टैगोर के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम शिक्षण पद्धति |टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन व योगदान |Aims of Education Tagore

टैगोर के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य  पाठ्यक्रम शिक्षण पद्धति

टैगोर के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य पाठ्यक्रम शिक्षण पद्धति  |टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन व योगदान |Aims of Education Tagore



टैगोर के अनुसार शिक्षा के उद्देश्य ( Aims of Education ) 


1. शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालक की जन्मजात शक्तियों का विकास कर उसके व्यक्तित्व का चर्तुमुखी तथा सर्वांगीण विकास करना होना चाहिए। 

2. शिक्षा का कार्य केवल बालकों को अच्छा क्लर्कनिपुण किसानशिल्पी या वैज्ञानिक बना देना नहीं है। बल्कि उन्हें अनुभव की पूर्णता द्वारा पूर्ण मनुष्य के रूप में विकसित करना भी है। 

3. बालकों के प्रकृति के घनिष्ट संपर्क में रहकर शिक्षा देने की व्यवस्था होनी चाहिएक्योंकि प्रकृति के साथ घनिष्ट संपर्क स्थापित करने में आनन्द का अनुभव होता है। 

4. विद्यार्थियों को नगरों की अनैतिकताभीड़ और गन्दगी से दूर प्रकृति के शान्त तथा सायेदार एकान्त स्थान में रखना चाहिए। 

5. शिक्षा राष्ट्रीय होनी चाहिए एवं उसमें भारत के भूत एवं भविषय का ध्यान रखना चाहिए। 

6. भारतीय शिक्षा एवं भारतीय विद्यालयों के पाठ्यक्रमों में भारतीय दर्शन के प्रमुख विचारों को स्थान दिया जाना चाहिए। 

7. सभी विद्यार्थियों को भारतीय विचारधारा एवं भारतीय समाज की पृष्ठभूमि का स्पष्ट रूप से ज्ञान करना चाहिए। 

8. प्रत्येक बालक एवं बालिका में संगीतचित्रकला और अभिनय की योग्यताओं का विधिपूर्वक विकास करना चाहिए। 

9. मातृभाषा शिक्षा का माध्यम होना चाहिएक्योंकि उनके द्वारा ही संपूर्ण राष्ट्र को अच्छे प्रकार से शिक्षित किया जा सकता है। 

10. सच्ची शिक्षा बालकों को स्वतंत्र प्रयासों से ही प्राप्त की जानी चाहिए। 

11. अनन्त मूल्यों की प्राप्ति विदेशी भाषा से संभव नहीं है। अतः मातृभाषा का प्रयोग करना चाहिए। 

12. विद्यार्थियों को पुस्तकों के बजाय प्रत्यक्ष स्रोतों से ज्ञान प्राप्त करने का अवसर देना चाहिए।

13. बालकों को उत्तम भोजनजिससे मानसिक विकास होभोजन प्रदान करना चाहिए। 14. शिक्षण पद्धति का आधार जीवन की वास्तविक बातें तथा प्राकृतिक होनी चाहिए। 

15. विद्यार्थियों के सामाजिक आदर्शोंपरम्पराओंप्रथाओं और रीति-रिवाजो को पाठ्यक्रम में स्थान दिया जाना चाहिए। 

16. बालकों को इस प्रकार की शिक्षा दी जायजो उन्हें आध्यात्मवाद की ओर अग्रसर होने का अवसर प्रदान करे। 

17. बालक का जन्म प्रकृति एवं मनुष्य दोनों के संसार में होता है। अतः दोनों संसार के लिए उनका आकर्षण बनाये रखना चाहिए। 

18. शिक्षा द्वारा बालकों में उच्चकोटि की धार्मिक भावना जागृत करनी चाहिएजिससे उनमें मानवता का कल्याण करने की क्षमता का विकास हो।

 

टैगोर के अनुसार पाठ्यक्रम (Curriculum)

 

