यौन संचारित रोग | Sexually transmitted diseases (STD) in Hindi

यौन संचारित रोग Sexually transmitted diseases

यौन संचारित रोग | Sexually transmitted diseases (STD) in Hindi

यौन संचारित रोग  

यौन संपर्क से संचारित रोगों को यौन संचारित रोग (Sexually transmitted disease) कहा जाता है। यौन संचारित रोग वह रोग है जो श्लेष्म झिल्ली और यौन अंगों के स्रावगले व मलाशय के द्वारा संचरित होते हैं। उपदंश (आतशक), (Syphilis, सिफिलिस)सूजाक (Gonorrtioea, गोनेरिया) व एड्स आदि कुछ यौन संचारित रोग है।

 

एड्स (AIDS-उपार्जित प्रतिरक्षा हीनता संलक्षण-Acquired Immune Deficiency Syndrome)

 

  • यह एक विश्वव्यापी रोग है। रोगक्षम अपर्याप्तता (Immuno deficiency) का आशय रोगक्षम तंत्र का काफी निर्बल होना है। यह रोग शरीर की कोशिका माध्यित प्रतिरक्षा तंत्र से संबंधित है।

 

  • लसीकाणु प्रतिरक्षी तंत्र की मुख्य कोशिकाएं है जैसे T-लसीका कोशिकाएं व B-लसीका कोशिकायं सहायक T-लसीकाणु प्रतिरक्षा तंत्र के नियमन में एक बड़ी भूमिका निभाती हैं। सहायक लसीकाणु के क्षतिग्रस्त या नष्ट होने से एक कोशिकीय प्रतिरक्षा अपर्याप्तता विकसित होती है जिसके कारण रोगी विभिन्न प्रकार के संक्रमणों के प्रति संवेदनशील हो जाता है।

 

 एड्स संचरण विधि : एड्स निम्न में से किसी भी प्रकार फैल सकता है :

 

1. संक्रमित व्यक्ति के साथ यौन सम्पर्क से भारत में सबसे सामान्य मानव प्रतिरक्षा हीनता विषाणु (HIV transmission) के संचारण का पथ असुरक्षित इतरलिंगी (Heterosexual Sex) संभोग यानी मैथुन है। 

2. संक्रमित व्यक्ति द्वारा प्रयोग की गई उसी सुई को दुबारा प्रयोग में लाना । 

3. मानव प्रतिरक्षा हीनता विषाणु (Human immuno deficiency virus HIV ) युक्त रूधिर चढ़ाना (रक्ताधान Blood transfusion ) 

4. संक्रमित व्यक्ति के अंग का प्रतिरोपण (Transplantation ) 

5. कृत्रिम गर्भाधान। 

6. प्रसव के समय माँ से शिशु को होना ।

 

एड्स उद्भवन अवधि : 

औसत अवधि 28 माह है हालाँकि यह 15 से 27 माह के मध्य हो सकती है।


एड्स के लक्षण : 

रोगी में निम्न में से एक या अधिक लक्षण दिखायी देते हैं

 

(i) एक प्रकार का फेफड़ों का रोग विकसित होता है यक्ष्मा तपेदिक) 

(ii) त्वचा का कैंसर भी दिखाई देता है। 

(iii) तंत्रिका प्रभावित होती है। 

(iv) मस्तिष्क बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो जाता हैजिससे स्मृति व वैचारिक शक्ति का ह्रास होता है । 

(v) रक्त पट्टिकाणुओं (Platelets बिम्बाणुओं, thrombocytes) की संख्या में कमी जिसके कारण रक्तस्राव हो सकता है। 

(vi) चरम स्थिति में फूली हुई लसीकाज्वर व भार में कमी दृष्टिगोचर होती है। रोग की चर सीमा पर रोगी तीन वर्षों के अंदर मर जाता है।

 

 एड्स रोकथाम व उपचार

 

HIV संक्रमण को रोकने के लिये कोई दवा या टीका उपलब्ध नहीं है। अतः निम्न प्रकार से सावधानी बरती जानी चाहिये।

 

(i) HIV या यौन रोग से संक्रमित व्यक्ति से किसी प्रकार का यौन सम्पर्क नहीं किया जाना चाहिये। चूंकि यौन रोग से संक्रमित स्थिति में संक्रमण जनन क्षेत्र व श्लेष्म परत को क्षतिग्रस्त करता है और इससे HIV का शरीर में प्रवेश सुगम हो जाता है। 

(ii) इंजेक्शन व सुइयों का एक बार प्रयोग कर उसका निपटान भली भांति करें। दुबारा प्रयोग न करें। 

(iii) जरुरतमंद व्यक्ति में चढ़ाए जाने वाला रक्त HIV मुक्त होना चाहिये। (iv) वेश्यावृति व समलैंगिकता से बचना चाहिये। 

(v) संभोग के समय सदैव निरोध प्रयोग किया जाना चाहिये।

 

एड्स नियंत्रण

 

एड्स का पता ऐलीसा परीक्षण (ELISA test) से चलता है।


यौन संचारित रोगों को नियंत्रित करने के तीन मुख्य बिन्दु हैं।

 

(i) यौन साथी की घोषणा : प्रभावी संक्रमित संपर्क की पहचानपरीक्षण व उपचार | 

(ii) यौन संचारित रोगों की शिक्षा प्रभावी संक्रमण संपर्क की पहचानपरीक्षण व उपचार। (iii) यौन संचारित रोगों को क्रमवीक्षण ( स्कैनिंग ) : रक्त दाताओं व बच्चे के प्रसव पूर्व महिलाओं की सीरम संबंधी जाँच होनी चाहिए।

