होलकर राजवंश की छत्रियाँ-छत्रीबाग समूह की छत्रियां । Chhatris of Holkar Dynasty

 होलकर राजवंश की छत्रियाँ (Chhatris of Holkar Dynasty)

होलकर राजवंश की छत्रियाँ-छत्रीबाग समूह की छत्रियां । Chhatris of Holkar Dynasty


 

होलकर राजवंश की छत्रियाँ (Chhatris of Holkar Dynasty)

 

  • इन्दौर नगर में होलकर राजवंश की छत्रियाँ स्थापत्य एवं कलात्मक दृष्टिकोण से काफी महत्वपूर्ण हैं। मुगल, मराठा और राजपूत स्थापत्य शैलियों में इन छत्रियों का निर्माण होलकर राजवंश और उनके पारिवारिक सदस्यों के दहन स्थल पर किया गया है। 
  • होलकर राजवंश में छत्रियों का निर्माण लगभग ई. सन् 1780 से प्रारम्भ होता है, जब अहिल्या बाई ने आलमपुर में सूबेदार मल्हारराव होलकर की छत्री का निर्माण कराया। बाद में महेश्वर में अहिल्याबाई होलकर की छत्री और भानपुरा में यशवन्तराव होलकर की छत्रियों के अनुक्रम में इन्दौर में खान और चन्द्रभागा में नदियों के तटों पर छत्रियों का निर्माण कराया गया। 
  • इस प्रकार इन्दौर नगर में होलकर राजवंश की छत्रियों के तीन मुख्य समूह हैं। दो समूह छत्री बाग में हैं और तीसरा समूह कृष्णपुरा में स्थित है। छत्रीबाग के प्रथम समूह की छत्रियां एक बड़े परकोटे के भीतर बनी हुई हैं।


छत्रीबाग के प्रथम समूह की छत्रियां

 

(1) मल्हारराव होलकर की छत्री 

(2) मालेराव होलकर की छत्री

(3) खाण्डेराव होलकर की छत्री 

(4) तुकोजीराव प्रथम की छत्री 

(5) मल्हारराव होलकर (द्वितीय) की छत्री 

(6) ताई बाई होलकर की छत्री 

(7) स्नेहलता राजे की छत्री 

(8) इंदिराबाई होलकर का दहन स्थल

 

  • इनमें से प्रथम पांच छत्रियां तथा दहन स्थल परिसर के दक्षिण भाग में हैं, एवं शेष तीन छत्रियां उत्तरी भाग में हैं। इन छत्रियों में राजकुमारी स्नेहलता राजे की छत्री तथा इंदिराबाई होलकर का दहन स्थल अधिक प्राचीन नहीं हैं, किन्तु पूरे क्षेत्र के साथ सम्मिलित करने योग्य हैं।

 

  • दक्षिण भाग में प्रवेश के लिए आकर्षक दो मंजिले दरवाजे से जाना पड़ता है। यह दरवाजा अहिल्या बाई होलकर के राज्यकाल 1766 से 1775 ई. की स्थापत्य कला का सुंदर उदाहरण है। वस्तुतः उत्तरी भाग की छत्रियां जिस परकोटे से घिरी हैं वह दक्षिणी भाग का विस्तार है। यह दरवाजा उत्तराभिमुखी है। भीतर की सभी पुरानी छत्रियां भी उत्तराभिमुखी हैं। केवल स्नेहलता राजे की छत्री, जो ई. 1925 के बाद निर्मित की गई है, तल विन्यास में दक्षिणाभिमुखी है।

 

  • परिसर के उत्तरी भाग में केवल तीन छत्रियां हैं। इनका प्रवेश द्वार पश्चिमाभिमुखी तथा कलात्मक है। इस परिसर में तुकोजीराव प्रथम एवं मल्हारराव द्वितीय की छत्रियां दक्षिणाभिमुखी हैं, किन्तु ताईवाई होलकर की छत्री उत्तराभिमुखी निर्मित की गई है।

 

स्थापत्य कला की दृष्टि से होलकर राजवंश की छत्रियों का इस प्रकार है:

