भारत के भू-आकृतिक प्रदेश | Geomorphic regions of India

भारत के भू-आकृतिक प्रदेश  Geomorphic regions of India

 

भारत के भू-आकृतिक प्रदेश |Geomorphic regions of India

भारत के भौतिक प्रदेश (Physical regions of India)

 

देश के लगभग 10.6% क्षेत्र पर पर्वत, 18.5% क्षेत्र पर पहाड़ियां, 27.7% क्षेत्र पर पठार व 43.2% क्षेत्र पर मैदान विस्तृत है। स्तर शैलक्रम, विवर्तनिक इतिहास प्रक्रमो तथा उच्चावच के आधार पर भारत को चार प्रमुख भौतिक प्रदेशो में विभक्त किया जा सकता है

 

1. उतर का पर्वतीय क्षेत्र 

2. प्रायद्वीपीय पठार 

3. उतर भारत का विशाल मैदान

4. तटवर्ती मैदान एवं द्वीपीय भाग

 

उतर का पर्वतीय क्षेत्र / हिमालय 

  • यह क्षेत्र सिंधु नदी - के गार्ज से शुरू होकर ब्रह्मपुत्र की सहायक देबांग नदी के गार्ज तक 5 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र में फैला है। पूर्व से पश्चिम तक इसकी लम्बाई 2400 कि.मी. है। (हिमालय की भारत में कुल लम्बाई 2500 कि.मी. है।) अरूणाचल में इसकी चौड़ाई 160 कि.मी. तथा कश्मीर में 400 कि.मी. तक है। इसकी औसत उंचाई 6000 मी. है। एशिया महाद्वीप में जहाँ 94 चोटीयां 6500 मी. से अधिक उंची है जिनमे से 92 केवल इसी पर्वतीय प्रदेश में स्थित है। यह भारत की नवीनतम मोड़दार / वलित पर्वत श्रंखला है। यह अभी भी नि. र्माणावस्था में है। यह भारत में हिन्दूकुश पर्वत से लेकर अरूणाचल प्रदेश तक 2500 किमी. लम्बे क्षेत्र में फैला हुआ है। इसकी उत्पति युरेशियन प्लेट के इंडो ऑस्ट्रेलियन प्लेट के आपस में टकराने से हुआ । प्लेट विवर्तिनिकी सिद्धान्त के प्रणेता हैरि हेस के के अनुसार आज से लगभग 7 करोड़ वर्ष पहले साइनोजोइक महाकल्प के काल / टर्शियरी काल में इंडो-ऑस्ट्रेलिया प्लेट के अभिसारी गति के परिणामस्वरूप आपस में टकराने से एक वलित पर्वत का निर्माण हुआ जिसे हिमालय कहा गया । हिमालय की उत्पति टेथिस सागर से हुई है इसलिए टेथिस सागर को हिमालय का गर्भग्रह कहा जाता है।

 

हिमालय का वर्गीकरण व विस्तार

 

उंचाई के आधार पर हिमालय को 4 प्रमुख समान्तर श्रेणियों (ट्रांस हिमालय, महान, लघु या मध्य व बाह्य ) में विभाजित किया गया है ।

 

1. ट्रांस हिमालय

  • महान हिमालय के उतर में ट्रांस हिमालय स्थित है। यह यूरेशियन प्लेट का एक खण्ड है। इसे चार श्रेणीयों में कराकोरम / कृष्णगिरी, लद्दाख, जास्कर व कैलाश श्रेणी में बांटा गया है। जिसमें से कैलाश तिब्बत में स्थित है। 
  • ट्रांस हिमालय को शीत मरूस्थल कहा जाता है। क्योंकि यह हिमालय का वृष्टि छाया प्रदेश है। 
  • भारत की सबसे उंची चोटी K-2 / गॉडविन ऑस्टिन ट्रांस हिमालय में स्थित है। 
  • इण्डो सांग्पो शचर जोन / हिन्ज लाइन ट्रांस हिमालय को महान हिमालय से अलग करती है। 
  • काराकोरम को उच्च एशिया की रीढ कहा जाता है। 
  • भारत का सबसे बड़ा ग्लेशियर सियाचीन कराकोरम में स्थित है। 
  • मना, नीति, लिपुलेख आदि दर्रे जास्कर श्रेणी में उतराखण्ड राज्य में स्थित है।

 

