भारत में दलीय प्रणाली एवं राजनीतिक दलों का विकास |Party System and Development of Political Parties in India

भारत में दलीय प्रणाली एवं राजनीतिक दलों का विकास |Party System and Development of Political Parties in India


भारत में दलीय प्रणाली एवं राजनीतिक दलों का विकास

 राजनीतिक दलों का विकास Rajnitik Dalo Ka Vikas

  • भारत में राजनीतिक दलों का उदय स्वतंत्रता आंदोलन के समय हुआ था। उस वक्त वे स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल थे। उस समय इन दलों ने विधानसभाओं के चुनाव भी लड़े थे । 
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद काँग्रेस एक मजबूत पार्टी के रूप में उभरी । स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान काँग्रेस एक महज आंदोलन था लेकिन बाद में आजादी के बाद में एक पार्टी बन गई। इसका मतलब यह है कि काँग्रेस का मकसद केवल आजादी हासिल करना नहीं था बल्कि चुनाव लड़ना एवं सरकार बनाना था । 
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में कई वर्षों तक राजनीतिक व्यस्था का विकास हुआ था। हालांकिउस समय भी एक दलीय व्यवस्था नहीं थी।
  • 1950 से 1960 बीच हालांकि काँग्रेस पार्टी का ही वर्चस्व रहा थाअन्य दलों की स्थिति ठीक नहीं थी। उनका समर्थन भी काफी कम था। 
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत में तीन प्रकार की दलीय प्रणाली देखने को मिली हैं। एक दलीय प्रणाली का वर्चस्वद्विदलीय प्रणाली तथा बहु-प्रणाली । 

 

एक दलीय व्यवस्था का प्रभुत्व

 

  • लगभग दो दशकों तक भारत में काँग्रेस पार्टी का ही प्रभुत्व रहा था। हालांकि कई अन्य दल भी उस वक्त मौजूद थे लेकिन ज्यादातर राज्यों में तथा केन्द्र में काँग्रेस पार्टी की ही सरकार थी। इस प्रकार गैर-काँग्रेस पार्टियां केवल विपक्षी पार्टियाँ थी राज्यों एवं केन्द्र में सिवाय केरल के जहाँ पर सी. पी. आई. की सरकार थी. 
  • 1950 के अंतिम वर्ष में जैसा कहा गया है काँग्रेस पार्टी एक अकेली पार्टी थी जिसका समर्थन देश के सभी राज्यों में था । रजनी कोठारी ने इस काल को एक-दलीय प्रभुत्व का काल कहा था। उसने यहाँ तक कहा कि यह एक काँग्रेस पार्टी न होकर काँग्रेस प्रणाली या व्यवस्था थी ।
  • काँग्रेस पार्टी ने लोकसभा के चार चुनावों में स्पष्ट बहुमत हासिल किया था। यह स्थिति लगभग 1967 तक बरकरार रही थी। 1977 के लोकसभा चुनाव में जनता पार्टी ने कॉंग्रेस को सत्ता से बेदखल कर दिया था। इस समय तक कई राज्यों में कमोबेष भारत में एक दलीय प्रभुत्व कायम था या एक दल का वर्चस्व था ।

 

द्वि-दलीय

 

