भोज्य पदार्थों की पोषणीय गुणवत्ता सुधारना |प्रबलीकरण सम्पुष्टीकरण सम्पूरकता स्थानापन्न | Food Quality in Hindi

भोज्य पदार्थों की पोषणीय गुणवत्ता सुधारना

भोज्य पदार्थों की पोषणीय गुणवत्ता सुधारना |प्रबलीकरण सम्पुष्टीकरण सम्पूरकता स्थानापन्न | Food Quality in Hindi
 

भोज्य पदार्थों की पोषणीय गुणवत्ता

 

मानव शरीर के पोषण का स्तर भोजन द्वारा प्राप्त पौष्टिक तत्वों पर निर्भर करता है। जिस प्रकार का भोजन ग्रहण किया जाता है उसी के आधार पर उत्तम पोषित, निम्न पोषित या अत्यधिक पोषित शरीर होता है। यदि भोजन में पौष्टिक तत्व उचित मात्रा में उपस्थित हैं तो उस भोजन को ग्रहण करने वाला शरीर उत्तम पोषित होता है। इस तरह से भोजन का पोषक तत्वों से परिपूर्ण होना भी आवश्यक होता है अन्यथा किसी पोषणीय बीमारी से ग्रसित होने की सम्भावना बढ़ जाती है, जैसे विटामिन-सी की कमी से स्कर्वी, विटामिन ए की कमी से रतौंधी आदि ।

 

हमारे देश की अधिकतर जनता का आहार, प्रधान खाद्य पदार्थ जैसे अनाज व दालों पर केन्द्रित है। इसके कारण शरीर को पूर्ण पोषण प्राप्त नहीं हो पाता तथा पोषक तत्वों की कमी से शरीर कमजोर पड़ जाता है एवं आसानी से बीमारियों से ग्रसित हो जाता है। इस परेशानी के निवारण के लिए हमें अपने आहार में सभी प्रकार के खाद्य वर्गों (जैसे अनाज, दाल, दूध सब्जी व फल) को शामिल करना चाहिए। फल और सब्जी सूक्ष्म पोषक तत्वों के उत्तम स्रोत होते हैं। दैनिक आहार में इनकी कमी से हमें सूक्ष्म पोषक तत्व सम्बन्धी कुपोषण हो सकता है।

 

प्रधान खाद्य पदार्थों व मसालों में सूक्ष्म पोषक तत्वों के जुड़ने से बड़े पैमाने पर फैली हुई बीमारियों की रोकथाम की जा सकती है। किसी विशिष्ट जनसंख्या या आबादी में फैली हुई पोषक तत्वों की कमी को दूर करने के लिए किसी भोज्य पदार्थ में एक या अधिक (चाहे भोजन में सामान्य रूप में निहित हो या नहीं) सूक्ष्म तत्वों को जोड़ सकते हैं। सूक्ष्म पोषक तत्व सम्बन्धी कुपोषण से बचने के लिए हमें जनता को जागरुक करने तथा उन्हें खाद्य पदार्थों में आवश्यक पोषक तत्वों को जोड़ने के सम्बन्ध में जानकारी देना आवश्यक होता है।

 

भोज्य पदार्थों में पोषणीय गुणवत्ता को सुधारने के उपाय

 

प्रबलीकरण (Fortification): 

इस प्रक्रिया के अन्तर्गत भोज्य पदार्थों में किसी ऐसे पोषक तत्व को मिलाया जाता है जो उसमें प्राकृतिक रूप से अनुपस्थित होता है।

 

सम्पुष्टीकरण (Enrichment) :

इस प्रक्रिया के अन्तर्गत भोज्य पदार्थों में ऐसे पोषक तत्व या तत्वों को मिलाया जाता है जो उसमें सीमित मात्रा में होते हैं।

 

सम्पूरकता (Supplementation ) : 

भोजन का मिश्रित उपयोग कर पौष्टिकता को बढ़ाना होता है।

 

