परिकल्पना का महत्व अथवा उद्देश्य अनुसंधान में परिकल्पना भूमिका| Importance or Purpose of Hypothesis in Hindi

 परिकल्पना का महत्व अथवा उद्देश्य 
(Importance or Purpose of Hypothesis)

परिकल्पना का महत्व अथवा उद्देश्य अनुसंधान में परिकल्पना भूमिका| Importance or Purpose of Hypothesis in Hindi


परिकल्पना का महत्व अथवा उद्देश्य

अनुसंधान में परिकल्पना की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती हैक्योंकि कई उद्देश्यों की पूर्ति उनके माध्यम से होती है। शोधकर्ताओं का मत है कि जहाँ संभव हो वहां अनुसंधान को परिकल्पना का सहारा लेना ही चाहिएपरन्तु इसका यह अर्थ नहीं है कि परिकल्पना के बिना कोई अनुसंधान हो ही नहीं सकता। 


कलिंगर के अनुसारपरिकल्पना के बिना भी अनुसंधान सम्भव है। उनके अनुसार विशेषकर अन्वेषणात्मक (exploratory) अनुसंधानों में परिकल्पना अनिवार्य नहीं होती. परन्तु आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में ऐसा संभव नहीं है। वान डालेन का मत है कि उन अनुसंधानों में जिनमें कार्य-कारण (cause-effect) संबंध की खोज लक्ष्य हैपरिकल्पना विशेष रूप से वांछनीय होती है। जहाँ किसी घटना की वर्तमान स्थिति (status) का वर्णन करना हो यहाँ उनकी उतनी आवश्यकता नहीं है, पर वहाँ भी शोधकर्ता को उपयुक्त अनुसंधान क्षेत्र खोजने हेतु परिकल्पना की आवश्यकता हो सकती है। वास्तव मेंअनुसंधान की प्रारंभिक अवस्था में जब तक समस्या अन्तिम रूप से निर्धारित नहीं हो जाती (exploratory stage) परिकल्पन की आवश्यकता नहीं होती हिलवे का भी कहना है कि ऐसे अनुसंधान में जिनका उद्देश्य केवल तथ्य संग्रहण हो, परिकल्पना का होना आवश्यक नहीं है। 


ऐतिहासिक अनुसंधान अनुसंधानविधि अनुसंधान (legal research), लेख्य अनुसंधान (documentary research), संदर्भ-ग्रंथ अनुसंधान bibliographical research) आदि में परिकल्पना के प्रयोग की संभावनाएँ नाममात्र की ही होती हैंतो भी कुछ परिस्थितियाँ इन अनुसंधानों में भी ऐसी हो सकती हैंजिनमें परिकल्पना का प्रयोग उपयोगी सिद्ध हो सकता है। इन क्षेत्रों के अध्ययन प्राय: आगमन तर्क प्रणाली पर आधारित होते हैं। अत: उनमें अनुसंधान का आरंभ परिकल्पना से नहीं होताबल्कि परिकल्पना से उनका अन्त होता है। अनुसंधान में परिकल्पना की अनिवार्यता को चुनौती बेकन ने दी थीजिनका कहना था कि परिकल्पना शोधकर्ता में अभ्यानति (hias) तथा पूर्वाग्रह ((prejudice) उत्पन्न कर देती हैजिससे शोध परिणामों की वस्तुनिष्ठता पढ़ जाती हैपरन्तु इस धारणा में कोई औचित्य प्रतीत नहीं होता। 


वास्तव में परिकल्पना का अनुसंधान में बहुत अधिक महत्त्व है। इसके कई लाभ हैं -

 

1. मौलि के अनुसारपरिकल्पना अनुसंधान की दिशा को स्पष्ट करती है। फलस्वरूप शोधकर्ता को इधर-उधर नहीं भटकना पड़ता। वह निरर्थक तथ्यों एवं जानकारी के संग्रह से बच जाता है। व्यर्थ के संदर्भ साहित्य का अध्ययन करने में भी उसका समय नष्ट नहीं हंताक्योंकि परिकल्पना यह निर्धारित कर देती है कि किस प्रकार के साक्ष्य संग्रह करने हैं तथा किन ग्रंथों में क्या पढ़ना है। इस प्रकार वान डालेन के शब्दों मेंपरिकल्पना शोध समस्या तथ समस्या समाधान के बीच उन दोनों को जोड़ने वाले एक सेतु का कार्य करती है। उससे समस्या की सीमाओं क सष्टीकरण होता है। क्या संगत है तथ क्या असंगत है. इसका निर्धारण भी परिकल्पना द्वारा हो जाता है। साथ ही जो तथ्य एवं साक्ष्य एकत्र किए जाते हैंउनका वर्गीकरण किस प्रकार किया जाना चाहिएयह भी स्पष्ट हो जाता है। परिकल्पनावार ही उनका गठन एवं विश्लेषण किया जाना संभव हो जाता है। परिकल्पनाओं में जो चर निहित हैंकेवल उन्हीं के संबंध में जानकारी प्राप्त करना होता है। इस प्रकार शोधकर्ता का बहुत सा समयधन एवं शक्ति का अपव्यय बच जाता है। 

 