 

HIV संचारण संबंधी तथ्य

 

• HIV एक दुर्बल विषाणु है और इसका संक्रमण आसानी से नहीं होता। यह मानव शरीर के बाहर वायु या पानी के माध्यम से संचारित नहीं होता।

 

• एक व्यक्ति संक्रमित व्यक्ति के छींकने या आलिंगन करने सेकीड़ो (मच्छरों आदि) के काटने सेएक ही कंघीप्लेटगिलासरूमालचाकू या छूरीकाँटे के प्रयोग से संक्रमित नहीं होता।

 

• सार्वजनिक शौचालयों तैरने के तालाबोंफुहारघरों (Showers) व टेलीफोन के प्रयोग से इसका संक्रमण नहीं होता है।

 

• HIV संचारण संक्रमित व्यक्ति के सामीप्यस्पर्श या साथ काम करने से नहीं होता है।

 

सिफलिस (Syphilis)

 

रोगजनक जीव ट्रेपोनेमा पैलीडम (एक लंबा कॉर्कस्क्रू बैक्टीरिया)

रोग फैलने की विधि- संक्रमित व्यक्ति के साथ लैंगिक संपर्क।

 

उद्भवन अवधि

 

  • संपर्क के 10-90 दिन के बाद लक्षण स्पष्ट होते है लेकिन सामान्यतया बैक्टीरिया द्वारा संक्रमित होने के 3-4 सप्ताह में लक्षण प्रकट होने लगते है।

 

सिफलिस लक्षण

 

लक्षण कई चरणों में प्रकट होते हैं। सिफलिस के सामान्य लक्षण निम्नवत् हैं।

(i) ज्वरत्वचा मेंगले मेंमूत्र-जनन क्षेत्र विशेषकर योनि या शिश्नगुदामलाशय व मुँह में व्रण (अल्सर) होते हैं। व्रण गोल व दृढ़ व बहुधा पीड़ारहित होते हैं।

(ii) हाथोंपावों व हथेलियों में दाने। 

(iii) मुंह में सफेद धब्बे। 

(iv) उरु - मूल (जाँघ मे मूल) में मुँहासे के समान मस्से । 

(v) संक्रमित क्षेत्र से बालों का पैच में झड़ना। 

(vi) अंतिम तीन लक्षण काफी हो सकते हैं। ये बहुधा अंदरूनी हो जाते हैं और मस्तिष्कतंत्रिकानेत्रोंरक्त वाहिनियों अस्थियों व जोड़ों को प्रभावित करते हैं। जो संक्रमण के 10 वर्ष बाद प्रकट होते हैं। इससे पक्षाघात (लकवा)अंधापनमनोभ्रंश (dementia) व बंध्यता (Sterility) हो सकती हैं।

 

सिफलिस रोकथाम व उपचार

 

(i) केवल एक की व्यक्ति के साथ लैंगिक संपर्क (संभोग ) | 

(ii) वेश्यावृत्ति व समलैंगिकता से बचना । 

(iii) संयम बरतना व कंडोम का प्रयोग करना । 

(iv) व्यक्तिगत स्वच्छता रखना व उचित औषधीय उपचार लेना।

 

3 सूजाक (Gonorrhoea)

 

  • यह एक यौन संचारित रोग है जिसमें संक्रमण के लक्ष्य क्षेत्र मूत्रमार्गयोनि या शिश्नगर्भाशय ग्रीवागुदा व गला है।

 

  • रोगजनक जीव नेस्सेरिया गोनारोई नामक गोनोकॉकस बैक्टीरिया यह शरीर के नम क्षेत्रों जैसे गर्भशयमलाशय व मुँह में शीघ्रतापूर्वक बढ़ते व पनपते हैं।

 

सूजाक (Gonorrhoea) रोग फैलने की विधि :

  • बहुत से यौन साथी होने पर इसके संक्रमण का खतरा बढ़ जाता है। किसी प्रकार का असुरक्षित यौन संबंध सदैव खतरनाक है। किसी प्रकार के घावों या व्रणों आदि का संक्रमित व्यक्ति से स्पर्श भी खतरनाक है।

 

  • उद्भवन अवधि संक्रमण के 2-5 दिन बाद । 


सूजाक (Gonorrhoea) लक्षण 

(i) जनन मूत्र पथ में श्लेष्म झिल्लियों में सूजन और जलन। 

(ii) मूत्र त्याग के समय और मूत्रमार्ग के आस्राव के बाहर निकलने के समय जलन। 

(iii) गुदीय कष्ट 

(iv) जोड़ों में दर्द। 

(v) हथेलियों में दानों का हो जानागले में हल्का व्रण या दाह 

(vi) महिलाओं में इससे बांझपन उत्पन्न हो जाता है।

 

सूजाक (Gonorrhoea) रोकथाम व उपचार

 

(i) केवल एक ही व्यक्ति से लैंगिक संपर्क (संभोग ) । 

(ii) वेश्यावृत्ति व समलैंगिकता से बचना । 

(ii) चिकित्सक के परामर्श के अनुसार एंटीबायोटिक जैसे पेनिसिलीन के इंजेक्शन या उचित समय पर उचित दवाइयों का प्रयोग करें।

 

  • पुरुषों में सूजाक मुख्यतया मूत्रमार्गगुदागलेजोड़ों व नेत्रों को प्रभावित करता है। बहुत से किशोर व नव वयस्क इसके शिकार होते हैं।

 

  • सूजाक का सही उपचार न होने पर रोग जटिल रूप धारण कर सकता है और गोनोकॉक्कल सेप्टीसेमिया (रक्त विषाक्तता) हो सकता है।

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