स्थानापन्न (Substitution) : 

पोषक तत्व प्रदान करने वाले भोज्य पदार्थ के स्थान पर दूसरे भोज्य पदार्थ को प्रयोग में लाना स्थानापन्न कहलाता है।

 

1 खाद्य का प्रबलीकरण (Fortification of food)

 

प्रबलीकरण के लिए खाद्य पदार्थों में अनुपस्थित पोषक तत्वों को सम्मिलित किया जाता है। खाद्य प्रबलीकरण सूक्ष्म पोषक तत्वों को (खनिज लवण व विटामिन ) जोड़ने की एक सार्वजनिक स्वास्थ्य नीति है जिसके माध्यम से न्यूनतम आहार आवश्यकताओं को सुनिश्चित किया जा सकता है। प्रधा खाद्य पदार्थों पर आधारित सरल आहार में थोड़ी विभिन्नता के साथ अक्सर कुछ पोषक तत्वों की कमी रह जाती है क्योंकि या तो वो क्षेत्र की मिट्टी में पर्याप्त मात्रा में मौजूद नहीं होते हैं या आहार में

 

उनकी अपर्याप्त मात्रा होती है। उदाहरण के लिए नमक में आयोडीन जोड़ना खाद्य प्रबलीकरण का विशिष्ट उदाहरण है। व्यापक परीक्षण से पता चला है कि आयोडीन वाले नमक के उपयोग से आयोडीन की अल्पता की स्थिति में सुधार लाने और आयोडीन अल्पता विकार की व्यापकता कम करने में अत्यधिक सफलता मिली है।

 

विभिन्न भोज्य पदार्थों का प्रबलीकरण (Fortification of different food products)

 

आटे का प्रबलीकरण (Fortification of Flour): 

आटे की मिलों में आटे को विटामिन व खनिज लवणों द्वारा प्रबलीकृत किया जाता है।

 

ब्रेड का प्रबलीकरण (Fortification of Bread ) : 

ब्रेड को प्रबलीकृत करने के लिए आजकल इसमें थायमिन, नायसिन, राइबोफ्लेविन, विटामिन डी, लौह लवण तथा कैल्शियम मिलाए जाते हैं।

 

चावलों का प्रबलीकरण (Fortification of Rice) : 

इसमें चावल में थायमिन, नायसिन तथा लौह लवण को पादप प्रजनन द्वारा बढ़ा दिया जाता है। इसके प्रयोग से बी विटामिन समूह बढ़ाया जा सकता है एवं बेरी-बेरी नामक रोग को समाप्त किया जा सकता है।

 

मैक्रोनी पदार्थों का प्रबलीकरण (Fortification of Macaroni Products):

मैक्रोनी पदार्थों को पकाते समय उपयोग में लाया जाने वाला पानी सामान्यतः फेंक दिया जाता है। इस कारण इन पदार्थों से अधिक मात्रा में विटामिन व खनिज लवणों की हानि हो जाती है। इस कारणवश मैक्रोनी पदार्थों में विटामिन व खनिज लवणों की अतिरिक्त मात्रा मिलाई जाती है।

 

अनाजों से निर्मित नाश्ते के पदार्थों का प्रबलीकरण (Fortification of Breakfast Cereals):

अनाजों द्वारा नाश्ते के पदार्थ निर्मित करते समय कई विटामिन नष्ट हो जाते हैं। नष्ट हुए पोषक तत्वों की पूर्ति के लिए इन पदार्थों को प्रबलीकृत किया जाता है।

 

दूध तथा दूध से बने पदार्थों का प्रबलीकरण (Fortification of milk and milk products) : 

गाय के दूध में विटामिन डी, विटामिन सी, फोलिक एसिड तथा लौह लवण की मात्रा कम होती है। सपरेटा दूध (skim milk) तथा सपरेटा दूध पाउडर (skim milk powder) दोनों में ही विटामिन ए तथा विटामिन डी की आवश्यक मात्रा को मिलाकर इसे प्रबलीकृत कर इन्हें पौष्टिक बनाया जाता है।

