भारत की संवेदनशीलता का रेखाचित्र |India's Sensitivity Sketch

भारत की संवेदनशीलता का रेखाचित्र (India's Sensitivity Sketch)

 

भारत की संवेदनशीलता का रेखाचित्र |India's Sensitivity Sketch

भारत की संवेदनशीलता का रेखाचित्र

भारत, अपनी प्राकृतिक भौगोलिक स्थिति तथा जलवायु संबंधी स्थितियों के कारण विश्व के सर्वाधिक आपदा अभिमुख क्षेत्रों में से एक है। यह बंगाल की खाड़ी एवं अरब सागर दोनों से उठने वाले हवाई तूफानों की चपेट में है। भारी वर्षा से आई बाढ़ें तथा शुष्क एवं अर्ध शुष्क क्षेत्रों में सूखा भी इस उपमहाद्वीप के प्रतिकूल वातावरण के निर्माण में सहायक हैं। देश का पश्चिम क्षेत्र, जिसका प्रतिनिधित्व थार रेगिस्तान करता है तथा मध्य क्षेत्र, जिसका प्रतिनिधित्व दक्कन पठार (Deccan Plateau) करता है, वर्षा की अधिकतम कमी के कारण निरंतर सूखे का सामना करते हैं। भारत सन् 2008 के भारतीय महासागर की सुनामी के बाद से उत्तरोत्तर सुनामी के लिए संवेदनशील रहा है। भारत की 7600 कि.मी. लम्बी तटीय रेखा है जिसके कारण चक्रवातों से बारंबार खतरा होता है।

 

भारत को 3 मुख्य भूगर्भीय क्षेत्रों में विभाजित किया गया है, हिमालय, जिन्हें अतिरिक्त प्रायद्वीप (Extra-Peninsula), सिंधु गंगा मैदानी क्षेत्र (Indo-Gangetic Plains) तथा प्रायद्वीप (Peninsula) के नाम से भी जाना जाता है। हिमालयी क्षेत्र को दो तरीकों से उप-विभाजित किया जाता है। पद्धति I में हिमालयों को पश्चिम से पूर्व तक के 4 क्षेत्रों में विभाजित किया गया हैं। वे हैं: पंजाब, हिमालय- सतलुज और सिंधु नदियों के बीच का क्षेत्र, कुमाऊँ हिमालय-सतलुज तथा काली नदियों के बीच का क्षेत्र, नेपाल हिमालय काली तथा तीस्ता नदियों के बीच का क्षेत्र तथा असम हिमालय- तीस्ता तथा ब्रह्मपुत्र नदियों के बीच का  क्षेत्र पद्धति II के अनुसार हिमालय को केवल तीन क्षेत्रों में विभाजित किया गया है। ये हैं नेपाल हिमालय जो मध्य- हिमालय का भाग है, इसके पश्चिम तथा पूर्व में पहाड़ी क्षेत्र वाला पश्चिमी तथा पूर्वी हिमालय । प्रत्येक क्षेत्र के अपने आपदीय जोखिम हैं। क्षेत्र तथा जोखिम के अनुसार पठार वर्गीकरण की व्याख्या आने वाले अनुच्छेदों में की जाएगी।

 

1 हिमालयी क्षेत्र

 

  • हिन्दू पौराणिक कथाओं (Mythology) के अनुसार, हिमालय भगवान का घर हैं तथा इस प्रकार प्रति वर्ष, हजारों तीर्थ यात्री इस क्षेत्र में महत्वपूर्ण पवित्र स्थलों का भ्रमण करते हैं।

 