2. महान / वृहद हिमालय 

  • यह सिंधु नदी के गार्ज से अरूणाचल में ब्रह्मपुत्र / देहांग नदी तक फैला हुआ है।  
  • इसकी कुल लम्बाई 2400 से 2500 किमी है तथा इसकी औसत उंचाई 6100 मी. है।
  • इसे हिमाद्री / वृहद / विशाल हिमालय के नाम से भी जाना जाता है। 
  • हिमालय तंत्र की नदियों का उद्गम स्थल महान हिमालय है। 
  •  विश्व की सबसे उंची चोटी मा. एवरेस्ट ( 8848 / 50मी.) भी यहीं स्थित है। 
  • भारत में स्थित हिमालय की सबसे उंची चोटी कंचनजंगा (सिक्किम) स्थित । इसकी उंचाई 8598 मीटर है। 
  • इसमें जम्मू कश्मीर के बुर्जिल व जोजिला, हिमाचल के बड़ालाचाला व शिपकिला, उतराखण्ड के थांगला व सिक्किम के नाथूला व जेलेप्ला दर्रे महत्वपूर्ण है। 
  • मेन सेन्ट्रल थ्रस्ट इसे मध्य / लघु हिमालय से अलग करती है।

 

प्रमुख चोटियां - 

  • नागा पर्वत 8124मी. ( जम्मु कश्मीर ), नन्दा पर्वत 7816 मी. ( उतराखण्ड), कंचनजंगा 8598 मी.(सिक्किम) व मकालु 8481मी. व मा. एवरेस्ट 8848 मी. (नेपाल)

 

3. लघु हिमालय - 

  • महान हिमालय के दक्षिण में स्थित पर्वत श्रंखला लघु हिमालय / हिमाचल कहलाती है। इसका विस्तार पश्चिम में पीरपंजाल से शुरू होता है। यह सबसे लम्बी श्रेणी है।  
  • इसकी उंचाई 3700 से 4500 मीटर है।
  • इस क्षेत्र में पाए जाने वाले पहाड़ी ढाल में स्थित घास के मैदान मर्ग कहलाते है। जैसे गुलमर्ग व सोनमर्ग । उतराखण्ड में ये घास के मैदान वुग्यार / वुग्याल / पायार कहलाते है ।
  • मैन सेन्ट्रल थ्रस्ट महान हिमालय व लघु हिमालय को विभाजित करती है। 
  • पीरपंजाल ( जम्मु कश्मीर), धौलाधर ( उतराखंड), महाभारत (नेपाल) व नागटिब्बा (नेपाल) इसकी प्रमुख चोटियां है। 
  • इसमें पीरपंजाल व बनिहाल नामक दो दर्रे है। 
  • कांगड़ा व कुल्लू की घाटीयां इसमें स्थित है। 


4. बाह्य हिमालय / शिवालिक

  • इसका विस्तार पंजाब में पोतवार बेसिन से कोसी नदी (बिहार) तक है। यह हिमालय की सबसे बाहरी व नवीनतम श्रेणी है। 
  • इसकी औसत उंचाई 900 से 1200 मी. है। 
  • इसकी औसत चौड़ाई 15 से 30 कि.मी. है। 
  • गोरखपुर के समीप इसे हूंडवा तथा पूर्व में इसे चूरिया मूरिया श्रेणी के नाम से जाना जाता है। 
  • अरूणाचल में इसे डाफला व मिशमी की पहाड़ीयों के नाम से जाना जाता है। 
  • मैन बाउन्ड्री फॉल्ट बाह्य हिमालय को लघु हिमालय से अलग करती है 
  • लघु व बाह्य हिमालय के मध्य की घाटियां / दर्रे पूर्व में द्वार ( हरिद्वार ) व पश्चिम में दून (देहरादून) कहलाते है। 
  • देहरादून घाटी मोटे कंकड़ व कांप मिट्टी से ढकी है। इसे नमन घाटी भी कहा जाता है।
  • इसका निर्माण बजरी, बालु व कंकड़ की मोटी परतो से हुआ है। इसके गिरिपद में अथवा उपहिमालय क्षेत्र में सिधु के पूर्व व तीस्ता के बीच भाबर का मैदान फैला है

 

प्रादेशिक आधार पर हिमालय को 4 भागो में बांटा गया है-

 

(1) पंजाब हिमालय ( 560 किमी.) - 

  • इसका विस्तार सिंधु नदी से लेकर सतलज नदी तक मिलता है । कराकोरम, लद्दाख, पीरपंजाल, धौलाधर व जास्कर श्रेणी इसके भाग है। इसकी सबसे उंची चोटी K2 है।

 

(2) कुमायू हिमालय ( 320 किमी.) 

