रवीन्द्रनाथ टैगोर के दार्शनिक सिद्धान्त |Philosophical Principles of Tagore

रवीन्द्रनाथ टैगोर के जीवन दर्शन में विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं का संश्लेषण 
(Synthesis of Various Philosophical View in the Philosophy of Life of Tagore)
रवीन्द्रनाथ टैगोर के दार्शनिक सिद्धान्त |Philosophical Principles of Tagore



रवीन्द्रनाथ टैगोर के दार्शनिक सिद्धान्त (Philosophical Principles)

 

टैगोर के जीवन में विभिन्न दार्शनिक विचारधाराओं के दर्शन हमे होते हैं। 

जैसे- 

1. आदर्शवाद (Idealism), 

2. प्रकृतिवाद (Naturalism), 

3. यथार्थवाद ( Realism), 

4. प्रयोजनवाद (Pragmatism)] 

5. लोकतंत्रवाद (Democratic)] 

6. मानवतावाद (Humanism), 

7. विश्ववाद (Universalism)। 


टैगोर के जीवन दर्शन में पाई जाने वाली इन सभी विचारधाराओं पर संक्षेप में प्रकाश डाल रहे हैं:

 

1. रवीन्द्रनाथ टैगोर का आदर्शवाद (Idealism): 


  • अपनी आदर्शवादी भावना से प्रेरित होकर टैगोर ने भौतिकवादी प्रगति के संबंध में खेद प्रकट करते हुए कहा है कि मनुष्य भौतिक वस्तुओं को पाने के लिए व्याकुल है। जिससे कि वह अमर सत्य को पाने में असमर्थ हो गया है। इनका विचार है कि ईश्वर की विश्व में रहकर प्राप्ति की जाती है।

 

  • एक दूसरे स्थान पर टैगोर ने कहा है कि प्रत्येक समय के साथ हमें सदैव इस बात का अनुभव होना चाहिए कि हमारी शक्ति में ईश्वर का वास है। हमारे देश पर पश्चिमी सभ्यता का इतना अधिक प्रभाव पड़ा कि वह ईश्वर का त्यागा हुआ देश बन गया। टैगोर का विश्वास है कि हम पुनः आध्यात्मिक संस्कृति एवं जीवन का सृजन कर देते हैं। इसके लिए उन्होंने आत्मा की पूर्ण स्वतंत्रता और उसकी अभिव्यक्ति के लिए अनुकूल परिस्थितियों पर बल दिया।

 

2. रवीन्द्रनाथ टैगोर का प्रकृतिवाद (Naturalism):- 


  • टैगोर प्रारंभ से ही प्रकृति एवं प्राकृतिक सौन्दर्य के उपासक रहे हैं। वे जब अप्राकृतिक वातावरण से युक्त विद्यालय में गये तो उन्हें उसकी अस्वाभविकता अनुभव हुई और वे उसके विरूद्ध प्रतिक्रियाशील हो उठे और रूसो की भांति पुकार उठे प्रकृति की ओर चलो।अपने प्रकृतिवादी दर्शन में प्रकृति को महान शिक्षक (Great Teacher) माना है। उन्होंने मानव प्रकृति को समझने एवं अपने आपको सामाजीकृत करके आगे बढ़ाने के लिए संदेश दिया है। टैगोर ने प्रकृति को एक ऐसा केन्द्रबिन्दु बताया है जहां पर सभी मनुष्यों की इच्छाएंआकांक्षाएं एवं अभिलाषाएं एक होती हैं।

 

  • इस प्रकार टैगोर ने प्रकृति संबंधी विचारों के आधार पर मानव एकता की ओर संकेत किया है। टैगोर का विचार है कि प्रकृति में आरंभ से परिपूर्ण सादा जीवन होता हैजहां पर अत्यधिक स्थान शुद्ध वायु एवं गम्भीर शान्ति होती है। प्रकृति में मनुष्य आगामी शाश्वत जीवन के लिए पूर्ण विश्वास से रहता है।

 

3. रवीन्द्रनाथ टैगोर का यथार्थवाद (Realism):- 


  • टैगोर ने अपने जीवन में भारतीय यथार्थवाद एवं पाश्चात्य यथार्थवाद के बीच अद्वितीय समन्वय स्थापित किया है। इस समन्वय के आधार पर उन्होंने भारत के लिए एक ऐसी संस्कृति के विकास के लिए बल दिया हैजिसमें एक ओर नैतिकचारित्रिक एवं शाश्वत मूल्य एवं सत्यों का समावेश हो। टैगोर ने इस यथार्थवाद को सामने रखते हुए कि भारत एक ग्रामीण देश है और किसी देश की जनता तभी प्रगति कर सकती है जबकि उसे देश में जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए वस्तुओं एवं साधनों का अत्यधिक उत्पादन किया जाये। प्रत्येक ग्राम में ऐसे शिक्षा संस्थान स्थापित किये जायेंजहां पर सामान्य शिक्षा के अतिरिक्त कृषि एवं ग्रामीण उद्योगों का विकास करने के लिए विज्ञान की सहायता ली जाये।

