सम्राट चन्द्रगुप्त मौर्य -व्यक्तिगत जीवन |चन्द्रगुप्त का धर्म |चन्द्रगुप्त का मूल्यांकन | Chandra Gupta Ka Dharm


सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य -व्यक्तिगत जीवन |चन्द्रगुप्त का धर्म |चन्द्रगुप्त का मूल्यांकन  

सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य -व्यक्तिगत जीवन |चन्द्रगुप्त का धर्म |चन्द्रगुप्त का मूल्यांकन  | Chandra Gupta Ka Dharm



सम्राट् चन्द्रगुप्त मौर्य  का व्यक्तिगत जीवन


  • सम्राट चन्द्रगुप्त शास्त्रकारों द्वारा प्रतिपादित राजाओं के आदेशों के अनुसार जीवन बिताता था। उसका अधिकांश समय राजकाज में ही बीतता था। उसे अपने कर्त्तव्य का इतना ध्यान था कि उसने आज्ञा निकाल रखी थी कि कोई प्रजाजन कभी फरियाद लेकर मेरे सामने आ सकता हैयहां तक कि जिस समय वह शरीर पर मालिश करवाता उस समय भी यदि कोई चाहता तो उसके सामने आवेदन लेकर पहुँच सकता था। 
  • मेगस्थनीज लिखता है कि 'सम्राट अपने शत्रुओं से बहुत सावधान रहता हैउसे कत्ल का हमेशा डर लगा रहता हैकभी दो बार पलंग पर नहीं सोताउसका भोजन खाने से पूर्व चख लिखा जाता था जिससे विष का डर न रहे। कोई भी महल में बिना आज्ञा के नहीं घुस सकता था। गुप्तचरों की एक बड़ी फौज थी जो सम्राट को हर समय नगर तथा साम्राज्य के समाचारों से अवगत कराती रहती थी। 
  • राज्य के शत्रुओं का नाश करने के लिए हर साधन का प्रयोग किया जाता था। दासियों का एक बड़ा समूह सदैव सम्राट की सेवा में उपस्थित रहता था। वे ही दासियाँ उसके लिए भोजन बनातींउसके शरीर पर मालिश करती तथा नृत्य और गायन से सदा उसका मनोरंजन करती थीं। महल पर रात को सदा अंगरक्षकों का पहरा रहता था। 
  • सम्राट केवल त्यौहारों अथवा विशेष अवसरों पर ही महल के बाहर निकलता थाउस समय उसके पीछे एक विशाल जुलूस चलतासेवकों का बड़ा समूह उसके पीछे स्वर्ण पात्रमेजेंकुर्सियाँअनेक प्रकार के रत्नजड़ित पात्र तथा वस्त्र आदि लेकर चलता। 
  • अंगरक्षक मार्ग के दोनों ओर पंक्तियों में चलतेजिससे दर्शक दूर रहें। यदि कोई स्त्रियों की पंक्तियों के भीतर जाता तो उसे मृत्युदण्ड मिलता। जब सम्राट अपने केश धोता उस समय एक दरबार लगता तथा सामन्त लोग अभिवादन करने आते। इस प्रकार सम्राट का जीवन बड़े ठाट-बाट का था।

 

मेगस्थनीज के अनुसार सम्राट का जीवन 

  • मेगस्थनीज बताता है कि राजा की रक्षा के लिए अंगरक्षकों के स्थान पर अंगरक्षिकाएँ हुआ करती थीं। उसे हर समय अपने जीवन का भय लगा रहता था। अतः वह एक ही स्थान पर लगातार दो रातों तक नहीं सोया करता था। राजा के प्रथम पुत्र को ही उसके बाद गद्दी पर बैठाया जाता था। राजा शिकार का बड़ा शौकीन था और शिकार के कार्यक्रम को बड़ी धूमधाम से संचालित किया जाता था। राजा देश में दूर-दूर तक हाथी पर चढ़कर शिकार किया करता था। ऐसे अवसरों पर स्त्रियाँ ही उसकी अंगरक्षिकाएँ हुआ करती थीं। ये अंगरक्षिकाएँ सशस्त्र होती थीं। इस शाही जुलूस के लिए सड़कों के दोनों ओर रस्से लगा दिये जाते थेजिन्हें पार करने का अर्थ मौत था अर्थात् लोग उन्हें पार नहीं कर सकते थे। 
  • राजा की शान और उसका तेज महान था। शान और सौंदर्य में शाही महल अनुपम था। सूसा और ऐकबटान के महल उसके सामने कुछ न थे। इसके मुलम्मेदार स्तम्भों पर सोने की बेलें चढ़ी थीं। चाँदी के पक्षियों को उन पर सजाया गया था। बड़े-बड़े उद्यानों और उपवनों में भवनों का निर्माण हुआ था। इन भवनों के आस-पास विभिन्न ताल थेजिनमें मछलियाँ तैरा करती थीं। उनके आस-पास की सजीली झाड़ियों और वृक्षों ने उन्हें घेर रखा था। 
  • विलास क्रीड़ा के सभी साधन प्राप्त थे चिरमचियों और अन्य सोने के बर्तनों का ही प्रयोग होता था। सम्राट का जीवन कठिन परिश्रम का था। प्रातः काल संगीत द्वारा उसे जगाया जाता था। स्नान तथा पूजापाठ करने के उपरान्त वह न्यायालयों में जाता और दरबार में जाकर प्रजा को दर्शन देता। फिर मन्त्रियों से परामर्श करतागुप्तचरों के रिपोर्ट सुनता तथा पत्रव्यवहार देखता था और दोपहर के समय भोजनोपरान्त आराम करता। संध्या का समय सेनाओं तथा दुर्गों का निरीक्षण करने और आमोद-प्रमोद में व्यतीत होता था। सम्राट को शिकार का शौक था। जानवरों की कुस्तियाँरथों और घोड़ों की दौड़ उसके मनोरंजन के साधन थे।