  • इसका विस्तार सतलज से काली नदी के बीच का क्षेत्र है। नन्दा पर्वत इसकी सबसे उंची चोटी है। बद्रीनाथ, केदारनाथ, त्रिशुल, गंगोत्री आदि इसकी प्रमुख चोटियां है। नीति व माना दर्रे भी इसी के भाग है।

 

(3) नेपाल हिमालय ( 800 किमी.) 

  • यह काली नदी से - तिस्ता नदी तक विस्तृत है। मा. एवरेस्ट, कंचनजंगा व मकालू इसकी सबसे उंची चोटी है। यह सबसे लम्बा हिमालय भू भाग घाटी है। । काठमाण्डु घाटी यहां की प्रमुख घाटी है । 

 

(4) असम हिमालय ( 720 किमी.) - 

  • तिस्ता से ब्रह्मपुत्र नदी के बीच यह हिमालय स्थित है। नामचा बरवा इसकी प्रमुख श्रेणी है।

 

पूर्वांचल की पहाड़ियाँ 

  • यह हिमालय के उतर से - दक्षिण म्यांमार - भारत सीमा के सहारे फैली है। इन्हें अरूणाचल प्रदेश में तिराप मण्डल तथा नागालैण्ड, मणिपुर एवं मिजोरम से गुजरने वाली पहाड़ी श्रेणीयों को पूर्वांचल की पहाड़ीयाँ कहा जाता है। अरूणाचल में मिशमी तथा पटकाई बुम पहाड़ीयाँ पाई जाती है। पटकाई बुम अरुणाचल प्रदेश व म्यांमार के बीच सीमा बनाती है। मेघालय के पूर्वी भाग में जयन्तिया, पश्चिमी भाग में गारो तथा इन दोनो के बीच में खासी पहाड़ी स्थित है। गारो के दक्षिण में सुरमा नदी का मैदान है। श्रंखला के रूप में हिमालय का दक्षिणतम विस्तार अण्डमान - निकोबार द्वीप समुह एवं इण्डोनेशिया तक पाया जाता है।

 

भारत के प्रमुख दरें

 

किसी पर्वत अथवा पहाड़ी में संकरे रास्ते युक्त घाटी को दर्रा कहा जाता है।

 

भारत के प्रमुख दर्रे - 

 

कराकोरम दर्रा यह भारत का सबसे उंचा (5664 मी.) दर्रा है। 

खारदुंगला दर्रा इसमें मोटर वाहन चलने योग्य भारत की सबसे उंची सड़क है। 

बुर्ज दर्रा यह श्रीनगर से गिलगित जाने का - मार्ग है। 

जोजिला दर्रा- यह श्रीनगर से लेह जाने का मार्ग है। 

पीरपंजाल दर्रा- यह कुल गांव से कोठी तक - जाने का मार्ग है। यह दर्रा जम्मु के दक्षिण पश्चिम में है। 

बनिहाल दर्रा- यह जम्मु से कश्मीर जाने का मार्ग है। यहां देश की सबसे लम्बी सुरंग ज्वाहर सुरंग यहां से गुजरती है। यह दर्रा महान हिमालय का भाग है। 

बड़ाला चाला दर्रा- यह हिमाचल में स्थित है तथा मण्डी से लेह जाने का मार्ग है।

शिपकी ला दर्रा -यह हिमाचल से तिब्बत जाने का मार्ग । यह भारत व चीन के मध्य व्यापारिक मार्ग है। सतलज नदी इस दर्रे के सहारे भारत में प्रवेश करती है। 

रोहतांग दर्रा रावी नदी इसके पास से निकलती है। 

माना दर्रा यह उतराखण्ड में कुमायूँ की पहाड़ीयों में स्थित दर्रा है जो नंदा देवी जीवमण्डल आरक्षित क्षेत्र से लेकर जास्कर पर्वत श्रेणी के पूर्वी छोर तक विस्तृत है। इसी दर्रे में देवताल झील है जिसमें से सरस्वती नदी का उद्गम होता है। 

नीति दर्रा - यह दर्रा उतराखण्ड के कुमायूँ प्रदेश में स्थित है। यह मानसरोवर एवं कैलाश पर्वत जाने का मार्ग है। 

लिपु लेख दर्रा- यह भी उतराखण्ड में स्थित है 1962 के बाद पहली बार इसे व्यापार मार्ग के रूप में 1992 में खोला गया।  

नाथुला दर्रा- यह सिक्किम में स्थित है तथा भारत व चीन के मध्य स्थित है। वर्तमान में मानसरोवर यात्रा के लिए इस दर्रे को खोला गया है। 1962 के बाद इसे 2006 में व्यापार हेतु खोला गया 

