कार्यशाला अर्थ स्रोत उद्देश्य स्वरूप अवस्थाएँ |Workshop Meaning Source Objective Form Stages in Hindi

कार्यशाला अर्थ स्रोत उद्देश्य स्वरूप अवस्थाएँ 
 (Workshop Meaning Source Objective Form Stages in Hindi)

कार्यशाला अर्थ स्रोत उद्देश्य स्वरूप अवस्थाएँ |Workshop Meaning Source Objective Form Stages in Hindi


कार्यशाला अर्थ स्रोत उद्देश्य स्वरूप अवस्थाएँ 

  • शिक्षा-प्रक्रिया के दो पक्ष प्रमुख माने जाते है सैद्धान्तिक तथा व्यावहारिक।
  • उच्च ज्ञानात्मक और भावात्मक पक्ष के विकास के लिए विचार गोष्ठी तथा सम्मेलन का आयोजन किया जाता है। क्रियात्मक पक्ष के विकास के लिए प्रशिक्षण दिया जाता है। कार्यशाला का प्रयोग क्रियात्मक पक्ष के विकास के लिए किया जाता है।
  • कार्यशाला एक निश्चित विषय पर परिचर्चा का प्रायोगिक कार्य होता हैजिसमें समूह के सदस्य अपने ज्ञान एवं अनुभव के आदान-प्रदान द्वारा के बारे में सीखते हैं।


कार्यशाला का स्रोत (Source of Workshop)


यह शब्द इंजीनियरिंग से लिया गया हैजिसमें व्यक्तियों को कुछ न कुछ कार्य करना पड़ता है।

 

कार्यशाला के उद्देश्य (Objectives of Workshop)

  • इस प्रविधि का प्रयोग ज्ञानात्मक तथा उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए किया जाता है-
  • विषय से सम्बन्धित समस्याओं का समाधान।
  • किसी विषय की परिस्थितियों के सामाजिक अथवा दार्शनिक पक्ष का विस्तार में विवेचन।
  • समस्या के उद्देश्य एवं विधियों का सामूहिक रूप से निर्धारण 
  • किसी प्रकरण सम्बन्धी स्पष्टीकरण करने व उनके व्यावहारिक पक्ष के महत्व को समझना।
  • विशिष्ट व्यावसायिक क्षमता का विकास करना।
  •  व्यक्तिगत रूप से भाग लेने तथा कार्य करने की क्षमता का विकास करना।
  • विषय की प्रभावशाली प्रविधियोंविधियों का निर्धारण एवं नए उपागमों का प्रशिक्षण देना।

 

कार्यशाला का स्वरूप (Format of Workshop)

  • साधारणत: कार्यशाला आयोजन का समय दिन से 10 दिन तक का होता है।
  • कार्यकाल में सामान्यमः 25 या उससे कम प्रतिभागी होते हैं।


कार्यशाला की तीन अवस्थाएँ होती हैं


प्रथम अवस्था 

  • इस अवस्था में प्रकरण से सम्बन्धित प्रस्तुतीकरण एवं स्पष्टीकरण होता है।


द्वितीय अवस्था 

  • यह अवस्था तीन दिन से एक सप्ताह तक चलती है। समस्त प्रशिक्षणार्थियों को छोटे समूहों में विभाजित किया जाता है। प्रत्येक प्रशिक्षणार्थी को अपने-अपने कार्य निर्धारण की स्वतन्त्रता दी जाती है। इस अवस्था के अन्तिम चरण में सभी एक साथ मिलते हैं और कार्यों की आख्या प्रस्तुत करके रिपोर्ट तैयार की जाती है।

 

तृतीय अवस्था 

  • यह अनौपचारिक होती है। इसमें प्रशिक्षणार्थी अपने कार्यक्षेत्रों में जाकर कार्यप्रणाली में सुधार करता है। इस अवस्था को अनुकरण अवस्था भी कहते हैं।

 

कार्यशाला अनुदेशन एवं अधिगम परिस्थितियों को उत्पन्न करने की एक प्रभावशाली प्रविधि है। इसकी निम्नलिखित विशेषताएँ है-


  • अध्ययन के ज्ञानात्मक एवं क्रियात्मक उच्च उद्देश्यों की प्राप्ति की जाती है।
  • अध्ययन के नवीन उपागमों के सैद्धान्तिक तथा क्रियात्मक पक्षों का बोध
  • व्यावसायिक क्षमता का विकास किया जाता है।
  • शिक्षण कौशल का विकास किया जाता है। 
  • समूह में कार्य करने तथा सहयोग की भावना का विकास ।
  • व्यावसायिक समस्याओं के गहन अध्ययन का अवसर ।
  • समस्या के समाधान तथा व्यावसायिक कौशलों के विकास के लिए निर्देश ।
  • नवीन प्रयत्न एवं उपागम से अवगत कराया जाना तथा उनकी प्रभावशीलता का मूल्यांकन।


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