होलकर राजवंश की छत्रियाँ। किबे परिवार की छत्रियाँ Holkar Vansh Ki Chatriyan

होलकर राजवंश की छत्रियाँ (Holkar Vansh Ki Chatriyan) 

होलकर राजवंश की छत्रियाँ। किबे परिवार की छत्रियाँ Holkar Vansh Ki Chatriyan



(समूह-दो )

होलकर राजवंश की छत्रियाँ 

छत्रीवाग एवं हरसिद्धि मुहल्लों को जोड़ने वाले पुल के दक्षिण-पश्चिम कोने पर एक परकोटे से वेष्टित होलकर राजवंश की छत्रियों का दूसरा समूह स्थित है। इस समूह में होलकर राजवंश से संबंधित केवल महाराजा हरिराव होलकर की छत्री ही बनी हुई है। शेष अन्य छत्रियां सीधे राजवंश से संबंधित नहीं है। इस परिसर में निम्नलिखित स्मारक हैं:


(1) हरिराव होलकर की छत्री 

(2) हरिराव होलकर का दहन स्थल 

(3) तात्या जोग (विठ्ठलराव किवे) की छत्री 

(4) वापूराव होलकर की छत्री 

(5) प्राचीन बावड़ी 

( 6 ) दीप स्तम्भ 

इस छत्री समूह परिसर का प्रवेश द्वार पश्चिम की ओर हैतथा पूर्व की ओर आकर्षक द्वार तथा घाट बने हुए हैं।

 

(1) हरिराव होलकर की छत्री :

 

  • हरिराव होलकर की छत्री एक ऊंची जगती पर निर्मित कलापूर्ण स्मारक है। 
  • जगती एवं जंघा को विविध प्रकार शिल्पकृतियों से सुसज्जित किया गया है। प्रवेश द्वार की सीढ़ियों के दोनों ओर खड्ग एवं दण्डधारी द्वारपाल बने हुए हैं। कोनों पर कलापूर्ण स्तंभ हैं। 
  • हनुमान, गंधर्व युगल, गणेश, भैरव, राजपुरुषों, परिचारकों एवं नायक-नायिकाओं के साथ ही कृष्ण कथा एवं राम दरबार की प्रदर्शित करने वाले कई शिल्पखण्डों से जगती को अलंकृत किया गया है। कृष्ण कथा आकर्षक है। 
  • द्रोपदी स्वयंवर का दृश्य चित्ताकर्षक है। राजबाड़ा भित्तिचित्रों में जिन विषयों को रंग से बनाया गया था उनमें से अधिकांश कथानक, इस छत्री में शिल्पांकित किए गए हैं। इनसे तत्कालीन शिल्पकला शैली का परिचय प्राप्त होता है।

 

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  • प्रदक्षिणाधिक्रम में जगती के अलंकरण में नायक-नायिकाओं, देव-प्रतिमाओं और राजपुरुषों का आलेखन किया गया है। नायक-नायिकाएँ, छत्रधारी सेक्कों के साथ राजपुरुप, हनुमान, आखेटक, साधुसमाज, शिकार दृश्य में यशोदा-कृष्ण, साधु एवं सेवक, साधु एवं चामरधारी स्त्री का श्रृंगार करता हुआ पुरुष, माँ और शिशु यादवों की इन्द्र-पूजा, चीर-हरण, संगीत एवं नृत्य, हनुमान द्वारा राम की पूजा, कृष्ण एवं गोपियों, आलिंगन मुद्रा में एक सैनिक, आलिंगन मुद्रा में एक यूरोपीय, रासलीला, लकड़ी से खेलते हुए खिलाड़ी, राम द्वारा हनुमान का सम्मान, जुलूस दृश्य, गणेश एवं उपासक, गजलक्ष्मी, मराठा युगल, आलिंगन दृश्य, कालियामर्दन गोवर्धनधारण, दधिदान, अर्जुन द्वारा मत्स्य भेदन, भैरव, राजपुरुष, राजा-रानी, कल्कि, गजारोही राजा, घुड़सवार धनुर्धारी, अनुचर सहित राजपुरुप, हनुमान, एकतारा वादक, इन्द्र, गंगाधर, नारी, नारी श्रृंगार पुरुष द्वारा नारी का केशविन्यास, उमामहेश्वर, ब्रह्मदेव, महिपासुरमर्दिनी और भैरव का आलेखन कलापूर्ण एवं युग के अनुरूप है। मुख्य छत्री के सामने कृष्ण वेणुगोपल को अलग-अलग मुद्राओं में शिल्पांकित किया गया है। 
  • ये सभी प्रतिमाएं मराठा शैली में निर्मित की गई हैं जो उनकी वेशभूषा और अलंकरण से स्पष्ट होता है। देहयष्टि का आलेखन भी किसी मराठा स्त्री का आभास देता है।
  • इन प्रतिमाओं में यद्यपि भाव पक्ष काफी गौण है तथापि विषय-वस्तु पौराणिक है तथा इसमें विविधता है। लौकिक दृश्यों में शिल्पी ने अपने आसपास के परिवेश को ही अभिव्यक्त करने का प्रयास किया है तालमान व अंग सौष्ठव की दृष्टि से ये प्रतिमाएं प्रभावोत्पादक नहीं हैं और न ही इनमें ताल व लय में समन्वय ही है। परन्तु लगभग 800 वर्ष के अंतराल बाद इन प्रतिमाओं का पुनः अलंकरण एक सुखद अनुभूति है।
  • अर्द्धमण्डप में दक्षिणी कोने पर ऊपर छत पर जाने के लिए सीढ़ियां बनी हैं। सभामण्डप 12 स्तम्भों पर आधारित है जिनके मध्य में कलापूर्ण मेहराबें हैं। मेहराबों के मध्य विष्णु एवं अन्य देवी देवताओं की मूर्तियां बनी हुई हैं। छत के समीप कृष्ण, ब्रह्मा, तथा राजपुरुषों का आलेखन है। प्रदक्षिणापथ में 21 वातायन हैं जिन्हें कलात्मक ढंग से अलंकृत किया गया है।