  • भारत में दो दलीय आदर्श प्रणाली नहीं है। बल्कि यहाँ पर द्विध्रुवीय राजनीतिक व्यवस्था है। इस व्यवस्था में दो या दो से अधिक दल साथ मिलकर चुनाव पूर्व या चुनाव पश्चात गठबंधन करते है और सरकार बनाते हैं तथा वे न्यूनतम साझा कार्यक्रम भी तय करते हैं । 
  • ये सामान्य तौर पर दो दलों के साथ होता है जो कि आपस में धुर्वी या गठबधनों की प्रतिस्पर्धा करते हैं। इस प्रकार के दो गठबंध ही आपस में चुनावी प्रतिस्पर्धा करते हैं। ऐसी व्यवस्था को ही हम द्विध्रुवीय व्यवस्था कहते हैं। 
  • ऐसी व्यवस्था केन्द्र एवं राज्य दोनों में ही हो सकती है। ऐसी स्थिति में मुख्य राजनीतिक दल समान होता है जबकि उसके गठबंधन के सहयोगी बदल जाते हैं। 
  • भारत में इस प्रकार के ध्रुवीकरण ने ही गठबंधन की राजनीति को उभरने का मौका दिया था। इसका प्रथम उदाहरण था 1967 के चुनावों में गैर-काँग्रेसी गठबंधन (सं.वि.द.) का गठन जिसने लगभग 8 राज्यों में गठबंधन किया था । 
  • उस समय में दो ध्रुव थे। जिसमें एक तरफ काँग्रेस तथा दूसरी तरफ गैर-काँग्रेसी दलों का गठबंधन जिसमें भारतीय क्रांति दलसंयुक्त सोसलिस्ट पार्टी प्रजा सोसलिस्ट पार्टी और जन संघ शामिल थे। इसका प्रथम उदाहरण राष्ट्रीय स्तर पर जनता पार्टी के गठन के पश्चात् सामने आया था जिसे 1977 के चुनावों में सफलता प्राप्त हुई थी। उस समय काँग्रेस पार्टी विपक्षी पार्टी बन गयी थी तथा जनता पार्टी शासन करने वाली पार्टी बन गयी थी। लेकिन ये दोनों दल द्वि-दलीय व्यवस्था का प्रतिनिधित्व करते थे ना कि द्विध्रुवीय व्यवस्था के क्योंकि जनता पार्टी गठबंधन की पार्टी नहीं थी। इस पार्टी का गठन पाँच अन्य दलों के विलय के बाद हुआ था जिसमें काँग्रेस (ओ)बी. के. डी.सी. एफ. डी.जन संघ तथा स्वतंत्र पार्टी शामिल था। काँग्रेस इसका प्रमुख प्रतिद्वंदि था। इस प्रकार जनता पार्टी एवं काँग्रेस पार्टी ने दो दलीय व्यवस्था का प्रतिनिधित्व किया था। यह व्यवस्था 1977 से 1980 तक कायम रही जब तक कि केन्द्र में जनता पार्टी की सरकार थी।
  • लेकिन बाद में गठबंधनों में द्वि-दलीय न होकर द्विध्रुवीय व्यवस्था का अनमन हुआ था। 1990 के बाद भारत में कई प्रकार के गठबंधन हुए प्रमुख राजनीतिक दलों जैसे कि काँग्रेस और बी.जे.पी. की असफलता के कारण तथा इन दलों द्वारा चुनाव बहुमत हासिल न करने के कारण कई में अन्य छोटे-छोटे दलों को एक साथ लाने का मौका दिया। 
  • 1996 में ऐसा ही उदाहरण देखने को मिला जब 13 पार्टियों ने मिलकर "संयुक्त मोर्चा बनाया। इसी प्रकार1999 में लोकतांत्रिक गठबंधन (एन.डी.ए.) बनाया गया जिसमें बी. जे. पी. प्रमुख घटक दल था। 1989199019911996 1998 199920042009 तथा 2014 में केन्द्र में गठबंधनों की सरकार बनी थी जिसमें कई दल शामिल थे। 
  • लेकिन 2004 के बाद गठबंधन सरकार में एक प्रमुख दल शामिल था जैसे कि उदाहरण के तौर पर 2004 और 2009 में काँग्रेस पार्टी के नेतृत्व में यू.पी.ए. की सरकार थी जिसमें काँग्रेस के अलावा अन्य कई दल शामिल थे तथा 2014 में बी. जे. पी. के नेतृत्व में एन.डी.ए. की सरकार बनी थी उसमें भी कई दल शामिल थे।
  • राज्यों में भी इसी प्रकार का ध्रुवीकरण देखने को मिला है। जहाँ पर क्षेत्रीय पार्टियों के इर्द-गिर्द गठबंधन बनाये गये थे। उदाहरण के लिए उड़िसा में बी. जे. पी. एवं काँग्रेस के बीच मुकाबलाजम्मू-कश्मीर में पी. डी. पी. और नेशनल काँग्रेस तथा केरल में वाम मोर्चा और काँग्रेस के बीच मुकाबला इत्यादी ।

 

बहुदलीय एवं बहु ध्रुवीय / दलीय / व्यवस्था

 

  • 1967 सेभारतीय राजनीतिक व्यवस्था में काफी परिवर्तन आया है। चुनावों में काँग्रेस की पराजय तथा पार्टी में हुए विभाजन ने कॉंग्रेस को कमजोर बना दिया था। इसका प्रमुख कारण क्षेत्रीय दलों के उभार के रूप में भी देखा जा सकता है। 
  • भारत में इसने बहुदलीय व्यवस्था के उदय का रास्ता बनाया। हालांकि बहुदलीय प्रणाली काँग्रेस के वर्चस्व के समय में भी थी लेकिन उनकी भूमिका भारतीय राजनीति में नगण्य थी। बहुदलीय व्यवस्था के उदय का प्रमुख कारण समाज में हो रहे बदलाव का भी असर था। समाज में नये मुद्दों का उभार तथा क्षेत्रीय नेताओं का उदय भी इसी दिशा में प्रमुख कारण था । इन नेताओं ने क्षेत्रीय दलों का गठन किया था। कुछ प्रमुख नेताओं के उदय जैसे यू.पी. में चरण सिंहहरियाणा में राव विरेन्द्र सिंहउड़िसा में बीजू पटनायक तथा महाराष्ट्र में बाल ठाकरे ने 1960 और 1970 के दशक में क्षेत्रीय पार्टियों का गठन किया था। उसके बाद के काल में इनकी संख्या में इजाफा होता गया और उत्तर भारत में बी.एस. पी. एवं एस.पी. का गठनपश्चिम बंगाल में टी.एम. सी. का गठन भी प्रमुख उदाहरण है। 
  • बहुदलीय प्रणाली भारत में केन्द्र एवं राज्य दोनों में स्थित है। ये दल भारत की राजनीतिक सांस्कृतिकसामाजिक एवं आर्थिक विविधता का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारत में बहुदलीय व्यवस्था का प्रमुख आधार सिर्फ उनकी विचारधारा एवं नीतियां नहीं रही है परंतु राजनीतिक लाभ भी रहा है जहाँ पर एक प्रमुख पार्टी इसकी प्रमुख मोडल एजेंसी होती है। इस तरह का गठबंधन बहुदलीय व्यवस्था का प्रतीक है। बहुदलीय व्यवस्था बहु-ध्रुवीय व्यवस्था के रूप में भी जानी जाती है।
विषय सूची 

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राजनीति और भाषा
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