  • लेकिन उत्तर की युवा हिमालयी पहाड़ी परिधि (Young Himalayan Mountain Range ) अभी भी नव-विवर्तनिकी (Neo-tectonism) के केन्द्रीय (Focal) चिन्ह दर्शाता है। मानसून ऋतु में केन्द्रित उच्च वायुमण्डलीय शीघ्र गति ( High Atmospheric Precipitation) उच्च सापेक्ष राहत तथा बहुत अधिक विश्वसनीय (High Relative Relief and Highly Trusted), मुड़ा हुआ दोषयुक्त, परिवर्तित तथा बर्बाद चट्टानों सहित (Metamorphosed and Weathered Rocks). इस क्षेत्र को बहुत अधिक भूस्खलन तथा आकस्मिक बाढोन्मुखी बनाती हैं। भूस्खलन भूक्षेत्र में आम घटना है। माल्पा फिसलन (Malpa Slide, 1998), ऊखीमठ (Okhimat, 1998), उत्तरकाशी (Uttarkashi, 2003 तथा 2012), उत्तराखण्ड आकस्मिक बाढ़ (Uttrakhand Flash Floods, 2013) चरम घटनाओं का प्रतिनिधित्व करती है। संपूर्ण हिमालयी क्षेत्र भूकम्पीय दृष्टि से काफी अधिक सक्रिय है तथा भूकम्पीय जोखिम के मानचित्र के पाँचवें और चौथे जोन में रखा गया है। हिमालयी क्षेत्र में भूकम्पीय जोखिम बहुत अधिक हैं, इसका अर्थ यह नहीं है कि अन्य क्षेत्र भूकम्पों के खतरों से सुरक्षित हैं। देश का कोई भी भाग भूकम्पीय विपदा मानचित्र के सबसे कम प्रभावित जोन में नहीं पड़ता है। उत्तरकाशी भूकम्प (1991), किलारी भूकम्प (1993), कोयाना भूकम्प (1997), चमोली भूकम्प (1999) भुज का भूकम्प (2001), जम्मू और कश्मीर भूकम्प (2005), सिक्किम भूकम्प (2011) हाल के समय के हैं।

 

  • पहाड़ी क्षेत्र में, 3500 मीटर से ऊपर स्थित क्षेत्र में वनस्पतियाँ नहीं हैं तथा वह क्षेत्र साधारणतः बर्फ से बाधित हैं। इन क्षेत्रों को अधिक ऊँचाई वाला क्षेत्र माना जाता है। मौसम बहुत अप्रत्याशित होगा। वायुमंडल में ऑक्सीजन की कमी होगी। खड़ी पहाड़ी चोटियाँ, स्थाई हिमनदी हिमोढ़ तथा ठंडी जल झीलें सामान्य हैं। गर्मियों में बर्फ तथा हिमनदी के पिघलने के कारण, झीलों तथा नदियों में पानी का बहाव बढ़ जाता है, जिसकी वजह से बाढ़ आ सकती हैं। 3500 फुट से नीचे के पहाड़ी क्षेत्र को भौगोलिक तथा जलवायु सम्बन्धी दशाओं पर निर्भर होते हुए भारी वर्षा, बादल फटना, आकस्मिक बाढ़, भूस्खलन तथा मिट्टी के बहाव का खतरा होता है। इस क्षेत्र में प्रमुख प्राकृतिक जोखिम हैं: भूकम्प, भूस्खलन, आकस्मिक बाढ़ (Flash_C दावानल आग, मिट्टी क्षरण (Soil Erosion), हिमपात तथा आकस्मिक बाढ़ (Flash Floods)

 

2 गंगा का मैदानी क्षेत्र

  • हिन्द - गंगा का मैदानी क्षेत्र (The Gangetic Plain) जो घनी आबादी वाला क्षेत्र है तथा हिमालयी नदियों द्वारा सुखाया गया क्षेत्र है उसे बाढ़ तथा सूखा दोनों से खतरा रहता है। हिन्द - गंगा - ब्रह्मपुत्र के मैदानों में बाढ़ प्रति वर्ष की विशेषता है। प्रति वर्ष औसतन सैकड़ों लोगों की मृत्यु हो जाती हैं, लाखों बेघर हो जाते हैं, तथा अनेक हेक्टेयर जमीन पर फसलें बर्बाद हो जाती हैं। पूर्ण वर्षा का लगभग 75 प्रतिशत लघु मानसून ऋतु में होता है। (जून-सितम्बर) 4 करोड़ हेक्टेयर या भारत-भूमि का 12 प्रतिशत टुकड़ा बाढ़-अभिमुख है। बाढ कम कम 5 राज्यों में निरंतर घटने वाली घटना है आसाम, बिहार, ओड़ीसा, उत्तर प्रदेश तथा पश्चिमी बंगाल। दूसरे चरण पर लगभग 5 करोड़ लोग प्रति वर्ष सूखे से प्रभावित होते हैं। वर्षा आधारित क्षेत्रों के लगभग 9 करोड़ हेक्टेयर के लगभग 4 करोड़ हेक्टेयर सूखा ग्रस्त या सूखे के खतरे में रहते है . 