 

(1) मल्हारराव प्रथम एवं गौतमा बाई होलकर की छत्री

 

  • सूबेदार मल्हारराव होलकर (ई. 1728-1766), होलकर राजवंश के संस्थापक थे। मंगलवार 20 मई, 1766 ई. को भिण्ड जिले के आलमपुर में इनका निधन हुआ था। इससे पांच वर्ष पूर्व मल्हारराव होलकर की पत्नी गौतमाबाई का निधन बुधवार 21 अक्टूबर, 1761 को हुआ। मल्हारराव के पार्थिव शरीर के साथ उनकी उप पलियां द्वारिका बाई और वैजा बाई आलमपुर में ही सती हो गई, जबकि खाण्डारानी और हरकूबाई काफी समय तक जीवित रहीं। 


  • मल्हारराव की मुख्य छत्री अहिल्याबाई होलकर द्वारा आलमपुर में बनवाई गई, परन्तु अहिल्याबाई ने स्मारक स्वरूप नके अवशेषों को रखकर दूसरी छत्री का निर्माण इन्दौर के छत्री बाग में कराया ।

 

  • मल्हारराव होलकर की इन्दौर स्थित छत्री उनकी पत्नी तमाबाई होलकर की छत्री के साथ-साथ ही ई. सन् 1784 पूर्व निर्मित हो चुकी थी । अहिल्याबाई के 26 मई 1784 को इन्दौर आगमन के समय उनका निवास छत्रीबाग में रहा था ।

 

  • यह छत्री अत्यधिक कलापूर्ण है। दोहरे गुम्बद वाली इस छत्री का निर्माण एक ऊंची दोहरी जगती पर किया गया है। मुख्य म्वद का आधार आयताकार है। दोनों ही गुम्बद आकार में अधोमुखी कमल पुष्प की तरह दिखलाई देते हैं, जिन पर कमल दल का आमलक सारक बनाया गया है। 
  • छत्री के मुख्य प्रवेश का सम्मुख भाग तथा दोनों पार्श्व अर्द्धवृत्ताकार हैं जो राजस्थान की आमेर व जयपुर शैली में निर्मित हैं। मुख्य प्रवेश के दोनों स्तम्भ भी अर्द्धवृत्त से जुड़े हैं, जिनके नीचे पद्ममाल का वृत्त है जो निश्चित ही दिलवाड़ा (राजस्थान) के जैन मंदिर के अनुक्रम में हैं। अर्द्धमण्डप के साथ ही बड़े गुम्बद को कलापूर्ण स्तम्भों के सहारे निर्मित किया गया है। इस प्रकार जगती का खुला भाग प्रदक्षिणा पथ वन जाता है। 
  • स्तम्भों का निर्माण हलके भूरे और लाल रंग के पत्थरों से किया गया है। केन्द्र का बड़ा गुम्बद जगती पर स्थित 12 स्तम्भों पर आधारित है। स्तम्भों की आलम्बन पिण्डिका ऊंची तथा आयताकार है, जिसमें ज्यामितीय अलंकरणों में गज और मानव आकृतियों का अंकन किया गया है। स्तंभ यष्टि अष्टकोणीय है, तथा ऊपर की ओर शंखाकार है। स्तम्भ शीर्ष एक लम्बी यष्टि के रूप में चौकोर है, जिस पर ज्यामितीय और पुष्प बल्लरियों का अलंकरण किया गया है। उसकी भीतरी दीवारों का कलात्मक भित्ति चित्रों से अलंकृत किया गया था, जिनके अवशेष अभी भी दिखलाई देते हैं। 

  • गुम्बद के आधार पर चारों ओर आकृतियां बनी हैं। छोटे गुम्बद के द्वार पर ललाट विम्व में गणेश प्रतिमा अंकित है। पूरी छत्री एक देव विमान के रूप में प्रतीत होती है। 

