भंडार और इससे सम्बद्ध अन्य जरूरतों की देखरेख किया करता था। 
  • कारखानिस प्रतिदिन के आय और व्यय का भी हिसाब रखता था। किसी के पास असीम शक्तियां नहीं थी। हालांकि सबनिस लेखा अधिकारी थापरंतु सभी आदेशों पर हवलदार और कारखानिस की मुहर लगानी आवश्यक होती थी। दूसरे अधिकारियों की भी ऐसी ही स्थिति थी। 

  • कोई एक अधिकारी शत्रु के सामने किले को समर्पित नहीं कर सकता था। इस प्रकार नियंत्रण और संतुलन की व्यवस्था कायम कर शिवाजी ने सभी अधिकारियों को अपने नियंत्रण में रखा। किसी भी अधिकारी को जाति संगठन बनाने की इजाजत नहीं थी। यह भी स्पष्ट रूप से निर्धारित था कि हवलदार और सरनौबत मराठा होंगे जबकि सबनिस ब्राह्मण और कारखानिस प्रभु (कायस्थ) जाति से लिया जाता था।

 

  • शिवाजी का सैन्य संगठन कोई नवीन प्रयोग नहीं था। बीजापुर के मौहम्मद आदिल शाह के अधीन भी किले का भार तीन अधिकारियों के ऊपर रहता था। उनका स्थानांतरण भी किया जाता था। पेशवा के शासन काल में भी शिवाजी द्वारा स्थापित सैन्य संगठन ही कार्यरत रहा।

 

  • शिवाजी की सेना में छापामार युद्ध और पहाड़ी युद्ध में निपुण घुड़सवारों और सशस्त्र सेना के साथ हल्के हथियार और अन्य हल्की युद्ध सामग्री होती थी। मेवाली और हेतकारी सबसे अच्छे सैनिक थे।

 

  • शिवाजी को थल सेना को सबसे छोटी इकाई में 9 सदस्य होते थे जिसका प्रधान नायक होता था। इस प्रकार की पांच इकाइयों का प्रधान एक हवलदार होता था। दो से लेकर तीन हवलदारों के ऊपर एक जुमलेदार होता था। दस जुमलेदारों के ऊपर एक हजारी और सात हजारियों के ऊपर एक सरनौबत हुआ करता था।

 

  • शिवाजी की घुड़सवार सेना में बारगीर और सिलेदार हुआ करते थे। बारगीर सैनिकों को घोड़े और अस्त्र राज्य की तरफ से दिये जाते थे जबकि सिलेदार को खुद इसका इंतजाम करना होता था। 25 बारगीरों के एक दल पर एक मराठा हवलदार नियुक्त होता था: पांच ऐसे हवलदारों को मिलाकर एक जुमला बनता था। 10 जुमलों पर एक हजारी और पांच हजारी पर एक पंच हजारी होता था। पंच हजारी सरनौबत के नियंत्रण में रहते थे। सिलेदार सरनौबत के अधीन कार्य करते थे। प्रत्येक 25 घोड़ों के एक दल के साथ एक पानी ढोने वाला और एक नाल लगाने वाला हुआ करता था। बाद में पेशवाओं के अधीन पिंडारियों (ये डाकू और लुटेरे थे) को भी सेना के साथ चलने की अनुमति मिल गयी। अपनी सेवा के बदले उन्हें पलपट्टी (जो युद्ध लूट का 25 प्रतिशत था) वसूल करने का अधिकार था। वे न तो दुश्मन को बख्शते थे न दोस्त कोन ही साधारण जनता को और न ही मंदिरों को। वे अपनी इच्छा से लूट-मार करते थे। शिवाजी की सेना में एक कार्यकुशल जासूस विभाग भी था। बहीरजी नायक जादव इस विभाग का प्रमुख था।

 

  • शिवाजी की सेना में अंगरक्षक भी थे। ये 20, 30, 40, 60 और 100 की संख्या में लामबंद होते थे। जरूरत पड़ने पर वतनदारों को भी सैन्य सहायता देने के लिए कहा जाता था। परंतु शिवाजी वतनदारों और सिलेदारों की सैन्य शक्ति पर कम ही विश्वास रखते थे। शिवाजी अपने सैनिकों को नकद भुगतान करते थे। घायल सैनिकों को अतिरिक्त भत्ता और विधवाओं को राज्य की तरफ से पेंशन मिलती थी। पेशवाओं के अधीन पूरे देश को सैनिक इलाकों में विभक्त कर दिया गया। वे सामंती सेनाओं पर अधिक निर्भर थे। ये सामती सरदार किसानों से अपने हक से ज्यादा रकम वसूल किया करते थे। 

  • पेशवाओं ने अलग से तोपखाना विभाग बनाया। यहां तक कि तोप और गोला-बारूद बनाने का कारखाना भी उन्होंने स्थापित किया। 