 

शुष्क तथा अर्ध-शुष्क क्षेत्रों (Arid and Semi-arid Regions)

  • शुष्क तथा अर्ध-शुष्क क्षेत्रों (Arid and Semi-arid Regions) की जलवायु विशेषता कृषि उत्पादन को बनाए रखने के लिए पर्याप्त वर्षा के अभाव के कारण होता है। भारत के अंदर जमीन का लगभग 53.4 प्रतिशत क्षेत्र शुष्क तथा अर्ध शुष्क क्षेत्र है .  

  • यहाँ वर्षा नियमित रूप से नहीं होती है तथा प्रायः लघु अवधि के भारी चक्रवात में आती है जिसका परिणाम भूजल को पुनःपूर्ति करने की अपेक्षा तेज या अधिक बहाव होता है। सुरक्षात्मक वनस्पति क्षेत्र अपर्याप्त या बहुत कम है तथा वर्ष के अधिकतर भाग के लिए बहुत कम नहीं होती है। इन क्षेत्रों में खेती अधिक उपजाऊ परन्तु सीमित भूमि तक सीमित होती हैं, जबकि पशुओं की बड़ी संख्या देशी वनस्पति पर निर्भर करती है। शुष्क तथा अर्ध शुष्क क्षेत्रों में फसल उगाने के लिए सतही या भूजल से सिंचाई अपरिहार्य है। वर्षा का स्वरूप लगभग देश के अलग-अलग जलवायु वातावरण को परिलक्षित करता है जोकि उत्तरपूर्व में उमस से लेकर (वर्ष में लगभग 180 दिन वर्षा) राजस्थान के थार रेगिस्तान में शुष्क क्षेत्र तक अलग हैं (वर्ष में लगभग 20 दिन वर्षा)। 

 

दक्कन के पठार

 

  • दक्कन के पठार (Deccan Plateau) मध्य भारत में स्थित प्रायद्वीपीय पठार हैं, जिसमें आंध्र प्रदेश, महाराष्ट्र तथा कर्नाटक राज्यों के कुछ भाग सम्मिलित हैं। दक्कन के पठार का चित्रण या सीमांकन पश्चिम में पश्चिमी घाट, दक्षिण में नीलगिरी की पहाड़ियाँ, पूर्व में पूर्वी घाट तथा उत्तर में अरावली तथा छोटा नागपुर की पहाड़ियों द्वारा किया गया है। दक्कन के पठार पानी की भारी कमी से जूझ रहे हैं यद्यपि इस क्षेत्र में नर्मदा, तापी, महानदी, गोदावरी, कृष्णा तथा कावेरी नदियाँ बहती हैं। इन नदियों का अधिकतर रास्ता काफी निश्चित / परिभाषित स्थिर है इनके पास डेल्टा क्षेत्र को छोड़कर बाढ़ के अवशेषों को लेकर जाने के लिए अपने प्राकृतिक किनारों के अंतर्गत पर्याप्त क्षमता है। पूर्वी तट पर महत्वपूर्ण नदियों के निचले भागों पर पाट बना दिए गए हैं, इस प्रकार बहुत हद तक बाढ़ की समस्या दूर हुई है।

 

पश्चिमी एवं पूर्वी घाट

 

