गैरसंचारी रोग के नाम कारण एवं उपाय | Non-Communicable diseases in Hindi

गैरसंचारी रोग (Non-Communicable diseases)

गैरसंचारी रोग के नाम कारण एवं उपाय | Non-Communicable diseases in Hindi


 

गैरसंचारी रोगों के नाम एवं जानकारी 


1. मधुमेह (डाइबिटीज मेलीट्स Diabetes mellitus)

इस रोग का पता रक्त या मूत्र परीक्षण द्वारा किया जा सकता है। 


कारण

(i) अग्न्याशय से इंसुलिन का कम स्रवण 

(ii) मानसिक तनाव 

(iii) वंशागतमाता-पिता से बच्चों में 


लक्षण 

(i) रक्त में अधिक ग्लूकोस 

(ii) अधिक व बारम्बार मूत्र त्याग  

(iii) प्राय: प्यास व भूख लगते रहना। 

(iv) घावों को भरने में देरी का होना । 

(v) सामान्य शारीरिक कमजोरी । 

(vi) विकट स्थितियों में रोगी मधुमेहज (मधुमेह + ज = उत्पन्न) संन्यास (कोमा) में जा सकता है और बेहोश (मूर्छित) हो सकता है।

 

मधुमेह रोकथाम व उपचार

 (i) शरीर के भार पर नियंत्रण रखें यानी मोटापा कम करें। 

(ii) नियमित व नियंत्रित आहार। 

(iii) भोजन में अधिक शर्करा और अधिक कार्बोहाइड्रेट न हों। 

(iv) यदि आवश्यक हो तो भोजन से पहले इंसुलिन का इंजेक्शन (सिर्फ चिकित्सक के परामर्श से) लें। 


2. हृदय वाहिका रोग (Cardio Vascular diseases)

 

सामान्य कारण

 

(i) कोलेस्ट्रॉल (एक प्रकार की वसा) का रक्तवाहिनी धमनियों में निक्षेपण जिससे (जमा होना) हृदय की पेशियों में रक्त का प्रवाह अवरूद्ध हो जाता है। इससे दिल का दौरा (हृदय आघात) पड़ सकता है। 

(ii) कम मात्रा में रक्त की आपूर्ति के कारण पेशियों को उपलब्ध ऑक्सीजन कम हो जाती है। जिससे हृदय की क्षमता प्रभावित होती है। 

(iii) मानसिक तनाव के कारण। 

(iv) मोटापे के कारण।

 

क ) अतिरक्तदाब ( हाइपरटेन्शन - Hypertension) उच्च रक्तदाब (High blood pressure)

 

लक्षण

 

(i) लगातार उच्च रक्तदाब 

(ii) इससे वृक्कों गुर्दा की धमनियाँ क्षतिग्रस्त हो सकती हैं। 

(iii) चरम स्थितियों में धमनियाँ फट सकती हैं या अंधापन की संभावना हो सकती है। 

(iv) इससे पक्षाघात (लकवा) भी हो सकता है।

 

रोकथाम व उपचार

(i) मानसिक तनाव न बढ़ने दें। 

(ii) कम वसायुक्त भोजन किया जाना चाहिये ( मोटापा कम करें ) । 

(iii) शरीर का भार नियंत्रित रखना चाहिये। 

(iv) अच्छी आहार प्रकृति विकसित करनी चाहिये (खाने की अच्छी आदत डालनी चाहिए 

(v) चिकित्सक के परामर्श के अनुसार दवाऐं ली जानी चाहिये।

 

(ख) हृदय धमनी रोग (Coronary heart disease) 

लक्षण

(i) छाती में तेज दर्द व सांस लेने में तकलीफ होना । 

(ii) तेज मिचली (उबकाई) व उल्टी आना। 

(iii) काफी पसीना आना। 

(iv) रक्त नलिकाओं में रक्त का थक्का बन सकता है।

 