  • टैगोर के अनुसार शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य पूर्ण जीवन की प्राप्ति करने के लिए मनुष्य का पूर्ण विकास करना है। शिक्षा के इस व्यापक उद्देश्य की पूर्ति के लिए टैगोर ने व्यापक तथा विस्तृत पाठ्यक्रम संबंधी विचार प्रस्तुत किये हैं। उनके अनुसार शिक्षा तभी अपने मुख्य उद्देश्य की प्राप्ति कर सकती हैजबकि पाठ्यक्रम से मानव जीवन के विभिन्न पक्षों यथा-शारीरिकमानसिकभावात्मक, • सामाजिकनैतिक तथा आध्यात्मिक विकास को स्थान दिया जाय।

 

टैगोर ने अपने शान्ति निकेतन और बाद में विश्व भारती में विषयों के साथ-साथ विभिन्न क्रियाओं को भी पाठ्यक्रम में महत्वपूर्ण स्थान दिया है। ये विषयक्रियाएं तथा पाठान्तर क्रियाएं निम्नलिखित हैं:

 

अ. विषय (Subject) इतिहासभूगोलविज्ञानप्रकृति विज्ञानसाहित्य आदि। 

ब. क्रियाएं (Activities) - बागवानीभ्रमणअभिनयड्राइंगक्षेत्रीय अध्ययनप्रयोगशाला कार्यअजायब घर के लिए वस्तुओं का संग्रह आदि । 

स. पाठान्तर क्रियाएं (Extra Curricular Activities) - समाज सेवाछात्र स्वशासनखेलकूद आदि।

 

टैगोर का पाठ्यक्रम विषय प्रधान न होकर क्रिया प्रधान रहा है। डॉ. एल.वी. मुखर्जी ने कहा है कि 'इस दृष्टि से टैगोर की शिक्षा संस्थाओं में लागू किया जाने वाला पाठ्यक्रम क्रिया प्रधान पाठ्यक्रम रहा है।'



टैगोर के अनुसार शिक्षण पद्धति (Method of Teaching )

 

1. शिक्षण विधि वास्तविकताओं पर आधारित होनी चाहिए। (Education should be based on realities)

 

  • टैगोर का विचार है कि शिक्षण विधि जीवन की वास्तविक परिस्थितियों, समाज के वास्तविक जीवन तथा प्रकृति के वास्तविक तथ्यों पर आधारित होनी चाहिए। प्राकृतिक विज्ञानों का अध्ययन प्रकृति का निरीक्षण करके किया जाए। सामाजिक विज्ञानों का अध्ययन सामाजिक समस्याओं, घटनाओं एवं संस्थाओं के निरीक्षण से किया जाये।


2. शिक्षण विधि जीवन से पूर्ण होनी चाहिए। (Method of teaching should be full of life)

 

  • शिक्षण पद्धति जीवन से पूर्ण होनी चाहिए। प्रचलित विद्यालय शिक्षा के केन्द्र न होकर शैक्षणिक फैक्ट्रियां होती हैं, जो बालकों के जीवन की आवश्यकताओं, रूचियों तथा अभिवृत्तियों पर ध्यान दिये बिना एक ही सी सामग्री उत्पन्न करती है। अतः इन विद्यालयों में बालकों के पूर्ण जीवन का विकास नहीं हो पाता है। अतः शिक्षण पद्धति बालकों की स्वाभाविक आवश्यकताओं, रूचियों तथा आवेगों के अनुसार होनी चाहिए।

 

3. स्व प्रयास एवं स्वचिन्तन द्वारा सीखना (Learning by self efforts and self thinking)

 

  • टैगोर का विचार है कि वही ज्ञान स्थाई रूप से बालकों के मस्तिष्क में रह सकता है जो उनके स्वयं के प्रयत्नों तथा चिन्तन से प्राप्त हुआ है।

 

4. क्रिया द्वारा सीखना ( Learning by doing )

 