  • अलंकरण की दृष्टि से पूरी छत्री में लता वल्लरियों का शिल्पांकर कलात्मक है। सूर्य, महिपमर्दिनी तथा कृष्ण कथा को प्रदर्शित करने वाली प्रतिमाएं बनी हुई हैं। सामने स्तंभों पर महिपमर्दिनी, गणेश तथा ब्रह्मा सहित यम की प्रतिमाएँ बनी हुई हैं।

 

मालेराव होलकर की छत्री :

 

  • निर्माण काल क्रम की दृष्टि से मल्हारराव होलकर के बाद मालेराव की छत्री का क्रम है। इस छत्री का निर्माण भी अहिल्याबाई होलकर ने ई. 1784 पूर्व कराया था। 
  • मालेराव होलकर अहिल्याबाई का इकलौता पुत्र था। मंगलवार 20 मई, 1766 से शुक्रवार 13 मार्च 1767 ई. तक यह शासक रहा। इस छत्री का निर्माण मल्हारराव होलकर की छत्री के पश्चिम की ओर दोहरी ऊंची जगती पर किया गया है। छत्री भी अत्यधिक कलापूर्ण है एवं स्थापत्य का सुन्दर उदाहरण है। 

  • जगती पर द्वार के दोनों ओर क्रमश: एक देव प्रतिमा एवं द्वारपाल का आलेखन है। सनाल पद्म पर बैठे हुए देवता का वाहन सिंह है। सिर पर जटाएँ हैं एवं बाई भुजा पर एक पक्षी बैठा हुआ बनाया गया है। संभवतः यह देव प्रतिमा यम की होगी, किन्तु वाहन महिप न होकर सिंह बनाया जाना प्रतिमा लक्षणों के विपरीत है। जगती के दक्षिणी भाग में भैरव की एक आकर्षक प्रतिमा बनी हुई है। इसके हाथों में खड्ग एवं कपाल है। दूसरी प्रतिमा ऋद्धि-सिद्धि सहित चतुर्भुजी गणेश की है। गणेश के हाथों में अंकुश एवं परशु का अंकन है। 
  • उत्तराभिमुखी इस छत्री की प्रथम जगती के कोनों के स्तंभ लाल बलुआ पत्थर में बने हैं, जबकि पूरी जगती ब्लेक बेसाल्ट की बनी हुई है ।

 

  • छत्री की द्वितीय जगती अपेक्षाकृत कम ऊंची है और दक्षिण खण्डों में विभाजित है। इन खण्डों पर घटपल्लव एवं लता वल्लरियों से अलंकृत स्तंभ हैं जिन पर ऊपर कीचक के स्थान पर कमल दल बने हैं। स्तंभ कमल कलिकाओं एवं गज व्यालों से अलंकृत कुम्भिकाओं पर आधारित हैं। यह छत्री भी दोहरे गुम्बज वाली है, प्रवेश द्वार तोरण से युक्त है, गर्भगृह गुम्बद से युक्त तथा तीन ओर से बंद है। इसका प्रवेश द्वार आकर्षक है। द्वितीय गुम्बद भी अत्यधिक अलंकृत एवं चित्रित है। अलंकरण में लता वल्लरियों, घट-पल्लवों एवं हाथियों के आलेखन की प्रधानता है।

 

  • स्थापत्य कला की दृष्टि से यह छत्री उल्लेखनीय है। गर्भगृह में एक हाथी के ऊपर रानियों को बैठा हुआ बनाया गया है। मूल प्रस्थापित प्रतिमा मालेराव की है, जिसमें दोनों पार्श्व में उसकी रानियों की मूर्तियां हैं। अहिल्याबाई जब मई 1784 ई. में इन्दौर प्रवास में थीं तब उन्होंने अपने स्वसुर एवं पति की स्मृति में उनकी मूर्तियां प्रस्थापित करवाई थीं। संभवतः मालेराव की प्रतिमा भी उन्हीं के समय प्रतिष्ठित की गई होगी।

 

खाण्डेराव होलकर की छत्री :

 

