मराठा शक्ति का उदय : राजनैतिक व्यवस्था |शाहजी शिवाजी आरंभिक जीवन|Origin of Maratha Power

 मराठा शक्ति का उदय : राजनैतिक व्यवस्था

मराठा शक्ति का उदय : राजनैतिक व्यवस्था |शाहजी शिवाजी आरंभिक जीवन|Origin of Maratha Power


 मराठा शक्ति का उदय : राजनैतिक व्यवस्था

  • 17वीं शताब्दी से ही बीजापुरअहमदनगर और गोलकुंडा राज्यों के तहत दक्खन में मराठों का उदय हो रहा था। वे बीजापुरअहमदनगर और गोलकुंडा राज्यों की सेना में कार्यरत थे। दक्खनी राज्यों के पहाड़ी किलों को मराठा नियंत्रित करते थे।हालांकि महत्वपूर्ण समझे जाने वाले किलों पर मुसलमान किलेदारों को तैनात किया जाता था। उन्हें अक्सर राजानायक और राव की उपाधि से सम्मानित किया जाता था।


  • बीजापुर के शासक इब्राहिम आदिल शाह ने मराठों को बाग्गीर के रूप में नियुक्त किया तथा उनका उपयोग वह अक्सर अहमदनगर के निजाम शाही शासकों के खिलाफ किया करता था। यहां तक कि उसने लेखा विभाग में भी मराठा ब्राह्मणों की नियुक्ति की थी।


  • कर्नाटक के नायक मराठा सरदार चन्दर राव मोरे ने बीजापुर के यूसुफ आदिल शाह के समय में विशेष स्थान प्राप्त किया। उसके पुत्र यशवन्त राव ने अहमदनगर के निजाम शाही शासकों के खिलाफ खूब नाम कमाया और उसे जावली का राजा बनाया गया। 


  • 17वीं शताब्दी के मध्य में राव नाइक निम्बालकर या फुल्टन राव भी बीजापुर शासकों के साथ जुड़ गये। मुल्लौरी के देशमुख जुझार राव घटगे भी बीजापुर शासक इब्राहिम आदिल शाह के तहत कार्यरत रहा। इसी प्रकार मनय भी बीजापुर के सिद्धहस्त सिलहदार थे। 


  • 17वीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में घोरपड़ेझट्ट के डफ्ले और वारी के सावंतों ने भी बीजापुर की सेवा की। निजाम शाही शासकों के अधीन सिन्दखेर का देशमुख जादव राव काफी शक्तिशाली था। निजाम शाही शासकों के अधीन लोखजी जादव राव के पास 10,000 घोड़े थे।

 


शाहजी-

 

  • भोंसले परिवारजिससे शिवाजी संबंधित थेके कुछ सदस्य अहमदनगर शासकों के अधीन पटेल थे। शिवाजी के दादा मालोजी का वैवाहिक संबंध फुल्टन के देशमुख जगपाल राव नाइक निम्बालकर के साथ था (उनकी बहन दीपा बाई की शादी मालोजी के साथ हुई थी) । सिन्दखेर के लोखजी जादव राव की पहल पर 1577 ई. में मालोजी ने बारगीर के रूप में मुर्तजा निजाम शाह को नौकरी कर ली। 

  • लेकिन 1599 ई. में शाह जी और जीजा बाई की शादी के प्रश्न पर उन दोनों में मनमुटाव हो गया और मालोजी को नौकरी छोड़ने पर बाध्य होना पड़ा। लेकिन जल्द ही (17वीं शताब्दी के आरंभ में) मालोजी अपनी पहुंच का उपयोग कर निम्बालकरों की सहायता से एक बार फिर निजाम शाही शासकों की सेवा में हाजिर हुए और मालोजी राजा भोंसले की उपाधि प्राप्त की। उन्हें शिवनेरी और चाकुन के किलों का जिम्मा सौंपा गया और बदले में पूना और सोपा की जागीर प्रदान की गयी। 


  • 1604 ई. में जादव राव सिंदखेर से संबंध स्थापित होने से उसको प्रतिष्ठा में वृद्धि हुई। जादव राव ने अपनी पुत्री जीजा बाई की शादी उसके पुत्र शाहजी से कर दी। इसी समय मुगलों के आक्रमणों ने अहमदनगर के स्थायित्व को पूर्णतया नष्ट कर दिया। अकबर के समय में आंतरिक कलह भी आरंभ हो गयी जिससे पूरी तरह अव्यवस्था और गड़बड़ी की स्थिति हो गई। जहांगीर ने इस स्थिति का लाभ उठाकर 1621 ई. में कई मराठा सरदारों को अपनी ओर मिला लिया। इसमें सबसे प्रमुख थे शाहजी के श्वसुर और सिंदखेर के देशमुख लोखजी जादव राव। मुर्तजा निजाम शाह द्वितीय (1629 ई.) के गद्दी पर बैठने के बाद लोखजी जादव राव निजाम शाही शासक के पक्ष में चले गयेपरन्तु विश्वासघाती ढंग से उनकी हत्या (1630 ई.) कर दी गयी। इसी समय जगदेव राव 5000 जात की मनसब के साथ मुगल सेना में शामिल हो गया।

