संपादन कला : | संपादन का अर्थ आवश्यकता| संपादन कला के सिद्धान्त| News Editing Kya Hoti Hai

संपादन कला : संपादन का अर्थ आवश्यकता, संपादन कला के सिद्धान्त

 

संपादन कला : | संपादन का अर्थ आवश्यकता| संपादन कला के सिद्धान्त| News Editing Kya Hoti Hai

संपादन कला  प्रस्तावना

 

  • पत्रकारिता में वैसे तो प्रत्यके प्रक्रिया महत्वपूर्ण हुआ करती है किन्तु इनमें सबसे महत्वपूर्ण होता है - संपादन कार्य बिना संपादन कार्य के पत्रकारिता अनियंत्रित सूचनाओं का प्रवाह बनकर रह जाता है। चाहे वह प्रिन्ट मीडिया हो इलैक्ट्रानिक मीडिया बिना संपादन कार्य के ये अपने उद्देश्य में सफल नहीं हो सकते। अच्छी पत्रकारिता किसी सूचना को सम्प्रेषणीय बनाकर जनता तक पहुँचाती है लेकिन यदि उनमें यह गुण हो ही न तो फिर सूचना का क्या औचित्य ? इसीलिए छोटे-से बड़े सभी वस्तुओं में संपादन कला की आवश्यकता पड़ती ही है। किसी भी मीडिया संस्था में बिना संपादक के कोई भी तथ्य प्रकाशित/प्रसारित नहीं किया जाता है। संपादन कला से युक्त पत्रकारिता ही पाठक / दर्शक को जागरूक करने की क्षमता रखती है।

 

  • समाचार पत्र में संपादकीय का विशिष्ट स्थान है। संपादकीय किसी भी पत्र की आत्मा होती है। समाचार संकलन का चुनाव तो कई न्यूज एजेन्सियों से भी किया जा सकता है, लेकिन संपादकीय तो उस पत्र का संपादक ही लिखता है। इस दृष्टि से वह पत्र की नीति-अभिरूचि से जुड़ा हुआ होता है। इसी कारण संपादकीय लेखन के अपने नियम हैं और अपनी शर्तें हैं। मीडिया जगत में न केवल अच्छे लेखक की आवश्यकता होती है बल्कि कुशल लेखक की भी जरूरत होती है। प्रिन्ट में लेखन हो या रेडियो में या टेलीविजन में, सर्वत्र एक रूपरेखा के भीतर, उसके अनुरूप रहकर लेखन कार्य करना होता है। मीडिया लेखन में कौशल एवं मौलिकता के संयोग से युक्त लेखक ही सफल हो सकता है। अत: विद्यार्थी को इस सम्बन्ध में जानकारी का होना बहुत आवश्यक है।

 

संपादन कला क्या है ? 

संपादन किसी भी मीडिया का केंद्र बिन्दु है। प्रश्न यह है कि संपादन क्या है और इसकी आवश्यकता क्यों पड़ती है। यह भी प्रश्न उठता है कि अच्छे संपादन की विशेषता क्या है तथा संपादन करते समय संपादक को किन-किन तथ्यों का ध्यान रखना आवश्यक है।

 

संपादन का अर्थ Meaning of editing in Hindi

 

  • संपादन का सामान्य अर्थ है- किसी कार्य को उसके उद्देश्य पूर्ण होने तक की स्थिति में पहुँचाना या करना। कार्य के साथ उद्देश्य जुड़ा हुआ है। कोई कार्य तभी पूरा समझा जा सकता है जब वह अपने उद्देश्य में सफल हो। लेकिन पत्रकारिता के संदर्भ में संपादन का अर्थ विशिष्ट हो जाता है। समाचार पत्र या इलेक्ट्रानिक मीडिया के प्रारम्भिक स्तर से यानी सूचनाओं से आगमन से लेकर उसके प्रस्तुतीकरण तक सभी कुछ संपादन के अंतर्गत आता है। इस दृष्टि से संपादन का अर्थ होगा मीडिया को अधिक सम्प्रेषणीय बनाने के लिए उसके प्रत्येक अंग/उपांग को सटीक, सारगर्भित, सुन्दरआकर्षक एवं अर्थगर्भी बनाने की कला ।

 

संपादन की आवश्यकता

 

  • संपादन के संदर्भ में यह बात हमेशा स्मरण रखनी चाहिए कि हर विधा के लिए संपादन के सिद्धान्त, प्रक्रियाएँ अलग-अलग होंगी। अत: सामान्य सिद्धान्तों के आधार पर सभी मीडिया माध्यम का संपादन करना संभव नहीं है। यहाँ हम जिन बिन्दुओं पर चर्चा कर रहे है, वे मीडिया संपादन के सिद्धान्त कम, संपादन के लिए बरती जाने वाली सावधानियाँ ज्यादा हैं। संपादन सामूहिक कार्य है। एक बड़े अखबार या टीवी चैनल में संपादन कार्य हेतु संपादक, सहायक संपादक, समाचार संपादक, मुख्य उपसंपादक और उपसंपादक तो होते ही हैं इसके अतिरिक्त खेल संपादक, फीचर संपादक इत्यादि विषयगत अवान्तर भेद भी होते ही हैं। 