यांग्याप दर्रा- अरूणाचल के उतर पूर्व में - स्थित है। इसके निकट से ब्रह्मपुत्र नदी भारत में प्रवेश करती है। 

जेलेप्ला दर्रा- यह सिक्किम में स्थित है तथा - भारत व भूटान के मध्य स्थित है। 

तुजु दर्रा- यह मणिपुर में स्थित है। यह भारत व  म्यांमार के मध्य स्थित है, जो बरमा जाने का मार्ग है। 

थाल घाट दर्रा - यह दर्रा महाराष्ट्र में पश्चिमी घाट की श्रेणीयों में स्थित है। इससे मुम्बई नागपुर कोलकता रेलमार्ग व सड़क मार्ग गुजरते है। 

भोर घाट- यह दर्रा मुम्बई को पुणे से सड़क व रेलमार्ग से जोड़ता है। 

पाल घाट- यह केरल के मध्य पूर्व में स्थित है।  इससे होकर कालीकट से कोयम्बटूर के मध्य रेल व सड़क मार्ग बनाता है। 

अम्बा घाट- महाराष्ट्र में स्थित यह दर्रा पैराग्लाइडिंग के लिए प्रसिद्ध है। यह सहाद्री का एक प्रमुख दर्रा है, जो रत्नागिरी जिले को कोल्हापुर जिले से जोड़ता है। 

सेन कोट्टा दर्रा- यह केरल में इलायची पहाड़ी पर स्थित है तथा तमिलनाडू के तिरूअनन्तपुरम् को केरल के मदूरै से जोड़ता है।

 

प्रायद्वीपीय पठार

 

  • यह गोडवाना लैण्ड का भाग है, जो आर्कियन काल की चट्टानो से निर्मित है। यह भारतीय उपमहाद्वीप का सबसे प्राचीनतम भू-खण्ड है। यह एक त्रिभुजाकार आकृती में विस्तृत है जिसका आधार उतर में तथा ढाल पूर्व में है। उतर से दक्षिण दिशा में इसकी लम्बाई 1600 कि.मी. तथा पूर्व से पश्चिम दिशा में इसकी चौड़ाई 1400 कि.मी. है। इसका विस्तार 16 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र में है। प्रायद्वीपीय भारत की औसत उंचाई 600 से 900 मी. है। इसके पश्चिमी भागो के समतल मैदानो में काली लैटेराइट मिट्टी मिलती है। इसकी नर्मदा व ताप्ती नदी ढाल के विपरित बहती है।

 

  • पठारो का निर्माण ज्वालामुखी के दरारी उद्गार से होता है। सामान्यतः पठारों से हमें काली मिट्टी मिलती है। पामीर का पठार विश्व का सबसे उंचा पठार है । इसलिए इसके विश्व की छत कहा जाता । इसके दायीं तरफ कुनलुन की पहाड़ीयां स्थित है, जबकि इसके बायीं तरफ हिन्दुकुश पर्वत स्थित है। हिन्दुकुश पर्वत में स्थित खैरब दर्रे से भारत में अरब, तुर्क व मुस्लिम आक्रांता आए थे। कराकोरम को एशिया की रीढ़ की हड्डी कहा जाता है। अरावली, विन्ध्यांचल, सतपुड़ा, भारनेर, कैमुर, राजमहल तथा शिलांग की पहाड़ियाँ इसके उतरी भाग में स्थित है।

 

भारत के पठारी भू भाग को मुख्यतः निम्न भागो में बांटा गया है-

 

मध्यवर्ती उच्च भूमियाँ 

अरावली श्रेणी

  • यह पालनपुर (गुजरात) से राजस्थान होकर दिल्ली में रायसीना की पहाड़ियों तक लगभग 800 कि.मी. तक विस्तृत है। रायसीना की पहाड़ीयों पर भारत सरकार की सर्वोच्च प्राथमिकता वाली सरकारी इमारतो को बनाया गया है। इसका सर्वोच्च शिखर गुरूशिखर (1722 मी.) है। इसका निर्माण प्री कैम्ब्रियन युग में हुआ है। इसके पूर्व में बनास, माही व चम्बल द्वारा मैदानो का निर्माण हुआ है।

 

मालवा का पठार - 

  • यह राजस्थान व मध्यप्रदेश की सीमा पर अरावली व विन्ध्यांचल श्रंखलाओ के मध्य में स्थित है तथा चम्बल के बीहड़ो के लिए जाना जाता है। इसके उतर में ग्वालियर की पहाड़ियां है। यह भारत का सर्वाधिक अपरदित क्षेत्र है।

 