  • बाद मेंपेशवाओं के अधीन घुड़सवार सेना की शक्ति में वृद्धि हुई। वे अपने सैन्य दलखासगी पगा— की देखभाल खुद करते थे। पेशवाओं ने यूरोपीय प्रारूप पर अनुशासित सैन्य दल बनाने की कोशिश की। इसे कम्पूस के नाम से जाना गया। पर वे भी जल्द ही भ्रष्ट हो गये और अपने अन्य साथियों के समान वे भी राज्य क्षेत्रों को लूटने लगे।

 शिवाजी की सैन्य शक्ति 

  • शिवाजी की सैन्य शक्ति तेज गति में निहित थीपरन्तु पेशवा के खेमे विभिन्न दिशाओं में मीलों तक फैले होते थे। शिवाजी ने कड़े अनुशासन पर विशेष बल दिया। पेशवाओं के अधीन यह अनुशासन कायम न रह सका। मराठा सेना आराम तलब हो गयी। उनके पास बहुमूल्य तंबू और कई तरह के साजो-सामान हुआ करते थे। शराब और औरत का प्रचलन हो गया। 
  • शिवाजी के शासनकाल में इस बात की कल्पना भी नहीं की जा सकती थी। शिवाजी ने कभी भी कोई स्त्री महिला दास या नर्तकी को सेना के साथ नहीं जाने दिया। पेशवा के शासनकाल में यहां तक कि एक साधारण घुड़सवार भी अपने साथ महिलाओं का एक दलनर्तकीबाजीगर और फकीरों को लेकर चलता था। पेशवा सेना को अमूमन जागीर (सरअन्जम) के रूप में भुगतान किया जाता था। इन सभी से पेशवाओं के अधीन मराठों की सैन्य शक्ति में आयी गिरावट का साफ पता चलता है।

 

  • शिवाजी अपनी प्रजाति के लोगों को सेना में भर्ती होने के लिए प्रोत्साहन देते थेपरन्तु नौ सेना में अनेक मुसलमान भी थे। लेकिन पेशवाओं ने सभी धर्म और जाति के लोगों को सेना में भर्ती कियाजैसे राजपूतसिक्खरोहिलासिंधीगोसाईकन्नडअरबतेलुगुबीदर वासी और ईसाई (यूरोपवासी) ।

 

शिवाजी और नौ सेना

 

  • कोंकण पर कब्जा जमाने के बाद शिवाजी ने एक मजबूत नौ सेना का भी गठन किया। उनके जहाजी बेड़े में घुराब में (बंदूक से लैस नाव) और गल्लिवत (खेने वाली नावें जिसमें 2 मूल और 40-50 पतवार होते थे) शामिल रहते थे। उनके बेड़े में अधिकांशतः मालाबार तट की समुद्री कबीलाई जाति कोली के सदस्य शामिल थे। उसने 200 जहाजों के दो समूह बना रखे थे। परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि जहाजों की संख्या बढ़ा चढ़ाकर बताई गयी है। 


  • राबर्ट ओरमे के अनुसार सेनानायक दरिया सारंग और मइ नायक भंडारी के नेतृत्व में शिवाजी के पास कुल 57 बेड़े थे। दौलत खां शिवाजी की नौ सेना का एक अन्य सेनानायक था।

 

  • शिवाजी ने अपनी नौ सेना का उपयोग देशी और विदेशी दोनों ताकतों को परेशान करने के लिए किया परंतु शिवाजी सिद्दियों के आक्रमण को मुश्किल से ही रोक पाये। पेशवाओं ने भी मजबूत नौ सेना की जरूरत महसूस की। पश्चिमी  तट की रक्षा करने के लिए उन्होंने मजबूत नौ सेना बना रखी थी। लेकिन मराठों की नौ शक्ति अंगीरों के अधीन अपनी पराकाष्ठा पर पहुंच गयी। अंगीरों ने पेशवाओं से स्वतंत्र रहकर कार्य किया।

 

शिवाजी की न्याय प्रणाली 

  • मराठा कोई व्यवस्थित न्यायिक विभाग का विकास करने में असफल रहे। ग्राम स्तर पर नागरिक मामलों की सुनवाई पाटिल के कार्यालय में अथवा गांव के मंदिर में गांव के बड़े-बूढ़े (पंचायत) किया करते थे। अपराध से संबंधित मामलों की सुनवाई पाटिल किया करता था। नागरिक और अपराध के मामलों का सर्वोच्च न्यायालय हाजिर मजलिस था। सभानायक (अध्यक्ष न्यायाधीश) और महाप्रशनिक (मुख्य पूछताछ अधिकारी) का कार्य अपराधी को जांचने और उसे परखने का था। पेशवाओं के अधीन ये पद समाप्त हो गये।
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