चुनावी राजनीति सोशल मीडिया की भूमिका | Role of Social Media In Politics

 

चुनावी राजनीति सोशल मीडिया की भूमिका

चुनावी राजनीति सोशल मीडिया की भूमिका | Role of Social Media In  Politics


 

  • चुनावी राजनीति में लोगों को लामबंद करने के लिये सोशल मीडिया अहम भूमिका निभाता है।
  • यह न केवल धर्म-आधारित लामबंदी को प्रोत्साहित करता है बल्कि लोक लुभावनवाद को भी प्रोत्साहित करता है। 
  • समसामयिक निर्वाचन राजनीति में इसका उपयोग दल और दलों के नेताओं के प्रति जनता की धारणाओं को आकर्षित करने अथवा उसमें हेरफेर करने के लिये एक उपकरण के रूप में किया गया है। 
  • 2014 और 2019 के आम चुनावों के दौरान सोशल मीडिया ने राजनैतिक दलों और नेताओं के प्रचार अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। 
  • स्मार्ट फोन और इंटरनेट के उपयोग से राजनीतिक दलों को जनता तक पहुँचने के लिए एक नया मंच उपलब्ध कराया गया है। इस माध्यम का लाभ यह है कि इसमें क्षेत्रजातीयता और धर्म की कोई बाधा नहीं है। 
  • सोशल मीडिया का महत्वपूर्ण इस्तेमाल युवा वर्ग कर रहा है और इसका लक्ष्य है कि मध्यवर्गीय मतदाताओं को मत देने के पारंपरिक तरीकों का इस्तेमाल न किया जाये।
  • ट्वीटरफेसबुकइंस्टाग्राम और यूट्यूब संचार के नए तरीके बन गए है। सभी वर्गों को इसका लाभ मिला है एवं राजनीतिक नेताओं को अपनी विचारधारा जनता तक पहुँचाने में भी इससे मदद मिली है। 
  • जैसा कि शाह (2015) ने बताया कि मोदी ने 2014 में 272 के लक्ष्य के लिये डिजिटल इंडिया की शुरुआत की थी जो कि संसद में बहुमत के लिये आवश्यक है। चुनाव प्रचार के दौरान बी. जे. पी. ने इस माध्यम का भरपूर लाभ उठाया और मोदी के मैसेज, "भ्रष्टाचार मुक्त भारत", "विकास और सक्षम प्रबंधन को आम जन तक पहुँचाया।

सोशल मीडिया राजनीति को प्रभावित करने वाला कारक है समझाइए ?

  • दुनिया भर में सोशल मीडिया लोगों के लिये सरकार के कामकाज में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने एवं आवाज़ उठाने के लिये एक बेहतर प्लेटफॉर्म बनकर उभरा है। इसके जरिये समकालीन मुद्दों पर चर्चा करना, किसी घटना के कारण एवं परिणामों पर चर्चा और नेताओं को जवाबदेह ठहराना आसान हो गया है।
  • हालाँकि इसकी अनिश्चित प्रकृति, अफवाहों को हवा देना, गलत समाचारों के प्रसार में इसकी भूमिका के कारण, सोशल मीडिया किसी खास एजेंडा को प्रसारित करने, कुछ विशेष वर्गों को लक्षित करने, चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने एवं लोकतंत्र के मूल्यों से समझौता करने की दिशा की तरफ भी ले जाता है।
  • सोशल मीडिया को इस तरह से विनियमित करने की आवश्यकता है, जो अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, अल्पसंख्यकों के हित, कानून और व्यवस्था के बीच संतुलन बनाए तथा शासन में नागरिकों की भागीदारी को बढ़ावा दे।

लोकतंत्र पर सोशल मीडिया का सकारात्मक प्रभाव

डिजिटल लोकतंत्र: 

  • लोकतांत्रिक मूल्य तभी विकसित हो सकते हैं जब लोगों के प्राप्त अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता हो। इस तरह सोशल मीडिया स्वतंत्रता के इन मंचों के माध्यम से डिजिटल लोकतंत्र की अवधारणा को मजबूत करता है।