बुन्देलखण्ड का पठार

  • यह पठार मध्य प्रदेश के ग्वा. लियर के पठार से लेकर विंध्यांचल पर्वत के बीच स्थित है। इसमें ग्रेनाइट व नीस की चट्टाने मुख्य रूप से पाई जाती है।

 

बघेलखण्ड का पठार

  • यह छतीसगढ़ के मैकाल की पहाड़ीयों के पूर्व में स्थित है। यह सोन व महानदी के बीच जल विभाजक का कार्य करता है।

 

छोटा नागपुर का पहाड़ - 

  • झारखण्ड में स्थित इस पठार को भारत का रूर / रूहर कहा जाता है। इसके उतर में राजमहल की पहाड़ीयां स्थित है। इसके दक्षिण से महानदी बहती है। इस पठार के बीचों बीच से दामोदर नदी बहती है, जो इसे दो भागो में विभाजित करती है। यह पठार बिटुमिनस कोयले के लिए प्रसिद्ध है। महानदी, सोन, स्वर्णरेखा व दामोदर इस पठार की प्रमुख नदियाँ है। राजमहल की पहाड़ियां इसकी उतरी सीमा बनाती है। इसमें हजारीबाग का पठार, रांची का पठार तथा कोडरमा का पठार शामिल है। इस पठार में तीव्र ढाल पाए जाने के कारण इसे अग्रगम्भीर पठार की संज्ञा दी गई। है। गोंडवाना क्रम की चट्टानो से निर्मित होने के कारण इस पठार को खनिजो का भण्डार ग्रह भी कहा जाता है।

 

शिलांग का पठार 

  • यह मेघालय में स्थित । इसमें मासिनराम व चेरापुंजी नामक स्थान है। यह एक समतल भूमि है जो भ्रंशन के कारण भारतीय प्रायद्वीप से माल्दा गैप द्वारा पृथक हो गई है। इसके पश्चिमी सिरे पर गारो की पहाड़ियां, मध्य में खासी, जयंतियां और पूर्व में मिकिर की पहाड़ियां स्थित है।

 

दक्षिणी पठारी भूमि

 

  • दक्कन का पठार यह ताप्ती नदी के दक्षिण में स्थित है। यह महाराष्ट्र में त्रिभुजाकार आकृति में 7 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्र में विस्तृत है। इसका निर्माण क्रिटेशियस युग में दरारी ज्वालामुखी से हुआ है। यहां पर स्थित लोनार झील एक क्रेटर झील है। यहां पर लावे से काली मिट्टी का निर्माण हुआ है।

 

तेलंगाना का पठार 

  • यह गोदावरी नदी द्वारा दो -भागो में विभाजित है। यहां पर उर्मिल के मैदान पाए जाते है। यह प्रायद्वीपीय पठार का समतलीय क्षेत्र है, जो रायलसीमा पठार के नाम से जाना जाता है।

 

मैसुर / कर्नाटक का पठार 

  • इसके दक्षिणी भाग को मैसुर का पठार कहा जाता है। यह कर्नाटक से केरल तक विस्तृत है। इसमें कृष्णा, कावेरी व तुंगभद्रा नदी प्रवाहित होती है। मलनरद यहां का पहाड़ी प्रदेश है। यहां बाबा बूदन की पहाड़ी स्थित है जो लौह अयस्क के लिए प्रसिद्ध है। यह क्षेत्र कहवा उत्पादन की दृष्टि से महत्वपूर्ण है। मानसून पूर्व होने वाली बरसात चेरी ब्लोसम हिलाती है, जिसे फुलो की वर्षा भी कहा जाता है। यह वर्षा कहवा के लिए वरदान होती है। 

 

प्राद्वीपीय भारत के पर्वतीय प्रदेश

 

विंध्यांचल पर्वत – 

  • इसकी शुरूआत गुजरात से होती है परन्तु इसका मूल विस्तार महाराष्ट्र से झारखण्ड के मध्य 4 पहाड़ीयों की श्रंखला (विध्यांचल, भण्डारै, कैमुर व पारसनाथ) के रूप में स्थित है। यह पर्वत श्रंखला भारत को दो बराबर भागो में बांटती है। यह भारत की दो प्राचीन आर्य व अनार्य संस्कृति को अलग करती है।

 

सतपुड़ा पर्वत 

  • यह मध्यप्रदेश से छतीसगढ़ के मध्य तीन पहाड़ीयों के रूप में स्थित है। इन तीनो पहाड़ीयों को सतपुड़ा, महादेव जी व मैकाले की पहाड़ीयों के नाम से जाना जाता है । महादेव जी की पहाड़ीयो की सबसे उंची चोटी को धूपगढ कहा जाता है। पंचमढी मध्य भारत का स्वास्थ्य वर्धक स्थल है। मैकाले की पहाड़ी की सबसे उंची चोटी अमरकंटक है। अमर कंटक से नर्मदा व सोन नदी निकलती है।