  • टैगोर का विचार था कि मनुष्य मन-शारीरिक प्राणी है। अतः हम शरीर और मस्तिष्क को एक-दूसरे से अलग नहीं रख सकते हैं। मनुष्य जो शारीरिक क्रिया करता है, उसका प्रभाव शरीर और मस्तिष्क दोनों पर पड़ता है। अतः बालकों को क्रिया द्वारा सीखने का अवसर देना चाहिए। शारीरिक क्रिया पर महत्व देने के कारण टैगोर ने बालकों को नृत्य तथा अभिनय सीखने पर बल दिया है।

 

5. भ्रमण द्वारा सीखना ( Learning by walking )

 

  • टैगोर का विचार है कि भ्रमण के समय पढ़ना, शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है। इसके उन्होंने दो कारण बताए हैं। प्रथम-भ्रमण के समय हमें अनेक वस्तुओं को प्रत्यक्ष रूप से देखकर उनका अध्ययन करने का अवसर प्राप्त होता है। द्वितीय भ्रमण द्वारा हमारी मानसिक शक्तियां सतर्क रहती हैं, जिसमें हम प्रत्यक्ष की जाने वाली बातों को सरलता से सीख लेते हैं।

 

6. वाद-विवाद एवं प्रश्नोत्तर विधि (Discussion and question answer method)

 

  • टैगोर का विचार है कि वास्तविक शिक्षा पुस्तकों पर आधारित न होकर जीवन एवं समाज पर आधारित होनी चाहिए। इस शिक्षा के लिए उन्होंने वाद-विवाद तथा प्रश्नोत्तर विधि को महत्वपूर्ण स्थान दिया है। उनका विचार है कि प्रश्नों के द्वारा बालकों के समक्ष दैनिक जीवन की समस्याओं को रखा जाये। वे सब उन पर वाद-विवाद करें और उनके हल करने के तरीके बताएं।

 

टैगोर के अनुसार का तात्पर्य  

  • अनुशासन का तात्पर्य स्वाभाविक अनुशासन से है। टैगोर ने अनुशासन को एक मूल्य या आदर्श माना है। अतः यह व्यक्ति के नैतिक विकास के लिए अति आवश्यक है। अनुशासन से टैगोर का तात्पर्य स्वाभाविक अनुशासन (Natural Discipline) से है, जिसे वे आत्म-अनुशासन (Self Discipline) अथवा आन्तरिक अनुशासन (Inter Discipline) भी कहते हैं। टैगोर के अनुसार अनुशासन न तो अंधी आज्ञाकारिता है और न ही वाह्य व्यवस्था ।

 

2 टैगोर के शिक्षा दर्शन का मूल्यांकन व योगदान 

(Estimation of Contribution of Tagore's Philosophy of Education)

 

टैगोर और उनके शिक्षा दर्शन का शिक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक योगदान है, जिसके कारण न केवल भारतीय शिक्षा के इतिहास में बल्कि विश्व की शिक्षा के इतिहास में उनका नाम अमर हो गया। शिक्षा के क्षेत्र में टैगोर का योगदान निम्नलिखित है:

 

1. शिक्षा का व्यापक एवं पूर्ण अर्थ (Wider and complete meaning of education): 

  • टैगोर ने शिक्षा की अवधारणा को विस्तृत एवं पूर्ण रूप प्रदान किया। प्रायः कहा जाता है कि स्पेन्सर ने अपनी पुस्तक शिक्षा में दार्शनिक जीवन की पूर्णता पर विचार प्रकट किये हैं, किन्तु शिक्षा के संबंध में टैगोर ने जो दृष्टिकोण अपनाया है वह स्पेन्सर से कहीं अधिक व्यापक एवं पूर्ण है। टैगोर ने शिक्षा के लिए जो योजना तथा विधान बनाया है, वह भारतीय एवं पश्चिमी दोनों जीवन को छूता है और जिसमें आध्यात्मिक एवं भौतिक दोनों प्रकार के तत्वों का मेल है।

 

2. भारतीय संस्कृति का विस्तार (Extension of Indian culture) :