संपादक मंडल संवाददाताओं, एजेन्सियों और अन्य स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं का चयन करके, उन्हें क्रमानुसार विभाजित करते हैं तथा उन्हें व्यवस्थित रूप से प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार विभिन्न स्रोतों से प्राप्त सूचनाओं को लोगों तक पहुँचाने का महत्वपूर्ण उत्तरदायित्व संपादकीय मंडल करता है। 


कह सकते हैं कि संपादन का वास्तविक अर्थ है - 

किसी सामग्री से उसकी अशुद्धियों को दूर करके उसे पठनीय बनाना। किसी आगत सामग्री को संपादक मण्डल सर्वप्रथम ध्यान से पढ़ता है, उसकी भाषा, व्याकरण, वर्तनी, तथ्य तथा शैली संबंधी अशुद्धियों को दूर करता है तथा खबर के महत्व के अनुसार उसे संपादित कर यह तय करता है कि उस ख़बर को कहाँ जगह दी जाये। ज़ाहिर है यह एक जटिल, लम्बी और उत्तरदायित्व पूर्ण प्रक्रिया है। संपादन- कला उत्तरदायित्व पूर्ण क्रिया है। यह निर्बाध रूप से संपादित हो, इसके लिए प्राय: कुछ सिद्धान्तों का पालन किया जाता है.

 

  • तथ्यों की शुद्धता 
  • वस्तुपरकता 
  • निष्पक्षता 
  • संतुलन 
  • स्रोत

 

संपादन कला के सिद्धान्त

आइए, अब हम इन सिद्धान्तों की संक्षेप में चर्चा करें और यह जानें कि इन सिद्धान्तों का संपादन में क्या महत्व है ?

 

तथ्य की शुद्धता और सत्यता का प्रश्न 

  • मीडिया और पत्रकारिता के लिए यह आवश्यक है कि वह यर्थाथ को प्रस्तुत करे। यर्थाथ को उसकी संपूर्णता में प्रतिबिंबित करने के लिए यह आवश्यक हो जाता है कि तथ्यों का चुनाव बहुत सोच-विचार कर किया गया । तथ्य चुनाव में शुद्धता जहाँ आवश्यक है वहीं यह देखना भी आवश्यक है वह सत्य को उद्घाटित कर पाने में सक्षम है या नहीं। यर्थाथ की पुस्तुति आसान काम नहीं है। यर्थाथ की एक बँधी-बँधाई परिपाटी भी नहीं है। लेकिन हम यर्थाथ को उसकी बहुरंगी छवियों के रूप में तभी ग्रहण कर सकते हैं जब तथ्य सही हो और सत्य । एक तरह से यह प्राथमिक शर्त है- संपादन कला की।

 

वास्तुपरकता 

  • मीडिया में तुपरक दृष्टि का बहुत महत्व तथ्यपरकता का संबंध जहाँ घटनाओं से है वहीं वस्तुपरकता का संबंध उस घटना पर अपनाये जानेवाले दृष्टिकोण से है। इसे थोड़ा और स्पष्ट ढंग से हम इस प्रकार समझ सकते हैं। 

 

  • मानवीय मस्तिष्क जटिल घात-प्रतिघात के बीच विकसित और निर्मित होता है, इसलिए उनमें प्रत्येक मानवीय क्रियाओं के प्रति प्रतिक्रिया का भाव हमेशा वर्तमान रहता है। देश-काल के नैरर्न्तय में उसका मस्तिष्क नई-नई सूचनाओं, तथ्यों सब पर एक अपनी राय स्थिर कर लेता है तो कभी यह भी होता है कि वह घटना को मात्र घटना के रूप में ही देखे। यानी वह केवल इसे छवि / चिह्न के रूप में देखता है सत्य के रूप में नहीं। ऐसी स्थिति में पत्रकार/संवाददाता का यह कर्तव्य है कि वस्तुपरक ढंग से समाचारों और संपादक मण्डल उसे संपादित कर प्रकाशित/प्रस्तुत करे। वस्तुत: वस्तुपरकता का गुण किसी भी तथ्य / घटना को सभी के हित व सबकी मनोभावना के आदर के साथ जुड़ा हुआ है।

 

