अर्थ विज्ञान किसे कहते हैं| शब्द की अवधारणा| Arth Vigyan Kise Kahte Hain

 अर्थ विज्ञान किसे कहते हैं,  शब्द की अवधारणा

अर्थ विज्ञान किसे कहते हैं| शब्द की अवधारणा| Arth Vigyan Kise Kahte Hain


अर्थ विज्ञान किसे कहते हैं

 

  • अर्थ विज्ञान वस्तुतः (शब्द के) अर्थ का विज्ञान है। ध्वनि विज्ञान, शब्द विज्ञान, वाक्य विज्ञान की तरह अर्थ विज्ञान' भाषा विज्ञान की एक विशिष्ट शाखा है जिसमें अर्थ के अनेक आयामों का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। हिन्दी में इसके लिए 'शब्दार्थ विचारया अर्थ विचार' नाम प्रचलित रहे हैं। अंग्रेजी में इसके अनेक नाम रहे हैं किन्तु वर्तमान में Semantics नाम अधिक प्रचलन में है।


  • अर्थ विज्ञान में अर्थ का अध्ययन मुख्यतः ऐतिहासिक और तुलनात्मक होता है किन्तु संरचना या वर्णनात्मक स्तर पर भी अब अर्थ के अध्ययन की आवश्यकता अनुभव की जाने लगी है। अर्थ विज्ञान के सम्बंध में विद्वानों में मतभेद रहा है। अधिकांश विद्वान इसे भाषा विज्ञान की शाखा मानते हैं किन्तु कुछ विद्वानों के अनुसार यह दर्शनशास्त्र की एक शाखा है। कुछ लोग इसे किसी अन्य शास्त्र के साथ न जोड़कर स्वतंत्र विज्ञान के रूप में देखते हैं।


भोलानाथ तिवारी के अनुसार अर्थ विज्ञान

  • भोलानाथ तिवारी के अनुसार, 'इसमें कोई संदेह नहीं कि अर्थ विज्ञान, दर्शन शास्त्र से बहुत अंशों से सम्बद्ध है और उसका काफी अंश ऐसा है जो मनोविज्ञान और तर्कशास्त्र की अपेक्षा रखता है किन्तु इसमें संदेह नहीं है कि अर्थ भाषा की आत्मा है और भाषाविज्ञान जब 'भाषा' का विज्ञान है तो बिना उसके अध्ययन के उसे पूर्ण नहीं माना जा सकता।' किसी भी भाषा में प्रत्येक सार्थक शब्द का एक निश्चित अर्थ या भाव होता है। वही शब्द की आत्मा या सार है। शब्द साधन है अर्थ साध्य है। अतः शब्द में अर्थ की सत्ता महत्वपूर्ण है। 


  • भाषा विज्ञान में उस अर्थ को 'अर्थतत्व' या 'अर्थग्राम' कहते हैं। जिस प्रकार शब्द की ध्वनियों में परिवर्तन होता है, तदनुसार उसके अर्थ में भी परिवर्तन होता है। अर्थात किसी भी शब्द का अर्थ सदैव एक सा नहीं रहता। अर्थ विज्ञान में इसका अर्थ परिवर्तन या अर्थ विकास के रूप में अध्ययन किया जाता है जिसके अन्तर्गत अर्थ के विकास या परिवर्तन की दिशा और उसके मूल में निहित कारणों का अध्ययन करते हैं।

 

शब्द की अवधारणा

 

  • जैसा कि आप जानते हैं कि- अर्थ विज्ञान में अर्थ का भाषा वैज्ञानिक अध्ययन किया जाता है। 'अर्थ' का आधार 'शब्द' है। अतः शब्द की विभिन्न अवधारणाओं का परिचय भी आवश्यक है। 'शब्द' के सम्बंध में प्राचीन शास्त्रों में पर्याप्त चिंतन मिलता है। 


  • वेदांत चिंतन के अनुसार जीव (प्राणी) की रचना के दो संयोजन तत्व हैं- आत्मा और प्रकृति। ब्रह्म का अंश होने के कारण आत्मा अविनाशी है और पंचभूतात्मक (क्षिति, जल, पावक, गगन, वायु) होने के कारण प्रकृति क्षयमाण, नाशवान और परिवर्तनशील है। प्रकृति के पाँच महाभूतों (तत्वों) में एक आकाश है। आकाश का गुण शब्दजो प्राणियों में ध्वनि के विधायी तत्व के रूप में विद्यमान रहता है। स्पष्ट है कि 'शब्द' का आधार ध्वनि' है। इसलिए आधुनिक भाषा में विज्ञान में 'शब्द' को 'ध्वनि' से पृथक नहीं माना है।

शब्द किसे कहते हैं ? 

  • कामताप्रसाद गुरू एक या एक से अधिक अक्षरों से बनी हुई स्वतंत्र और सार्थक ध्वनि को 'शब्द' कहते हैं। वहीं भोलानाथ तिवारी ने अर्थ के स्तर पर भाषा की लघुतम स्वतंत्र इकाई को 'शब्द' माना है। वस्तुतः शब्द मनुष्य के द्वारा प्रयुक्त भाषिक अर्थ सत्ता से जुड़ा हुआ है। इस अर्थ में शब्द का अभिप्रेत 'विचार' भी हो सकता है। अतः मनुष्य के अभिप्रेत अर्थ को व्यक्त करने के लिए जिस ध्वनि समूह का प्रयोग किया जाता है उसे 'शब्द' कहते हैं। 


शब्द की विशेषताएँ -

शब्द के सम्बंध निम्नलिखित प्रमुख बातें स्पष्ट होती हैं -

 

1.शब्द का आधार ध्वनि है। 

2. सार्थक ध्वनि को ही शब्द कहा जा सकता है। 

3. सार्थक ध्वनि एक भी हो सकती है और एक से अधिक भी। 

4. शब्द का एकमात्र अभिप्रेत अर्थ, विचार या भाव का सम्प्रेषण है। 

5. शब्द अपनी ध्वनि संरचना में और अन्तर्निहित अर्थ के संदर्भ में परिवर्तनशील है।

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