प्रिन्ट मीडिया लेखन के नियम |प्रिन्ट माध्यम की प्रमुख विशेषता | Print Writing in Hindi

प्रिन्ट मीडिया लेखन के नियम ,प्रिन्ट माध्यम की प्रमुख विशेषता 

प्रिन्ट मीडिया लेखन के नियम |प्रिन्ट माध्यम की प्रमुख विशेषता | Print Writing in Hindi

प्रिंट लेखन Print Writing in Hindi

 

मीडिया के आधुनिक संसाधनों में प्रिन्ट माध्यम सबसे पुराना है। प्रिन्ट मीडिया या माध्यम के अंतर्गत समस्त छपा हुआ साहित्य आता हैजैसे- समाचार पत्र पत्रिकाएँपुस्तकें इत्यादि मुद्रित माध्यम हमारे श्रव्य विधान (आँखों) से जुड़े हुए है। आँखों का संबंध हमारे मस्तिष्क से जुड़ा हुआ होता है। हम जो देखते हैंपढ़ते हैं वो सीधे हमारे मस्तिष्क में संचित होता जाता है। इस तरह से प्रिन्ट माध्यम हमें लगातार आकर्षित करते रहते है। प्रिन्ट माध्यम की अपनी निजी विशेषता होती हैजिसके कारण वह अपना आकर्षण बरकरार रखे हुए है। 


प्रिन्ट माध्यम की प्रमुख विशेषता

संक्षेप में आप यहाँ प्रिन्ट माध्यम की प्रमुख विशेषता को समझें-

 

  • प्रिन्ट माध्यम पढ़ने में सुविधाजनक है। आप इसे धीरे-धीरेआराम से और अपनी आवश्यकतानुसार पढ़ सकते हैं। 
  • प्रिन्ट माध्यम की भाषा साहित्य और जन भाषा से अलग लोकप्रचलित भाषा होती हैजो सहज ही संप्रेषणीय होती है। 
  • प्रिन्ट माध्यम वैचारिक गंभीरता को भी धारण किए हुए है। अतः यह प्रबुद्ध वर्ग के बीच सर्वाधिक लोकप्रिय है। 
  • प्रिन्ट माध्यम लोकतांत्रिक बहसों से लेकर दार्शनिक प्रश्नों के समाधान को भी अपने में समेटे हुए है। अत: इसका विषयगत वैविध्य बहुत ज्यादा है। 
  • प्रिन्ट माध्यम बालक से लेकर वृद्ध सभी के लिए अपने-अपने ढंग से उपयोगी है।

 

  • वस्तुतः प्रिन्टमीडिया के उपयुक्त गुण ही उसे इलेक्ट्रानिक मीडिया से विशिष्ट बनाते हैं। लेकिन इस माध्यम की कुछ सीमाएँ भी हैं जिसके कारण काफी सावधानियाँ रखनी पड़ती हैं जैसे - निरक्षरों के लिए मुद्रित माध्यम अनुपयोगी हैमुद्रितमाध्यम का स्तर उसके पाठक के अनुरूप होना चाहिएमुद्रित माध्यम खासतौर से अखबार में छपी घटनाओं की सार्थकता अगले दिन निरर्थक हो जाती हैप्रिंट में शब्द सीमा का अनुशासन आवश्यक है तथा प्रिंट में व्याकरणगत अशुद्धि अक्षम्य है। 


प्रिन्ट मीडिया लेखन के लिए कुछ नियम -

इसलिए प्रिन्ट मीडिया ने लेखन के लिए कुछ नियम बनाये हैं-


1. प्रिन्ट माध्यम के लेखन में भाषाव्याकरणवर्तनीशैलीसंरचनासंप्रेषणीयता का ध्यान रखना अनिवार्य है। इस माध्यम में भाषा प्रचलित भी हो सकती है और गंभीर भी। 

 

2. प्रिन्ट लेखन में समय-सीमा और निर्धारित स्थान का पालन करना हर स्थिति में अनिवार्य है। फीचरसंपादकीयलेख इत्यादि के लिए नियत समय और स्थान होते हैं। कुशल संपादक इनका उचित विभाजन और संपादन करता है।

 

3. प्रिन्ट लेखन की सामग्री कई स्रोत से प्राप्त होती है। कई बार संवाददाता उसे इंटरनेट सेकई बार एजेंसियों से तथा कई बार विभिन्न स्रोतों से समाचारों का चयन करता है। समाचार चयन के बाद उसे प्रस्तुतीकरण के योग्य बनाने के लिए समयाभाव का अभाव रहता हैऐसी स्थिति में मुद्रण संबंधी कई गलतियों का रह जाना स्वाभाविक है। व्याकरण संबंधी गलतियों के लिए मुद्रक भले ही जिम्मेदार हो किन्तु उसका उत्तरदायित्व संपादक पर होता है। इसलिए अंतिम प्रकाशन से पूर्व लेखक एवं संपादक सारी सामग्री को जाँचते हैं पुन: जिससे कि पत्र त्रुटि रहित ढंग से प्रकाशित हो सके।

 

4. प्रिन्ट लेखन के लिए केवल व्याकरणगत शुद्धता ही अनिवार्य नहीं है वरन् उसे प्रवाहपूर्ण एवं संप्रेषणीय भी होना चाहिए। प्रिन्ट लेखन की भाषा ऐसी होनी चाहिए जिसे कम पढ़े लिखे व्यक्ति से लेकर प्रबुद्ध सभी समझ सकें। कठिन शब्दों से यथासंभव बचकर लोकप्रचलित शब्दों का चुनाव करना इस दृष्टि से उचित है।

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