 

4. रवीन्द्रनाथ टैगोर का प्रयोजनवाद (Pragmatism):- 

  • टैगोर एक आदर्शवादी दार्शनिक होते हुए भी उनका प्रयोजनवादी दृष्टिकोण था। उनका यह विचार कि भौतिकवादी आदर्शों का अंधानुकरण न करके उन्हें तभी स्वीकृत किया जाय जबकि उनकी परख कर ली जाएउनके प्रयोजनवादी दृष्टिकोण की पुष्टि करता है। सुप्रसिद्ध प्रयोजनवादी दार्शनिक श्री डी.वी. की भांति टैगोर भी शिक्षा को जीवन से संबंधित करने के पक्ष में थे। वे शिक्षा एवं शिक्षालयों को समाज व समुदाय से संबंधित रखना चाहते थे। उनका विचार है, 'शिक्षा का लक्ष्य केवल एक अच्छा क्लर्क या एक तकनीशियन बनाना नहीं हैबल्कि यह तो एक पूर्ण मनुष्यत्व के अनुभव को पूर्णता द्वारा विकसित करना है।'

 

5. रवीन्द्रनाथ टैगोर कालोकतंत्रवाद (Democratic) :- 

  • टैगोर के दार्शनिक विचारों में लोकतंत्रवाद की भी एक झलक मिलती है। वे जमींदार होते हुए भी जनता के प्रति भ्रातृत्व भाव भी रखते थेऔर उनकी स्वतंत्रता पर बल देते थे। टैगोर ने बताया कि एक देश की सुख-सम्पन्नता जन-साधारण की शिक्षा पर निर्भर करती है। टैगोर इस बात को अच्छी तरह समझते थे कि जब तक जन-साधारण के लिए शिक्षा की व्यवस्था नहीं की जाती तब तक भारत में जनतंत्र की कल्पना करना निरर्थक है। अतः टैगोर ने सार्वाभौमिक शिक्षा एवं जन-साधारण की शिक्षा के लिए मांग की। इसके लिए स्वयं प्रयास भी किये। टैगोर ने लोकतंत्रीय समाज की स्थापना करने के लिए ग्रामोद्धार की योजना पर सबसे पहले विचार प्रस्तुत किये। इसलिए यह कहा जाता है कि आधुनिक भारत में सामुदायिक विकास आन्दोलन एवं सर्वोदय आन्दोलन की प्रेरणा टैगोर से प्राप्त हुई। टैगोर भारत में केवल राजनैतिक दृष्टि से ही लोकतंत्र की स्थापना नहीं करना चाहते थेबल्कि वे आर्थिकशैक्षिक एवं सामाजिकता से भी सच्चे लोकतंत्र की स्थापना पर बल देते थे। अतः टैगोर का जीवन दर्शन मानवतावाद का पुष्ट पोषक है।

 

6. रवीन्द्रनाथ टैगोर का मानवतावाद (Humanism):- 

  • टैगोर के जीवन दर्शन में मानवतावाद अत्यधिक झलक मिलती है। उनके लेख मानवतावादी विचारों से ओत-प्रोत हैं। टैगोर के मानवतावाद की एक अन्य उल्लेखनीय प्रवृत्ति सामान्य एवं सरल मानव जीवन के आनन्द की खोज है। अपनी इस धारणा के परिणामस्वरूप टैगोर ने अपनी कविता 'कवि कलममें लिखा है:- 'मैं तो मानवतावाद के हृदय में वास करने का अत्यंत इच्छुक हूँ।अपनी इस इच्छा की पूर्ति करने के लिए टैगोर ने लोक शिक्षा की योजना तैयार की और इसके लिए विभिन्न केन्द्र स्थापित कियेताकि बहुत से स्त्री-पुरूष मानवीकृत किये जा सकें। टैगोर ने कहा मानवता के सार्वभौमिक हृदय एवं अन्तर में ईश्वर का वास है।


7. रवीन्द्रनाथ टैगोर का विश्ववाद (Universalism):-

  • टैगोर भारतीय दर्शनविशेषकर औपनिषदीप दर्शन से प्रभावित होकर विश्ववाद की तरफ भी उन्मुख हुए। उन्होंने सृष्टि की समस्त वस्तुओं को विश्ववाद एवं मानवतावादी दृष्टिकोण से देखना शुरू किया। टैगोर ने अपने विश्ववाद को सभ्यताओं के एकीकरण के रूप में व्यक्त किया है। अपनी विश्ववाद की इस धारणा के आधार पर टैगोर ने विश्व भारती की स्थापना की।

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