रोकथाम व उपचार

 

(i) कम संतृप्त वसा युक्त आहार से कोलेस्ट्रॉल का निर्माण रूक जाता है। 

(ii) अच्छी आहार प्रकृति विकसित करें (खाने की अच्छी आदत डालें ) । 

(iii) अतिभारता (मोटापा) नियंत्रित रखें। 

(iv) धूम्रपानमदिरापान या नशीली वस्तुओं के सेवन न करें  

(v) एक योग्य चिकित्सक से इलाज करवायें। 

(vi) विद्युत हृदलेख (Electro cardiogram-ECG) से रोग का निदान हो सकता है

(vii) चरम स्थितियों में उपमार्ग शल्यक्रिया (By-pass surgery) की जा सकती हैं

 

3. ऑस्टियोपोरोसिस (अस्थिसुषिरता- अस्थि  सुषिर =सरंध्र) (Osteoparosis)

  • अस्थि सुषिरता (Osteoporosis osteo = हड्डीअस्थि + poro-pore (छिद्र )+ sis स्थिति) आयु पर निर्भर एक विकार है जोकि अस्थियों के सामान्य घनत्व में ह्रास के कारण होता है। हड्डियाँ भंगुर (कमजोर) हो जाती हैं और आसानी से टूट जाती हैं। ऑस्टियोपोरोसिस से प्रभावित हड्डियाँ मामूली गिरने या आघात से टूट जाती है। बढ़ती उम्र के साथ हार्मोन परिवर्तन के परिणामस्वरूप बड़ी उम्र के स्त्री व पुरूष इस रोग के शिकार होते हैं। हड्डियों से कैल्सियम के झड़ जाने के कारण ऐसा होता है।

 

ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण

 

(i) ऑस्टियोपोरोसिस से प्रभावित व्यक्ति काफी लंबी अवधि तक अपनी स्थिति से अनभिज्ञ रह सकते हैं क्योंकि इसके स्पष्ट लक्षण नहीं होते और अस्थिरोग होने से पूर्व इसका पता नहीं लगता। 

(ii) ऑस्टियोपोरोसिस के लक्षण अस्थिभंग की स्थिति से संबंधित हैं। 

(iii) मेरूदण्ड में अस्थिभंग के कारण बैण्ड तेज दर्द जैसा शूल हो सकता है जो शरीर के पृष्ठ भाग से किनारों की ओर बढ़ता है। बारम्बार मेरूदण्ड अस्थि भंग से चिरकालिक पीठ का दर्द व मेरूदण्ड की वक्रता उत्पन्न हो जाती है। जिससे व्यक्ति कुब्ज (कुबड़ा) हो जाता है । 

(iv) कुछ रोगियों में ऑस्टियोपोरोसिस के कारण चढ़ने या उतरने पर जोर पड़ने से पाँवों में अस्थिभंग हो जाता हैगिरने पर श्रोणि (कूल्हे) की हड्डी टूट जाती है। ऑस्टियोपोरोसिस के कारण मामूली से दुर्घटना में कूल्हे की अस्थि टूट सकती है जिसके स्वस्थ होने में घटिया दरजा (कोटि) की अस्थि स्वभाव के कारण काफी लंबा समय लग जाता है।

 

ऑस्टियोपोरोसिस के उपचार

 

(i) ऑस्टियोपोरेसिस से पीड़ित रोगियों के उपचार में सामान्यतया विटामिन डी और कैल्शियम के संपूरक ( Supplements) दिये जाते हैं। इसके अलावा स्थिति को बिगड़ने से रोकने के लिये उन्हें आराम की सलाह की जाती है। 

(ii) जीवनशैली में परिवर्तन की भी सलाह दी जाती है। रोगियों को भोजन के माध्यम या सम्पूरकों के रूप में कैल्सियम लेने की सलाह दी जाती है। चूंकि शरीर एक समय में लगभग 500 मिलीग्राम कैल्सियम का अवशोषण करता है। अतः कैल्सियम का अंतर्ग्रहण सम्पूर्ण दिवस में वितरित रहना चाहिये। 