  • अहिल्याबाई होलकर के पति खाण्डेराव होलकर कभी राजा नहीं रहे परन्तु एक बहादुर सैनिक के रूप में उनकी ख्याति रही। कुम्मेर के घेरे के समय शनिवार 9 मार्च 1754 ई. को खाण्डेराव मारे गए थे। जहां उनकी अन्य पलियां सती हो गई थीं परन्तु मल्हारराव ने बड़े आग्रह से अहिल्याबाई को सती होने से रोक लिया। 
  • इनकी मुख्य छत्री कुम्भेर में ही बनी है। उनकी स्मृति में अहिल्याबाई ने इंदौर में छत्री निर्मित कराई। मई, 1784 ई. में अहिल्याबाई द्वारा उसमें खाण्डेराव की प्रतिमा प्रतिष्ठित की गई । पेशवा के वकील कशोभिकाजी दातार ने लिखा है कि इस स्थापना महोत्सव के समय 10-12 हजार लोगों को भोजन करवाया गया था और जमीदारों, कमाविसदारों एवं साहूकारों को शाल और पगड़ियां वांटी गई थी ।

 

तुकोजीराव प्रथम की छत्री :

 

  • अहिल्याबाई होलकर की मृत्यु के बाद सेनापति तुकोजीराव ने राजराना सम्हाली, परन्तु 15 अगस्त, 1787 ई. को किरकी के समीप उनकी मृत्यु हो गई। उसकी मूल छत्री वही पर स्थित हैं और स्मृति स्वरूप छवीबाग में उसकी छत्री का निर्माण कराया गया महाराजा यशवन्तराव होलकर प्रथम ने जब महेश्वर में अहिल्याबाई होलकर की छत्री के निर्माण का निर्णय लिया तभी उसने अपने पिता तुकोजीराव की छत्री निर्माण का भी निर्णय लिया होगा। बाद में कृष्णाबाई होलकर के निर्देशन में इस छत्री का निर्माण पूर्ण किया गया।

 

  • यह छत्री श्रृंग मंजरियों से युक्त शिखर के साथ सप्तरथ प्रकार की है। छत्री का निर्माण ऊंची जगती पर किया गया है। प्रवेश द्वार के साथ दो कलात्मक स्तम्भों पर अर्द्ध मण्डप आधारित है। सपाट स्तंभों से युक्त सभा मण्डप का विधान है। अंतराल के स्तंभ गवाक्ष तथा गर्भगृह का द्वार पर्याप्त रूप से अलंकृत है। जगती पर द्वारपाल, शिकार दृश्य, हाथी, घोड़ों, और ऊंटों के आलेखन किये गए हैं। इन अलंकृत पट्टों को कलापूर्ण बनाया गया है। द्वारपालों की वेशभूषा एवं हाथों में बंदूकों का शिल्पांकन 18 वीं 19 वीं शती में इनके निर्माण का परिचायक है।

 

  • जगती पर दक्षिणाधिक्रम में भक्तों द्वारपालों एवं देवगणों के साथ नायक-नायिकाओं और अर्द्ध-नारीश्वर, शिव आदि की प्रतिमाएं बनाई गई हैं। नायिका से उपहार ग्रहण का दृश्य आकर्षक । जंघा पर आलिंग मुद्रा में नायक का आलेखन उत्कृष्ट है। छत्री दक्षिणाभिमुखी हैं। पूर्वी दीवार पर श्रृंगार करती हुई नायिका, शिव-पार्वती और वीणावादिनी प्रतिमाओं में सरसता है। जंघा में सुर-सुन्दरियां, देवगणों, नर्तकों एवं वादकों को भी शिल्पांकित किया गया है। गजलक्ष्मी प्रतिमाएँ बहुत ही प्रभावशाली हैं। पूरी छत्री काले पत्थर की बनी है, परन्तु कलाकृतियां लाल पत्थर में बनाई गई है।

 

  • छत्री का मूल शिखर पंचरथी है, किन्तु अंतराल की दो उरुश्रृंग पट्टिकाएं ऊपर मिल कर पूरी संरचना को सप्तरथी बना देती हैं। अंतराल की छत विशेष अलंकृत है, जो मुगल एवं मराठा स्थापत्य  कला का सम्मिश्रण है। गवाक्षों में वेणु वादन करते हुए कृष्ण का अंकन लोक-कला का परिचायक है। सप्त शाखा द्वार के ललाट बिम्ब पर गणेश प्रतिमा है जिसके ऊपर कलश बने हुए हैं।