 

  • गर्भ द्वार पर दांयी ओर वेणु गोपाल एवं बांई ओर गरुणनारायण का अंकन है। ललाट विम्व के ऊपर सिरदल पर दशावतार बने हुए हैं। द्वार पर दण्डधारी द्वारपालों एवं परिचारिकाओं का आलेखन हैं। दशावतार पट्टिका के ऊपर बांई ओर शिव, मध्य में गणेश तथा दायी और राम द्वारा हनुमान का समादर अंकित है। दोनों ओर शुकसरिकाएं भी शिल्पांकित हैं। गर्भगृह में दाहिनी ओर भागवत पारायण सुनते हुए भक्त तथा बांई ओर शेषशायी विष्णु का आकर्षक आलेखन है। इनकी कलाकृतियों के पार्श्व में गंगाधर शिव परिवार भी बना हुआ है। गर्भगृह में महाराजा हरिराव होलकर की संगमरमर की मूर्ति प्रतिष्ठित है।

 

  • छत्री का शिखर पंचस्थ शैली का है। इसके ऊपर देवकुलिकाओं मे देवगणों एवं ऋषिमुनियों की प्रतिमाएं बनी हुई हैं। इस प्रकार यह दक्षिण भारतीय मंदिर स्थापत्य शैली में निर्मित शिखरों के समान दिखलाई देता है। इस पूर्वाभिमुखी छत्री का अलंकरण अन्य छत्रियों की अपेक्षा उच्च स्तरीय है। पूरी छत्री काले पत्थर की है परन्तु कलाकृतियां लाल पत्थर पर निर्मित की गई है

 

(2) हरिराव होलकर का दहन स्थल : 

  • हरिराव होलकर की छत्री के समीप दक्षिण की ओर उनका दहन स्थल है। इसके ऊपर एक कलापूर्ण अष्टपहलू देव विमान बना हुआ है। यह निर्माण लाल पत्थर में किया गया है।

 

(3) तात्याजोग की छत्री : 

  • तात्या जोग उर्फ विट्ठल राव किबे को होलकर राज्य का चाणक्य कहा जाता है। होलकरों की ओर से तात्या जोग ने मेजर जनरल मालकम के साथ हुई 1818 ई. की मंदसौर की संधि पत्र पर हस्ताक्षर किए थे। 
  • यद्यपि स्थापत्य कला की दृष्टि से यह छत्री सामान्य स्तरीय है किन्तु ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है। होलकर राज्य की पुनर्स्थापना एवं सुदृढीकरण करने वाले महान व्यक्ति के रूप में तात्या जोग को होलकर के इतिहास में विशेष सम्मान है।

 

(4) बापूराव होलकर की छत्री :

 

  • हरिराव होलकर की छत्री के उत्तर में बावड़ी के समीप एक छोटी छत्री है, जिसे बापूराव होलकर की छत्री कहा जाता है। स्थापत्य कला की दृष्टि से यह उच्च स्तरीय है।

 