(iii) व्यायाम द्वारा भी इस खतरे से बचा जा सकता है। लेकिन ऑस्टियोपोरोसिस की स्थिति में एक पेशेवर भौतिक चिकित्सक के मार्गदर्शन में ही व्यायाम किया जाना चाहिये।

 

4. कैंसर

 यह कोशिकाओं की अनियंत्रित व अवाँछित वृद्धि है।

 

केन्सर कारण

 

(i) अभी तक इसके कारण का निश्चित रूप से पता नहीं लग पाया है। लेकिन यह पाया गया है कि शरीर में एककोशीय अर्बुदजीन (Proto-oncogenes) पाये जाते हैं। ये कुछ पदार्थों या उद्दीपकों द्वारा सक्रिय हो जाते हैं जो इन्हें सक्रिय कैंसरकारी अर्बुदों में बदल देते हैं। 

(ii) अत्यधिक धूम्रपान व मदिरापान करना। 

(iii) तम्बाकू चबाना । 

(iv) त्वचा में स्थायी (लगातार) क्षोभण या एक ही जगह पर बार-बार चोट लगना ।

 

कैंसर एक प्रकार की अबुर्दीय (Tumorous) वृद्धि हैं इसे दो संवर्गों में बाँटा जा सकता है :

 

(a) सुदम अर्बुद (Benign tumour)

 

  • यह अपने उद्गम स्थान पर ही सीमित रहता है और शरीर के अन्य भागों में नहीं फैलता है। यह अपेक्षाकृत कम हानिकर है। इसका दमन (रोकना) आसानी से किया जा सकता है (सुदम) ।

 

(b) दुर्दम अर्बुद (Malignant tomour)

 

  • यह शरीर के अन्य भागों में फैलता है और इसकी वृद्धि तीव्र होती है। यह गंभीर चिन्ताजनक है और इससे रोगी की मृत्यु भी हो सकती है। इसका दमन कठिन है (दु: + दम यानी दुर्दम अर्थात् असाध्य) ।

 

लक्षण

 

(i) जीभछाती या गर्भाशय में एक स्थायी गाँठ या ऊतकों का संघनन । 

(ii) शरीर के किसी भी विवर से अनियमित रक्तस्राव या रक्त में सना निक्षेपण। 

(iii) कोई घाव जो शीघ्रतापूर्वक ठीक नहीं होता। 

(iv) मस्सों या घाव के रूप में परिवर्तन। 

(v) स्थायी स्वरभंगखांसी या निगलने में कठिनाई होना।

 

रोकथाम व उपचार

 

(i) साल में एक बार कैंसर की जाँच अवश्य कराएं। 

(ii) चिकित्सक के परामर्श के अनुसार उपचार लें। 

(iii) धूम्रपानमद्यपान (मंदिरापान) व तम्बाकू चबाना छोड़ दें। 

(iv) जीवनचर्या को नियमित करें ताकि शरीर स्वस्थ रहे। 


5. प्रत्युंजता (ऐलर्जी - Allergy)

 

(i) इसमें असंक्रामक समूह के रोग आते 

(ii) कोई निश्चित कारण पता नहीं है।  

(iii) ऐसा माना जाता है कि प्रत्युंजता व्यक्ति विशेष की किसी बाह्य पदार्थ के प्रति अतिसंवेदनशीलता (hypersensitiviness ) के कारण होती है। 

(iv) छींकनेहांफनेआँखों का बहनागले का या श्वासनली का क्षोभण आदि । 

(v) प्रत्यूर्जताजनक (ऐल्र्जन-allergen)- परागकणपंखकुछ पशुकीटऔषधदवागंधआदि हो सकते हैं।



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