संपादकीय: विशेषता | संपादकीय लेखन | Editorial writing in Hindi

संपादकीय: विशेषता, संपादकीय लेखन,Editorial writing in Hindi

संपादकीय: विशेषता | संपादकीय लेखन | Editorial writing in Hindi


 

संपादकीय: विशेषता, संपादकीय लेखन,Editorial writing in Hindi


1 संपादकीय: विशेषता 

  • संपादकीय किसी भी पत्र की रीति-नीतिविचारसंस्कारप्रतिबद्धता का दर्पण होता है। यह एक खिड़की है जिसके पार से समाचार पत्र की आवाज ही मुखर नहीं होतीअपितु युग चेतना की अनुगुंज भी सुनाई देती है। इस एक कॉलम के माध्यम से समाचार पत्र और उसके संपादक का व्यक्तित्व मुखरित होता है।


  • समाचार पत्र में संपादक का व्यक्तित्व मुखरित होता है। समाचार पत्र में संपादकीय का स्थान उसी प्रकार का होता हैजिस प्रकार मनुष्य की शरीर में आत्मा होता है। इसे समाचार पत्र का हृदय कहा जा सकता है। 


  • संपादकीय लेख का सीधा उत्तरदायित्व संपादक से होता है। स्थापित एंव प्रतिष्ठित समाचार पत्र में दो या तीन संपादकीय दिये जाते हैं। 


संपादकीय को परिभाषित करते हुए कहा गया है- 

संपादकीयवह संक्षिप्त और सामयिक लेख होता है जिसके माध्यम से संपादक या समाचार पत्र संबंधित विषय पर जनमत के निर्माताओं व नीति- विशेषज्ञों के द्वारा अपनी विचारधारा के परिप्रेक्ष्य में आम जन का पक्षीय विचार उत्पन्न कर सके। कह सकते हैं कि संपादक द्वारा लिखित समसामयिक अग्रलेख ही संपादकीय है। प्रभावोत्पादक होने के लिए संपादकीय को संक्षिप्त और सामयिक होना चाहिए। संपादकीय टिप्पणी प्रचलित समाचार का निचोड़ भी होता है। इसके लिए वह प्रभावोत्पादक होने के साथ ही सामयिकसंक्षिप्त और मनोरंजक भी होना चाहिए। 



  • प्रत्येक समाचार पत्र की संपादकीय नीति उसके पाठक वर्ग की रूचि व संस्कार से प्रभावित होती है। संपादकीय टिप्पणियों की एक मुख्य विशेषता यह होनी चाहिए कि वे शिष्ट भाषा में लिखे गये हों और उनका स्वर संयत हो तथा उनमें व्यक्तिगत आलोचना न हो। 


  • संपादकीय टिप्पणी के गुणों पर विचार करते हुए डा. अर्जुन तिवारी ने इसमें प्रभावोत्पादकतासमसामयिकतानिष्पक्षताविश्वसनीयता और संक्षिप्तता आदि विशेषताओं का होना स्वीकार किया है। संपादकीय में कठोर-से-कठोर विषय को भी संयत भाषा में व्यक्त किया जाता है।

 

2 संपादकीय लेखन

 

  • आपने जाना कि संपादकीय या अग्रलेख संपादकीय स्तम्भ में नियमित रूप से लिखा जाने वाला लेख है। आवश्यकतानुसार इसकी संख्या दो या तीन तक होती हैअर्थात ऐसी परिस्थिति में जब संपादक को लगे कि अमुक-अमुक घटनाएँ महत्वपूर्ण हैं और उन पर टिप्पणी देना आवश्यक है। संपादकीय लेखन में शब्द सीमा का निर्धारण करते हुए इसे 500 से 1000 शब्दों तक माना गया है। संपादकीय टिपपणी प्राय: संपादक द्वारा लिखी जाती हैकिन्तु विशेष परिस्थितियों में इसे अनुभवी उप-संपादक या संपादक मंडल का योग्य व्यक्ति भी लिख सकता है।

 

  • संपादकीय टिप्पणी सामयिक घटनाओं या विशेष समाचार पर पत्र के संपादक की टिप्पणी होती हैजो उस पत्र की नीति और रूख को व्यक्त करती है। संपादकीय टिप्पणी में जिस विषय पर टिप्पणी हुआ करती हैउससे संबंधित तथ्यकारण की व्याख्याआलोचनासुझावचेतावनी और मार्ग दर्शन पर बल दिया जाता है। संपादकीय लेखन बहुत उत्तरदायित्व पूर्ण कार्य होता है। 


इस संबंध में प्रमुख बिन्दुओं का पालन करना अनिवार्य होता है -

 

  • संपादकीय लेखन में सर्वप्रथम इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि वह पत्र-नीति के अनुकूल लिखा जा रहा है या नहीं। कहीं ऐसा न हो कि पत्र की पत्र - नीति किसी दूसरे विचारधारा की पक्षधर हो और संपादकीय दूसरे विचारधारा को प्रस्तुत करे।

 

  • संपादकीय लेखन के लिए दूसरी शर्त यह है कि संपादकीय में निष्पक्षता होनी चाहिए संपादकीय में किसी तथ्यविचार या घटना के मूल्यांकन में पूर्वाग्रह न हो ।

 

  • संपादकीय लेखन में संक्षिप्तता का गुण आवश्यक है। हरि मोहन जी ने आदर्श संपादकीय की शब्द-सीमा निर्धारण करते हुए उसे 500 से 1000 शब्दों तक का माना है। विजय कुलश्रेष्ठ जी ने भी उसे 500 से 750 शब्दों या अधिक से अधिक 1000 शब्दों तक होने को आदर्श माना है।

 

  • संपादकीय लेखन में भाषा सुस्पष्ट और शैली सरल होनी चाहिए। शैली क्रम-विन्यास का ध्यान रखना आवश्यक है।

 

  • संपादकीय लेखन में तथ्य प्रस्तुतीकरणव्यख्या- विश्लेषण एवं मूल्यांकन का क्रम होना चाहिए।

1 comment:

  1. आपके द्वारा लिखा गया यह लेख अत्यंत ज्ञानवर्धक और एक सही मायने में सही संपादकीय की संपूर्ण परिभाषित करता है महोदय जी लाजवाब लेकर

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