 

  • आरंभ में शाहजी भोंसले जहां लोदी के विद्रोह से पहले उसके समर्थक थे। बाद में उन्होंने आजम खां के जरिए मुगलों की सेवा में जाने का निवेदन किया और 1630 ई० में उसे 6000 ज्ञात और 5000 सवार का ओहदा मिला। 
  • मालोजी के छोटे भाई वेटोजी का बेटा और शाहजी का चचेरा भाई खेलोजी भी मुगल खेमे में शामिल हो गये! परंतु 1632 ई. में शाहजी बीजापुर के पक्ष में चले गये और आदिल शाह की नौकरी कर ली। 
  • 1634 ई. तक शाहजी का निजाम शाही राज्य के एक-चौथाई हिस्से पर नियंत्रण स्थापित हो गया। परंतु 1636 ई. में मुगलों के आक्रमण से उन्हें सब कुछ खोना पड़ा और वे बीजापुर के सरदार के रूप में कोंकण की तरफ चले गये।
  • इसी समय शाहजी को मोरार के पंत (मुरारी पंडित) को प्रभावित करने का मौका मिला। उसने कर्नाटक अभियान में रन्दौला खां का साथ दिया और असीम बहादुरी का परिचय दिया। इससे खुश होकर मौहम्मद अली शाह ने उन्हें कुरार (सतारा जिला) में बतौर जागीर 24 गाँव दिए। 


शिवाजी का जीवन परिचय 

 

  • शिवाजी का जन्म 10 अप्रैल, 1627 ई. को शिवनेरी में हुआ था। वह शाहजी और जीजा बाई का सबसे छोटा बेटा था। शिवाजी के बचपन के आरंभिक दिनों में उनके और शाहजो के बीच कोई संबंध कायम नहीं हो पाया था क्योंकि शाहजी बीजापुर के सरदार के रूप में कर्नाटक अभियान में व्यस्त रहे (1630-36 ई.) । 
  • 1636 ई. में शाहजी को सात किले समर्पित करने पड़ेउनमें एक शिवनेर का किला भी था। अतः शिवाजी को अपनी माँ के साथ दादाजी कोंणदेव के संरक्षण में पूना जाना पड़ा। 
  • 1640-41 ई. में शिवाजी की शादी सई बाई निम्बालकर के साथ हो गयी और दादाजी के संरक्षण में शाहजी ने शिवाजी को पूना की जागीर सौंप दी। 
  • दादाजी कोंणदेव की मृत्यु के बाद शाहजी के प्रतिनिधि के रूप में शिवाजी पूना जागीर के सर्वेसर्वा बन गये। 
  • शिवाजी ने सबसे पहले पूना जिले के पश्चिम के मावल सरदारों के साथ दोस्ती की। आने वाले वर्षों में ये सरदार शिवाजी की सेना के आधार स्तम्भ सिद्ध हुए। 
  • मावल सरदारों में कारी के जेथे नायक और बन्दल नायक ने सर्वप्रथम शिवाजी के साथ गठबंधन किया। 
  • शिवाजी अपने वैध अधिकार के रूप में शाहजी के सभी क्षेत्रों (जो इलाके 1634 ई. में शाहजी के पास थेपरंतु 1636 ई. में उन्हें समर्पित करना पड़ा था) को अपने अधीन करना चाहते थे। 
  • दादाजी कोंणदेव की मृत्यु के बादउन क्षेत्रों को प्राप्त करने के लिएशिवाजी ने एक निश्चित योजना के साथ उन पर अधिकार करने का निश्चय किया। परंतु इसी समय (1648 ई.) बीजापुर के सेनापति मुस्तफा खां ने शाहजी को बंदी बना लियाइस कारण शिवाजी को अपनी गतिविधियों को नियंत्रित करना पड़ा। 
  • शिवाजी ने अपने पिता को आदिल शाही शासक से छुड़ाने के लिए मुगलों से संधि करने की कोशिश की (1649 ई.)परंतु इसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। अंततः (16 मई, 1649) बीजापुर को बंगलौर और कोंडन देने के बाद शाहजी को मुक्त कर दिया गया। 
  • इसी बीच (1648 ई.) शिवाजी ने धोखाधड़ी से पुरंदर का किला हथिया लिया। आने वाले वर्षों में यह किला मराठों के लिए बहुत उपयोगी सिद्ध हुआ। इसके बाद जावली का किला (1656 ई.) उनके कब्जे में आ गया। यह प्रमुख मावली सरदार चन्द्र राव मोरे का मजबूत गढ़ था। 
  • इसके बाद उसने रायरी (रायगढ़) पर अधिकार कर लिया जो जल्द ही मराठों की राजधानी बना। जावली पर आधिपत्य स्थापित हो जाने से न केवल दक्षिण और पश्चिम कोंकण की ओर विस्तार का मार्ग प्रशस्त हो गया बल्कि मोरे क्षेत्र के मावल सरदारों के शामिल होने से शिवाजी की सैन्य शक्ति भी मजबूत हो गयी।
Also Read.....

No comments:

Post a Comment

Powered by Blogger.