 

सह्याद्री पर्वत

  • इसका विस्तार ताप्ती नदी से केरल में कन्याकुमारी के कुमारी अन्तरीप तक लगभग 1600 किमी तक । यह हिमालय के बाद भारत की सबसे लम्बी पर्वत श्रंखला है। इसकी औसत उंचाई 1200 मीटर है। 16° चैनल इसके 2 भागो में बांटता है। इसका उतरी भाग उतरी सह्याद्री व दक्षिणी भाग दक्षिणी सह्याद्री कहलाता है। उतरी सह्याद्री का निर्माण बेसाल्ट लावे से हुआ है। इसकी सबसे उंची चोटी कालसुबोई (1646 मी.) है। दक्षिणी सह्याद्री का निर्माण ग्रेनाईट व नीस की चट्टानो से हुआ है। इसकी सबसे उंची चोटी कुद्रेमुख ( 1892 मी.) है। थालघाट दर्रा (मुम्बई) मुम्बई को नासिक व कोलकता से जोड़ता है। भोरघाट दर्रा (मुम्बई) मुम्बई को पुणे व चेन्नई से जोड़ता है। पालघाट दर्रा कोच्चि को चेन्नई से जोड़ता है। पालघाट दर्रा दक्षिणी सह्याद्री का एक भाग है।

 

प्रायद्वीपीय पठार का पूर्वी घाट - 

  • यह महानदी की घाटीयों से नीलगिरी की पहाड़ियों तक विस्तृत है। इस पर्वत श्रेणी को नदियों द्वारा अनेक स्थानो पर काट दिया गया है। इस कारण यह अलग अलग पहाड़ियों के रूप में मिलती है। अरमाकोण्डा पर्वत / विशाखपतनम चोटी 1680 मीटर (उड़िसा), शेवराय (तमिलनाडू), जवादी, नल्लामलाई, पालकोंडा व महेन्द्रगिरि पर्वत -1502 मीटर (आन्ध्र प्रदेश) इसके प्रमुख पर्वत है।

 

नीलगिरि की पहाड़ीयां

  • ये कर्नाटक, केरल व तमिलनाडू में विस्तृत । इनकी सबसे उंची चोटी डोडाबेटा (2637 मी.) है। डोडाबेटा प्रायद्वीपीय भारत की दूसरी सबसे उंची चोटी है। नीलगिरि की पहाड़ीयों को पूर्वी व पश्चिमी घाट का जंक्शन कहा जाता है। मोपला आन्दोलन नील की खेती करने वाले किसानो द्वारा केरल में किया गया था। उटी / उटकमक (तमिलनाडू) द. भारत का स्वास्थ वर्धक स्थल है।

 

अन्नामलाई की पहाड़ीयां

  • अर्नागुड़ी इसकी सबसे उंची चोटी है। जो 2695 मी. उंची है। यह प्रायद्वीपीय भारत की सबसे उंची चोटी है। केरल में अन्नामलाई की पहाड़ीयों को इलायची की पहाड़ीयां कहा जाता है। तमिलनाडू में अन्नामलाई की पहाड़ीयों को पालनी की पहाड़ीयां कहा जाता है। 

 

उतर भारत का विशाल मैदान

 

  • यह हिमालय तथा प्रायद्वीपीय भारत के बीच सिंधु, गंगा एवं ब्रह्मपुत्र नदियों के अवसादो से निर्मित है यह 7 लाख वर्ग किमी के क्षेत्र में फैला हुआ है। पूर्व से पश्चिम दिशा में इसकी लम्बाई लगभग 3200 किमी है। इसकी चौड़ाई 150 से 300 किमी तक है। यह मैदान पश्चिम से पूर्व की ओर संकरा होता जाता है। राजमहल की पहाड़ियों के पास इसकी चौड़ाई 160 कि.मी. है, जो बढकर इलाहाबाद के पास 280 कि.मी. तक हो जाती है।

 

इसके विभिन्न भू किया गया है भागो को निम्न प्रकार से विभाजित

 

भाबर – 

  • यह शिवालिक के नीचे सिंधु से तीस्ता नदी तक पाया जाता है। इसे शिवालिक का जलोढ पंख भी कहा जाता है। इस क्षेत्र में नदियां बड़ी संख्या में बजरी, मोटे कंकड़ पत्थर के टुकड़े लाकर मा कर देती है, जिससे यहां पर छोटी नदियां भूमिगत होकर बहने लगती है। केवल बड़ी नदियों का जल ही प्रवाहित होती दिखाई देता है।