2. अनुसंधान परिकल्पनाओं द्वारा यह भी स्पष्ट हो जाता है कि किस प्रकार को अनुसंधान विधि अनुसंधान-आकल्प (research design) का प्रयोग किया जाएगा। परिकल्पना में जिस प्रकार के संबंध की कल्पना रखती है, उसके परीक्षण हेतु उसी के अनुरूप आकल्प का चयन करना होता है। शोध-सामग्री के संग्रह एवं विश्लेषण के बहुत से आकल्प जैसे केवल पश्च-परीक्षण पूर्व-पश्च- परीक्षणनियंत्रित समूह आकल्प उपलब्ध हैं। उनमें से कौन-सा सबसे अधिक उपयुक्त होता यह इस पर निर्भर करता है कि परिकल्पना क्या है। इसी प्रकार शोध-दरों के विश्लेषण की भी बहुत सी विधियाँ (प्राचलीय एवं अप्रचलीय) हैं। उनका चुनाव भी परिकल्पना पर निर्भर करता है। परिकल्पन यह भी निर्दिष्ट करती है कि शोध-सामग्री (data) किन व्यक्तियोंकिन स्थानों तथा किस प्रकार की मनोवैज्ञानिक परीक्षाओं के माध्यम से एकत्र की जाएगी। इस दृष्टिकोण से परिकल्पनाओं का अनुसंधान के क्षेत्र में बहुत अधिक महत्त्व है।

 

3. परिकल्पनाएँ उस परिप्रेक्ष्य (framework) को भी प्रस्तुत करती हैंजिसमें समस्या के समाधान स्वरूप निष्कर्ष की स्थापना करनी होती है। उदाहरण के लिएयदि बालकों के समस्यात्मक व्यवहारों के कारणों का अध्ययन करन हैतो कुछ परिकल्पित कारण तत्वों को चुनकर प्रत्येक के संबंध में (जैसे गृह-परिवेश बुद्धस्तर आत्मबोध आदि) अलग-अलग परिकल्पना स्थापित करके उनका बालकों के समस्यात्मक व्यवहारों के साथ जो संबंध हैउनका परीक्षण करेंगे तथा उन्हीं के परिप्रेक्ष्य में समस्यात्मक व्यवहारों की व्याख्या करेंगे। उनसे बाहर जाकर व्याख्या करने का प्रश्न ही नहीं उठता। अतः समस्या की वस्तुनिष्ठ रूप में व्याख्या करने में परिकल्पनाएँ बहुत सहायक होती हैं। अनुसंधान के परिणामों को सार्थक ढंग से प्रस्तुत करने में उनसे पर्याप्त सहायता मिलती है। उदाहरण जैसे किसी चित्र को देखने पर एक सम्पूर्ण दृश्य मस्तिष्क में उभरकर आता हैवैसे ही परिकल्पनाओं पर आधारित निष्कर्षों का सामूहिक रूप सामने आने पर समस्या का रूप भी निखरकर सामने आ जाता है।

 

4.प्रत्येक समस्या के अनेक पक्ष होते हैंजिनका अध्ययन आवश्यक एवं महत्त्वपूर्ण हो सकता हैपरन्तु सभी का अध्ययन एक साथ नहीं किया जा सकता किन पक्षों का अध्ययन किया जाएगा अथवा किया जा रहा हैपरिकल्पनाओं से स्पष्ट हो जाता है। इस प्रकार परिकल्पनाएँ वे मार्ग हैं जो यह निर्दिष्ट करते हैं कि कहाँ पहुँचना है। 

कलिंगर ने अनुसंधान की तुलना वैज्ञानिक क्रीडा (scientific game) से की है तथा कहा है कि शोधकर्ता खिलाड़ी की भाँति "पहले दाँव लगाता और फिर पासे फेंकता है। पहले पासे फेंके और फिर दाँव लगाए ऐसा नहीं होता। शोध-सामग्री का संग्रह हो चुकने के पश्चात् दाँव नहीं बदला जा सकता।"

 

5. परिकल्पना ज्ञान के सृजन का अन्तिम बिन्दु नहीं होती। एक परिकल्पना का परीक्षण दूसरी को जन्म देता हैदूसरी का परीक्षण तीसरी को। सागर की लहरों की भाँति वे एक-दूसरे को आगे ठेलती चलती हैंजिसके फलस्वरूप ज्ञान सागर का विस्तार होता रहता है। प्रत्येक अनुसंधान की परिकल्पनाओं का परीक्षण आगामी परीक्षणापेक्षी परिकल्पनाओं की ओर संकेत करता है।

 

परिकल्पना का महत्व अथवा उद्देश्य का सारांश (Summary)

 

  • परिकल्पना अंग्रेजी भाषा के शब्द 'हाइपोथिसिस' (hypothesis) का हिन्दी रूपांतर हैजिसका अर्थ है ऐसी मान्यता (thesis ) जो अभी अपुष्ट (hypo) है।
  • हौडनेट के शब्दों में परिकल्पनाएँ शोधकर्ता की आँखें होती हैं जिनके द्वारा वह समस्यागत अव्यवस्था (अव्यवस्थित तथ्यों) में झाँककर देखता है तथा उनमें समस्या का समाधान खोजता है। 
  • अनुसंधान भी समस्या समाधान को ही एक विशिष्ट एवं वैज्ञानिक प्रक्रिया होती है। अत: अनुसंधान में भी परिकल्पनाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। 
  • अनुसंधान में परिकल्पना की महत्त्वपूर्ण भूमिका होती हैक्योंकि कई उद्देश्यों की पूर्ति उनके माध्यम से होती है। कलिंगर के अनुसार परिकल्पना के बिना भी अनुसंधान सम्भव है। उनके अनुसार विशेषकर अन्वेषणात्मक (exploratory) अनुसंधानों में परिकल्पना अनिवार्य नहीं होतीपरन्तु आधुनिक विज्ञान के क्षेत्र में ऐसा संभव नहीं है। वान डालेन का मत है कि उन अनुसंधानों में जिनमें कार्य-कारण (cause-effect) संबंध की खोज लक्ष्य है. परिकल्पना विशेष रूप से वांक्षनीय होती है।


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