 

वनस्पति घी का प्रबलीकरण (Fortification of Hydrogenated Fat): 

भारत में घी (शुद्ध किये हुए मक्खन की वसा) के स्थान पर वनस्पति घी का बहुत प्रयोग किया जाता है। इसके लिए वनस्पति घी को विटामिन ए व डी द्वारा प्रबलीकृत किया जाता है।

 

2 सम्पुष्टीकरण (Enrichment)

 

इस प्रक्रिया के द्वारा उत्पादन तथा प्रसंस्करण (Processing) के दौरान, खाद्य पदार्थों में स्वाभाविक रूप से विद्यमान पोषक तत्वों को पुनः खाद्य पदार्थों में मिलाया जाता है क्योंकि प्रसंस्करण के समय कुछ पोषक तत्व नष्ट हो जाते हैं। जैसे- आटे में लाइसिन आवश्यक अमीनो अम्ल कम हो जाता है। डबलरोटी में लाइसीन की अतिरिक्त मात्रा मिलाकर इस कमी को पूरा किया जाता है।

 

3 स्थानापन्न (Sustitution)

 

स्थानापन्न से अभिप्राय है कि एक पौष्टिक तत्व प्रदान करने वाले भोज्य पदार्थ के स्थान पर दूसरे भोज्य पदार्थ को प्रयोग में लाना। जब किसी प्राकृतिक भोज्य पदार्थ के दूसरे रुप में स्थनापन्न किया जाता है तब इस भोज्य पदार्थ के दूसरे रूप में कुछ आवश्यक पोषक तत्वों को मिला दिया जाता है, जिससे उसका पोषण मूल्य प्राकृतिक भोज्य पदार्थ के पोषण मूल्य के बराबर हो सके। उदाहरण:

 

  • दूध के स्थान पर मठ्ठा व क्रीम रहित दूध का प्रयोग करके भी उत्तम कैल्शियम प्राप्त किया जा सकता है। 

  • माँस प्रोटीन के स्थान पर दाल प्रोटीन का प्रयोग करके प्रोटीन की कमी को पूरा किया जा सकता है। 
  • विटामिन ए प्राप्त करने के लिए अण्डे के स्थान पर गाजर का प्रयोग किया जा सकता है।


3 सम्पूरकता और सम्पूरक आहार (Supplementation and Supplementary Food Products)

 

दैनिक आहार में उपयोग किये जाने वाले कुछ भोज्य पदार्थों में पौष्टिक तत्व बहुतायत में पाये जा हैं, व कुछ पोषक तत्व न्यून मात्रा में होते हैं। जिसके परिणामस्वरूप यदि हम एक ही प्रकार के आहार का उपयोग करें तो कुछ समय बाद इसका कुप्रभाव हमारे शरीर पर दिखाई देता है जैसे- प्रतिदिन ज्वार तथा मक्का खाने वालों को पैलाग्रा रोग तथा मिल द्वारा स्वच्छ किये गये चावलों का उपयोग करने वाले लोगों को बी समूह विटामिन की कमी हो जाती है। अतः इन रोगों को दूर रखने के लिए यह जरुरी है कि अनाजों का मिश्रित उपयोग किया जाये। दो भोज्य पदार्थों के मिश्रित उपयोग से एक भोज्य पदार्थ की कमी को दूसरे से पूरा करके आहार की पौष्टिकता को बढ़ाया जा सकता है। जैसे अनाजों में लायसिन आवश्यक अमीनो अम्ल की कमी पायी जाती है और दालों में मिथियोनिन आवश्यक अमीनो अम्ल की कमी होती है जबकि मिथियोनिन अनाजों में तथा लायसिन दालों में प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इस प्रकार यदि हम अपने आहार में केवल अनाज या केवल दालों का उपयोग करें तो अनाज एवं दालों के प्रोटीन की उपयोगिता कम रह जायेगी। ऐसी स्थिति में दालों तथा अनाजों के मिश्रण का उपयोग करके प्रोटीन की उपयोगिता को बढ़ाया जा सकता है जो हमारी शारीरिक प्रक्रिया के लिए लाभकारी होता है। अतः दाल व अनाज आपस में एक-दूसरे के सम्पूरक  हैं और इसी को सम्पूरकता (Supplementation) कहते हैं।