 

तराई प्रदेश

  • भाबर के दक्षिण में उसके समान्तर फैला हुआ यह प्रदेश 10-20 कि.मी. की चौड़ाई में पाया जाता है। यहां पर नदियां पुनः धरातल पर प्रकट हो जाती है। यह निम्न समतल मैदान है, जहां नदियां दलदली क्षेत्रों का निर्माण करती है।

 

कांप / जलोढ प्रदेश 

  • मैदानो में पाई जाने वाली - जलोढ मिट्टी के क्षेत्र गंगोध अथवा कांप कहलाते है। यह कांप / जलोढ मिट्टी दो प्रकार से विभाजित की जा सकती है। 

 

1. खादर प्रदेश - 

  • वह प्रदेश जहां नदियों की बाढ़ का पानी प्रतिवर्ष पंहुचता रहता है। इसे नदियो के बाढ का मैदान अथवा कछारी प्रदेश कहा जाता है। नदियों द्वारा मैदानी प्रदेश पर लाई गई उपजाउ मिट्टी / अवसाद के ढेर जो भूमि पर बिछाई जाती है।

 

2. बांगर प्रदेश -

  • यह मैदान का उंचा भाग है, जहां बाढ का पानी नही पंहुच पाता है। यहां पुरानी कांप मिट्टी पाई जाती है। गंगा तथा सतलज के उपरी मैदान में बांगर की अधिकता पाई जाती है । नदियों के मध्यवर्ती भाग में बांगर का विस्तार पाया जाता है।

 

भूड़ 

  • बांगर मिट्टी के उन क्षेत्रों में जहां आवरण क्षय के फलस्वरूप उपर की मुलायम मिट्टी नष्ट हो गई है तथा वहां अब कंकरीली भूमि मिलती है। मिट्टी के ये उंचे नीचे ढेर भूड़ कहलाते है।

 

रेह - 

  • सिंचाई की अधिकता के कारण जिन भागो मे मिट्टी पर लवण की परत चढ़ जाती है उसे रेह कहा जाता है। उतर प्रदेश व हरियाणा में इसे कल्लर भी कहा जाता है।

 

शंकु तथा अन्तः शंकु

  • नदियों के निक्षेपण के परिणामस्वरूप जलोढ पंख अथवा शंकुओ का निर्माण हुआ । घाघरा नदी को छोड़कर हिमालय से बहने वाली सभी नदियों ने शंकु बनाए । इनका तल उतल होता है।

 

डेल्टा 

  • नदियों द्वारा बहाकर लाई गई मिट्टी जब नदी के बहाव के कम होने पर तल में बैठ जाती है तो उस स्थान पर महीन कणो से युक्त क्षेत्र विकसित होता है इसे डेल्टा कहा जाता है।

 

पश्चिम / थार का मरूस्थल

 

  • यह विश्व का सर्वाधिक बसा हुआ मरूस्थल है। यह राजस्थान के अतिरिक्त गुजरात, पंजाब व हरियाणा के कुछ भू भाग में फैला हुआ है। यहां वर्षा काल में बनने वाली अस्थाई झील रन, टाट, तल्ली अथवा ढांढ के नाम से जानी जाती है। यहां स्थित अधिकांशतः झीले खारे पानी की है क्योंकि इस स्थान को टेथिस सागर का अवशेष माना जाता है। सांभर, डीडवाना व पंचपद्रा यहां की प्रमुख खारे पानी की झीले है। अरावली के उतर पश्चिम भू भाग में यह मरूस्थल विस्तृत है।

 

भारत का तटीय प्रदेश

 

भारत के दो तटीय प्रदेश है- 

1. पूर्वी प्रदेश 

2. पश्चिमी प्रदेश

 

  • भारत के पूर्वी भू भाग को दो भागो उतरी सरकार तट व कोरोमण्डल तट में बांटा गया है।  
  • भारत के पश्चिमी तट को चार भागो काकरापार तट, कोंकण तट, कन्नड़ तट व मालाबार तट में बांटा गया है।

 

भारत के द्वीप समुह

 

  • हिन्द महासागर में भारत के कुल 1208 से अधिक द्वीप है जो बंगाल की खाड़ी, अरब सागर, नदी व झीलो में विभाजित है। अरब सागर के द्वीप जहां प्रव कालो द्वारा निर्मित है वहीं बंगाल की खाड़ी के द्वीप म्यांमार की अराकानयोमा का विस्तार है तथा टर्शियरी पर्वतमालाओं का प्रतिरूप है।