जवाबदेही तय करना:

  •  सोशल मीडिया एक ऐसे प्लेटफॉर्म के रूप में कार्य करता है जहाॅं अजेय प्रतीत होने वाली सरकारों पर भी सवाल उठाया जा सकता है, उनकी जवाबदेही तय कर सकता है एवं लोगों के एक-एक वोट द्वारा परिवर्तन ला सकता है।

लोगों की आवाज़ को मजबूत करना: 

सोशल मीडिया में लोगों तक सूचना पहुॅंचाने की शक्ति है। ट्यूनीशिया जैसे देशों में सोशल मीडिया ने 'अरब स्प्रिंग' में एक महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। इसे मुक्ति पाने के लिये एक तकनीक के रूप में इस्तेमाल किया गया था।

नागरिकों का एक दूसरे से जुड़ाव:

नागरिक जुड़ाव के लिये सोशल मीडिया के निहितार्थ बहुत गहरे हैं क्योंकि बहुत से लोग इन प्लेटफार्मों पर समाचारों पर चर्चा एवं समकालीन मुद्दों पर बहस करते हैं। इस तरह लोग अपने तरह के लोगों से जुड़ते हैं एवं उनमें एक समुदाय की भावना मजबूत होती है।


लोकतंत्र पर सोशल मीडिया का नकारात्मक प्रभाव

राजनीतिक ध्रुवीकरण: 

  • सोशल मीडिया की सबसे आम आलोचनाओं में से एक यह है कि यह 'ईको चेंबर' (Echo Chamber) बनाता है जहाॅं लोग केवल उन दृष्टिकोणों से चीजों एवं घटनाओं को देखते हैं, जिनसे वे सहमत होते हैं और जिनसे असहमत होते हैं उन्हें सिरे से खारिज़ कर देते हैं।
  • चूंकि अभूतपूर्व संख्या में लोग अपनी राजनीतिक ऊर्जा को इस माध्यम से प्रसारित करते हैं, इसके उपयोग से अप्रत्याशित तरीकों से ऐसे सामाजिक परिणाम सामने आ रहे हैं जिनकी कभी उम्मीद नहीं की गई थी।


प्रोपेगैंडा फैलाना:

  • गूगल ट्रांसपेरेंसी रिपोर्ट के अनुसार, राजनीतिक दलों ने पिछले दो सालों में ज़्यादातर चुनावी विज्ञापनों पर करीब 80 करोड़ डॉलर (5,900 करोड़ रुपये) खर्च किये हैं।
  • इसके जरिये नफरत एवं सांप्रदायिकता से भरे भाषणों को आसानी से फैलाया जा सकता है।


विदेशी हस्तक्षेप: 

  • ऐसा माना जाता है कि वर्ष 2016 के अमेरिकी के चुनाव के दौरान रूसी संस्थाओं ने सोशल मीडिया को सूचना के हथियार के रूप में उपयोग किया एवं सार्वजनिक रूप से लोगों की भावनाओं को प्रभावित करने के लिये फेसबुक पर नकली पेज बनकर प्रचार किया।
  • इस तरह सोशल मीडिया को राष्ट्र, राज्य एवं समाज को विभाजित करने के इरादे से साइबर युद्ध के लिये उपयोग किया जा सकता है।


फेक न्यूज़: 

  • सोशल मीडिया लोगों को अपनी बात रखने का पर्याप्त मौका देता है। कभी-कभी जिसका इस्तेमाल किसी के द्वारा अफवाह फैलाने और गलत सूचना फैलाने के लिये भी किया जा सकता है।


असमान भागीदारी:

  • सोशल मीडिया नीति निर्माताओं की जनमत के बारे में धारणा को प्रभावित करता है। ऐसा इसलिये है क्योंकि ऐसा माना जाता है कि सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जीवन के हर क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं, लेकिन हर कोई इस प्लेटफॉर्म का समान रूप से उपयोग नहीं कर रहा है

 

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