 

  • गर्भगृह में शिवलिंग की प्रतिष्ठा है पृष्ठ भाग में ऊंचे आसन पर सेनापति तुकोजीराव तथा उनकी दो पलियों की प्रतिमाएं हैं। पूर्वी दीवार पर पार्वती एवं गणेश स्थापित हैं। प्रतिमाओं की पीठिकाएं पर्याप्त कला पूर्ण हैं। और गर्भ के सामने चन्द्र शिला भी बड़ी आकर्षक है। अंतराल से लगे सभामण्डप के स्तम्भ सपाट और चौकोर हैकिन्तु बीच के स्तम्भ कला पूर्ण हैं। 


मल्हार राव (द्वितीय) होलकर की छत्री :

 

  • तल विन्यास की दृष्टि से मल्हारराव द्वितीय (1811 से 1833 ई.) की छत्री तुकोजीराव प्रथम की छत्री के समान है। इसमें अपेक्षाकृत कम अलंकरण किया गया है। मण्डप को पूर्व-पश्चिम लम्बाई में बनाया गया है, जिससे स्वयमेव ही प्रदक्षिणापथ का आकार बन जाता है। मण्डप चार स्तम्भों पर आधारित है। अंतराल में द्वार के अतिरिक्त तीन अर्द्धमण्डप बनाए गए हैं। सामने के अर्द्ध मण्डप को दक्षिण की ओर बढ़ाकर लम्बा किया गया है।
  •  अर्द्धमण्डप के ऊपर चार स्तम्भों पर आधारित एक गुम्बद है। छत्री के गर्भगृह में सप्तशाखा द्वार है, और इसमें मुख्य प्रतिमा की पादपीठ पर सप्तसतियों का आलेखन है। मल्हारराव की प्रतिमा के साथ तीन स्त्री प्रतिमाएं भी प्रतिष्ठित हैं। गर्भगृह के मध्य में शिवलिंग है एवं पूर्व की ओर गणेश प्रतिमा प्रतिष्ठित हैं। छत्री की सीढ़ियों के दाहिनी ओर जगती पर एक अलंकृत शिल्पखण्ड हाथी और ऊंट के युद्ध के दृश्य हैं। बाईं ओर का शिलाखण्ड टूट कर नष्ट हो चुका है। निर्माण में शिखर को लाल पत्थर बनाया गया है।

 

ताई बाई (रखमाबाई) होलकर की छत्री :

 

  • रखमाबाई होलकर, जिन्हें सम्मान से ताई वाई कहा जाता था, सेनापति तुकोजीराव होलकर की पत्नी थी। अहिल्याबाई की मृत्यु के बाद लम्बे समय तक खासगी जागीर इनके नियंत्रण में रही। अहिल्यावाई के द्वारा सवाई मल्हारराव होलकर को बंदी बनाने के कारण ये रुष्ट रहीं और अपना अधिकांश समय इंदौर में ही बिताया।

 

  • रखमाबाई की उत्तराभिमुखी छत्री एक ऊंची जगती पर निर्मित है, तल विन्यास में सामान्य है। गर्भगृह में शिवलिंग के समक्ष स्थानक मुद्रा में रखमा बाई की प्रतिमा है। छत्री का विन्यास छः पहलू वाला है और शिखर सादा है। इसमें आलेखन को अधिक उभारा नहीं गया और संरचना में यह पंचरथी है, किन्तु रथ पलूटेड डोम की संरचना का आभास देते हैं। अर्द्धमण्डप भी सामान्य स्तरीय है। उसके ऊपर एक छोटा गुम्बद है जो विकसित कमल जैसा है। छत्री की जगती पर पूर्णविकसित पद्म कलिकाएं हैं, जबकि स्तम्भों पर नृत्यरत मयूर रेखांकित है।

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