 

चन्द्रगुप्त का धर्म 

  • प्रारम्भ में चन्द्रगुप्त जैनेतर धर्म में विश्वास रखने वाला था। हेमचन्द्र के अनुसार वह मिथ्यामतावलम्बी व्यक्तियों का संरक्षक था। उसकी राजसभा में एक जटिलक मन्त्री था। जटिलक सम्प्रदाय का उल्लेख बौद्ध ग्रंथों में मिलता है। चाणक्य का प्रभाव तो उस पर अवश्य ही रहा होगा। यूनानी लेखकों के अनुसार वह याज्ञिक कार्य के लिए राजप्रासाद से बाहर निकलता था। बौद्धधर्म के प्रति उसकी आस्था थी या नहींयह कहना कठिन है। जीवन के अन्तिम चरण में वह जैनधर्मावलम्बी हो गया। धार्मिक सहिष्णुता का वह समर्थक था। चन्द्रगुप्त के अन्तिम दिवस जैन अनुश्रुतियों के अनुसार चन्द्रगुप्त ने महावीर स्वामी की शिष्यता ग्रहण कर ली थी। कहा जाता है कि भारत के इस महान सेनानायक तथा कुशल शासक ने चौबीस वर्षों तक अत्यन्त सफलतापूर्वक शासन करने के उपरान्त राजवैभव को लात मार कर 298 ई.पू. में संन्यास ग्रहण कर लिया। उसके शासनकाल के अन्तिम भाग में उसके राज्य में एक बहुत बड़ा दुर्भिक्ष पड़ा। अतएवजैन भिक्षुओं के एक बहुत बड़े दल ने आचार्य भद्रबाहु के नेतृत्व में कर्नाटक के लिए प्रस्थान कर दिया। चन्द्रगुप्त को भी वैराग्य उत्पन्न हो गया और अपना राज्य अपने पुत्र बिन्दुसार को सौंप कर वह स्वयं कर्नाटक के पर्वतों की ओर चला गया और वहीं पर एक सच्चे जैनी की भांति अनशन करके अपने प्राण त्याग दिये। इस प्रकार मौर्य साम्राज्य के संस्थापक की जीवनलीला समाप्त हो गयी। चन्द्रगुप्त का शासनकाल 324 अथवा 321 ई.पू. से 300 ई.पू. तक माना जाता है।

 

चन्द्रगुप्त का मूल्यांकन 

  • इतिहास में चन्द्रगुप्त का उच्च स्थान है। उसकी गणना इतिहास के महान् विजेताओं और साम्राज्य निर्माताओं में होती है। उसने एक ऐसे विशाल साम्राज्य की स्थापना कीजिसकी सीमा फारस की सीमा को छूती थी। यद्यपि भारत पर अन्य महान् राजाओं ने भी शासन किया लेकिन भारत के उत्तर-पश्चिम में किसी सम्राट ने इतनी सफलता से शासन नहीं किया जितनी सफलता से चन्द्रगुप्त ने किया था। यूनानियों को भारत से खदेड़ निकालने और देश को स्वतंत्र करने का श्रेय चन्द्रगुप्त को ही प्राप्त है। जिस समय चन्द्रगुप्त ने अपना अभियान आरम्भ किया थाउस समय भारत में राजनीतिक एकता नहीं थी और भारत कई छोटे-छोटे राज्यों में विभक्त था। फलत: उसमें विदेशियों के आक्रमण को रोकने की शक्ति नहीं थी। चन्द्रगुप्त ने दिग्विजय करके भारत को राजनीतिक एकता प्रदान की। उसने सम्पूर्ण भारत में अपना एकछत्र साम्राज्य स्थापित किया और एक ऐसी प्रबल सेना का संगठन कियाजिसके परिणामस्वरूप न केवल उसके समय में वरन् उसके उत्तराधिकारियों के समय में भी भारत बहुत दिनों तक विदेशी आक्रमणों के भय से मुक्त रहा।