निष्पक्षता 

  • हांलाकि पक्षधरता मनुष्य का स्वभाव है। अर्थात् मनुष्य अपने विचार, रूचि, आदत, संस्कार में एक विशेष व्यवहार को प्रदर्शित करता है। लेकिन वही मनुष्य जब सामूहिक रूप से कार्य करता है या मीडिया जैसे उत्तरदायित्व की भावना से जुड़ता है तो उसके लिए निष्पक्षता अनिवार्य शर्त बन जाती है। निष्पक्षता एक नहीं हैं। तटस्थता क्रियाहीन स्थिति है जबकि निष्पक्षता सत्य/असत्य के उचित चुनाव का प्रश्न निष्पक्षता का अर्थ है अन्याय के प्रति सत्य का मार्ग धारण करना। मीडिया के लिए निष्पक्षता की शर्त अनिवार्य है नहीं तो वह किसी एक पार्टी, मत, विचारधारा, धर्म या संप्रदाय का होकर रह जायेगा। 

संतुलन 

  • मीडिया के सामने, खासतौर से संपादन के सामने यह समस्या अक्सर उत्पन्न होती कि वह तटस्थ, निष्पक्ष, वस्तुपरक रहकर संतुलन कैसे स्थापित करे। मीडिया जन मंच है, ऐसी स्थिति में विपरीत व्यक्ति, विचार, मत के व्यक्तियों को उसे एक साथ प्रस्तुत करना होता है। अक्सर मीडिया पर यह आरोप लगता भी रहा है कि वह खास मत या विचारधारा को प्रश्रय दे रहा है, यह स्थिति आदर्श स्थिति नहीं है।

 

स्रोत 

  • मीडिया का क्षेत्र संपूर्ण विश्व या कहें कि ब्रह्माण्ड है। ऐसी स्थिति में उसे सूचना/संदर्भ के लिए विभिन्न स्रोतों पर निर्भर होना पड़ता है। इस संदर्भ में यह सिद्ध है कि मीडिया विभिन्न स्रोत से प्राप्त सूचनाओं के स्रोतों का उल्लेख कर दे। राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई सामाचार एजेंसियाँ कार्य करती हैं (पीटीआई, यूएनआई आदि) । इसके अतिरिक्त संवाददाता, रिपोर्टर, व्यक्तिगत स्रोत, संस्था, सरकारी तंत्र, इण्टरनेट इत्यादि कई स्रोत हैं जिनसे मीडिया समाचारों का चयन करता है। स्रोत का उल्लेख जहाँ घटनाओं की प्रमाणिकता बढ़ाता है वहीं सत्य तक पहुँचने का मार्ग भी दिखाता है।

 

मीडिया के लिए लेखन 

  • मीडिया लेखन पर टिप्पणी करते हुए रघुवीर सहाय ने लिखा है; "खबर लिखना बहुत ही रचनात्मक काम हो सकता है। उतना ही रचनात्मक, जितना कविता लिखना; दोनों का उद्देश्य मनुष्य को और समाज को ताकत पहुँचाना है। खबर में लेखक तथ्यों को बदल नहीं सकता पर दो या से अधिक तथ्यों के मेल से असलियत खोल सकता है। स्पष्ट है कि न तो मीडिया लेखन हल्का काम है और न आसान। कोई भी विजनयुक्त कार्य न तो आसान होता है और न हल्का। मीडिया लेखन में भी विभिन्न माध्यमों के लिए अलग-अलग लेखन के तरीके हैं, पद्धतियाँ हैं। अखबार, पत्रिका या प्रिन्ट मीडिया में लिखने की अलग शैली है तो रेडियो, टेलीविजन के अलग शैली। इन माध्यमों की अंतर्निहित विशेषताओं को समझे बगैर हम मीडिया लेखन में सफल नहीं हो सकते। मीडिया के विभिन्न माध्यमों की लेखन-शैली, भाषा और प्रस्तुति में ढेरों अंतर है जो सहज ही हमें परिलक्षित होता है। अखबार, पत्रिका यानी प्रिन्ट मीडिया का संबंध जहाँ हमारे दृश्य (आँखों) विधान से है वहीं रेडियो का संबंध हमारे श्रव्य (कान) विधान से है। इन दोनों से अलग टेलीविजन और इंटरनेट का संबंध दृश्य-श्रव्य दोनों उपकरणों से है। इसे हम इस प्रकार समझ सकते हैं-

 

मीडिया की शैलियाँ- 

  • दृश्य -अखबारपत्र (प्रिन्ट) 
  • श्रव्य -रेडियो 
  • दृश्य + श्रव्य -टेलीविजन इंटरनेट
 

मीडिया के उपर्युक्त माध्यम अलग-अलग ढंग से हमारी शारीरिक-मानसिक-बौद्धिक जरूरतों की पूर्ति से जुड़े हुए हैं। इन सबकी अलग-अलग उपयोगिता है, इस दृष्टि से ये एक-दूसरे के पूरक बनकर सामने आते हैं।

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