सम्पूरक भोज्य पदार्थों के रुप में कुछ विशेष भोज्य पदार्थ

 

भारत में हुए अध्ययनों से पता चला है कि मूंगफली के दूध से निर्मित पदार्थ बालकों के आहार के लिए अच्छे पूरक होते हैं। भैंस के दूध, द्रव्य, ग्लूकोज़ और मूंगफली से अलग किये गये प्रोटीन पर आधारित संसाधित वनस्पति दूध का उत्पादन केन्द्रीय आहार तकनीकी अनुसन्धान केन्द्र Central Food Technology Institute (CFTRI), मैसूर में किया जा चुका है। उनके अनुसार संस (processed) दूध एक प्रभावकारी सम्पूरक पदार्थ है और स्तनपान छुड़ाये हुए शिशुओं के विकास में विशेष रुप से सहायक होता है।

 

शिशुओं के लिए भोज्य पदार्थ (Infant foods): 

शिशुओं के लिए भोज्य पदार्थ के निर्माण की आधुनिक विधियाँ निम्न पर आधारित हैं:

 

  • पूर्णत: सोयाबीन
  • सोयाबीन + मूंगफली का प्रोटीन 
  • मूंगफली का प्रोटीन + मलाई निकले हुए दूध का पाउडर

 

ये विधियाँ भारतीय विशेषज्ञों द्वारा विकसित की गई हैं। शिशुओं में इनके पोषणीय प्रयोगों से चलता है कि ये भोज्य पदार्थ शिशुओं का अच्छा विकास करने में सहायक होते हैं। मूंगफली से अलग किये गये प्रोटीन को भैंस के दूध में मिलाकर संसाधित वनस्पति दूध बनाकर भी उपयोग किया जा सकता है। इस प्रकार के पदार्थों का व्यापक पैमाने पर निर्माण किये जाने से दूध की कमी और शिशुओं में होने वाले कुपोषण को समाप्त करने में सहायता होगी।

 

प्रोटीन से परिपूर्ण अनाजयुक्त भोज्य पदार्थ (Protein Enriched Cereal Foods): 

  • स्तनपान छुड़ाये गये शिशुओं और पूर्वशालेय बालकों के आहार के लिए कई प्रकार के प्रोटीनयुक्त भोज्य पदार्थों का निर्माण किया गया है, जो पूरक पदार्थों के रुप में उपयुक्त होते हैं। ये सभी भोज्य पदार्थ विटामिन एवं खनिज पदार्थों से युक्त होते हैं। स्तनपान छुड़ाये गये शिशुओं तथा पूर्व शालेय बालकों को इन भोज्य पदार्थों की पर्याप्त मात्रा देने से इनके सामान्य आहार में 20 ग्राम अतिरिक्त प्रोटीन प्रतिदिन प्राप्त होती है। यह आहारीय कमी की पूर्ति तथा बालकों के अच्छे विकास में भी सहायक होते हैं।

 

अधिक प्रोटीनयुक्त भोज्य पदार्थ (High Protein Foods) :

  • विटामिन और खनिज पदार्थों से परिपूर्ण तिलहन एवं मछली को आटे में मिश्रित कर कई प्रकार के अधिक प्रोटीनयुक्त भोज्य पदार्थ तैयार किये जाते हैं। शालेय बालकों को प्रतिदिन पूरक पदार्थ के रुप में इन आहारों की करीब 40-50 ग्राम मात्रा दी जाती है, जिससे करीब 20 ग्राम प्रोटीन, कैल्शियम, विटामिन ए, राइबोफ्लेविन तथा विटामिन डी की पर्याप्त मात्रा मिलती है। इनसे बालकों की वृद्धि तथा पोषणीय अवस्था में काफी सुधार होता है। इन भोज्य पदार्थों का उपयोग गर्भवती और धात्री माताओं के लिए तथा पूर्व शालेय बालकों में होने वाले प्रोटीन कुपोषण के उपचार में पूरक पदार्थ के रुप में भी किया जाता है।

