प्रोटोज़ोआ प्राणियों द्वारा उत्पन्न रोग |कृमियों (helminths) द्वारा उत्पन्न रोग Disease caused by protozoan animals

प्रोटोज़ोआ प्राणियों द्वारा उत्पन्न रोग
Disease caused by protozoan animals
प्रोटोज़ोआ प्राणियों द्वारा उत्पन्न रोग |कृमियों (helminths) द्वारा उत्पन्न रोग Disease caused by protozoan animals


 

1. मलेरिया (Malaria)

 

रोगजनक: मलेरिया परजीवी (प्लाज्मोडियम (Plasmodium) की विभिन्न स्पीशीजें ) 

संचारण विधि : मादा ऐनोफिलीज मच्छर के काटने से उद्भवन अवधि: लगभग 12 दिन

 

मलेरिया के लक्षण 

(i) सिरदर्दमिचली (उबकाई) व पेशियों में दर्द | 

(ii) ठिठुरन और कंपन ( अनुभव करनाउसके बाद ज्वर आना) व पीसने के साथ कुछ समय बाद ज्वर का सामान्य हो जाना। 

(iii) रोगी कमजोर व अरक्तता से पीड़ित हो जाता है। 

(iv) यदि सही प्रकार उपचार न किया जाय तो द्वितीयक जटिलताओं के कारण मृत्यु हो जाती है।

 

मलेरिया रोकथाम व उपचार

 

(i) दोहरे जालीदार दरवाजे व खिडकियाँ ताकि मच्छरों के प्रवेश को रोका जा सके। 

(ii) मच्छरदानी (मसहरी) व मच्छर प्रतिकर्षकों (दूर भगाने वाला) का प्रयोग | 

(iii) गड्ढों या अन्य खुली जगहों पर पानी एकत्रित न होने दिया जाय जिससे मच्छरों का पैदा होना बंद किया जा सके। 

(iv) गड्ढों व अन्य पानी एकत्रित होने वाले स्थानों पर मिट्टी का तेल छिड़कना चाहिए।(v) मलेरियारोधी दवाओं का प्रयोग

 

2. अमीबता या अमीबा रूग्णता (अमीबीएसिस) (Amoebiasis ) ( अमीबी पेचिश - Amoebic dysentery)

 

रोगजनक : एन्टएमीबा हिस्टोलिटिका

संचरण की विधि : संदूषित भोजन व जल

 

मलेरिया के लक्षण 

(i) आंतों में व्रण (अल्सर) का निर्माण । 

(ii) पेट में दर्द व मिचली ( उबकाई । 

(iii) तीव्र (तेज) दस्त व मल में श्लेष्मा । 


मलेरिया रोकथाम व उपचार

 

(i) उचित स्वच्छता बनायी रखनी चाहिये। 

(ii) तरकारी व फलों को खाने से पहले भलीभाँति धो लेना चाहिये। 

(iii) रोगियों को प्रतिजैबिक (एंटीबायोटिक) दबाईयां प्रदान किये जाने चाहिये।

 

कृमियों (helminths) द्वारा उत्पन्न रोग

 

1. फ़ाइलेरिया रोग ( फीलपांव ) ( फाइलेरियेसिस-Filariasis)

 

रोगजनक: फ़ाइलेरिया कृमि ( वुशरेरिया बेन्क्रॉफ्टाइ Wuchereria bancrofti ) 

संचारण की विधि : ईडीज व क्यूलेक्स मच्छरों के काटने से


फ़ाइलेरिया कृमि के लक्षण

 

(i) ज्वर 

(ii) लसीका वाहिकाओं की भित्तियों में अंत:कला कोशिकाओं व उपापचयजों (मेटाबोलाइटों) का संग्रह 

(iii) शरीर के कुछ भागों जैसे टांगोंछातियोंअण्डकोषआदि में सूजन उत्पन्न हो जाती हैं। 

(iv) टाँगों की सूजन जो हाथी के टाँगों की भाँति प्रतीत होती है अतः इस रोग को श्लीपद (श्ली = फुला हुआ + पद पैर) या फीलपांव भी कहा जाता है। (चित्र 291)

 

फ़ाइलेरिया कृमि रोकथाम व उपचार

 

(i) मच्छरों के प्रवेश को रोकने के लिये घर में जालीदार दरवाजे या खिड़कियां लगाये जाने चाहिये। 

(ii) टंकियों व अन्य पात्र में संग्रहित जल को भली भाँति ढका जाना चाहिये। 

(iii) गड्ढो में मिट्टी तेल का छिड़काव आदि। 

(iv) दवायें दी जा सकती है।


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