किबे परिवार की छत्रियाँ- छत्रीबाग 

  • हरसिद्धी और छत्रीबाग को जोड़ने वाले। पुल के उत्तर पश्चिमी कोने पर एक पक्काघाट दो छत्रियाँ तथा एक दालान जीर्ण शीर्ण अवस्था में स्थित है। यह स्थल हरिराव होलकर की छत्री के उत्तर की ओर है। हरिराव होलकर की छत्री परिसर में ही किये परिवार के मूल पुरुप तात्या जोग की छत्री बनी हुई है। ऐसा प्रतीत होता है कि सारा परिसर पूर्व में किवे परिवार की छत्रियों के लिये ही था, जहां बाद में हरिराव होलकर की भव्य छत्री बना कर सीमांकित कर दिया गया है।

 

  • किबेपरिवार के इस छत्री परिसर में माधवराव किये की छत्री बनी हुई है तथा दूसरी छत्रियां भी हैं, जो किवे परिवार से ही संबंधित हैं। यह स्थल ऐतिहासिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण है। यहां होलकरों के इंदौर प्रवास के समय कैम्प भी लगा करते थे ये स्मारक लगभग 125 वर्ष पुराने हैं, किन्तु इनकी वर्तमान स्थिति काफी दयनीय है।

 
माधवराव किबे की छत्री (क्रमांक- 1) :

 

  • इस छत्री में अर्द्धमण्डप और मण्डप छोटे आकार में निर्मित हैं। गर्भगृह में कलापूर्ण जलाधारी है, किन्तु शिवलिंग नहीं है। 
  • गर्भगृह के आलों में प्रतिमाएँ रही होंगी जो अब विद्यमान नहीं हैं प्रवेश द्वार के ललाट बिम्ब पर गणेश प्रतिमा उत्कीर्ण है। मंदिर का शिखर दो गुम्बजों के रूप में बनाया गया है। सभामण्डप सर्वतोभद्र प्रकार का सादा है। इस छत्री के पीछे पत्थरों से निर्मित एक दालान है। सामने एक कुण्ड और दहन स्थल (चबूतरा) है। शिखर का प्रयोग किया गया है

 

किबे परिवार की छत्री (क्रमांक- 2 ) -

 

इस छन्त्री को शिव मंदिर माना जाता है। 

  • छत्री क्रमांक-1 के सामने उत्तर पूर्वी कोने पर चन्द्रभागा नदी के तट पर स्थित यह छत्री भी अर्द्ध मण्डप व मण्डप से युक्त है। 
  • गर्भगृह में शिवलिंग प्रतिष्ठित है। अर्द्धमण्डप सादे स्तंभों पर आधारित है। 

 

हरिसिद्धि छत्रीबाग पुल के समीप स्थित प्राचीन छत्रियाँ, घाट तथा मंदिर-मोती तबेला

 

  • चन्द्रभागा नदी के पूर्वी किनारे पर हरसिद्धि और छत्रीबाग को जोड़ने वाले पुल के दक्षिण में तथा हरिराव होलकर की छत्री के ठीक पूर्व की ओर नदी तट पर पक्के घाट बने हुए हैं एवं दो छत्रियां हैं जिन्हें अब मंदिर कहा जाता है। 
  • संरचना के आधार पर यह कहा जा सकता है कि इस परिसर को 19वीं शती में निर्मित किया गया होगा। इन छत्रियों में से एक में गणेश तथा दूसरी में शिवलिंग स्थापित है।
  • शिवलिंग तो मूल प्रतिमा से संबंधित है किन्तु गणेश की स्थापना बाद में की गई प्रतीत होती है। उसके भीतर बने हुए पाद पीठ से स्पष्ट है कि मूल रूप में यह निर्माण मंदिर का न होकर छत्रियों से संबंधित रहा होगा। यह किनकी छत्रियां हैं यह ज्ञात नहीं होता।
  • एक छत्री के चारों ओर से मकान बना लिया गया है, केवल ऊपर का गुम्बद मात्र शेष है। यहां दो सती स्तम्भ भी रखे हुए हैं। 
  • नदी तट पर घाटों के साथ ही छोट- छोटे तीन चबूतरे भी बने हुए हैं। इनमें से एक चबूतरे पर नवीन हनुमान प्रतिमा रखी हुई है। ये तथाकथित मंदिर पश्चिमाभिमुखी हैं और इनके शिखर चूना, रेत तथा ईंट से निर्मित हैं। 
  • दोनों मंदिरों (छत्रियों) को ऊंची जगती पर अर्द्ध मण्डप एवं गर्भगृह के साथ बनाते हुए किया गया है। अर्द्धमण्डप के ऊपर गुम्बद बना हुआ है। 

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