 

  • चन्द्रगुप्त धार्मिक मामलों में बड़ा उदार था। वह सभी धर्मों को आदर और सम्मान की दृष्टि से देखता था। उसके साम्राज्य में सभी व्यक्तियों को इच्छित धर्म पालन करने और अपने इष्टदेव की पूजा करने का अधिकार था। धार्मिक अत्याचार का कोई चिह्न नहीं था। इसलिए ब्राह्मण उसे ब्राह्मण धर्म काजैन उसे जैन धर्म का और बौद्ध उसे बौद्ध मत का अनुयायी मानते थे। चन्द्रगुप्त का काल साहित्यिक रुचि से भी रिक्त नहीं था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र तथा जैन कल्पसूत्र की रचना इसी काल में हुई थी। वह साहित्य प्रेमियों को हमेशा प्रोत्साहन देता रहता था। प्रकृति और सौंदर्य से चन्द्रगुप्त को बड़ा प्रेम था। वह एक अत्यन्त भव्य राजप्रासाद में निवास करता थाजो सुन्दरता तथा रमणीयता में ईरान के सम्राटों के भी राजप्रासादों से कहीं अधिक सुन्दर था। राजभवन के चारों ओर भव्य उपवन तथा सरोवर बने हुए थे। इन उपवनों में विभिन्न प्रकार के वृक्ष लगे हुए थे। राजभवन के आंगन में मयूर विचर रहते थे। तालाब सुन्दर तथा भिन्न-भिन्न प्रकार की मछलियों से पूर्ण रहते थे। मेगस्थनीज भी उसके राजभवन तथा ठाट-बाट को देखकर स्तम्भित रह गया था। उसके दरबार में सब प्रकार की ऐश्वर्यपूर्ण वस्तुएँ प्राप्त थीं। सोने चाँदी के कलशहीरे-जवाहरातों से जड़ी हुई मेजेंसिंहासन और स्तम्भों को देखकर दर्शकों की आँखें चकाचौंध हो जाती थीं। इन सब बातों से यह सिद्ध हो जाता है कि चन्द्रगुप्त को प्रकृति और सुन्दरता से अत्यन्त प्रेम था। चन्द्रगुप्त एक उच्च कोटि का शासक भी था। उसकी स्थापित शासन व्यवस्था इतनी सुव्यवस्थित और उच्च कोटि की थी कि वह उसके बाद शताब्दियों तक भारतीय नरेशों और सम्राटों के लिए अनुकरणीय बनी रही। विजेता बाबर ने भी मुगल साम्राज्य की स्थापना की थीकिन्तु शासन प्रबन्ध के विषय में उसने कुछ नहीं किया। 


  • न्द्रगुप्त मौर्य ने एक महान विजेता की भांति केवल विस्तृत साम्राज्य की स्थापना ही न की थी वरन् उसने अपने विशाल साम्राज्य में शान्ति एवं सुव्यवस्था भी स्थापित करने के लिए सुसंगठित शासन प्रबन्ध की भी व्यवस्था की थी। उसने भारतीय सम्राटों को इस क्षेत्र में प्रेरणा दी। बिन्दुसार के नगण्य शासन तथा अशोक के धार्मिक राज्य के समय में मौर्य साम्राज्य जितनी शीघ्रता से बना था उतनी ही शीघ्रता से समाप्त हो गया होता, पर यह चन्द्रगुप्त मौर्य के शासन प्रबन्ध की ही विशेषता थी कि वह इतने दिनों तक चल सका। जिस सेना का संगठन चन्द्रगुप्त मौर्य ने किया था वह अशोक के धर्मपरायण युग में अस्त्र-शस्त्र से विदा लेने के पश्चात् भी इतनी सशक्त एवं भयंकर थी कि किसी भी आंतरिक या बाह्य उथल-पुथल द्वारा साम्राज्य की शांति भंग न हो सकी। चन्द्रगुप्त के शासन प्रबन्ध के अन्तर्गत दण्डविधान में कठोरता का समावेश प्राप्त होता है और इसी आधार पर जस्टिन महोदय ने उसे निर्दयी एवं क्रूर कहा है किन्तु मुद्राराक्षस में चन्द्रगुप्त को अवतरित देवता घोषित किया गया है जो सुख तथा समृद्धि प्रदान करने के लिए स्वर्ग से उतरा है। मेगस्थनीज ने भी चन्द्रगुप्त के शासन प्रबन्ध की भूरि-भूरि प्रशंसा की है।

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