  • तटीय रेखा के समानान्तर चलने वाले पश्चिमी एवं पूर्वी घाट (Western and Eastern Ghats) वर्षा छाया क्षेत्रों में भूस्खलन तथा सूखे की समस्या का सामना करते हैं। पश्चिमी घाट उत्तर में सतपुड़ा पर्वत माला क्षेत्र (Satpura Range) से लेकर महाराष्ट्र, गोवा, कर्नाटक, केरल तथा तमिलनाडु से होकर दक्षिण तक फैले हैं। पश्चिमी घाट विश्व में 33 चिन्हित पारिस्थितिकीय संवेदनशील क्षेत्रों (Ecologically Sensitive Zones) में से एक है। पश्चिमी घाट तथा नीलगिरि भूगर्भीय रूप से स्थिर हैं परन्तु अभी भी वर्षा ऋतु में भूस्खलन अभिमुख है। जनसंख्या दबाव (Population Pressure), गैर-कानूनी खनन (illegal mining). (Curies) वन कटाव (Deforestation) से उत्पन्न वातावरणीय अद्योगति / अपकर्ष (Environmental Degradation) ने दोनों घाटों को प्राकृतिक आपदाओं से बहुत अधिक संवेदनशील बना दिया है। पूर्वी घाट पश्चिमी घाटों की तरह एक अविरल माला श्रृंखला (Continuous Range of Scrap Lands) का नहीं है तथा यह खंड (Scrap) भूमि लगभग दिया गया है (Hills of Circumdenu dation)। केवल एक मात्र सघन पहाड़ी क्षेत्र ओड़िसा में पाया जाता है। महानदी, गोदावरी तथा कृष्णा ने पूर्वी घाटों में खाई काट दी है तथा इसकी निरंतरता को पूर्णतः तोड़ दिया गया है। पहाड़ पश्चिमी घाट की अपेक्षा समुद्र से काफी दूर हैं। पर्वतमालाएँ बंगाल की खाड़ी के समानान्तर हैं। दक्कन के पठार इस पर्वतमाला के पश्चिम में स्थित हैं, पूर्वी घाट तथा पश्चिमी घाट के बीच में एक तटीय मैदान, कोरोमंडल तटीय क्षेत्र सहित, पूर्वी घाट तथा बंगाल की खाड़ी के बीच में स्थित है। पूर्वी घाट इतने ऊँचे नहीं हैं जितने पश्चिमी घाट ऊँचे हैं। पूर्वी घाट की संरचनाओं में धमाके के साथ पतन (Thrusts) तथा नतिलम्ब सर्पण अंश (Strike-slip Faults) शामिल हैं।

 

  • भारतीय उपमहाद्वीप विश्व में सबसे बुरी तरह से प्रभावित क्षेत्र है। 7500 कि.मी. लम्बी तटीय रेखा (Coastal Line) वाला उपमहाद्वीप विश्व के उष्ण चक्रवात (Tropical Cyclones) के लगभग 10 प्रतिशत के लिए खुला है। इनमें से अधिकतर का आरंभिक जन्म या रचना बंगाल की खाड़ी में होती है तथा भारत के पूर्वी तट से टकराते हैं । औसतन पाँच से छह उष्ण चक्रवात प्रति वर्ष बनते हैं जिनमें से दो या तीन गंभीर हो सकते हैं। अधिकतर चक्रवात अरब सागर की अपेक्षा बंगाल की खाड़ी में घटित होते हैं तथा इनका अनुपात लगभग 4 : 1 का है। चक्रवात दोनों तटों पर बार-बार घटित होते हैं (पश्चिमी तट अरब सागर तथा पूर्वी तट बंगाल की खाड़ी)। सन् 1877 से सन् 2005 के बीच भारत - के पश्चिमी एवं पूर्वी घाटों पर आए चक्रवातों की बारम्बारता का एक विश्लेषण दर्शाता है कि 283 चक्रवात (106 गहन) पूर्वी तट पर 50 कि.मी. चौड़ी पट्टी में घटित हुए। कम गहन चक्रवाती क्रिया पशि तट पर देखी गई है जहाँ उसी अवधि में 35 चक्रवात आए जिनमें से 20 गहन थे। उष्णकटिबंध चक्रवात मई-जून तथा अक्तूबर-नवम्बर के महीनों में आते हैं।

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