 

भारतीय बहुउद्देशीय भोज्य पदार्थ (Indian Multipurpose Food M.P.F.): 

  • यह पदार्थ C.F.T.R.I. मैसूर के द्वारा निर्मित किया गया है। इसमें विटामिन ए, विटामिन डी, थायमिन, राइबोफ्लेविन एवं कैल्शियम कार्बोनेट से परिपूर्ण कम वसायुक्त मूँगफली और चने के आटे का मिश्रण 75:25 के अनुपात में होता है। इसमें करीब 42 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इस आहार की 25 ग्राम मात्रा प्रतिदिन लेने के लगभग 10 ग्राम प्रोटीन और विटामिन ए, कैल्शियम एवं राइबोफ्लेविन की दैनिक आवश्यकता की आधी मात्रा प्राप्त होती है। पूर्व शालेय बालकों में उनके सामान्य आहार के साथ इस आहार को पूरक रुप में देने से उनके विकास और पोषणीय अवस्था में काफी महत्वपूर्ण सुधार देखने को मिलता है।

 

माल्टयुक्त भोज्य पदार्थ ( Malt Food) :

 C. FT.R.I. मैसूर में विकसित किये गये इस भूने हुए पदार्थ में अनाज के माल्ट (40 भाग), कम वसायुक्त मूंगफली के आटे (40 भाग), चने के आटे (20 भाग) का मिश्रण विटामिन और कैल्शियम लवणों से युक्त होता है। इसमें करीब 28 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इसकी करीब 40 ग्राम दैनिक मात्रा पूरक रुप में देने से करीब 10 ग्राम प्रोटीन और विटामिन ए, कैल्शियम तथा राइबोफ्लेविन की दैनिक आवश्यकता की आधी मात्रा प्राप्त होती है। पूर्वशालेय बालकों के आहार में इसे पूरक रुप में देने से उनके शारीरिक विकास की गति तथा पोषणीय अवस्था में काफी सुधार देखने को मिलता है।

 

बाल-आहार (Bal-Ahar) : 

C. F. T. R. I. मैसूर द्वारा विकसित इस आहार में विटामिन और कैल्शियम से परिपूर्ण गेहूँ के आटे (70 भाग), मूँगफली के आटे (20 भाग) और भुने हुए चने के आटे (10 भाग) का मिश्रण होता है। इससे करीब 20 प्रतिशत प्रोटीन मिलता है। इसकी 50 ग्राम मात्रा आहार के पूरक रुप में देने से करीब 10 ग्राम प्रोटीन और विटामिन ए, कैल्शियम तथा राइबोफ्लेविन की पर्याप्त मात्रा प्राप्त होती है। इस प्रकार यह पूर्वशालेय बालकों के आहार में होने वाली कमी को पूरा करने में सहायक है।

 

सम्पूरक भोज्य पदार्थ (Supplementary Food Product):

भूने हुए गेहूँ के आटे (30 भाग), हरे चने के आटे (20 भाग), मूंगफली (8 भाग) और शक्कर या गुड़ (20 भाग) के मिश्रण पर आधारित सम्पूरक भोज्य पदार्थ नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ न्यूट्रीशन, हैदराबाद द्वारा तैयार किया गया है। इस आहार में करीब 12.5 प्रतिशत प्रोटीन होता है। इस आहार की 80 ग्राम मात्रा प्रतिदिन पूरक रुप से देने पर पूर्व शालेय बालकों के विकास की गति में काफी महत्वपूर्ण सुधार देखने को मिलता है।


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