 

अण्डमान निकोबार द्वीप समुह

 यह 6°45' उतरी - अक्षांश से प्रारम्भ होता है तथा 92°10' पूर्वी देशान्तर से 94°15' पूर्वी देशान्तर के मध्य लगभग 590 वर्ग कि. मी. लम्बे क्षेत्र में विस्तृत है। इसमें कुल 222 द्वीप है। जिनमें से 202 अण्डमान में व 18 निकोबार में है। इसके उतर से दक्षिण तक निम्नलिखित द्वीप स्थित है-

 

लैण्डफॉल

  • कोको चैनल इसे म्यांमार के कोको द्वीप से अलग करता है। यहां चीन ने इलेक्ट्रोनिक निगरानी यंत्र लगाया है।

 

उतरी अण्डमान

  • उतरी अण्डमान की सबसे उंची चोटी मा. सैडल पीक (737 मीटर) है। यहां पूर्व में नारकोंडम नामक सुसुप्त ज्वालामुखी हैं।

 

मध्य अण्डमान

  • इसके पूर्व में बैरन नामक सक्रिय ज्वालामुखी है। यह अण्डमान निकोबार द्वीप समुह का सबसे बड़ा द्वीप है।

 

दक्षिणी अण्डमान 

  • यहां अण्डमान निकोबार की राजधानी पोर्ट ब्लैयर स्थित है।

 

लिटिल अण्डमान 

  • 10° चैनल लिटिल अण्डमान को कार निकोबार से अलग करता है। यहां ओंग जनजाति निवास करती है।

 

निकोबार द्वीप समुह

  • तीन भागो कार निकोबार, लिटिल निकोबार व ग्रेट निकोबार में विभाजित है। ग्रेट निकोबार इस द्वीप समुह का दक्षिणतम द्वीप है। इसमें इंदिरा पोइंट / पर्सियन पोइंट / पिग्मेलियन पोइंट व ला हि चांग स्थित है जो भारत का दक्षिणतम स्थल है।

 

लक्ष्यद्वीप समुह - 

  • इसका द्वीपो का निर्माण प्रवालो / एटॉल / कोरल / मूंगे की चट्टानो से हुआ है। इन चट्टानो का निर्माण सेलेंटोराटा पॉलिप से होता है, जो उष्ण कटि. क्षेत्र में पाए जाते है। पहले इसे लंकाद्वीप, मिनीकॉय, एमीनीदीव कहते थे। 1973 में इसका नाम लक्ष्यद्वीप रखा गया। इसकी राजधानी कवरती है। यह 36 द्वीपो का समुह है जो 109 वर्ग किमी क्षेत्र में विस्तृत है। एन्ड्रोथ द्वीप इस समुह का सबसे बड़ा द्वीप है। अमीनी द्वीप समुह इसका सबसे बड़ा द्वीप समुह है। 
  • चैनल मिनीकाय व मालद्वीप को अलग करता है। 
  • चैनल लक्ष्यद्वीप व मिनीकाय को अलग करता है ।

 

गंगासागर द्वीप

  • यह प. बंगाल में हुगली नदी के मुहाने पर बना है। 


न्यू मूरे द्वीप

  • यह भारत व बांग्लादेश के मध्य अधिकार क्षेत्र को लेकर विवादित रहा है। वर्तमान में यह पुरी तरह से डुब चुका है।

 

पम्बन द्वीप

  • यह मन्नार की खाड़ी में बना है। यह रामेश्वरम के नाम से भी प्रसिद्ध है।

 

श्रीहरिकोटा

  • आंध्र प्रदेश में पुलिकट झील में यह द्वीप स्थित है इस पर सतीश धवन उपग्रह प्रक्षेपण केन्द्र स्थित है। 


व्हीलर द्वीप – 

  • वर्तमान में इसे अब्दुल कलाम द्वीप कहा जाता है। यह ओडिशा के तट पर महानदी व ब्रह्माणी के मुहाने पर स्थित है। यह मिसाइल परीक्षणो के लिए सदैव चर्चा में रहता है।

 

सालसेट द्वीप

  • यह भारत का सर्वाधिक जनसंख्या वाला द्वीप है। इसी पर मुम्बई व थाणे बसे है।

 

विलिंगटन द्वीप

  • यह केरल राज्य के कोच्चि शहर - का भाग है। यह तैरते हुए उद्यान कैबुललामजाओ के लिए जाना जाता है।

 

माजुली

  • यह असम में स्थित विश्व का सबसे बड़ा - नदी द्वीप है। यह ब्रह्मपुत्र नदी पर स्थित है।

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