 

  • टैगोर ने भारतीय संस्कृति के अध्यापकों के प्रति देश-विदेश के लोगों को आकृष्ट कर उनका विश्व में प्रचार किया। उन्होंने भारतीय संस्कृति के आधार पर राष्ट्रीय शिक्षा की नींव डाली और व्यापक दृष्टिकोण को लेकर पश्चिम को एक ऐसा संदेश दिया, जिसने पूर्व एवं पश्चिम के आदर्शों में समन्वय स्थापित किया।

 

3. विश्वव्यापी शिक्षा का प्रतिपादन एवं प्रसार (Propagation and diffusion of universal education):

 

  • मानवतावादी भावना पर आधारित विश्व बंधुत्व एवं विश्व शान्ति के विचार को साकार रूप प्रदान करने के लिए टैगोर ने सर्वप्रथम विश्वव्यापी शिक्षा का प्रतिपादन एवं प्रसार किया।

 

4. शिक्षा में प्रकृति को महत्व देना (Giving importance of nature in education):

 

  • रवीन्द्रनाथ टैगोर एक कवि थे। अतः प्रकृति का एवं प्रकृति की भावना उनके अंग-प्रत्यंग में आचार विचार से भरी हुई है। उन्होंने अपनी प्रकृतिवादी शिक्षा में प्रकृति को सबसे बड़ा शिक्षक माना है। टैगोर ने अपनी सूक्ष्म एवं भावना प्रधान बुद्धि के द्वारा प्रकृति के सौन्दर्य एवं आनन्द, शक्ति एवं ओज,  स्वतंत्रता तथा आत्म-प्रेरणा को देखा।

 

5. सौन्दर्य के साक्षात्कार की शिक्षा देना (Giving education for the realization of beauty ):

 

  • उन्होंने अपनी शिक्षा योजना में सौन्दर्य के साक्षात्कार की शिक्षा देने का सुझाव दिया है। सौन्दर्य बोध हेतु ललित कलाओं जैसे-संगीत, पेंटिंग, नृत्य, अभिनय, कला आदि को शिक्षा में विशेष स्थान दिया। विश्व भारती में कला भवन इस प्रकार की शिक्षा का एक विश्व प्रसिद्ध प्रभाग है।

 

6. निजी शिक्षा दर्शन एवं सिद्धान्तों की रचना (Construction of own philosophy of education and principles):

 

  • टैगोर उन महान शिक्षा शास्त्रियों में से हैं, जिन्होंने अपना निजी शिक्षा दर्शन तैयार किया है। साथ ही साथ उसके पृथक-पृथक सिद्धान्तों का निर्माण किया है। उन्होंने शिक्षा के विभिन्न अंगों यथा-उद्देश्य, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधि, शिक्षक, शिक्षार्थी, विद्यालय आदि का जीवन की वास्तविक परिस्थितियों को ध्यान में रखकर संगठन किया है।

 

7. नवीन शिक्षा की भूमिका (Introduction of new education)

 

  • टैगोर ने अपने शिक्षा दर्शन संबंधी जिन क्रियाओं को बीसवीं शताब्दी के प्रारंभ में प्रस्तुत किया, उन्हें बाद में भारत की शिक्षा हेतु स्वीकार किया गया। सेडलर कमीशन 1917, बेसिक शिक्षा 1937, मुदालियर कमीशन 1952, एवं समाज शिक्षा 1948 में जो विचार हमें मिलते हैं, उनकी भूमिका हमें टैगोर के विचारों में हमें बहुत पहले मिलती है।

 

8. विश्व भारती की स्थापना (Establishment of Vishva Bharati )

 

  • टैगोर ने अपने जीवन दर्शन तथा शिक्षा दर्शन को साकार रूप प्रदान करने के लिए जिस शिक्षा संस्था की स्थापना की, वह आज विश्व भारती के नाम से एक विश्व प्रसिद्ध विश्वविद्यालय है।

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